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कानूनी नोटिस और नोटिस वापसी: प्रक्रिया, महत्व और चुनौतियाँ

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।


  प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,

 भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;

 भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ; 

भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) । 


भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद - पत्र में न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का नाम लिखना आवश्यक नहीं है ।


     तत्पश्चात् दूसरी लाइन में वाद संख्या लिखी जाती है जो वाद के रजिस्टर्ड हो जाने के बाद न्यायालय के कर्मचारी द्वारा लिखी जाती है । न्यायालय के प्रचलन के अनुसार वाद का वर्ष निम प्रकार लिखा जाना चाहिये


 मूल दीवानी संख्या                                                                                         2022

वाद संख्या                                                                                                     2022

शीर्षक ( Heading ) के पश्चात् पक्षों का नाम आता है जो निम्न प्रकार लिखना चाहिये

 ( i ) प्रत्येक वादी का नाम , विवरण तथा निवास स्थान


 ( ii ) प्रत्येक प्रतिवादी का नाम , विवरण तथा निवास स्थान ।

                  यदि वादी या प्रतिवादी नाबालिग ( Minor ) हों , अस्वस्थ चित्त ( Unsound Mind ) वाल व्यक्ति हो तो इस तथ्य का वर्णन दिया जाएगा । इसमें यह भी वर्णन दिया जाएगा कि कौन व्यक्ति उनका अनन्य ( Exclusive ) हितैषी या संरक्षक ( Guardian ) है । यदि ऐसा व्यक्ति वादी है उसका अनन्य हितैषी लिखा जायेगा , यदि प्रतिवादी है तो उसका संरक्षक लिखा जायेगा । 


भाग 2 :- वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) - वाद - पत्र के शरीर के अन्तर्गत निम्नलिखित तथ्य दिये जायेंगे


 ( i ) वाद - कारण उत्पन्न करने वाले तथ्य तथा वह समय जब वह उत्पन्न हुआ । 


( ii ) यह दिखाने वाले तथ्य कि न्यायालय को क्षेत्राधिकार प्राप्त है । 


भाग 3 दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) अन्तिम और तीसरे भाग में उस अनुतोष का विवरण दिया जायेगा जिसका वादी दावा करता है । जहाँ वादी ने कोई प्रतिसादन Set - off ) स्वीकार किया है या अपने दावे के किसी भाग को छोड़ दिया है वहाँ इसप्रकार स्वीकृत की गयी या छोडी गयी रकम भी लिखी जायेगी।

                 तत्पश्चात् क्षेत्राधिकार और कोर्ट फीस के उद्देश्यों के लिये वाद की विषय वस्तु की कीमत का वर्णन होगा जो उस मामले में निर्धारित की गई हो ।

      अन्त में वाद की विषय वस्तु ( Subject Matter ) के सत्यापन ( Verification ) होगा जो से निम्न प्रकार होता है 


मैं ,अ,ब सत्यापित करता हूँ कि इस वाद - पत्र के पेराग्राफ से 10 तक की विषय - वस्तु मेरी व्यक्तिगत जानकारी में सही हैं और मैं उनके सत्य होने का विश्वास करता हूँ ।.............. ( स्थान का नाम ) आज दिनांक ..............2022  को सत्यापित किया गया ।


 वाद - पत्र के सम्बन्ध कुछ मौलिक नियम ( Some Orginal Rules Relating to Plaint ) वाद पत्र के सम्पन्ध में कुछ मूल निगम सी ० पी ० सी ० के आदेश 7 में दिये गये हैं जो संक्षेप में निम्न प्रकार है


 1. धन सम्बन्धी वादों में ( ln Case of Suits Relating to Money )- आदेश 7 नियम 1के अनुसार जहाँ वादी नगद रुपया वसूल करने का हकदार है तो वहाँ दावा करने वाली निश्चित रकम वाद - पत्र में लिखी जायेगी । परन्तु जहाँ वादी मध्यवर्ती लाभों या ऐसी रकम के लिये जो उसकी ओर से होने के बाद किया जा सकता है अन्य किसी ऐसी रकम के बारे में जो दोनों पक्षों के हिसाब किये बिना निश्चित नहीं हो सकती तो अनुमानित रकम लिखनी चाहिये और उस पर कोर्ट फीस देनी चाहिये ( आदेश 7 नियम 2 ) । 


2. जहाँ वाद की विषय वस्तु अचल सम्पत्ति है ( In Case the Subject - Matter of suit is Immovable Property ) — आदेश 7 नियम 4 के अनुसार , जहाँ वाद की विषय वस्तु अचल सम्पत्ति है , वहाँ वाद - पत्र में सम्पत्ति का ऐसा वर्णन किया जायेगा जो उसकी पहचान भू परिभाषाबन्दोबल सम्बन्धी अभिलेख में दी गई सीमाओं या संस्थाओं द्वारा की जा सकी है यहाँ बाद पत्र में ऐसी सोमायें या संस्थायें लिखी जायेंगी । 


3. जहाँ वादी प्रतिनिधि के रूप में वाद करता है ( In Case Plaintiff files suit in a Representive Caperity आदेश 7 नियम 4 के अनुसार , जहाँ वादी प्रतिनिधि के रूप में वाद लाता है वहाँ वाद पत्र में न केवल यह कि उसका विषय वस्तु में वास्तविक हित विद्यमान है  वरन् यह भी उससे सम्बन्धित वाद दायर करने के लिये उसे समर्थ बनाने के लिये आवश्यक कदम ( यदि हो) वह उठा चुका है , दिखाना होगा ।


4. प्रतिवादी के हित और दायित्व का दिखाया जाना ( To Disclose Interest and Liability of Defendans ) आदेश 7 नियम 5 के अनुसार , बाद पत्र में यह दिखाया जायेगा कि प्रतिवादी वाद  की विषयवस्तु में हित रखता है या रखने का दावा करता है तथा वह वादी की माँग का उत्तर  देने के लिये है उत्तरदायी है । इस नियम का तात्पर्य यह है कि वादी के दावे से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि प्रतिवादी का उस बात से क्या  सम्बन्ध है जिसका दावा किया जाता है और प्रतिवादी किस प्रकार उत्तरदायी है।


5. मर्यादा विधि से छूट के आधार ( Grounds of Exemption from Law of Limilation ): आदेश 7 नियम 6 के अनुसार , जहाँ वाद मर्यादा विधि द्वारा निर्धारित कालावधि को समाप्ति के बाद दायर किया जाता है वहाँ वाद - पत्र में यह आधार लिखा जायेगा जिस पर ऐसी विधि से छूट पाने का दावा किया गया है ।


 6. अनुतोष का लिखित कथन ( Written Statement of Relief ) आदेश 7 नियम 7 के अनुसार , प्रत्येक वाद - पत्र में उस अनुतोष का लिखित रूप से कथन होगा जिसके लिये आम तौर से वादी दावा करता है और यह आवश्यक नहीं होगा कि ऐसा कोई साधारण या अन्य अनुतोष माँगा जाये जैसा कि न्यायालय द्वारा उचित ठहराये जाने से हमेशा ही वादी को दिलाया जाता है मानों कि यह माँगा गया हो । 


7. पृथक् आधारों पर आधारित अनुतोष ( Relief based on different grounds ) - आदेश 7 नियम 8 के अनुसार , जहाँ यादी कई भिन्न - भिन्न वाद हेतुओं के विषय में , जो एक दूसरे से अलग कारणों पर आधारित हाँ , अनुतोष चाहता है तो वे सब जहाँ तक सम्भव हो अलग अलग लिखे जाने चाहिये ।

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