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अभिवचन क्या होते है ?अभिवचन के कौन कौन से उद्देश्य होते है ?(what do you understand by pleading? State the objects of Pleading.)

 अभिवचन का अर्थ एवं परिभाषा ( Meaning and Definition of Pleading ) 


अभिवचन उन लिखित कथनों को कहते हैं जो किसी वाद की कार्यवाही के पक्षकारों द्वारा दाखिल किए जाते हैं । इनमें वे समस्त तथ्य एवं तर्क दिए जाते हैं जो वाद की सुनवाई के समय उठाए जाएँगे तथा उनमें ऐसे सभी विवरण दिए जाते हैं जिनकी आवश्यकता विरोधी पक्षकार को अपना मामला तैयार करने में होती है । अभिवचन की प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

 1. आर्जस के अनुसार- " अभिवचन प्रत्येक पक्षकार द्वारा लिखित रूप से प्रस्तुत किये गए ऐसे कथन होते हैं जिनमें वह उल्लेख करता है कि मुकदमें के परीक्षण में उसके क्या अभिवचन होंगे , इन कथनों में वह उन सब विवरणों को प्रस्तुत करता है जो इसके विपक्षी के लिये उत्तर में अपना मामला तैयार करने के लिए आवश्यक हों । " 


2. पी ० सी ० मोघा के अनुसार- " अभिवचन ऐसे कथन होते हैं जो किसी मामले के प्रत्येक पक्ष द्वारा लिखित तथा तैयार किये जाते हैं । इनमें इस बात का कथन किया जाता है कि परीक्षण में उसका क्या अधिकथन होगा और उसमें ऐसी सब बातों का विवरण रहेगा जो दूसरे पक्षकारों को अपना मामला तैयार करने के लिये आवश्यक हो । " 


3. दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 के अनुसार- " अभिवचन से तात्पर्य - ( i )  वाद - पत्र , तथा ( ii ) लिखे कथन से है । अतः अभिवचन के अन्तर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित दो वस्तुएँ शामिल हैं-


( 1 ) वाद - पत्र ( Plaint ) - वाद - पत्र दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद - कारण तथा समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है । 


( II ) प्रतिवाद - पत्र ( Written Statement ) - प्रतिवाद - पत्र या लिखित कथन प्रतिवादी द्वारा पेश किया गया लिखित बचाव होता है जिनमें प्रतिवादी वाद - पत्र में वर्णित प्रत्येक तथ्य पर अपना कथन करता है तथा ऐसे नये तथ्यों का वर्णन करता है जो उसके पक्ष में हो सकते हैं ।  प्रतिवादी अपने प्रतिवाद - पत्र में ऐसी कानूनी आपत्तियों का भी वर्णन करता है जिन्हें वह वाद में उठाना चाहता है ।



अभिवचन के उद्देश्य ( Objects of Pleading )


          अभिवचन का मुख्य उद्देश्य इस बात की जानकारी देना होता है कि विपक्षी का मामल क्या है ? वास्तव में अभिवचन का उद्देश्य यह जानना होता है कि किन - किन बातों पर पक्ष सहमत है और किन पर असहमत , ताकि पक्षों के झगड़े को निश्चित विप्रश्नों में लाया जा सके । इस प्रकार पक्षों को स्वयं पता लग जाता है कि किन विषयों पर विवाद बाकी रह गया है और सुनवाई के समय उन्हें किन तथ्यों को सिद्ध करना है । इस प्रकार इससे उन खर्चों में कमी की जा सकती है जो कि आवश्यक साक्ष्य के देने में होते हैं । 


      अभिवचन के उद्देश्य के सम्बन्ध में ' थाप बनाम होल्डवर्थ ' के अंग्रेजी बाद ( 1873 ) 3 सी . एच . 637 ( 639 ) के निर्णय में कहा गया यह प्रसिद्ध कथन उल्लेखनीय है- अभिवचन का सम्पूर्ण उद्देश्य पक्षकारों को निश्चित वाद पद पर ले आना है और अभिवचन के नियमों का अर्थ विवाद को बढ़ाने से रोकना है , क्योंकि विवाद का बढ़ना प्रत्येक पक्षकार को विवाद हेतु पर विचारण प्रारम्भ होने पर यह जानने से रोकता है कि वह असली मुद्दा क्या है जिस पर बहस होती है और निर्णय दिया जाना है ।


           उच्चतम न्यायालय ने लाडली प्रसाद के वाद ( ए . आई.आर. 1963 सु . को . 1279 ) में स्पष्ट रूप से कहा है कि अभिवचन का उद्देश्य-


 ( 1 ) पक्षकारों का ध्यान विवाद वाली बात पर केन्द्रित करते हुए उन्हें विचारण पर ले आना ,

 ( 2 ) विवाद को ठीक वाद पदों तक सीमित करना , और


 ( 3 ) उन्हें इस बात की जानकारी देना कि किस मुद्दे पर बहस होती है और निर्णय दिया जाना है , जिससे कि


 ( 4 ) वे एकाएक अचम्भे में न आ जायें ।


         अपने आधुनिकतम याद आर . एस . गुप्ता बनाम बी . एन इण्टर कालेज ( ए . आई . आर . 1987 सु . को . 1242 ( 1247 ) में दिए गए निर्णय में पुनः उपर्युक्त बातों की पुष्टि करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अभिवचन का उद्देश्य विपक्षी को यह जानने में समर्थ बनाना है कि उसे किस मामले का सामना करना है । निष्पश्च विचारण के लिए यह जरूरी है कि पक्षकार सारवान् तथ्यों का कथन करें जिससे कि उसका विपक्षी अचम्भे में न आ जाए ।


 आर . एस . गुप्ता बनाम बी . एन . इण्टर कालेज ( ए.आई.आर. 1987 सु को 1242 ( 1247 ) में दिये गये निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अभिवचन का उद्देश्य विपक्षी को यह जानने में समर्थ बनाना है कि उसे किस मामले का सामना करना है । निष्पक्ष विचारण के लिए यह जरूरी है कि पक्षकार सारवान् तथ्यों का कथन करें जिससे उसका विपक्षी अचम्भे में न आ जाय ।

          न्यायालयों को बहुत ही सावधानी से समस्त विवादों में यह देखना चाहिए कि विवादकारी अपना अपना विवाद इतने साधारण , पूर्ण तथा स्पष्ट रूप से अपने अभिवचनों में कहें कि हर पक्ष को यह पता चल जाये कि उसके विरुद्ध किस प्रकार का विवाद है जिसका मुकाबला करना है । ( गौरी शंकर बनाम जानकी कुँवर  इला.571 ) .



 प्रीवी कौंसिल का मत व्यक्त करते हुए लार्ड हैल्सबरी ( Lord Halsbury ) ने अभिवचन का उद्देश्य बतलाते हुए कहा कि " अभिवचन की प्रणाली चाहे जो भी हो उसका एकमात्र उद्देश्य यही है कि प्रत्येक पक्ष उन प्रश्नों को भली भाँति जान ले जिनके बारे में बहस की जायेगी , जिससे कि उसको ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर मिल सके जो कि वाद - पत्रों के लिए उपयुक्त है । " ( सैयद मोहम्मद बनाम फतेहअली मोहम्मद 23 इण्डियन अपील्स 4 PC ) 




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