अभिवचन के आधारभूत नियम ( Fundamental Rules of Pleading )
दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 के अनुसार , अभिवचन में निम्नलिखित बातों का वर्णन किया जाना चाहिये -
1. केवल तथ्यों का वर्णन किया जाना चाहिये , विधि का नहीं ( Only Facts must be stated , not Law ) – अभिवचन में केवल तथ्यों को ही लिखना चाहिये कानून को नहीं । कानून के उपबन्धों और तथ्य के मिश्रित निष्कर्षो का वर्णन अभिवचन में नहीं करना चाहिये । इसका कारण यह है कि कानून के अभिवचनों का पता लगाना और उसकी परीक्षा करना न्यायालय का कर्त्तव्य है । न्यायाधीशों का कर्त्तव्य है कि वे तथ्यों से सम्बन्धित उचित विधि को लागू करें तथा सही कानूनी अर्थ निकालें । उदाहरणार्थ- हिन्दू विधि के अनुसार पुत्र का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वह अपने पिता के कर्ज को चुकाये अभिवचन में इस कानून का कथन करना जरूरी नहीं है , केवल पिता और पुत्र का सम्बन्ध देना ही पर्याप्त है ।
2. केवल सारवान तथ्यों का वर्णन किया जाना चाहिये ( Only Material Facts must be stated ) प्रत्येक अभिवचन में सिर्फ सारवान तथ्यों का ही समावेश होना चाहिये जिन पर अभिवचन करने वाला पक्षकार अपने दावे या प्रतिवाद ( बचाव ) के लिये भरोसा करता है । दूसरे शब्दों में , अभिवचन करने वाले पक्ष को उन सभी सारवान तथ्यों का कथन करना चाहिये जिन पर भरोसा करने का उनका आशय है । अतः सारवान तथ्यों का अर्थ उन सभी तथ्यों से है- ( i ) जिन पर वादों के वाद का कारण या प्रतिवादी का प्रतिवाद निर्भर करता है , तथा ( ii ) जो यद्यपि वाद कारण या प्रतिवादी का प्रतिवाद को स्थापित करने के लिये आवश्यक हो , जिन्हें अभिवचन करने वाले पक्षकार को परीक्षण में सिद्ध करने का अधिकार है । उदाहरणार्थ- यदि कोई व्यादेश ( Injunction ) के लिये वाद दायर किया गया है तो उस वाद में यह अभिवचन सारवान है कि प्रतिवादी गैरकानूनी कार्य को दुहराने की धमकी देता है और उसका इरादा करता है । जब ' अ ' और ' ब ' के बीच दुरभिसन्धि ( Collusion ) का अभिवचन किया गया हो तब यह तथ्य है कि ' अ ' उन अनुचित उद्देश्यों को जानता था जिनसे वह प्रेरित हुआ था , सारवान है । इस प्रकार उत्पीड़न , अनुचित प्रभाव , कपट , मिथ्या वर्णन , असावधानी , प्रथा , कानून से विमुक्ति सारवान तथ्य है । यहाँ तक कि असंगत या वैकल्पिक कथन का अभिवचन भी वैद्य है ।
3. केवल तथ्यों का ही वर्णन किया जाना चाहिये साक्ष्य का नहीं ( Only Facts must be Stated not Evidence ) - अभिवचन का तीसरा मूलभूत नियम यह है कि तथ्यों को जिस साक्ष्य द्वारा प्रमाणित करना है उनका उल्लेख अभिवचन में नहीं करना चाहिये तथ्य निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं
( i ) सिद्ध किये जाने वाले तथ्य
( ii ) तथ्यों का साक्ष्य जिसके द्वारा उसको सिद्ध किया जाना हो ।
प्रथम प्रकार के तथ्य ये हैं जिन पर एक पक्षकार भरोसा करता है , उसको अभिवचन में कथन करना चाहिए । दूसरे प्रकार के तथ्य उन तथ्यों के साक्ष्य हैं , जिनके द्वारा उन्हें सिद्ध किया जाना हो । जो विवाद्यक तथ्य न हो उनका अभिवचन में कथन नहीं किया जाना चाहिये ।
उदाहरणार्थ - जीवन बीमा पालिसी के उपबन्धों में एक उपबन्ध यह भी था कि यदि पालिसी धारक , " अपने आप से मरेगा तो वह जीवन बीमा पालिसी शून्य होगी । " पालिसी पर लाये गये वाद में बीमा कम्पनी ने इस आधार पर बचाव किया कि पालिसी धारक कई हफ्ते तक एक दयनीय दशा में रह रहा था । यह कि अपने मरने से एक दिन पहले वह एक पिस्तौल खरीद कर लाया था और एक पत्र उसकी पत्नी को मिला था कि उसका इरादा आत्महत्या का है यह निर्धारित किया गया है कि यह सब केवल साक्ष्यगत तथ्य है और अभिवचन में अधिकथन नहीं किए जाने चाहिये और यह अभिकथन काफी था कि बीमा धारक अपने आप से मर गया । विरोधी पक्षकार की पहले की गई स्वीकृतियाँ भी साक्ष्यगत तथ्य ही है और उनको अभिवचन में नहीं लेना चाहिये ।
4. अभिवचन संक्षेप में सही , किन्तु यथार्थ और निश्चित होना चाहिये ( Pleading must be Concise but Porper , Real and Certain ) — अभिवचन में महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन संक्षिप्त लेकिन यथार्थत और कुछ विशेष प्रकार के वैधानिक तर्क ; जैसे- पूर्व न्याय , विबन्धन , मौन स्वीकृति , सन्तुष्टि या किसी विधायन का लागू होना , विशेष रूप से किया जाना चाहिए । किसी भी पक्ष को केवल उसके अभिवचनों में कह गये तथ्यों के आधार पर ही साक्ष्य देने का अधिकार होता है ।
5. अभिवचन धाराओं में बाँटा जाना चाहिये ( Pleading must be divided into Paragrapha ) – यदि आवश्यक हो तो अभिवचन को पैराग्राफों में विभाजित करके क्रमानुसार लिखना चाहिये , तिथि , धनराशि तथा आँकड़ों को संख्याओं में व्यक्त करना चाहिये । अभिवचन में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि यद्यपि अभिवचन संक्षिप्त हो लेकिन अस्पष्ट न हो । संक्षिप्तता इस प्रकार लाई जा सकती है कि ( 1 ) सब अनावश्यक तथ्यों को छोड़ दिया जाये । ( II ) महत्वपूर्ण तथ्यों का आरोपण करते समय भाषा पर उचित ध्यान दिया जाये ।
6. अभिवचन पर हस्ताक्षर करने चाहिए ( Pleading must be signed ) व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 14 के अनुसार , प्रत्येक अभिवचन पर पक्षकार के तथा उसके अभिवक्ता के हस्ताक्षर होने आवश्यक है । हस्ताक्षर करने में असमर्थ व्यक्ति की निशानी अंगूठा वैध हस्ताक्षर होगा । यह नियम इसलिये बनाया गया है ताकि वादी यह न कह सके कि यह उसके ज्ञान के बिना दायर किया गया है । जहाँ वादियों की संख्या एक से अधिक हो वहाँ वाद पत्र पर प्रत्येक को हस्ताक्षर करना चाहिये यद्यपि विधि यह नहीं कहती कि किसी व्यक्ति को उस समय तक वादी के रूप में नहीं बरता जा सकता है जब तक कि उसने वाद - पत्र पर हस्ताक्षर न कर दिये हो ।
7. अभिवचन का सत्यापन होना चाहिये ( Pleading must be varified ) दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 15 के अनुसार , अभिवचन पक्षकारों द्वारा या अभिवचन करने वाले पक्षकारों में से एक के द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा जो न्यायालय के समाधान के मामलों में तथ्यों से अवगत हो सत्यापित किया जाना चाहिये । सत्यापन इस प्रकार किया जाना चाहिये कि वह अपने निजी ज्ञान से सत्यापित करता है या प्राप्त सूचना पर सत्यापित करता है और उसे सत्य होने का विश्वास करता है ।
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