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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

अभिवचनों के सम्बन्ध में विवरण कौन से होते है ? विवरणों का अभिवचनों में दिया जाना क्यों आवश्यक है तथा इसके कानूनी प्रभाव क्या हैं ? ( What do you understand by particulars in pleadings and what are its legal effects ? )

विवरणों से आशय ( Meaning of Particulars ) 


प्रत्येक अभिवचन में कुछ विवरण आवश्यक होते हैं जिससे किसी केस के बारे में स्पष्ट जानकारी हो सके तथा दूसरा पक्ष भी आश्चर्य में न पड़े । विवरण का अर्थ है कि पक्षकार द्वारा वाद - पत्र में उठाये गये मामलों का विवरण किसी मामले में कितनी मात्रा में विवरण देने चाहिए इसका कोई निश्चित नियम नहीं है परन्तु इतना अवश्य है कि उस मामले में इतने विवरण दिये जाने चाहिए जो कि मामले को समझने के लिए आवश्यक हों । 


आवश्यक विवरण जो अभिवचन में दिये जाने चाहिए - व्यवहार प्रक्रिया का आदेश 6 नियम 4 इस प्रकार है- " जहाँ विवरणों का दिया जाना आवश्यक हो वहाँ उसको दिया जाना चाहिए - उन सब अवस्थाओं में जिनमें कि अभिवचन करने वाला पक्षकार किसी मिथ्या व्यपदेशन ( misrepresentation ) में कपट , न्यास भंग , कामत : चूक या असम्यक् असर का सहारा लेता है । और अन्य सब अवस्थाओं जिनमें कि उपर्युक्त प्रारूपों के उदाहरण दर्शित किये गये हैं जैसी विशिष्टओं में से भी अधिक विशिष्टयाँ आवश्यक हों । अभिवचन में वे अभिविशिष्टयाँ यदि आवश्यक हो तो अपनी तारीखों और मदो सहित की जायेंगी । 


       इस नियम का अभिप्राय यह है कि यद्यपि यह आवश्यक है कि अभिवचन संक्षिप्त और स्पष्ट होना चाहिए परन्तु साथ ही यह भी आवश्यक है कि जो तर्क किसी मामले में उठाये जायें उनसे सम्बन्धित सभी घटनाओं का विवरण भी दिया जाना चाहिए क्योंकि यदि ऐसा न किया गया तो वाद पत्र अनिश्चित रहेगा और विपक्षी को उन तर्कों का जवाब देने में कठिनाई होगी । ऐसे तर्क उठाने वाले को यह छूट मिल जायेगी कि वह समयानुसार उन तक के पुष्टीकरण में मनमाने साक्ष्य पेश करे और विपक्षी को उनकी काट को कोई अवसर  न मिल पाये ।




 नीचे कुछ ऐसी मामलों का उदाहरण दिया जा रहा है जिनमें विवरण होना आवश्यक है -

( I ) लेखे के वाद ( Suit for Account ) - लेखे के वाद में यह विवरण देना चाहिए प्रतिवादी किस भाँति लेखे ( Accounts ) देने का जिम्मेदार है । केवल यह कहना अपर्याप्त होगा कि प्रतिवादी लेखे देने का उत्तरदायी है । उसे यह प्रस्तुत करना चाहिए कि उसे धन की एक संविदा के अधीन दिया गया था । " ( एल . एल . डी . 226 ) 


( 2 ) दत्तक ग्रहण वाद ( Suit for Adoption ) दत्तक ग्रहण वाद में इतना कहना ही यथेष्ट नहीं है कि ' क ' , ' ख ' का दत्तक पुत्र है वरन् यह भी विवरण देना चाहिए कि किस व्यक्ति ने दत्तक ग्रहण किया है और व्यक्ति से तथा किस व्यक्ति का दत्तक ग्रहण हुआ । इसका और गोद लेने श्री तथा देने वाले में क्या सम्बन्ध है ?


 ( 3 ) प्रतिकूल कब्जा ( Adverse Possession ) इस विषय में विवरण दिया जाना चाहिए कि किस प्रकार और कब प्रतिकूल कब्जा शुरू हुआ । उदाहरण के लिए यह कि प्रतिवादी बारह वर्ष से अधिक समय तक निरन्तर खुले आम कब्जा किये रहा है कि वादी उसके कब्जे से अवगत रहा है या उसे अवगत होना चाहिए था यदि वह उचित ध्यान देता ।


 ( 4 ) इकरारनामा ( Suit for Agreement ) इकरारनामे के वाद में पक्षकारों के नाम लिखित था या मौखिक तिथि तथा प्रतिफल का उल्लेख करना चाहिए और साथ ही यह भी लिखना चाहिए कि करार लिखित  था या मौखिक ।


( 5 ) पूर्ववर्ती ऋण ( Antecedent debt ) - यदि किसी हिन्दू पिता के हस्ताक्षर को इस आधार पर उचित ठहराने की चेष्टा की जाती है कि वह पूर्ववर्ती ऋण के बदले किया गया था तो केवल इतना ही यथेष्ट न होगा वरन् यह भी बताना चाहिए कि ऋण की धनराशि क्या थी तथा ऋण  की प्रकृति , ऋणदाता का नाम , वह दिनांक जिस दिन ऋण लिया गया था अथवा वह सादा ऋण था या बन्धककार।


 ( 6 ) बेनामी लेन - देन सम्बन्धी वाद ( Suit Relating in Benami Transaction ) बेनामी लेन - देन सम्बन्धी वाद में उन तथ्यों का अभिभाषण करना चाहिए जिनसे यह मालमू हो  सके कि अभिवचन का पक्ष अथवा विपक्ष किस प्रकार बेनामीदार हुआ दिया और विक्रय पत्र प्रतिवादी के नाम लिखाया


( 7 ) संविदा का उल्लंघन सम्बन्धी वाद ( Suit for breach of Contract ) - इस वाद में केवल उन्हीं शर्तों का विवरण देना चाहिए जो संविदा में थीं तथा जिनका उल्लंघन किया गया है । 

 ( 8 ) कर्तव्य भंग सम्बन्धी वाद ( Suit for breach of Duty ) — उन तथ्यों का उल्लंघन करना चाहिए जिन पर कर्त्तव्य आधारित हो , अर्थात् यदि यह संविदा पर आधारित हो तो उस वजह से कर्तव्य भंग हुआ है । संविदा का विवरण देना चाहिए । साथ ही उस तरीके का भी विवरण दिया जाना चाहिए जिसकी वजह से कर्तव्य भंग  हुआ ।


( 9 ) रिवाज ( Custom ) - रिवाज के मामले में इसकी प्रसंगतियों के सहित पूर्ण विवरण को देना चाहिए , विशेषकर उनका उल्लेख उस समय अवश्य करना चाहिए जब ये सामान्य विधि से विभिन्न हो  । साथ ही यह भी निर्दिष्ट करना चाहिए कि रिवाज समुचित , निश्चित तथा स्मरणीय है और उसका समुचित रीति से बिना किसी रुकावट के पालन किया जा रहा है ।







 ( 10 ) निर्दयता ( Cruelty ) - इस प्रकार के वाद में उन कार्यों का विवरण देना चाहिए जिससे निर्दयता का आभास होता हो । साथ ही दिनांक , समय व स्थान भी लिखना चाहिए ।


 ( II ) सुखाधिकार ( Easement ) - इस प्रकार के वाद में सुखाधिकार की प्रकृति , वह किस प्रकार उत्पन्न हुआ अर्थात् वह रीति जिसके अनुसार अधिकार प्राप्त हुआ , लिखना चाहिए जैसे अनुदान या चिर कालिकी अधिकार द्वारा या किसी अधिनियम के अनुसार । 


( 12 ) अनैतिकता ( Immorality ) – जहाँ एक पुत्र अपने पिता द्वारा किये हस्तान्तरण को निरस्त करने के लिए इस आधार पर वाद दायर करता है कि हस्तान्तरण अनैतिक तथा विधि विरुद्ध कार्यों के लिए किया गया है तो उन कार्यों या प्रयोजनों के विवरण दिये जाने चाहिए और यह भी स्पष्ट दिखाना चाहिए कि ऋण किस प्रकार अनैतिक कार्यों से सम्बन्धित है ।


 ( 13 ) औचित्य ( Justification ) – जब किसी अपकार कार्य का औचित्य दिखाया हो तो उसके विवरण देने चाहिए , जैसे कार्य अनुमति या आत्मरक्षा के लिए किया गया था या आकस्मिक घटना के कारण हुआ था या किसी तीसरे व्यक्ति की आज्ञानुसार किया गया था । 

( 14 ) कानूनी आवश्यकता सम्बन्धी वाद ( Suit for legal Necessity ) - जब किसी हिन्दू पिता के हस्ताक्षर की विधिक आवश्यकता के आधार पर उचित ठहराने की चेष्टा की जाती है तो वास्तविक आवश्यकता के विवरण की उन सब तथ्यों के साथ उल्लेख करना चाहिए , जिससे वह आवश्यकता विधिक आवश्यकता प्रतीत हो सके । 

( 15 ) निरूपण ( Representation ) – यह वर्णन करना चाहिए कि निरूपण मौखिक था या लिखित और यह कब तथा कहाँ किया गया था । यदि निरूपण लिखित में किया गया था तो लिखित वर्णन करना चाहिए ।


 ( 16 ) विशेष हर्जाने ( Special Damages ) – इस प्रकार के बाद में सहन किये गये हजाने का तो विवरण करना ही चाहिए साथ ही प्रतिवाद में व्यय की गई रकम का भी विवरण देना चाहिए । 


( 17 ) सम्पत्ति पर हक ( Title to Property ) - ऐसे मामले में जिसमें पक्ष अपने को भूमि का स्वामी कहता हो और उसका कब्जा है तो अपने हक ( title ) का विवरण देना आवश्यक नहीं है । केवल अपने हक का अभिकथन कर सकता है जब तक कि वह अन्य पक्ष के विधिक हक को स्वीकार न करता हो और अपने हम को समन्याय ( Equitable ) के आधार पर न कहता हो ।


 ( 18 ) धोखे पर आधारित दावे ( Suits based on Fraud ) - यदि अभिवचन में मात्र धोखे की चर्चा की गई हो और उसका कोई विशद विवरण न दिया गया हो तो तर्क के रूप में न्यायालय नहीं देखेगा । ( एन . डी . गायकवाड बनाम वी . के . रामचन्द्र ए.आई.आर , 1963 बम्बई 244 )


 उदाहरण - एक वाद में यह तर्क रखा गया कि प्रतिवादी ने मित्रता की आड़ में अमुक व्यक्ति से धोखा देकर मकान का बैनामा करा लिया था । यह निर्णय किया गया कि उक्त धोखे का कोई अन्य विवरण अभिवचन में न होने के कारण इस तर्क को तर्क नहीं माना जा सकता । ( माते नन्दे बनाम लाल चन्द्र फदाली ए.आई.आर 1948 नाग ० 170 )




 ( 19 ) जन प्रतिनिधि अधिनियम , 1951 ( Representation of the Peoples Act 1951 ) की धारा 83 के अधीन ' भ्रष्ट आचरण ' ( Corrupt Practice ) के आरोपों पर आधारित मामलों में भ्रष्ट आचरण के पूरे ब्यौरों का दावा जाना जरूरी है , अन्यथा अभिवचन बेढंगा ( clumsy ) हो जायेगा । ( राज नारायन बनाम इन्दिरा गाँधी ए . आई . आर . को . 1302 आदि ) 


कानूनी प्रभाव ( Legal Effect ) — विवरण देने वाले पक्षकर पर दिये गये विवरण को यह प्रभाव होता है कि विधिक रूप से वह उनसे बाध्य हो जाता है और मामले की सुनवाई के समय वह कोई अन्य मामला सम्मिलित नहीं करा सकता है । बिना न्यायालय की अनुमति के कोई भी पक्षकार दिये गये विवरणों को न तो वापस ले सकता है और न ही इनमें कोई संशोधन कर सकता है । 



विवरणों में भूल ( Mistake in Particulars ) – यदि किसी अभिवचन में गलत विवरण दे दिये गये हैं तो पक्षकार उन्हें न्यायालय की अनुमति से सुधार सकता है । यदि वह विवरण में सुधार नहीं करता और गलती इस प्रकार की है कि जो विपक्ष को गुमराह करती है तो इसके  परिणाम गलत विवरण देने वाले पक्षकारों को भुगतने होंगे । परन्तु नामगिरि बनाम मुथु के केस में ये निर्धारित किया गया है कि " यदि गलती अन्य पक्षकारों को गुमराह नहीं कर सकती तो उस गलती का कोई परिणाम नहीं होगा । " 


पक्षकार का उपचार जहाँ अन्य पक्षकार विवरण देने में विफल होता है ( Remedy | of a party to give particulars ) — जहाँ कोई पक्षकार विवरण देने में असफल रहता है या उसके द्वारा दिये विवरण पर्याप्त नहीं है वहाँ अन्य पक्षकार व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 , नियम 5 के अन्तर्गत एक आवेदन प्रस्तुत कर सकता है कि उसे अधिक अच्छे विवरण देने का a अवसर प्रदान किया जाय । इस सम्बन्ध में आदेश 6 का नियम 5 इस प्रकार उपवन्धित है " आगे और अधिक अच्छा कथन जो दावे या प्रतिवाद या आगे अभिवचन में कथन किये गये किसी मामले के आगे और अधिक अच्छे विवरणों की प्रकृति का है ; सभी मामलों में ऐसे निर्वन्धों पर जो कि व्यय के बारे में था अन्यथा न्यायोचित हो , आदेश दिया जा सकता है । " 






    

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