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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

. उ . प्र . जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 157 के अंतर्गत वे कौन लोग हैं जो अक्षम व्यक्ति कहलाते हैं ? ( Who are disabled persons under section 157 of the U.P Zamindari Abolition and Land Reform Act , 1950. )

 

 अक्षम व्यक्तियों द्वारा भूमि पट्टे पर देना धारा 157 ( 1 ) - ( Lease by Disabled Persons )

 भूमि विधि का सिद्धान्त है कि भूमि लगान पर न उठायी जाय । किन्तु मानवीय आधारों पर विधान मण्डल ने कुछ विशेष दशाओं में , जिनका वर्णन धारा 157 ( 1 ) में किया गया है भूमि को लगान पर देने की आज्ञा दी है । धारा 157 ( 1 ) में ऐसी सात दशाओं का वर्णन है । कोई भूमिधर या गुजारे के बदले में लिए हुए भूमि वाला असामी अपनी जोत को या उसके भाग को पट्टे पर उठा सकता है , बशर्ते कि वह सात दशाओं में से एक या अधिक दशाओं में आता हो । वे सात दशाओं वाले व्यक्ति निम्नलिखित हैं ********

 1. ऐसा व्यक्ति जो अन्धेपन या अन्य शारीरिक दुर्बलता के कारण खेती - बारी करने में असमर्थ हो : ' अन्य शारीरिक दुर्बलता ' .. का अर्थ यह कदापि नहीं है कि जोतदार लकवा का मारा हुआ हो या विस्तर से न उठ सकता हो ; या अन्य किसी तरह से वह चल फिर न सकता हो । इसका अर्थ केवल इतना ही है कि जो व्यक्ति बीमारी आदि के कारण खेती - बारी का कार्य स्वयं नहीं कर सकते वे अपनी भूमि को लगान पर दे सकते हैं , भले ही वे खेती की देख - भाल करने के लायक हों । 13 सितम्बर , 1962 ई .के पूर्व धारा 157 ( 1 ) के खण्ड ( घ ) में " अन्य शारीरिक दुर्बलता ..... " का अर्थ दो तरह से लगाया जाता रहा



    पहला मत - बोर्ड आफ रेवेन्यू और न्यायाधीश ब्रूम का मत था कि ' अन्य शारीरिक दुर्बलता .... का अर्थ " ejusdem generis " सिद्धान्त के प्रयोग से सीमित कर दिया गया है जैसे अन्धा व्यक्ति न तो स्वयं खेती - बारी का कार्य कर सकता है और न कृषि कार्यों को देख - रेख ही कर सकता है , उसी तरह से अन्य शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित ऐसे व्यक्ति माने जायेंगे । अतएव यदि कोई व्यक्ति खेती - बारी के आवश्यक कार्य ( जैसे जुताई , बुवाई , सिंचाई , कटाई ) स्वयं नहीं कर सकता , किन्तु उसकी देख - रेख कर सकता है , तो ऐसे व्यक्ति को धारा 157 ( 1 ) ( घ ) का प्रलाभ नहीं प्राप्त हो सकेगा और अक्षम नहीं माना जायेगा ।


 दूसरा मत - न्यायाधीश धवन और बृजलाल गुप्त के मतानुसार व्यक्ति को अक्षम होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह अपनी खेती - बारी के आवश्यक कार्यों को स्वयं करने में शरीर से असमर्थ है , तो वह अक्षम व्यक्ति धारा 157 ( 1 ) ( घ ) का फायदा उठाने का हकदार है । इलाहाबाद उच्च न्यायालय के खण्डपीठ ने

 श्रीमती रेवती बनाम बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के मुकदमे में 13 सितम्बर , 1962 ई . को जस्टिस धवन के मत का समर्थन किया और फैसला दिया कि जो व्यक्ति किसी शारीरिक दुर्बलता के कारण भूमि की स्वयं काश्त ( खेती - बारी ) नहीं कर सकता वह अक्षम व्यक्ति है ; चाहे वह भूले ही खेती - बारी की देख - भाल करने लायक हो , यह वह दूसरों से ( मजदूरी से ) खेती - बारी कराने के योग्य हो । 


अब्दुल सईद बनाम उ.प्र . राज्य तथा अन्य के वाद में प्रार्थी के पिता अब्दुल हमीद एक लम्बे , दुबले - पतले व्यक्ति और दमा के मरीज थे । उन्होंने अपनी भूमि 1363 फसली वर्ष में विपक्षी के पिता को पट्टे पर दे दिया । निचली अदालत ने यह फैसला दिया कि चूँकि वह खेती की देख - रेख ( supervision ) के लायक थे , अतएव धारा 157 ( 1 ) ( घ ) के प्रलाभ को पाने के हकदार नहीं है । किन्तु इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बैग ने निचली अदालत के फैसले को उलट दिया और कहा- " खेती - बारी और देख - रेख समानार्थी नहीं है । दोनों विचारों को व्यक्त करने के लिए भिन्न - भिन सम्मिलित है । किन्तु खेती - बारी केवल देख - रेख से काम नहीं चलता , बल्कि और शब्दों का प्रयोग हुआ है । भले ही खेती - बारी में इसकी देख - रेख ( supervision ) भी अधिक श्रम की जरूरत पड़ती है । खेती - बारी में शारीरिक और मानसिक दोनों शक्तियों का इस्तेमाल होता है , अतएव देख - रेख से खेती - बारी ( cultivation ) बड़ी है । यदि कोई व्यक्ति इतना दुर्बल है कि भूमि पर खेती - बारी करने में अपनी शक्ति का प्रयोग करने में असमर्थ है , तो निश्चय ही वह अक्षम व्यक्ति है भले ही वह दूसरे की शक्ति का उपयोग करने की शक्ति रखता है या स्वयं देख - रेख की क्षमता रखता है । "




' अक्षमता ' में सम्मिलित बीमारी 


निम्नलिखित बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति धारा 157 ( 1 ) ( घ ) के अन्तर्गत व्यक्ति अक्षम माने गये हैं ।


 ( क ) कोढ़ जहाँ हाथ - पैर की उँगलियाँ गलना प्रारम्भ हो गई हो ; 

( ख ) लकवा या पक्षाघात ; 

( ग ) टी . बी . या हृदय रोग ; 

 ( घ ) वृद्धावस्था के कारण कमजोरी ;

  ( ङ ) अत्यधिक मोटापा , जिसके कारण वह शारीरिक परिश्रम नहीं कर सकता ;

 ( च ) गठिया से होने वाली शारीरिक दुर्बलता ; 

( छ ) बुढ़ापा , वृद्धावस्था में मोतियाबिन्द ;

 ( ज ) दमा , जिसमें व्यक्ति जुताई बुवाई स्वयं न कर सके ।

  2. ऐसा व्यक्ति जो पागल या जड़ ( बौरहा ) हो- जड़ वह व्यक्ति है जिसमें विचार य करने की शक्ति नहीं होती । जिसका पूर्व मानसिक विकास नहीं हुआ होता । ज पैदायशी होता है वह जीवन के शारीरिक खतरों ( आग आदि ) से भी अपनी रक्षा नहीं कर सकता । बहुधा जड़ का कोई न कोई शारीरिक भाग बेढंगा या अजीब होता है । साधारणतया पागल और जड़ शब्द का प्रयोग एक साथ किया जाता है । वह केवल इसलिए कि दोनों में बहुत थोड़ा अन्तर है । भारतीय लुनैसी ऐक्ट , 1912 की धारा 3 ( 3 ) के अनुसार " पागल " का अर्थ होता है । कोई जड़ या अस्वस्थ चित्त का व्यक्ति सामान्यतया ' पागल ' शब्द में ' जड़ ' सम्मिलित है , किन्तु दोनों भिन्न हैं जड़ में विचार करने की शक्ति ही विकसित नहीं होती , किन्तु पागल में यह शक्ति होती है और विकसित भी है । लेकिन , बीमारी , सदमा , दुःख या अन्स कारणों से उसकी सोचने - समझने की शक्ति अस्थायी तौर पर समाप्त हो गयी होती है । 


3. नाबालिक ( Minor ) : नाबालिग ( अवयस्क ) जिसका पिता मर चुका हो य उपयुक्त असमर्थता संख्या 1 या 2 से पीड़ित हो , अर्थात् केवल वही नाबालिग अपनी भूमि को लगान पर उठा सकता है जिसका पिता न हो , या पिता की मृत्यु हो गयी हो , व अगर जीवित हो तो वह पागल या जड़ हो या अन्धेपन आदि किसी शारीरिक दुर्बलता है । पीड़ित हो । यह निरर्थक है कि नाबालिग संयुक्त परिवार में पिता के साथ रह रहा है व पिता से अलग है । नाबालिग द्वारा दिया हुआ पट्टा शून्य होगा , क्योंकि नाबालिक संविद नहीं कर सकता ; किन्तु धारा 157 ( 1 ) एक नाबालिग को आज्ञा प्रदान करती है कि अपनी भूमि को लगान पर दे सकता है । लगान पर देने का काम नाबालिग के संरक्ष • द्वारा किया जाना चाहिए । पट्टा नाबालिग पर बाधित होने के लिए यह आवश्यक है • जिला - जज की आज्ञा प्राप्त कर ली गई हो । क्योंकि धारा 157 ( 1 ) नाबालिग के संरक्षक को कोई अतिरिक्त कानूनी शक्ति नहीं प्रदान करती कि गार्जियन ऐण्ड वार्ड्स ऐक्ट 1890 या हिन्दू अवयस्कता एवं संरक्षकता अधिनियम 1956 के प्रतिबन्ध के बावजूद भूमि का पट्टा कर सके । 




4. स्त्री : 

  • केवल स्त्रियाँ अपनी भूमि को पट्टे पर दे सकती है जो अविवाहिता हो ,विधवा हो तलाकशुदा हो,

  •  पति से अलग हो गयी हों , या 

  • उसका पति पागल या जड़ हो , या 

  • उसका पति अन्धेपन या अन्य शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित हो 

  • इससे भिन्न स्त्रियाँ अपनी भूमि को लगान ( पट्टे ) पर नहीं दे सकतीं । यह नहीं है कि जिस स्त्री का पति अक्षम व्यक्ति हो , वह स्त्री भी अक्षम व्यक्ति मानी जायेगी ।

 उदाहरण - पुरुष क की उम्र 17 वर्ष है । उसकी पत्नी ख की उम्र 19 वर्ष है । ख के पास  कुछ भूमि है । क्या वह अपनी भूमि लगान पर दे सकती है ? उत्तर ' न ' में होगा । ' क ' अक्षम ( disabled ) व्यक्ति है , किन्तु उसकी पत्नी ' ख ' अक्षम नहीं है । वह 157 ( 1 ) ( क ) के प्रावधान में नहीं मानी जा सकती भले ही उसका पति धारा 157 ( 1 ) में अक्षम होता हो । 


" पति से अलग हो गई हो " का अर्थ यह कदापि नहीं है कि वह न्यायिक ( judicial ) में हो , यदि पति - पत्नी अलग रहने के लिए आपस में राजी हो गये हों और वास्तव में अलग रह रहे हों तो स्त्री धारा 157 ( 1 ) के प्रलाभ को पा सकती है । 



मोहम्मद मियाँ बनाम चकबन्दी संयुक्त निदेशक के वाद में विवादग्रस्त भूमि के मोहम्मद मियाँ तथा उनकी बहन श्रीमती अहमदी बेगम जमींदारी उन्मूलन से पूर्व इन लोगों  ने अपनी भूमि अ को लगान पर दे दिया । अ ने दावा कि धारा 20 / 240 के अन्तर्गत वह सीरदार हो गया । प्रार्थी ने प्रतिवाद किया कि अ केवल असामी ही हुआ ,क्योंकि वे दानों अक्षम व्यक्ति थे । मोहम्मद मियाँ बहरे , गूँगे तथा जन्म से ही मूढ़ थे । सरकारी कागजों में वह " फतीर - उल - अक्ल " ( पागल ) दर्ज थे । श्रीमती अहमदी बेगम बहुत पहले अपने पति से अलग हो गयी थीं । चकबन्दी अधिकारियों ने उसे अक्षम नहीं माना । किन्तु इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अहमदी बेगम को धारा 15 ( 1 ) में अक्षम व्यक्ति माना और उसके पक्ष में निर्णय किया । न्यायालय ने कहा अपने पति से अलग हो गयी हो " का यह अर्थ नहीं है कि वह या तो तलाकशुदा हो या से अलग की गयी हो । न्यायिक ( Judicially ) शब्द " अलग हो गयी हो " के पड़ा नहीं जा सकता । यह अलगाव न्यायालय का कार्यवाही से स्वतन्त्र तथा बाहर है । यह अलगाव न्यायालय की कार्यवाही से स्वतन्त्र तथा बाहर हो सकता है । एक - दूसरे से अलग रहने की संविदा का परिणाम हो सकता है या वह ऐसी भूत हो सकता है जिसमें वह अपने पति का सहवास न प्राप्त कर सके । की शक्ति का उपयोग कृषि कार्यों में न कर सके । यह हो सकता है कि पति अत्यक्त ( deserted ) कर दिया हो , या दोनों ( दम्पति ) में अलग रहने का● शान्तिपूर्वक समझौता हो गया हो , ताकि पति - पत्नी खेती - बारों के उद्देश्यों के लिए आर्थिक इकाई में न काम कर सकते हैं । "

 5. विद्यार्थी : केवल वे ही विद्यार्थी अक्षम माने जायेंगे जो निम्न तीन शर्तों को पूरा करते हों : 

( 1 ) उनकी आयु 25 वर्ष से ज्यादा न हो ; 

( 2 ) वे किसी मान्यता प्राप्त संस्था में शिक्षा ग्रहण कर रहे हों ;

 ( 3 ) उनके पिता मर चुके हो ; या


         यदि जीवित हों तो वे पागल या जड़ हो ; या अन्धेपन आदि किसी शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित हों । 


 अगर तीनों में एक भी शर्त पूरी नहीं होती है तो ऐसा व्यक्ति धारा 157 ( 1 ) के अन्तर्गत अक्षम नहीं है । उदाहरणार्थ में


 ' A ' एक विद्यार्थी है जो लखनऊ विश्वविद्यालय में कानून का छात्र है । उसकी आयु बाईस वर्ष की है । उसका पिता भारत सरकार की सेना में नौकर है । क्या ' A ' अक्षम व्यक्ति माना जायेगा ? नहीं ; क्योंकि वह तीसरी - शर्त पूरी नहीं करता है । ' A ' का  पिता , जो सेना में है , भले ही वह अक्षम व्यक्ति माना गया है किन्तु ' A ' अक्षम व्यक्ति   नहीं माना गया है ।


6. प्रतिरक्षा कर्मचारी:- अगर कोई व्यक्ति भारत की स्थल सेना , नौ - सेना या वायु सेना सम्बन्धी सेवा में है तो वह ' अक्षम ' व्यक्ति है , भले ही वह अलड़ाकू ( non combatant ) पद पर ( जैसे लिपिक ) क्यों न नियुक्त हो ।


 
प्रान्तीय पुलिस , पी . ए . सी . , केन्द्रीय पुलिस , रेलवे सुरक्षा दल , लोक - सहायक सेना इत्यादि विभागों के कर्मचारी ' अक्षम ' व्यक्ति नहीं हैं , क्योंकि वे भारत की  स्थल सेना , नौ - सेना या वायु सेना में नहीं हैं ; अतएव उनको धारा 157 ( 1 ) का प्रलाभ
प्राप्त नहीं होगा ।


 7. निरोधन या कारावासभोगी : जो व्यक्ति जेल में सजा काट रहा है या केन्द्रीय अथवा प्रान्तीय निरोधन अधिनियम के अन्तर्गत निरोधन में रखा गया है , वह अक्षम व्यक्ति माना गया है और ऐसा व्यक्ति अपनी भूमि को लगान पर उठा सकता है । इन सात श्रेणियाँ के व्यक्तियों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश भूमि - विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1975 ने कुछ बैंकों को यह अधिकार दिया है कि वे अपने कब्जे की भूमि को अधिक से अधिक एक बार में एक वर्ष तक के लिए उठा सकते हैं । इस संशोधन अधिनियम द्वारा धारा 157 ( 1 ) के पश्चात् निम्नलिखित उपधारा बढ़ायी गई है : " ( 1 - क ) जहाँ उत्तर प्रदेश कृषि उधार अधिनियम ( U.P. Agriculture Credit Act ) , 1973 की धारा 2 के खण्ड ( ग ) यथापरिभाषित कोई बैंक उक्त अधिनियम के अधीन कार्यवाहियों द्वारा कोई भूमि अर्जित करे तो वह ऐसी सम्पूर्ण भूमि या उसके भाग को एक बार में एक वर्ष में एक वर्ष से अनधिक के लिए पट्टे पर दी गई भूमि में कोई अधिकार , हक या स्वत्व समाप्त हो जायेगा । "


 उ . प्र . कृषि उधार अधिनियम , 1973 की धारा 2 के खण्ड ( ग ) के अनुसार " किसी बैंक का अर्थ है- ( i ) कोई बैंकिंग कम्पनी ; ( ii ) स्टेट बैंक आफ इण्डिया या उसकी कोई सहायक बैंक ; ( iii ) उ . प्र . राज्य एग्रो - इन्डस्ट्रियल कारपोरेशन लि .; ( iv ) कृषि वित्त निगम ; ( v ) इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ राज्य सरकार द्वारा गजट में बैंक के तौर पर अधिसूचित अन्य कोई वित्तीय संस्था ।








 

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