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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

प्रतिसादन क्या होता है ? एक वैद्य प्रतिसादन के आवश्यक तत्वों वर्णन कीजिए ।( What do you understand by set - off ? Describe the essentials of a legal set - off )

प्रतिसादन से आशय ( Meaning of Set - off )


 प्रतिसादन या मुजराई ऋणों का एक पारस्परिक मोचन होती है । धन वसूल करने के मुकदमें में प्रतिसादन , प्रतिवादी द्वारा धन के लिए एक प्रतिदावा होती है , जिसके लिए वह वादी के खिलाफ एक वादे कायम कर सकता है और वह वादी के दावे को खत्म करने का प्रभाव रखती है । प्रतिसादन विधि का वह सिद्धान्त है जो प्रतिवादी को किन्हीं परिस्थितियों के अधीन न्यायालय के सामने वादी के खिलाफ अपना दावा रखने की आज्ञा देता है । 


एक वैद्य प्रतिसादन के आवश्यक तत्त्व ( Essentials of a legal Set - off ) एक वैद्य प्रतिसादन के आवश्यक तत्त्व या शर्तें निम्नलिखित है-


 ( 1 ) धनराशि निर्धारित या निश्चित होनी चाहिए ।

 ( 2 ) यह विधि के अनुसार वसूल करने योग्य होनी चाहिए अर्थात् उसकी कालावधि न समाप्त हुई हो ।

 ( 3 ) इसे वसूल करने का अधिकारी प्रतिवादी को होना चाहिए , यदि प्रतिवादी एक से अधिक है तो सबको होना चाहिए ।

 ( 4 ) वह वादी से वसूल करने योग्य होना चाहिए ।

 ( 5 ) प्रतिसादन की धनराशि उस न्यायालय के आर्थिक अधिक्षेत्र की सीमा के बाहर न होनी चाहिए जिसमें वाद किया गया हो । 

( 6 ) दोनों पक्षकारों का स्वरूप वही होना चाहिए जो कि उनका वादी के बाद में है । व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 8 नियम 6 में प्रतिसादन नियम दिये गये हैं जो अग्रलिखित है-




आदेश 8 नियम 9- प्रतिसादन ( मुजराई ) की विशिष्टयों का जायेगा -

 ( 1 ) जहाँ कि धन की वसूली के लिए किसी में प्रतिवादी न्यायालय के क्षेत्राधिकारी का आर्थिक सीमाओं से अधिक न होने वाली धन की कोई अभिनिश्चित राशि जो वादी से प्रतिवादी द्वारा वैधरूपेण प्रत्युत्तरणीय ( वसूल करने योग्य ) है , वादी की माँग के खिलाफ प्रतिसादित करने का दावा करता है और दोनों पक्षकार वही हैसियत रखते हैं जो कि उनके वादी के वाद में है प्रतिवादी चाहे गये प्रतिसादन की विशिष्टयाँ अन्तर्विष्ट रखने वाला लिखित कथन वाद की पहली सुनवाई पर उपस्थित कर सकेगा , किन्तु तत्पश्चात् तब तक उपस्थित न कर सकेगा जब तक कि न्यायालय द्वारा उसे ऐसा करने की अनुज्ञा न दे दी गई हो । 


प्रतिसादन का प्रभाव - प्रतिवाद - पत्र ( Written statement ) वही प्रभाव रखेगा जैसा कि किसी प्रति मुकदमा में कोई वाद - पत्र ताकि अदालत , प्रारम्भिक दावा और प्रतिसादन दोनों के सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय सुनाने में समर्थ हो सके । ( आदेश 8 नियम 6 ) 

              किन्तु आज्ञप्त की गई रकम पर किसी अभिवक्ता का वह संधारणाधिकार ( lien ) इससे प्रभावित न होगा क्योंकि आज्ञप्ति के अधीन उसे देय खर्चे के बारे में वह उसका होता है । 

                प्रतिवादी द्वारा दिये गये लिखित कथन सम्बन्धी नियम प्रतिसादन के दावे के उत्तर में दिये । गये लिखित कथन पर भी लागू होते हैं । 

उदाहरण

 ( क ) a , b को ₹ 5,000 का उत्तरदान करता है और c को अपना निष्पादक और अवशिष्ट रिक्त का भागी नियुक्त करता है । b मर जाता है और b के मालमत्तों को प्रशासन d ग्रहण करता है । c, dके प्रतिभू के रूप में ₹ 2,000 देता है । तब c पर रिक्य क लिए d वाद लाता है । c , रिक्य के खिलाफ ₹ 2,000 के ऋण का प्रतिसादन नहीं कर सकता , क्योंकि रिक्य के सम्बन्ध में न तो c और न d की वैसी हैसियत है जैसी कि उनको ₹ 2,000 की देनगी के सम्बन्ध में है ।


 ( ख ) a , निर्वसीयत भर जाता है । उस समय वह b के प्रति ऋणी है । a के मालमत्तों का प्रशासन c ग्रहण करता है और b मालमत्तों का भाग ग से मोल लेता है । c के द्वारा b के खिलाफ क्रय धन के लिए वाद में मूल्य के मुकाबले में ऋण का प्रतिसादन नहीं कर सकता क्योंकि c की दो हैसियत है एक तो b के प्रति विक्रेता की हैसियत जिसमें वह b पर बाद लाता है और दूसरों के प्रतिनिधि के रूप में । 


( ग ) b पर विनिमय पत्र के आधार पर a वाद लाता है । b अभिकथन करता है कि a ने b के मालों का बीमा कराने में दोष पूर्णत : उपेक्षा की है और क उसे प्रतिकर देने के दायित्वाधीन है । इस प्रतिकर को प्रतिसादन करने के लिए b दावा करता है । चूँकि यह रकम अभिनिश्चित नहीं है इसलिए यह प्रतिसादित नहीं की जा सकती ।


 ( घ ) a ₹ 10,000 के लिए विनिमय पत्र के आधार पर b पर वाद लाता है । a के खिलाफ ये दोनों प्रतिसादन की जा सकेंगी । ₹ 1,000 के लिए निर्णय b के पास है । चूँकि ये दोनों दावे निश्चित अर्थ सम्बन्धी माँग है , इसलिए ये दोनों प्रतिसादन की जा सकेंगी।



 ( ङ ) क , अतिचारार्थ प्रतिकर के लिए ख पर वाद लाता है । ख के पास क का ₹ 1000 का वचन - पत्र है और ख यह दावा करता है कि यह रकम ऐसी किसी राशि के खिलाफ जो कि याद में क को दिखाई जाये प्रतिसादित कर दी जाय । ख ऐसा कर सकेगा , क्योंकि जैसे ही कके हक में राशि निकलती है वैसे ही ये दोनों राशियाँ निश्चित आर्थिक माँग हो जाती हैं ।



 ( च ) क और ख ₹ 1,000 के लिए ग के खिलाफ बाद लाते हैं । म उस ऋणपत्र का प्रतिसादित नहीं कर सकती जो कि केवल क के द्वारा शोध्य है ।


 ( छ ) ख और ग के खिलाफ ₹ 1,000 के लिए बाद लाता है । प्रतिसादन नहीं कर सकता जो अकेलेअपने उस ऋण का अपने को ही क द्वारा शोध्य है । 


 ( ज ) क को ख और ग की भागिता फर्म का ₹ 1,000 देना है । ग को उत्तरजीवी छोड़कर ख मर जाता है । ग पर उसको अपनी पृथक हैसियम से ₹ 1,000 के क्रम के लिए के वाद लाता  है । ग ₹ 3,000 के ऋण का प्रतिसादन कर सकेगा ।








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