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दलित व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की अमानवीय घटना कारित करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें ?

प्रति आपत्ति तथा प्रति अपील एवं साम्यिक प्रतिसादन तथा विधिक प्रतिसादन क्या होते है?

प्रति आपत्ति तथा प्रति अपील ( Cross objection and Cross Appeal ) 


प्रति आपत्ति ( Cross objection ) — जहाँ कि पारित की गई डिक्री भागतः उत्तरवादी के खिलाफ है तथा भागत : उसके पक्ष में है और ऐसी डिक्री से अपील की जाती , वहाँ उत्तरवादी डिक्री के इस भाग पर तो उसके खिलाफ है , ऐसी आपत्ति कर सकेगा , जो एक पृथक् अपील के रूप में की जा सकती थी । ऐसी आपत्तियों को प्रति आपत्तियाँ ( Cross - objection ) कहते हैं और वे एक ज्ञापन के रूप में प्राप्त की जाती है । 


        कोई भी उत्तरवादी ( Respondent ) किसी आधार पर जो उसके खिलाफ , निचली अदालत में फैसला किये गये हैं , उस डिक्री का केवल समर्थन ही नहीं कर सकेगा बल्कि इस डिक्री पर कोई भी ऐसी आपत्ति कर सकेगा , जिसे उसने अपील द्वारा किया होता । 

         प्रति आपत्तियाँ उत्तरवादी ( Respondent ) द्वारा अपीलीय न्यायालय में उस तारीख से एक महीने के अन्दर जिस तारीख पर तामील की गई है , या ऐसे अतिरिक्त समय के अन्दर जैसी कि ..अपीलीय अदालत मंजूर करे , दायर की जा सकेगी । 


          प्रति आपत्ति की तामील - यदि उत्तरवादी ( Respondent ) अपनी आपत्ति के साथ - साथ इस पक्षकार से , जो ऐसी आपत्ति से प्रभावित होने वाला हो , या उसके वकील से , इस आपत्ति को नकल पाने की एक लिखित अभिस्वीकृति ( acknowledgement ) नहीं दाखिल करता है , तो अपील अदालत , इस आपत्ति के फाइल होने के तुरन्त बाद इसकी एक नकल उत्तरवादी के खर्च पर या उस पक्षकार या उसके वकील पर तामील करवायेगी । ( आदेश 41 नियम 22 ) 

प्रति अपील ( Cross appeal ) — जब किसी मामले में दोनों पक्षकार निचली अदालत द्वारा दी गई डिक्री से सन्तुष्ट नहीं है तो दोनों पक्षों को अपील करने का अधिकार है और यदि दोनों पक्ष अपील करते हैं तो उन दोनों अपीलों की एक साथ सुना जाता है और उन्हें आपस में प्रति अपील कहते हैं ।


 प्रति- अपील में वादी तथा प्रतिवादी अलग - अलग करते हैं । एक अपील में जो अपीलकर्त्ता है वह दूसरी अपील में उत्तरवादी ( Responlent ) होता है जबकि प्रति आपत्ति में उत्तरवादी अदालत के सामने अपीलकर्त्ता के रूप में नहीं जाता वरन् वह तो उस अपील में प्रति आपत्ति दाखिल करता है । इस प्रकार यह उत्तरवादी ( Respondent ) ही रहता है । उदाहरण के लिए एक वाद में जहाँ अ ₹ 5,000 के लिए ब के खिलाफ अपील करता है और अदालत अ को केवल ₹ 12,000 के लिए डिक्री प्रदान करती है वहाँ अ और ब ऐसी डिक्री से सन्तुष्ट नहीं हैं तो वे अपील करने के हकदार हैं । यदि अ मुकदमेबाजी की परेशानियों से बचने के लिए अपील नहीं करता है जो उसके खिलाफ है और यदि ब अपील करता है , तो उस पर प्रति आपत्ति कर सकेगा , जिसे उसने अपील द्वारा किया होता । 


प्रति- अपील उत्तरदाता अपीलीय अदालत में उस तारीख से एक माह के अन्दर जो कि उस अपील की सुनाई के लिए निश्चित दिन की सूचना उस पर या उसके वकील पर तामील की गई , या ऐसी समय के अन्दर जैसाकि अपीलीय न्यायालय मन्जूर कर सकेगा ।


 प्रति - अपील तथा प्रति आपत्ति का प्रारूप उसी तरह का होता है जैसा कि अपील का ।




( ब ) साम्यिक प्रतिसादन तथा विधिक प्रतिसादन ( Equitable set - off and legal set - off )



 साम्यिक प्रतिसादन ( Equitableset - off )

        साम्यिक प्रतिसादन ( मुजराई ) से तात्पर्य ऐसे प्रतिसादन से है जिसे इंग्लैण्ड में कोर्टस ऑफ इक्विटी मंजूर करती थी जबकि प्रतिमाँगें एक ही संव्यवहार से उत्पन्न होती थीं , प्रतिसादन के रूप में दावा की गई रकम अभिनिश्चित रकम नहीं होती थी । साम्यिक प्रतिसादन किसी गैर अभिनिश्चित रकम के मामलों में साम्यिक आधारों पर दिलाया जाता है । प्रतिसादन का साम्यिक अधिकार उस समय उपलब्ध होता है जबकि वादी और प्रतिवादी दोनों का दावा एक संव्यवहार से उत्पन्न होता है । 


        सायिक प्रतिसादन की विधि वहाँ लागू होती है , जहाँ कि प्रतिदावे , जो यद्यपि एक ही संव्यवहार से उत्पन्न नहीं होते हैं , लेकिन आपस में निकटतम सम्बन्ध रखते हैं ।


          साम्यिक प्रतिसादन के दावे के उत्पन्न होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वही प्रतिमालें हों वरन् यह भी आवश्यक है कि उनके बीच ऐसा सम्बन्ध हो जो प्रतिवादी से कोई पृथक् करवाने की असाम्यिक बना देता हो , जबकि माँगें एक ही संव्यवहार से उत्पन्न हों तो , या जब प्रत्येक पक्ष को इस बात की जानकारी हो और विश्वास हो कि एक ऋण दूसरे ऋण को चुक् वाला है ।


 विधिक प्रतिसादन ( Legal set - off ) – विधिक प्रतिसादन से अभिप्रेत ऐसे प्रतिसादन है जहाँ कि धन की संख्या निश्चित हो और उसे विधि के अनुसार वसूल किया जाता हो । वैधि प्रतिसादन के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरी होना जरूरी होता है 


( 1 ) यह वाद धन की वसूली के लिए होना चाहिए ।

 ( 2 ) प्रतिवादी का दावा एक अभिनिश्चित रकम के लिए होना चाहिए ।

 ( 3 ) वह अभिनिश्चित रकम वादी से कानूनी ढंग से वसूली करने योग्य होनी चाहिए अथ वह मियाद की विधि द्वारा वर्जित नहीं होनी चाहिए । 


( 4 ) प्रतिसादित रकम प्रतिवादी या वादी प्रतिवादियों की संख्या एक से अधिक है तो स द्वारा वसूल की जा सकने वाली होनी चाहिए । 

( 5 ) प्रतिसादन न्यायालय के आर्थिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत किया जायेगा ।


 ( 6 ) दोनों पक्षकारों की वही हैसियत हो जो कि वादी के दावे में थी ।




 

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