Skip to main content

भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

शपथ पत्र क्या होते हैं ? शपथ पत्र का प्रारूप तैयार करने के कौन से नियम है का वर्णन कीजिए । ( What do you understand by affidavit ? Describe the rules for making he affidavit . )

    शपथ पत्र का अर्थ ( Meaning of Affidavit ) शपथपत्र से आशय ऐसे लिखित कथन से होता है जिसे शपथ पत्र लेकर किसी प्राधिकारी के सम्मुख किया गया हो । दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 19 नियम 3 के अनुसार वाद में प्रयोग किए जाने वाले शपथ पत्र को छोड़कर शेष समस्त शपथ पत्रों में केवल ऐसे तथ्यों को ही लिखा जाना चाहिए जिसे शपथग्रहीता निजी ज्ञान पर सिद्ध कर सके तथा बाद में उपयोग आने वाले शपथ पत्रों के विश्वास पर आधारित कथन को भी ग्रहण कर सकता है किन्तु विश्वास से ग्रहण करने के कारण का भी कथन करना आवश्यक है ।



              इस प्रकार शपथ पत्र न्यायालय की विभिन्न कार्यवाहियों में पक्षकारों द्वारा दाखिल किये जाते हैं । इसके द्वारा किसी ऐसे तथ्य की साक्ष्यता के बारे में प्रतिज्ञा की जाती है जिसका या तो लिखित प्रमाण नहीं होता है अथवा किसी साक्ष्य द्वारा साबित नहीं किया जा सकता । शपथ पत्र का अर्थ शपथ पर किये हुए ऐसे लिखित कथन से होता है जिसे किसी प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष किया गया हो । 


         शपथ पक्ष में साधारणतया वही तथ्य होने चाहिए जिन्हें शपथ पर लेने वाला अपने ज्ञान से सिद्ध कर सके । मध्यवर्ती प्रार्थना पत्र के बारे में शपथ पत्र विश्वास के आधार पर दिया जा सकता है पर विश्वास के आधार का भी उल्लेख होना चाहिए । शपथ पत्र में न्यायालय का नाम सबसे ऊपर लिखना चाहिए । तत्पश्चात् शपथपत्र देने में वाले व्यक्ति का पूरा नाम व पता देना चाहिए । शपथ पत्र का शीर्षक निम्न प्रकार से होना चाहिए । 


   ...............   के न्यायालय में यदि शपथ पत्र किसी वाद या विविध आवेदन में दिया गया हो तो इस वाद या विविध आवेदन का निम्न प्रकार से वर्णन किया जाना चाहिए ।



 न्यायालय श्री मान 

आवेदन संख्या .....                                                                          सन् 2022 

अ पुत्र क .........                                                               .... .......... वादी / आवेदक

                                                   बनाम 

                                            

   
विपुत्र ख ...........                                                                           प्रतिवादी / प्रतिपक्षी                                                                    
                                                                         


शपथ पत्र श्री ...... 

निवासी ........ का निम्नलिखित है ..........

       उपर्युक्त प्रकार से शीर्षक एवं अभिव्यक्ति करने के पश्चात् अभिसाक्षी की ओर से वर्णन होना चाहिए कि  


        " मैं ( नाम अभिसाक्षी ) निम्नलिखित कथन शपथ पूर्वक करता है " -





शपथ पत्र के लिए निम्नलिखित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए-


 ( 1 ) प्रत्येक शपथ पत्र प्रथम पुरुष में लिखा जाना चाहिए ।


 ( 2 ) शपथ पत्र में अति आवश्यक विवरणों को छोड़कर अन्य किसी बात का उल्लेख न करना चाहिए । 

( 3 ) शपथ पत्र देने वाले व्यक्ति का शपथ में पूर्ण विवरण देना चाहिए । 

( 4 ) शपथ पत्र को पैराग्राफों में विभाजित करना चाहिए तथा प्रत्येक पैराग्राफ को क्रम संख्या देनी चाहिए । प्रत्येक पैराग्राफ में यथासम्भव एक विषय का ही उल्लेख करना चाहिए ।

 ( 5 ) शपथ पत्र में उल्लिखित प्रत्येक व्यक्ति का सही नाम अथवा स्थान तथा पूर्व विवरण देना चाहिए जिससे उसका पूरा पता लग सके ।

 ( 6 ) जब शपथी अपने ज्ञान के आधार पर किसी विषय का उल्लेख करता है तो उसे सीधे तथा स्पष्ट रूप से इन शब्दों में लिखना चाहिए " मै पुष्टि करता हूँ । " या " मैं शपथ लेकर यह कहता हूँ । " 


( 7 ) शपथ पत्र सामान्यतया उन्हीं तथ्यों तक सीमित होना चाहिए जिनका शपथ देने वाले व्यक्ति को अधिकार हो ।

 ( 8 ) यदि कोई तथ्य किसी स्रोत या दस्तावेज पर आधारित है तो इसका पूर्ण विवरण करना चाहिए ।


 ( 9 ) शपथ पत्र के अन्त में शपथ तथा पुष्टिकरण को निम्नलिखित रूप में लिखना चाहिए -

" मैं शपथ लेकर कहता हूँ कि मेरा कथन सही है और उसमें कोई बात छिपाई नहीं गई और न ही इसका कोई भाग गलत है । "

       ( 10 ) शपथ पत्र ग्रहण करने वाले खण्ड के पश्चात् अभिसाक्षी का पहचान करने वाले अभिवक्ता या अधिकारी का बयान होगा जो कि विभिन्न न्यायालयों में विभिन्न विहित रीतों में होता है । बयान के नीचे उसके हस्ताक्षर होंगे तथा अन्त में शपथ दिलाने वाले अधिकारी का प्रमाण पत्र होगा तथा जिसके नीचे उस अधिकारी के हस्ताक्षर होंगे एवं मुद्रा ( Seal ) अंकित होगी ।


 शपथ पत्र का संशोधन:- शपथ पत्र में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता , यदि शपथ पत्र में कोई संशोधन करना हो या कुछ बढ़ाना हो तो एक नया शपथ पत्र दाखिल होगा।





Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद ...