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भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

वादियों के संयोजन तथा प्रतिवादियों के संयोजन से क्या होता हैं ? संयोजन के सम्बन्ध में नियमों का वर्णन कीजिए । ( What do you understand by Joinder of Plcadings nad Joinder of defen dants ? State the rules of Joinder . )

 वादियों तथा प्रतिवादियों के संयोजन के सम्बन्ध में नियम व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश1 में दिए गए हैं , जो इस प्रकार है -

वादियों का संयोजन ( Joinder of Plaintiff )

 " जहाँ कि यदि वे व्यक्ति जिनके बारे में यह अभिकथित है कि एक ही कार्य या संव्यवहार या कार्यों या संव्यवहारों की श्रृंखला के लिए या से पैदा होने वाले अनुतोष पाने का कोई अधिकार उनमें संयुक्त , पृथक्तः या पर्याप्त वर्तमान है , पृथक् वाद लाते हैं तो कोई सामान्य विधि या तथ्य का प्रश्न पैदा होता वहाँ ऐसे सब व्यक्ति वादियों के रूप में एक वाद में संयुक्त किये जा सकेंगे । " ( आदेश । नियम 1. )


 उपर्युक्त आदेश 1 नियम 1 के अन्तर्गत वे सभी व्यक्ति मुकदमें में वादी के रूप में संयोजित किये जा सकते हैं जहाँ कि अनुतोष के प्रति अधिकार जिसका प्रत्येक वादी में वर्तमान होना अभिकथित है जो उसी एक ही कार्य से या व्यवहार से उत्पन्न हुआ है तथा यदि ऐसे व्यक्तियों ने अलग - अलग मुकदमा चलाया तो वहाँ कानून या तथ्य का कोई सामान्य प्रश्न उठता हो ।


 इस विषय में आंग्ल विधि के सिद्धान्तों के अनुसार पक्षकार के संयोजन के लिए किन्हीं सुनिश्चित व स्पष्ट नियम ( Precise rules ) का निर्माण किया जाना व्यावहारिक दृष्टि से असम्भव है । अब आंग्ल विधि में इसके लिए एक आधारभूत सिद्धान्त परीक्षण के रूप में प्रयोग किया जाता हित रखता हो  इसके अनुसार वे सभी व्यक्ति जो वाद में या वाद को विषय - वस्तु में या वाद के उद्देश्य में सारभूत उस वाद के आवश्यक पक्ष माने जाते है ।




   संक्षेप में , निम्नलिखित व्यक्तियों को वादी के रूप में मुकदमें में सम्मिलित किया जा सकता है -


( 1 ) यदि कोई वाद संयुक्त अधिकार से सम्बन्धित है , तो सभी हिस्सेदारों को वादी के रूप में सम्मिलित किया जा सकता है । उदाहरण के लिए साझेदारी के व्यापार से सम्बन्धित मामले में सभी साझेदारों को सम्मिलित कर लेना चाहिए । 


( 2 ) जब कोई वाद संयुक्त अधिकार से सम्बन्ध नहीं रखता है तो प्रत्येक व्यक्ति जिसके हक में कार्यकरण उत्पन्न हुआ है , अलग से वाद ला सकता है । परन्तु कुछ दशाओं के कार्यकरण अलग होते हुए भी एक साथ वाद के पक्षकार बन सकते हैं , जैसे 


( क ) जब अनुतोष पाने का अधिकार एक ही कार्य या संव्यवहार अथवा कई मिले जुले कार्य या संव्यवहारों से उत्पन्न होता है ।


 ( ख ) जब वाद इस प्रकार हो कि यदि ऐसे व्यक्ति अलग अलग वाद करें तो विधि तथा तथ्य सम्बन्धी कोई सामान्य प्रश्न उठता हो । उदाहरण के लिय प्रतिवादी ने कई व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया हो तो वे सब द्वेषात्मक क्षति के लिए संयुक्त रूप में दावा कर सकते हैं ।


         व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 1नियम 2 के अन्तर्गत " जहाँ न्यायालय को यह मालूम होता है कि वादियों के किसी संयोजन से मुकदमे के परीक्षण में परेशानी या विलम्ब हो सकता है तो अदालत वादीगण से उनका चुनाव करा सकती है या अलग परीक्षण का आदेश दे सकेगी , जैसा कि इष्टकर हो ।


 " प्रतिवादियों का संयोजन ( Joinder of Defendants ) 



   व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 में नियम 3 के अन्तर्गत " जहाँ कि यदि उन व्यक्तियों के खिलाफ जिनके बारे में यह अभिकथित है कि एक ही कार्य या संव्यवहार या कार्यों या संव्यवहारों की श्रृंखला के लिए या से पैदा होने वाले अनुतोष पाने का अधिकार उनके खिलाफ संयुक्तः , पृथकत : या पर्याप्तः वर्तमान है , पृथक् वाद लाये जायें तो कोई सामान्य विधि या तथ्य का प्रश्न पैदा हो वहाँ ऐसे सब व्यक्ति प्रतिवादियों के रूप में संयुक्त किये जा सकेंगे । "


       किसी भी वाद में प्रतिवादियों के रूप में ये व्यक्ति सम्मिलित किये जा सकेंगे जिनके विरुद्ध वादी को अनुतोष प्राप्त करने का अधिकार विद्यमान हो , चाहे उनके विरुद्ध कार्य करण विभिन्न हो । पर शर्त यह है कि ऐसे कार्य करण एक ही कार्य अथवा संव्यवहार अथवा कई मिले जुले कार्य अथवा व्यवहारों से उत्पन्न हुए हों । उदाहरणतया - वादी की सम्पत्ति के नीलाम को स्वीकार कराने का वाद ' क ' , ' ख ' तथा ' ग ' के विरुद्ध एक ही में लाया जा सकेगा चाहे उन्होंने सम्पत्ति अलग अलग लाट में खरीदी हो ।


         उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि ऐसे सभी व्यक्तियों को प्रतिवादी के रूप में संयोजन किया जा सकता है जिसके विरुद्ध किसी अनुतोष के अधिकार का अस्तित्व हो बशर्ते कि-

 ( क ) ऐसे अधिकार की सम्पत्ति उसी कार्य या संव्यवहार या कार्यों से या संव्यवहारों की शृंखला से होती हो , तथा


 ( ख ) मामला ऐसा हो जहाँ कि यदि प्रतिवादियों के विरुद्ध पृथक् - पृथक् वाद दायर किये जाये तो उनमें विधि या तथ्य के सामान्य प्रश्न की उत्पत्ति होगी ।




 प्रतिवादियों के संयोजन के बारे में नियम 3 निम्नलिखित शर्तें निर्धारित करता है , जिन्हें एक साथ मौजूद रहना चाहिए । 


( 1 ) अनुतोष का अधिकार प्रतिवादियों के विरुद्ध पृथक्त : सा संयुक्त रूप से या विकल्पतः विद्यमान होना चाहिए ।

 ( 2 ) अनुतोष का अधिकार जिसे प्रतिवादियों के विरुद्ध विद्यमान होना चाहिए कि यदि ऐसे व्यक्तियों ( प्रतिवादियो) के विरुद्ध पृथक् वाद लाये जाते तो एक ही सामान्य विधि या तथ्य का प्रश्न उत्पन्न होता ।


 आदेश 1 नियम 7– “ जहाँ वादी को यह संदेश हो कि वह किस व्यक्ति से अपना अनुतोष पाने का हकदार है तो वह दो या अधिक प्रतिवादियों को संयोजित कर सकता है ताकि यह प्रश्न कि उन प्रतिवादियों में से कौन दायित्वहीन है और किस हद तक सभी पक्षकारों को बीच तय किया जा सके । "


 आदेश 1 नियम 6 – वादी एक ही वाद में सभी या उन व्यक्तियों में से किसी या किन्हीं को अलग - अलग या सम्मिलित और अलग अलग जो किसी संविदा पर दायी होते है जिसमें विनिमय पक्ष , हुण्डियों और वचन पत्रों के पक्षकार भी शामिल हैं , संयोजित कर सकता है । 



    

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