भारतीय दण्ड संहिता की धारा 84 के अन्तर्गत पागलपन कब एक अच्छा बचाव (प्रतिरक्षा) होता है?When is insanity a good defense under section 84 of the Indian Penal Code?
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 84 यह उपबंधित करती है कि “ कोई बात अपराध नहीं है , जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जो उसे करते समय चित्त - विकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति या यह कि जो कुछ वह कर रहा है , वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है , जानने मे असमर्थ है । " धारा 84 के अन्तर्गत आपराधिक विधि में पागल व्यक्तियों को पूर्ण संरक्षण प्रदान किया गया है । जब कोई व्यक्ति मानसिक विकृति से पीड़ित होता है , तो उसे विकृत - चित्त व्यक्ति कहा जाता है और ऐसा व्यक्ति कोई अपराध करता है तो उसे दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसे विकृत चित्त व्यक्तियों में अच्छे और बुरे को समझने की क्षमता नहीं होती है । इन विकृत - चित्त व्यक्तियों के बारे में ब्लैक स्टोन ने कहा है कि ये व्यक्ति अपने पागलपन मात्र से ही स्वयं दण्डित है , अतः उन्हें विधि द्वारा दण्डित किया जाना उचित नहीं है । Section 84 of the Indian Penal Code provides that “nothing is an offense which is done by a person who, at the time of doing it, is of unsound mind as to the nature of the act or that what he is...