अन्याय व कुप्रबंध को रोकने के लिए कौन से व्यक्ति आवेदन कर सकते हैं? Who may apply for preventing oppression and mis management?
अन्याय पूर्ण आचरण और कुप्रबंध के निवारणार्थ आवेदन करने का अधिकार
धारा 241 और 246 के अंतर्गत अधिकरण में आवेदन करने का अधिकार निम्नलिखित व्यक्तियों को प्रदान किया गया है:
(1) यदि कंपनी अंश पूंजी वाली है तो कंपनी के कम से कम 100 सदस्यों अथवा उसके सदस्यों की कुल संख्या के 1\10 संख्या में से जो भी कम हो अथवा कंपनी की निर्गमित की गई अंश पूंजी के कम से कम 1\10 अंश पूंजी धारण करने वाले किसी सदस्य या किन्हीं सदस्यों को ऐसा अधिकार प्राप्त है।
परंतु यह अधिकार तभी प्राप्त होगा जबकि आवेदक या आवेदकों ने अपने अंशों के बारे में किये गए सभी याचनाओं तथा अन्य शोध्य राशियों चुका दी हैं।
(2) बिना अंश पूंजी वाली कंपनी की दशा में ऐसा अधिकार उसके सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम 1\5 सदस्यों को प्राप्त है।
यदि केंद्रीय सरकार के विचार में ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं जिनसे यह न्याय संगत और साम्यापूर्ण हो जाता है वह कंपनी के किसी सदस्य या किन्ही सदस्यों को धारा 397 या 398 के अधीन अधिकरण में आवेदन करने के लिए प्राधिकृत कर सकती है और आवेदन करने हेतु सदस्यों की न्यूनतम संख्या की शर्त को हटा सकती है।
(3) सदस्यों के अलावा कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 401 के अंतर्गत केंद्रीय सरकार को भी धारा 241 के अधीन आदेश के लिए अधिकरण में आवेदन करने का अधिकार प्राप्त है और केंद्रीय सरकार ऐसा आवेदन अपने द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के द्वारा करवा सकती है ।
अन्याय एवं कुप्रबंध को रोकने के लिए न्यायालय के अधिकार( powers of the courts of check oppression and mis management)
कंपनी का कोई भी ऐसा सदस्य जिसको कंपनी के अन्याय से क्षति पहुंच रही हो तो ऐसी दशा में वह सदस्य कंपनी के विरुद्ध न्यायालय में आवेदन कर सकता है, बशर्ते कि यह अधिकृत हो। इसी तरह कुप्रबंध पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी कंपनी का अधिकृत सदस्य न्यायालय में आवेदन कर सकता है । न्यायालय कोई भी आदेश देने से पहले आवेदन की सूचना से केंद्रीय सरकार को पहले अवगत कराएगा तब इसके बाद ही न्यायालय आदेश दे सकता है। बिना केंद्रीय सरकार को सूचित किए न्यायालय अपने आदेश नहीं दे सकता है। इस संबंध में कंपनी के अधिकृत सदस्यों के संबंध में निम्नलिखित प्रावधान है:
(1) अंशपूंजी वाली कंपनी की दशा में: अंश पूंजी वाली कंपनी में केवल निम्नलिखित सदस्य ही आवेदन कर सकते हैं:
(अ) कम से कम 100 सदस्य कुल सदस्यों की कुल संख्या का 10% भाग या दोनों में से भी कम हो ।
(ब) कंपनी की निर्गमित पूंजी में 10% भाग पर अधिकार रखता हो ।
(2) बिना अंश पूंजी वाली कंपनी की दशा में : कुल सदस्य संख्या में कम से कम 20% सदस्य आवेदन कर सकते हैं ।
आवेदन पत्र के संबंध में न्यायालय के अधिकार: न्यायालय को केवल कंपनी के उपयुक्त दिए गए अधिकृत सदस्य ही आवेदन कर सकते हैं
कंपनी अधिनियम 293 की धारा 241 व 246 के अंतर्गत न्यायालय को यह अधिकार होता है कि वह ऐसे सभी आदेश कंपनी को दे सकता है जिन्हें वह उचित समझें । इस संबंध में न्यायालय निम्नलिखित कार्य कर सकता है
(1) कंपनी के संचालकों को नियमित कर सकती है ।
(2) कंपनी के अंशों का क्रय करके अंश पूंजी की मात्रा कम कर सकती है ।
(3) कंपनी के प्रबंध संचालक, प्रबंधक तथा अन्य किसी संचालक के साथ हुए समझौते समाप्त कर सकती है या समाप्त नहीं कर सकती है ।
(4) कंपनी के सदस्यों के हितों या अंशों का अन्य सदस्यों या कंपनी के द्वारा क्रय करने की व्यवस्था कर सकती है ।
(5) कंपनी अधिनियम,2013 की धारा 241से 246 के अनुसार दिए गए आवेदन पत्र से पूर्व 3 माह के अंदर कंपनी के द्वारा या कंपनी के विरुद्ध संपत्ति का हस्तांतरण, सुपूर्दगी या भुगतान को समाप्त करने के लिए आदेश दे सकती है ।
(6) कोई विशेष व्यवस्था जो न्यायालय की दृष्टि में न्याय संगत है कर सकती है ।
(7) यदि आवेदन पत्र हलफनामा के आधार पर निर्मित किया गया है तो भी न्यायालय इसका विरोध करके अपना निर्णय सुन सकता है ।
(8) कंपनी यदि चाहे तो भी न्यायालय के आदेशों के बिना अपने प्रपत्रों में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती है ।
(9) न्यायालय कंपनी के किसी भी सदस्य को प्रतिवादी के रुप में सम्मिलित होने की अनुमति दे सकता है ।
(10) न्यायालय आवेदन पत्र पर अंतिम आदेश देने से पहले अंतरिम आदेश भी दे सकता है लेकिन वह ऐसा आदेश तभी दे सकता है जब संबंधित पक्ष ने इस प्रकार के आदेश के लिए आवेदन किया हो ।
(11) न्यायालय के आदेशों पर प्रपत्रों में जो परिवर्तन हुए हो उनकी एक प्रतिलिपि आदेश देने के लिए 30 दिन के अंदर यह रजिस्ट्रार के सामने प्रस्तुत करना आवश्यक है। कंपनी इस औपचारिकता को पूरा नहीं करती तो उसे 1 वर्ष तक का कारावास अथवा ₹50000 तक के आर्थिक दंड से दंडित किया जा सकता है ।
अन्याय एवं कुप्रबंध को रोकने के लिए केंद्रीय सरकार के अधिकार( powers of the central government to check oppression and mismanagement)
केंद्रीय सरकार को कंपनी अधिनियम के अंतर्गत कंपनियों को अन्याय व कुप्रबंध को रोकने का अधिकार प्राप्त है । इसके अंतर्गत भी अधिकृत सदस्य के द्वारा आवेदन पत्र केंद्रीय सरकार को भेजा जाता है । अब सरकार कंपनियों के अन्याय व कुप्रबंध को रोकने के लिए अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकती है । केंद्रीय सरकार को इस संबंध में निम्नलिखित अधिकार प्राप्त है
(1) अतिरिक्त संचालकों की नियुक्ति: कंपनी में यदि किसी कारणवश अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर संचालकों की नियुक्ति ना हुई हो तो केंद्रीय सरकार को यह अधिकार होता है जिसके अंतर्गत वह अतिरिक्त संचालकों की नियुक्ति का आदेश दे सकती है ।
(2) संचालकों की नियुक्ति: केंद्रीय सरकार अपने अधिकारों के अंतर्गत कंपनी के अन्याय व कुप्रबंध को रोकने के लिए उसके लिए संचालकों की नियुक्ति कर सकती है । लेकिन केंद्रीय सरकार ऐसे संचालकों की नियुक्ति 3 वर्ष से अधिक की अवधि के लिए नहीं कर सकती है । ऐसे संचालकों का कंपनी में सदस्य होना आवश्यक नहीं है और ना ही ऐसे संचालकों के लिए योग्यता अंश लेना आवश्यक है । ऐसी संचालकों पर अवकाश ग्रहण करने का नियम लागू नहीं होता है । तथा इनके लिए कंपनी की सदस्यता ग्रहण करना भी आवश्यक नहीं होता है ।
(3) संचालकों की आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार परपर नियुक्ति: किसी कंपनी जिसमें आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर संचालकों की नियुक्ति नहीं हुई है तो केंद्रीय सरकार इस आधार पर संचालकों की नियुक्ति कर सकती है ।
(4) नियुक्त संचालकों की गणना: केंद्रीय सरकार के अधिकारों के अंतर्गत जो संचालक नियुक्त किए जाते हैं उनकी गणना कंपनी के संचालकों के साथ नहीं की जाती है ।
(5) प्रबंध अधिकारियों को हटाना: केंद्रीय सरकार किसी कंपनी के कपटों, कर्तव्य भंग, कामचोर अधिकारी को उसके पद से हटा सकती है लेकिन यह कार्य उच्च न्यायालय के द्वारा ही किया जा सकता है।
(6) संचालक मंडल में परिवर्तन: यदि किसी कंपनी में केंद्रीय सरकार द्वारा कंपनी में नियुक्त किए गए अतिरिक्त संचालक विद्यमान है तो कोई भी कंपनी अपने संचालक मंडल में परिवर्तन नहीं कर सकती है ।
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