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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम , 1950 अंतर्गत जोतदारों के कौन- कौन से प्रकार हैं? वर्णन कीजिए । ( Explain th classes of Tenureholder under Uttar Pradesh Jaminda . Abolition and Land Reform Act , 1950. )

 जोतदारों के प्रमुख प्रकार ( Kinds of Tenureholder )  उ . प्र . जगदारी एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम , 1950 ने जमींदारी  - उन्मूलन साथ - साथ इस प्राचीन जोतदारों की सब किस्मों को भी समाप्त कर दिया और उन्हें फिर से चार श्रेणियों में बाँट दिया - 1 . भूमिधर ,  2. सोरदार ,  3. असामी ,  4. अधिवासी ।           जिन जोदारों के अधिकार उच्च किस्म के थे या जिन्हें संक्राम्य अधिकार प्राप्त वे सब भूमिधर बन गए जिनको संक्राम्य अधिकार प्रा्त नहीं थे वे सीरदार कहलाये । अस्थिर और अस्थायी खेती के क्षेत्र के जोतदार या ऐसी भूमि के जोतदार , जिन्हें कि स्थायी अधिकार नहीं दिये जा सकते , असामी कहलाये ।                    लेकिन कुछ विशेष किस्म के काश्तकार थे , जिन्हें भूमि में स्थायी अधिकार प्राप्त नहीं थे , जमींदारों या क्षेत्रपति की मर्जी पर जोतों ( खेतों ) पर कब्जा रखते थे । ऐसे - काश्तकार बहुसंख्यक थे और वास्तव में काश्तकार थे । ऐसे बहुसंख्यक कृषकों के हित की रक्षा करना आवश्यक समझा गया और उन्हें " अधिवासी...

निष्क्रान्त सम्पत्ति क्या होती है ? विस्तार से समझाइए । असामी के लगान सम्बन्धी अधिकार क्या होते हैं? ( Explain in detail evacuee property . What are the rights of Asami to rent related ?

 निष्क्रान्त सम्पत्ति ( Evacuce Property )          वर्ष 1954 में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन तथा भूमि सुधार अधिनियम को संशोधित करके जोड़ा गया था । इसके प्रावधान 10 अक्टूबर , 1954 से प्रभाव में  आए | इस प्रकार के प्रावधान की आवश्यकता तब पड़ी  जब सन् 1947 में भारतवर्ष का विभाजन हुआ था । तो यहाँ के जो खेतिहर पाकिस्तान चले गये उनकी छोड़ी गई भू - सम्पदा का प्रबन्ध करने के लिए केन्द्र सरकार ने सन् 1950 में हो " निष्क्रान्त प्रबन्ध अधिनियम " पारित किया था , इसलिए इन दोनों अधिनियमों का सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक प्रतीत हुआ था । इसलिए सन् 1954 में अध्याय 2 - क और अनुसूची संख्या पाँच ( V ) को जोड़कर निष्क्रान्त सम्पत्ति पर जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के प्रभावों व परिणामों को उपबन्धित किया था ।        केन्द्र सरकार ने जो एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ इवैक्यू ऐक्ट 1950 में पारित किया था उसके मुख्यत : दो उद्देश्य थे । पहला यह कि जो पाकिस्तान चले गये उनकी सम्पत्ति का प्रबन्ध करना और दूसरा यह कि पाकिस्तान से आने वालों को ( शरणार्थियों ) व्यवस्थित करना ...

उत्तर प्रदेश भूमि प्रबंधन समिति के विधान , शक्तियों तथा कार्य कौन- कौन से होते हैं? ( Discuss the constitution , powers and functions of land management committee . )

भूमि प्रबंधन समिति का विधान ( Land Management Committee's Constitution ) :- उ . प्र . ग्राम्य स्वायत्त शासन विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1972 के लागू होने के पूर्व भूमि प्रबन्धक समिति के सदस्यों का चुनाव तत्कालीन ग्राम पंचायत के सदस्यों में से ग्राम पंचायत के सदस्यों द्वारा किया जाता था । जो व्यक्ति भूमि प्रबन्धक समिति में चुन लिये जाते थे , वे ग्रामपंचायत के सदस्य नहीं रह जाते थे । किन्तु 1972 ई . के इस  संशोधन अधिनियम ने भूमि प्रबन्धक समिति के सदस्यों का अलग चुनाव बन्द करा दिया और उ . प्र . पंचायत राज अधिनियम की धारा 28( क) को परिवर्तित कर यह प्रावधान किया कि- " प्रत्येक ग्राम पंचायत भूमि प्रबन्धक समिति भी होगी और इस रूप में वह उ . प्र . जमींदारी  - विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 117 अथवा उक्त अधिनियम के किसी उपलब्ध के अधीन ग्राम पंचायत की या उसमें निहित अथवा उसके द्वारा धृत सभी सम्पत्ति के रख - रखाव , संरक्षण तथा पर्यवेक्षण सम्बन्धी कर्तव्यों का पालन करेगी ।   "   ग्राम पंचायत का प्रधान और उपप्रधान क्रम से भूमि प्रबन्धक समिति के सभापति एवं उप सभापति होत...

शुफा के अधिकार के लिए क्या औपचारिकताएँ हैं ? हक शुफा की मांग What are the formalities to create the right of pre - emption ? Who can claim the right of premption ?

शुफा के लिए औपचारिकताएँ ( Formalitics for premption ):- शुफा का अधिकार दूसरे व्यक्ति की सम्पत्ति की बिक्री के अधिकार पर हस्तक्षेप करता है । अतः हिदाया और निर्णय विधि के अनुसार यह कमजोर अधिकार है । शुफा की मुस्लिम विधि तकनीकी  विधि है और सभी औपचारिकताओं का पूर्ण होना आवश्यक है । औपचारिकताओं के पूर्ण न होने पर या दोषपूर्ण होने पर शुफा का अधिकार प्रवर्तित नहीं हो सकता है । अतः कानून  की दृष्टि से कुछ औपचारिकताओं को बाध्यकारी समझा जाता है ।  शुफा के लिए निम्न तीन माँगे की जाती हैं  ( 1 ) पहली माँग अर्थात् तलब - ए - मुबासियत ।  ( 2 ) दूसरी माँग अर्थात् तलब - ए - ईशाद ।  ( 3 ) तीसरी माँग अर्थात् तलब - ए - तायलीक या तलब - ए - युसयत ।  ( 1 ) तलव - ए - मोवासियत ( पहली माँग ) - शुफी को विक्रय का पता लगते ही तुरन्त अपना हक मांगना चाहिए परन्तु उससे पहले नहीं । इसके लिए किसी गवाह की या औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती । न्यायालय इस बात पर विशेष ध्यान देता है कि पहली माँग तुरन्त होनी चाहिए अन्यथा वह शुफा व चाहने की इच्छा मानी जायेगी । एक मामले में शुफी के दावे को सि...

मुस्लिम विधि के अनुसार वसीयत कौन कर सकता है? क्या धर्म त्याग किये व्यक्ति अथवा दिवालिया द्वारा की गयी वसीयत मान्य होती है? क्या वसीयत को रद्द किया जा सकता है ?

  वसीयत(will)– ' वसीयत ' शब्द की उत्पत्ति वसीया से हुई है जिसका तात्पर्य है इच्छा - पत्र । अतः जब किसी व्यक्ति द्वारा अपनी चल या अचल सम्पत्ति के बंटवारे या निपटारे की मौखिक अथवा लिखित रूप से इच्छा अभिव्यक्ति की जाय तो उसे इच्छा पत्र या वसीयत कहा जाता है । उस इच्छा - पत्र को लिखित रूप दिये जाने पर वसीयतनामा कहा जाता है । अतः यह कहा जाता है कि वसीयत एक ऐसा अभिलेख है जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु के पश्चात् अपनी सम्पदा के बारे में इच्छा व्यक्त करता है कि उस सम्पत्ति का प्रबन्ध किस प्रकार किया जाय ।  फतवा - ए - आलमगीरी वसीयत की परिभाषा इस प्रकार करता है- " वसीयतकर्ता की मृत्यु हो जाने पर प्रभाव में आने वाले किसी विशेष वस्तु के मुनाफे , लाभ या वृत्ति ( Gratuity ) में सम्पत्ति के अधिकार का दान । " इस प्रकार वसीयत किसी व्यक्ति की अपनी सम्पत्ति सम्बन्धी इरादे की कानूनी घोषणा है जिसे वह अपनी मृत्यु के बाद कार्यान्वित करना चाहता है ।  भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम की धारा 2 के अनुसार वसीयत की निम्न परिभाषा है  " वसीयत का तात्पर्य उस घोषणा से है जिससे कि व्यक्ति अप...