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दलित व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की अमानवीय घटना कारित करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें ?

निष्क्रान्त सम्पत्ति क्या होती है ? विस्तार से समझाइए । असामी के लगान सम्बन्धी अधिकार क्या होते हैं? ( Explain in detail evacuee property . What are the rights of Asami to rent related ?

 निष्क्रान्त सम्पत्ति ( Evacuce Property )


         वर्ष 1954 में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन तथा भूमि सुधार अधिनियम को संशोधित करके जोड़ा गया था । इसके प्रावधान 10 अक्टूबर , 1954 से प्रभाव में  आए | इस प्रकार के प्रावधान की आवश्यकता तब पड़ी  जब सन् 1947 में भारतवर्ष का विभाजन हुआ था । तो यहाँ के जो खेतिहर पाकिस्तान चले गये उनकी छोड़ी गई भू - सम्पदा का प्रबन्ध करने के लिए केन्द्र सरकार ने सन् 1950 में हो " निष्क्रान्त प्रबन्ध अधिनियम " पारित किया था , इसलिए इन दोनों अधिनियमों का सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक प्रतीत हुआ था । इसलिए सन् 1954 में अध्याय 2 - क और अनुसूची संख्या पाँच ( V ) को जोड़कर निष्क्रान्त सम्पत्ति पर जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के प्रभावों व परिणामों को उपबन्धित किया था ।


       केन्द्र सरकार ने जो एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ इवैक्यू ऐक्ट 1950 में पारित किया था उसके मुख्यत : दो उद्देश्य थे । पहला यह कि जो पाकिस्तान चले गये उनकी सम्पत्ति का प्रबन्ध करना और दूसरा यह कि पाकिस्तान से आने वालों को ( शरणार्थियों ) व्यवस्थित करना । जहाँ तक उत्तर प्रदेश में ऐसी भूमि जमीदारों या काश्तकारों से छेड़ी गई थी उसका प्रशासन जमींदारी उन्मूलन व भूमि सुधार अधिनियम के द्वारा शासित किया जाना था । 

                    इस अध्याय में केवल धारा 26 - क तथा धारा 26 - ख बढ़ाया गया । धारा 26 - क में केवल यह कहा गया कि “ किसी प्रतिकूल बात के न होने पर शब्द “ कस्टोडियन " ' इवैकु ' इवैकुई प्रॉपर्टी " का वही अर्थ होगा जो इवैकुई प्रावर्टी से सम्बन्धित " एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ इकई प्रॉपर्टी ऐक्ट 1950 " में दिया गया है । धारा 26 - ख यह घोषित करती है कि निष्क्रान्त सम्पत्ति के सम्बन्ध में जमींदारी उन्मूलन तथा भूमि व्यवस्था अधिनियम 1959 के परिशिष्ट पाँच ( V ) में दिये गये संशोधनों के अनुरूप ही लागू होंगे ।

 इस अध्याय में प्रयुक्त शब्दों में व्याख्या इस प्रकार होगी:-

 ( i ) " निष्क्रान्त " शब्द से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो देश के विभाजन के अपनी काश्तकारी या जमादारी की भूमि भारत में छोड़कर पाकिस्तान में चले गये । 1 मार्च , 1947 को या उसके बाद इनकी भारतीय सम्पत्ति से देखरेख व नियंत्रण समाप्त गया । 

( II ) निष्क्रान्त सम्पत्ति ( Evacuee property ) से अभिप्राय निष्क्रान्त की सम्पति से है चाहे वह उसे स्वामी की हैसियत से या न्यासी अथवा लाभार्थी की हैसियत से या काश्तकार के रूप में धारण करता था ।  


( iii ) परिरक्षक ( Custodian ) को किसी अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गय है किन्तु निष्क्रान्त सम्पत्ति प्रशासन अधिनियम की धारा 2 ( ग ) में इतना इंगित किया गया है कि " कस्टोडियन " का अर्थ है " राज्य के लिए ( सम्पत्ति का ) परिरक्षक । " इसमें सम्मिलित हैं ।  

( i ) अतिरिक्त कस्टोडियन 

( ii ) उप - कस्टोडियन , तथा 

( iii ) सहायक कस्टोडियन

 इनका कार्य है कि निष्क्रान्त सम्पत्ति की सुरक्षा की देखभाल राज्य सरकार की ओर से करें ।

  ( Effect of Zamindari Abolition and Land Reformation Act in the Context of Evacuee Property ) निष्क्रान्त सम्पत्ति के विषय में जमींदारी उन्मूलन तथा भूमि सुधार अधिनियम का प्रभाव


 ( क ) निष्क्रान्ता का जमींदारी अधिकार धारा 4 , 6 के प्रभाव में समाप्त कर दिय गया तथा उसका मुआवजा और पुनर्वास कस्टोडियन को दे दिया था ।


 ( ख ) खुदकाश्त की भूमि पर : 

                                अगर किसी निष्क्रान्ता के पास पाकिस्तान जाते समय खुदकाश्त के रूप में दर्ज भूमि थी तो वह उसकी सम्पत्ति मानकर कस्टोडियन न्यस्त हो गई । यदि उस पर कोई अन्य व्यक्ति खेती भी कर रहा हो तो भी उसको अधिकार   न देकर पंचम अनुसूची के प्रथम पैरा के अनुसार कस्टोडियन के अधिकार में चली किन्तु यदि उस पर कोई काश्तकार 1356 फसली में काबिज दर्ज रहा तथा निहित हो के ठीक पूर्व काबिज होने के कारण धारा 16 जमींदारी उन्मूलन तथा भूमि सुधार  अधिनियम के अन्तर्गत मौरूसी काश्तकार बनकर सीरदार हो गया था तो उसे कस्टोडि पास लगान का पाच गुना जमा करना आवश्यक कर दिया गया । ऐसा करके बेदखली से बच सकता है । अगर धारा 20 ( ख ) जमींदारी उन्मूलन तथा भूमि सुधार अधिनियम  हो तो अधिनियम के अन्तर्गत कोई व्यक्ति निष्क्रान्त सम्पत्ति का अधिवासी  भूमिधर बनने के लिए 20 गुना लगान जमा करना आवश्यक किया गया था । यदि निश्चित अवधि तक जमा न किया हो तो उसे कस्टोडियम द्वारा बेदखल किया  जा सकता है ।

  किसी निष्क्रान्त भूमि के सम्बन्ध में जोतदारी के अधिकार का विवाद कस्टोडियम द्वारा निपटाया जा सकता है । उसका निर्णय अन्तिम माना गया है किन्तु निष्क्रान्त सम्पत्ति प्रशासन अधिनियम के अन्तर्गत अपील , पुनरीक्षण और पुनर्विलोकन का भी अधिकार है ।


  •  लगान सम्बन्धी अधिकार ( Rights to Rent Related ) 

  • असामी को लगान सम्बन्धी निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं 

( 1 ) समझौता द्वारा लगान निश्चित करने का अधिकार- 

सामान्यतया असामी  की नियुक्ति और लगान आपसी समझौता द्वारा तय किया जाता है । यह नकदी में भी हो सकता है और वस्तु में भी इस प्रकार अधिया पर फसल लेना भी एक प्रकार का लगान है । यदि लगान असामी के नियुक्ति के समय तय नहीं किया गया है तो असामी को धारा 213 में समझौते द्वारा लगान निर्धारित कराने का अधिकार दिया गया है । 


( ii ) लगान में परिवर्तन न होने देने का अधिकार 

अधिनियम की धारा 214 में यह प्रावधानित किया गया है कि यदि लगान एक बार निश्चित कर दिया जाता है तो जब  तक कि असामी को जोतगत भूमि के क्षेत्रफल ( रकबा ) में परिवर्तन नहीं होता तब तक यह परिवर्तनशील नहीं होगा । संविदा के अभाव में लगान दो किश्तों में देय होगा जिसमें पहले किश्त 15 नवम्बर को तथा दूसरी किश्त 15 मई को देय होगी ।


 ( iii ) लगान निश्चित कराने हेतु वाद लाने का अधिकार - धारा 215 के अनुसार यदि असामी के नियुक्ति के समय लगान के बारे में कोई संविदा न हुई हो तो 3 वर्ष के भीतर वाद संस्थित करके न्यायालय द्वारा लगान निर्धारित कराया जा सकता है । लगान मौरूसी दर से निर्धारित धनराशि के दूने के बराबर निश्चित किया जाएगा जिसमें जमीदारी नियमावली की नियम संख्या 180 क तथा 180 - ख के अनुसरण किये जायेंगे ।


                   धारा 218 में यह सुविधा दी गयी है कि सहायक कलेक्टर की अनुमति से लगान भुगतान के पद्धति में परिवर्तन कराया जा सकता है । अर्थात् फसल और गन्ने को नकदी में तथा नकदी को फसल और गन्ने में बदला जा सकता है । 


 ( iv ) कृषि सम्बन्धी विपत्ति पर लगान में छूट - धारा 268 ( 1 ) राज्य सरकार को कृषि सम्बन्धी विपति जैसे ओलावृष्टि , बाढ़ , सूखा इत्यादि के कारण प्रभावित जोत की मालगुजारी छोड़ने या स्थगित करने का अधिकार देती है । ऐसा करते समय उपधारा ( 2 ) के अनुसार राज्य सरकार असामी द्वारा देय कुल लगान या उसका कोई भाग छोड़ सकती स्थगित कर सकती है । 

( v ) बकाया लगान की डिक्री के समय न्यायालय द्वारा लगान में छूट      

              धारा 226 के अनुसार चांद लगाने का काम का वाद सुनते  समय न्यायालय का यह समाधान हो जाये कि उस काल में , जिसमें लगान का बकाया का दावा किया है , खाते का क्षेत्रफल जलप्लावन ( Dilusion ) के कारण या किसी दूसरे कारण से तत्वत : घट गया था या उसकी उपज सूखा , ओले पड़ जाने या अन्य विपत्ति ( Calamity ) के कारण कम हो गयी थी ।  तो उसके लिये यह वैध होगा कि वह लगान में ऐसी छूट दे दे ,  जो उसे न्याय संगत प्रतीत हो  


      किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि किसी छूट से ऐसा नहीं समझा जाएगा कि जिस कालके लिये वह दी गयी है उसके अतिरिक्त किसी और काल के लिये भी असामी लगान में कोई परिवर्तन हो गया है ।  

                यदि न्यायालय उपधारा ( 1 ) के अधीन छूट दे , तो राज्य सरकार या इस सम्बन्ध में अधिकृत प्राधिकारी मालगुजारी में परिणामिक छूट की आज्ञा देगा ।

 गलत बेदखली के विरुद्ध अधिकार - यदि किसी असामी को विधिक प्रावधान  के विरुद्ध बेदखल किया गया हो अथवा बिना किसी आधार के कब्जे से बेदख दिया गया हो तो 212 - ख उसे यह अधिकार देती है कि वह उस व्यक्ति के विरुद्ध उसके प्रतिनिधि के विरुद्ध जिसने व्यवधान उपस्थित किया है , दावा दाखिल करे कब्जा वापसी तथा बेदखली के विरुद्ध प्रतिकर की माँग साथ - साथ कर सकता है । प्रतिबन्ध केवल यह है कि जब कि डिक्री होने के समय कोई वादी इस अधिनियम के  उपबन्धों के अनुसार चालू कृषि वर्ष में बेदखली के योग्य हो तो अध्यासन ( Possession) के लिये डिक्री नहीं दी जाएगी । 

 अतिचारी को बेदखल करने का अधिकार - धारा 209 में यह उपबन्धित है कि यदि कोई व्यक्ति तत्समय प्रचलित विधि के निर्देशों के प्रतिकूल और असामी के सहमति के बिना उसकी भूमि पर कब्जा कर लेता है तो वह असामी द्वारा प्रस्तुत वाद पर बेदखल हो सकेगा । ऐसे वाद में राज्य सरकार एक पक्षकार होगी ।





    

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