उत्तर प्रदेश भूमि प्रबंधन समिति के विधान , शक्तियों तथा कार्य कौन- कौन से होते हैं? ( Discuss the constitution , powers and functions of land management committee . )
भूमि प्रबंधन समिति का विधान ( Land Management Committee's Constitution ) :-
उ . प्र . ग्राम्य स्वायत्त शासन विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1972 के लागू होने के पूर्व भूमि प्रबन्धक समिति के सदस्यों का चुनाव तत्कालीन ग्राम पंचायत के सदस्यों में से ग्राम पंचायत के सदस्यों द्वारा किया जाता था । जो व्यक्ति भूमि प्रबन्धक समिति में चुन लिये जाते थे , वे ग्रामपंचायत के सदस्य नहीं रह जाते थे । किन्तु 1972 ई . के इस संशोधन अधिनियम ने भूमि प्रबन्धक समिति के सदस्यों का अलग चुनाव बन्द करा दिया और उ . प्र . पंचायत राज अधिनियम की धारा 28( क) को परिवर्तित कर यह प्रावधान किया कि- " प्रत्येक ग्राम पंचायत भूमि प्रबन्धक समिति भी होगी और इस रूप में वह उ . प्र . जमींदारी - विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 117 अथवा उक्त अधिनियम के किसी उपलब्ध के अधीन ग्राम पंचायत की या उसमें निहित अथवा उसके द्वारा धृत सभी सम्पत्ति के रख - रखाव , संरक्षण तथा पर्यवेक्षण सम्बन्धी कर्तव्यों का पालन करेगी ।
" ग्राम पंचायत का प्रधान और उपप्रधान क्रम से भूमि प्रबन्धक समिति के सभापति एवं उप सभापति होते हैं । भूमि प्रबन्धक समिति को अलग से अपना अध्यक्ष या सभापति बनने का अधिकार नहीं है । चूँकि एक व्यक्ति , जो ग्राम सभा का प्रधान है , वही ग्राम पंचायत का प्रधान होता है और वही भूमि प्रबन्धक समिति का सभापति ( अध्यक्ष ) होता है , अतः गाँव की तीनों संस्थाओं ग्राम सभा , ग्राम पंचायत और भूमि प्रबन्धक समिति में आसानी से मेल स्थापित रहता है ।
ग्राम पंचायत का लेखपाल पदेन भूमि प्रबन्धक समिति का मन्त्री ( सेक्रेटरी ) होता है । इस प्रकार कानून ने ग्राम पंचायत और भूमि - प्रबन्धक समिति को अलग - अलग कर दिया । दोनों का प्रमुख एक ही व्यक्ति है , किन्तु दोनों संस्थाओं में मंत्री ( सेक्रेटरी ) अलग - अलग हैं । गाँव पंचायत के रजिस्टर आदि कागजात रखने की जिम्मेदारी पंचायत राज विभाग के कर्मचारी ( पंचायत सेवक ) जिसे वर्तमान में उ . प्र . ग्राम पंचायत अधिकारी ( प्रथम संशोधन ) नियमावली , 1989 के अधीन " ग्राम पंचायत अधिकारी " कहा जाता है पर होती है किन्तु भूमि प्रबन्धक समिति के कागजात रखने आदि की जिम्मेदारी उस इलाके लेखपाल की होती है ।
भूमि प्रबंधन समिति के कार्य एवं कर्तव्य ( Function and Duties of Land Management Committee )
1. भूमि का प्रबन्ध तथा निबटारा ,
2. ग्राम पंचायत की ओर से किसी व्यक्ति पर मुकदमा दायर करना या किसी व्यक्ति द्वारा ग्राम पंचायत पर मुकदमा दायर किए जाने पर ग्राम पंचायत की ओर से उसकी पैरवी करना ,
3. कृषि का विकास और उन्नति ,
4. सहकारी खेती का विकास ,
5. पशु पालन , मत्स्य पालन , कुक्कुट पालन का विकास ,
6. मीनाशयों तथा तालाबों की देखभाल तथा विकास ,
7. कुटीर उद्योगों को विकास ,
8. वन और वृक्षों की सुरक्षा , देखभाल और विकास ,
9. हाट बाजार और मेलों का प्रबन्ध ,
10. आबादी स्थल एवं ग्राम यातायात का संरक्षण तथा विकास ,
11. जोत चकबन्दी में सहायता देना ; तथा
12. ऐसे प्रबन्ध , पर्यवेक्षण तथा नियन्त्रण से सम्बद्ध कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए ।
भूमि प्रबंधक समिति की प्रमुख शक्तियाँ ( Main Powers of Land management Committee )
उ . प्र . भूमि प्रबंधन समिति की प्रमुख शक्तियाँ इस प्रकार हैं : -
( 1 ) बेदखल करने की शक्ति - भूमि - प्रबन्ध समिति का सभापति , मन्त्री ( लेखपाल ) या कोई भी सदस्य कलेक्टर के पास इस बात का प्रार्थनापत्र दे सकता है कि धारा 212 में वर्णित किसी सार्वजनिक उपयोग की भूमि से जोतदार को बेदखल कर दिया
( 2 ) भूमि आवंटन का अधिकार - ग्राम पंचायत में निहित या गाँव - पंचायत के कब्जे में आयी भूमि को भूमि प्रबन्धक समिति , परगनाधिकारी सहायक कलेक्टर से पूर्वस्वीकृति लेकर धारा 198 में आने वाले व्यक्तियों को दे सकती है । यदि भूमि अधिनियम की धारा 133 में वर्णित श्रेणियों में से है तो ऐसे व्यक्ति का दाखिला असामी की हैसियत में ही होगा । यदि भूमि धारा 132 में वर्णित है , तो सार्वजनिक उपयोगिता वाली भूमि का आवंटन नहीं किया जा सकता ; इन भूमियों के अतिरिक्त भूमि पर ग्राम सभा के निवासी व्यक्ति का असंक्रास्य अधिकार वाले भूमिधर के रूप में दाखिल हो सकेगा ।
( 3 ) भूमि पर कब्जा करने का अधिकार - भूमि प्रबन्धक समिति किसी जोत या उसके अंश पर निम्नलिखित परिस्थितियों के कब्जा कर सकती है
( a ) जब कोई संक्राम्य अधिकार वाला भूमिधर लावारिस या बिना वसीयत किए मर जाय ।
( b ) जब कोई असंक्राम्य अधिकार वाला भूमिधर लावारिस मर जाय ।
( c ) जब किसी असंक्राम्य अधिकार वाले भूमिधर की भूमि परित्यक्त घोषित हो जाए जब वह भूमि से इस्तीफा दे ।
( d ) जब कोई भूमिधर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बेदखल कर दिया गया हो ।
( e ) जब ग्राम पंचायत का असामी लावारिस मर जाय या बेदखल कर दिया जाय ।
( 4 ) ग्राम पंचायत में निहित सम्पत्ति की क्षति , गबन या अतिक्रमण होने पर कार्यवाही करने का अधिकार :- जब ग्राम पंचायत में निहित कोई सम्पत्ति किसी व्यक्ति द्वारा नष्ट की गई या गबन की गई है , या ग्रामपंचायत में निहित किसी भूमि पर किसी व्यक्ति ने अतिक्रमण किया है , तो भूमि प्रबन्धक समिति नियम रीति से सम्बद्ध सहायक कलेक्टर को सूचित करेगी ।
उक्त प्रकार से प्राप्त सूचना से या अन्य प्रकार से सहायक कलेक्टर को जब यह समाधान हो जाय कि निर्दिष्ट किसी सम्पत्ति को क्षति पहुँचायी गई है या उसका गबन किया गया है या ग्राम पंचायत की किसी भूमि पर किसी ने अतिक्रमण किया है , वहाँ वह तत्सम्बन्धित व्यक्ति को यह कारण बताने के लिए नोटिस ( 49 - क ) जारी करेगा कि ऐसी नोटिस प्राप्ति के तीस दिनों के बाद क्षति , गबन या अतिक्रमण के लिए उससे उस नोटिस में उल्लिखित प्रतिकर ( मुआवजा ) क्यों न वसूल किया जाय , या यथास्थिति , क्यों न उसे ऐसी भूमि से बेदखल कर दिया जाय ।
अगर वह व्यक्ति , जिसे नोटिस जारी की गई है , नोटिस में वर्णित समय के भीतर या बढ़ाये गये समय में , कारण न बताये अथवा बताया गया कारण अपर्याप्त पाया जाए तो सहायक कलेक्टर यह निर्देश दे सकता है कि ऐसे व्यक्ति को भूमि से बेदखल कर दिया जाय और इस प्रयोजन के लिए वह ऐसे बल का प्रयोग कर सकता है अथवा करा सकता है जो आवश्यक हो और यह भी निर्देश दे सकता है कि क्षति या गवन के लिए या अतिक्रमण के लिए मुआवजे की धनराशि ऐसे व्यक्ति से बकाया मालगुजारी की भाँति वसूल की जाय । यदि सहायक कलेक्टक इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कारण बताने वाला व्यक्ति क्षति पहुंचाने या गबन करने या अतिक्रमण करने का दोषी नहीं है तो वह नोटिस को रद्द कर देगा ।
चाहे बेदखली का आदेश हो या क्षति , गबन या अतिक्रमण के लिए प्रतिकर की धनराशि की वसूली का , या चाहे नोटिस रद्द किये जाने का सहायक कलेक्टर के आदेश से क्षुब्ध कोई भी व्यक्ति ऐसे आदेश के दिनांक से तीस दिनों के भीतर कलेक्टर के समक्ष पुनरीक्षण ( Revision ) का आवदेन इस आधार पर कर सकता है कि सहायक कलेक्टर
( a ) ने ऐसे क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया जो कानूनन उसमें निहित नहीं हैं ; या
( b ) उसमें निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में असफल रहा हो , या अपने क्षेत्राधिकार का उपयोग अवैध ढंग से सारवान् अनियमितताओं से किया है ।
सहायक कलेक्टर के आदेश से क्षुब्ध व्यक्ति चाहे तो ऐसी सम्पत्ति में अपने दावे को स्थापित करने के लिए सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय में वाद दायर कर सकता है , बशर्ते कि उसने कलेक्टर के समक्ष पुनरीक्षण के लिए आवेदन नहीं किया ।
सम्पत्ति में अपने दावे को स्थापित करने के लिए सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय में वाद दायर कर सकता है धारा 122 - ख ( 2 ) के अधीन इस प्रकार के विवाद को याचिकाकर्त्ता बाबू लाल बनाम कलेक्टर , झाँसी एवं अन्य ने माननीय हाई कोर्ट के समक्ष विचारणीय प्रश्न लाया याची ने निगरानी में कलेक्टर द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि अधिनियम की धारा 122 - ख ( 4 - ग ) के अधीन अन्तिम है अतः ( 4 - ई ) में वाद विचारण योग्य नहीं है । माननीय न्यायालय का अभिमत था कि संविधान प्रदत्त रिट के अधिकारों का प्रयोग करते समय उच्च न्यायालय हक या स्वामित्व को तथ्य का विषय होने के कारण तय नहीं कर सकता । अतः पक्षकार जिसके विरुद्ध सहायक कलेक्टर अथवा कलेक्टर या दोनों के द्वारा विपरीत आदेश पारित किये गये हों ऐसे व्यथित पक्षकार को अधिनियम ( 4 - घ ) में संरक्षण प्रदान करता है कि सक्षम अधिकारिता निरस्त कर दी गई ।
हमारे समाज के गरीब कृषक मजदूरों एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित के वर्गों के हितों की रक्षा तथा सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण को अपनाते हुए उ . प्र . जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था ( द्वितीय संशोधन ) अधिनियम , 1995 राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 213 खण्ड ( 1 ) में निहित शक्तियों को प्रयोग करके मूल धारा 122 - ख के उपखण्ड ( 4 - च ) में ( 30 जून 1985 के स्थान पर 3 जून 1995 ) प्रतिस्थापित किया गया । इस संशोधन का परिणाम यह होगा तो भी व्यथित खेतिहार मजदूर , अनु . जाति या अनु जनजाति का सदस्य 3 जून 1995 तक ग्राम की भूमि ( जो धारा 132 में सार्वजनिक उपयोगा की न हो ) का कब्जा धारण किया था वह इस संशोधन के उपरान्त असंक्राम्य भूमिधर का अधिकार प्राप्त कर लेगा ।
इसके बाद राज्य सरकार ने छोटे जोतदारों को लाभ प्रदान करने हेतु 3 जून , 1995 के स्थान पर मई 2002 तक कब्जा रखने वाले जोतदारों को भूमि में भौमिक अधिकार प्रदान कर दिया गया है साथ ही ऐसे कब्जाधारी व्यक्ति को अपने कब्जे की भूमि के स्वामित्व की घोषणा कराने हेतु सक्षम न्यायालय में वाद दायर किये बिना ही उनके पक्ष धारा 195 के अन्तर्गत असंक्राम्य अधिकारों वाला भूमिधर मान लिया गया है ।
इस अधिनियम की धारा 122 - ख ( 4 - च ) का लाभ प्राप्त करने हेतु जीत सिंह एवं अन्य बनाम एडीशिनल कलेक्टर वाद सुनियोजित किया जो जाति केवट ( मल्लाह ) थे तथा अनु . जाति एवं अनु . जनजाति में होने का दावा करते थे । अधीनस्थ न्यायालयों ने इसी आधार पर इनके केस को निरस्त कर दिया जिसे याचिका द्वारा माननीय हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई । याचिका निरस्त करते हुए तत्कालीन न्यायमूर्ति श्री एन . एल . गागुंली ने स्पष्ट किया कि धारा 122 - ख ( 4 - च ) के प्रावधान केवल अनुसूचित जाति एवं अनु . जनजाति के सदस्यों तक सीमित है अन्य व्यक्तियों को लाभ प्रदान नहीं किया जा सकता जो श्रेणी के बाहर हैं । साथ ही भूमि से बेदखल किये जाने का आदेश किया ।
उच्च न्यायालय इलाहाबाद के माननीय न्यायमूर्ति श्री एम.यू. खान ने घनश्याम सिंह बनाम स्टेट ऑफ यू . पी . मामले को निर्णीत करते हुए दिशा निर्देश दिये कि धारा 122 - ख ( 4 - च ) का लाभ प्राप्त करने हेतु दावेदार को न्यायालय के सामने साबित करना पड़ेगा कि उसने अनधिकृत रूप से गाँव सभा की भूमि पर कब्जा किये हैं और उसके विरुद्ध बेदखली की कार्यवाही लम्बित है , उसके नाम राजस्व अभिलेखों में लाभ प्रदान को जाने वाली तिथि के पूर्व से अंकित चले आ रहे हैं । बिना उचित प्रमाण के अगर धारा 122 - ख की कार्यवही किसी कारणवश समाप्त कर दिये जाने मात्र से ऐसे अनधिकृत व्यक्ति का कब्जा परिपक्व नहीं हो सकता ।
नेत्रपाल बनाम एडीशनल कलेक्टर के केस में , याची ने तर्क देते हुए कहा कि विवादित भूमि का पट्टा उसके द्वारा ग्राम सभा के माध्यम से प्राप्त किया गया है जिसकी अवधि समाप्त हो जाने पर भी याची को ग्राम सभा द्वारा वेदखल नहीं किया गया है । इसलिये अवधि समाप्त हो जाने के बाद याची विवादित भूमि का असामी धारा 133 के अन्तर्गत हो चुका है तथा धारा 202 में बेदखल नहीं किया जा सकता एवं धारा 122 B ( 4 - च ) काअधिकृत लाभ पाने का अधिकारी अनुसूचित जाति का सदस्य होने के कारण है ।
माननीय न्यायालय के समक्ष सुनवाई के समय , याची अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र पेश करने में असफल रहा साथ ही यह भी सिद्ध नहीं कर सकता कि धारा 202 के किस प्रावधान के अन्तर्गत उसे विवादित भूमि से बेदखल नहीं किया जा सकता । अतः उसको याचिका माननीय हाई कोर्ट ने निरस्त कर दी ।
( 5 ) मालगुजारी वसूल करने की शक्ति - अधिनियम की धारा 276 के अन्तर्गत राज्य सरकार मालगुजारी वसूलने का काम भूमि प्रबन्धक समिति को सौंप सकती है । राज्य सरकार ने गजट में अधिसूचना जारी कर मालगुजारी की वसूली का भार भूमि प्रबन्धक समिति को देने का अधिकार कलेक्टर को दे दिया है ।
कलेक्टर द्वारा अधिकृत किये जाने पर भूमि - प्रबन्धक समिति जोतदारों से मालगुजारी वसूलने की अधिकारिणी आदि होगी । किन्तु भूमि प्रबन्धक समिति मालगुजारी के किसी बकाया की वसूली के लिए निग्रह प्रसर का प्रयोग नहीं कर सकती है और वह किसी अन्य देयों को भी मालगुजारी की बकाया की तरह नहीं कर सकती है ।
भूमि प्रबन्धक समिति को वास्तविक वसूलियों पर 6 प्रतिशत की दर मध्य कमीशन दिया जायगा ।
( 6 ) गृह - निर्माण के लिए भूमि का आवंटन - तहसीलदार की पूर्वाज्ञा लेकर भूमि प्रबन्धक समिति इमारत या गृह निर्माण के लिए भूमि अनुसूचित जाति या अनुसूचित आदिम जाति के सदस्यों में , खेतिहर मजदूरों में और ग्रामीण कारीगरों ( जैसे - बढ़ई लुहार आदि ) में आबंटित कर सकती है ।
गाँव सभा भवन निर्माण हेतु केवल नैसर्गिक व्यक्ति ही पात्र है विधि व्यक्ति के पक्ष में नियम 115 - एल एवं 115 - एम के अन्तर्गत पंजीकृत समिति अर्ह नहीं मानी जाती है । उपर्युक्त बिन्दु पर माननीय हाई कोर्ट के समक्ष योग संस्थान बनाम कलेक्टर मुरादाबाद की याचिका विचारार्थ आई जिस पर माननीय न्यायालय द्वारा समिति को विधिक व्यक्ति मानते हुए अर्हताहीन मान कर रिट याचिका खारिज कर दी ।
सुखदेव बनाम कलेक्टर , बाँदा एवं अन्य के केस में , याची की याचिका इस आधार पर स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि चूँकि याची पिछले 30 वर्षों के अधिक विवादित भूमि पर मकान बना कर निवास कर रहा है एवं धारा 122 - बी की कार्यवाही के अन्तर्गत कलेक्टर ने याची की निगरानी निरस्त करते हुए तहसीलदार के आदेश के अनुपालन में बेदखली एवं जुर्माने की रकम अदा करने का निर्देश दिया था । न्यायालय ने स्पष्ट किया कि याची का 30 वर्षों से विवादित भूमि पर निवास करना पर्याप्त अधिकार प्रदान करता है कि याची को बेदखल किये जाने के बजाये उससे दण्ड की रकम जमा करा लेना ही पर्याप्त होगा ।
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