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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

सूचना का अधिकार right to Information Act,2005

  भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है अर्थात भारतीय संविधान के अंतर्गत जिस शासन व्यवस्था की स्थापना की गई है वह जनता में से जनता के द्वारा जनता के लिए चुने गए व्यक्तियों का शासन है लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम आदमी ही देश का असली मालिक होता है इसलिए मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का हक है कि जो सरकार की सेवा के लिए बनाई गई है वह क्या कहां और कैसे कार्य कर रही है इस संदर्भ म “महात्मा गांधी ने उचित ही कहा है कि वास्तविक स्वराज केवल कुछ लोगों द्वारा सत्ता प्राप्त कर लेने से ही नहीं होता अपितु यह तभी सार्थक होता है जब सत्ता के दुरुपयोग का विरोध करने की शक्ति जनता में निहित हो” अतः भारत सरकार ने सदैव अपने नागरिकों के जीवन को सहस विचारों एवं सुलभ बनाने हेतु बल दिया है इसी लक्ष्य को सामने रखते हुए भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली को पारदर्शी हम उत्तरदाई बनाने हेतु सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया गया है.💐                इतना ही नहीं प्रत्येक नागरिक सरकार के संचालन हेतु कार्य का भुगतान करता है इसलिए नागरिकों को यह जानने का पूरा अधिकार है कि उनके द्वारा...

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं (silent feature of Indian Constitution)

  विश्व का लिखित संविधान: विश्व के किसी भी देश का संविधान भारत के संविधान जैसा विस्तृत नहीं है सर आई वर जेनिंग्स के मतानुसार भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा एवं विस्तृत संविधान है किंतु हमारे संविधान निर्माताओं को अपने राष्ट्र के की हालातों को ध्यान में रखकर ही इसका निर्माण करना पड़ा था उस वक्त देश के सम्मुख विभिन्न भौगोलिक राजनीतिक सामाजिक एवं ऐतिहासिक परिस्थितियां विद्यमान थी हमारे संविधान को विस्तृत एवं बृहद बनाने की में सबसे बड़ा अधिक योगदान है वह यह है कि इस संविधान में केंद्रीय सरकार के संगठन एवं संरचना के लिए ही उप बंद नहीं किया गया है बल्कि राज्यों की सरकारों के संगठन एवं संरचना के लिए प्रबंध किया गया है भारतीय संविधान राष्ट्र की सर्वोच्च विधि है संविधान की विशालता को लेकर भले ही कुछ आलोचक इसे वकीलों का स्वर्ग कहे परंतु राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक यही चाहता है कि उसमें हर प्रकार की ऐसी नीति संबंधी बातों की व्याख्या की जानी चाहिए जिससे वह यह महसूस कर सके कि भारत में सच अर्थों में प्रजातंत्र विद्यमान है. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य की स...

संघात्मक शासन के आवश्यक तत्व: Essential elements of Federal constitution

  लिखित संविधान संघात्मक संविधान हमेशा लिखित होता है संघीय शासन पद्धति में इकाइयों के रूप में राज्य संघ शामिल होते हैं एवं उनके मध्य शर्तों का निर्धारण होता है राज्यों को मत संविदा आत्मक संबंध होते हैं ऐसे संबंधों का अक्षर रहना तभी संभव होता है जब लेख रूप में संकलित हो एवं उनके अधिकार तथा कर्तव्य से स्पष्ट हो लिखित संविधान द्वारा ही संभव होता है. शक्तियों का विभाजन संघात्मक संविधान का प्रमुख तत्व है केंद्रीय तथा प्रांतीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन हियर के मतानुसार संगीत संविधान के अंतर्गत शक्तियों का विभाजन संघ और इकाइयों में या विभाजन ऐसी नीति से किया जाए ताकि दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में भली-भांति रूप से एक दूसरे से स्वतंत्र हुआ एवं एक साथ ही एक दूसरे के सहयोगी ना एक दूसरे के अधीन यह विभाजन संविधान द्वारा किया जाता है भारत के संविधान में यह तत्व मौजूद है भारत में केंद्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है दोनों अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोपरि एवं एक दूसरे के सहयोगी भी राया शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों संघ सूची राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के अ...

भारतीय संविधान की प्रस्तावना ( the Preamble of Indian constitution)

 प्रत्येक अधिनियम प्रारंभ में प्राया प्रस्तावना का उल्लेख मिलता है यह आवश्यक भी है क्योंकि प्रस्तावना उस अधिनियम का दर्पण होती है वह संपूर्ण अधिनियम की भावनाओं को कुछ ही शब्दों में प्रकट कर देती है यही कारण है कि न्यायमूर्ति सुब्बाराव ने प्रस्तावना को अधिनियम के मुख्य आदर्श आकांक्षाओं का प्रतीक माना है दूसरे शब्दों में प्रस्तावना के अधिनियम के उद्देश्य एवं नीतियों को समझने में सहायता मिलती है ठीक है यही बात संविधान पर भी लागू होती है संविधान की प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है.             प्रस्तावना को संविधान का एक भाग ही माना गया है जहां कहीं संविधान की भाषा स्पष्ट या संदिग्ध लगती है वही प्रस्तावना से उसके अर्थ निर्धारण में सहायता मिलती है.      एसआर बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में उच्चतम न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अभिन्न अंग माना है प्रस्तावना में संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य जैसे शब्दों का आवाहन किया गया है जो इसके स्वरूप का संकेत देते हैं. दो बा...

राज्य के नीति निर्देशक तत्व (the Directive Principles of State Policy)

  भारतीय संविधान के भाग 4 में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को उपस्थित किया गया है.                        नीति निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित अनुच्छेद 37 प्रारंभ में ही यह घोषित करता है कि भाग 4 में उत्पादित किए गए प्रावधान किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनी नहीं होंगे किंतु उसमें प्रतिपादित सिद्धांत फिर भी देश के प्रशासन में मूलभूत है और राज्य का यह कर्तव्य होगा कि वह इन सिद्धांतों को कानून बनाने में लागू करें संविधान में निम्नलिखित नीति निर्देशक सिद्धांत राज्य पर कर्तव्य आरोपित करते हैं.          (1) लोक कल्याण की उन्नति के लिए राज्य समाजिक व्यवस्था बनाएंगे           अनुच्छेद 38 इस शीर्षक के अंतर्गत ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिए राज्य से कहा गया है कि जिस में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं में जान डाल दे और विशेष रूप से आमदनी में आ समानता है कम हो और ना केवल इकाई व्यक्तियों के बीच में बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले या विभिन्न द...

भारतीय संविधान की प्रस्तावना (the significance of Preamble to the Indian Constitution)

  भारतीय संविधान की प्रस्तावना मूल रूप से निम्नलिखित है           “हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में               व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए,         दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मा अर्पित करते हैं.               प्रस्तावना के तत्व भारतीय संविधान की प्रस्तावना मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों को उल्लेखित करती है ( 1) यह संविधान का स्रोत हम भारत के लोग अर्थात भारत की जनता से है ( 2) यह कि भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य है. ( 3) यह कि संविधान...

भारतीय संविधान में दिए गए नागरिकों के मूल कर्तव्य (the fundamental duties of citizen given in constitution of India and their importance)

  भारतीय संविधान में दिए गए नागरिकों के मूल कर्तव्य (fundamental duties of citizen given in Indian Constitution) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 ( क) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 का के अनुसार अधिकार और कर्तव्य दोनों एक दूसरे के सहवर्ती है। दोनों में चोली दामन का साथ है को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है कि एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती है जहां अधिकार है वही कर्तव्य भी है। एकाधिकार दूसरे का कर्तव्य है। कर्तव्य विहीन अधिकार निरर्थक है विधि में भी यही बात लागू हो होती है। प्रायः प्रत्येक विधि में अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का भी उल्लेख रहता है इसका भी कारण रहा है भारत एक लंबे समय तक दास्तां की स्थिति में रहा है भारत वासियों की मानसिकता अविकसित रही है और वह हमेशा कर्तव्य पालन में ही रहा है अतः इन परिस्थितियों में संविधान में मात्र अधिकारों का उल्लेख करना ही भारत वासियों के लिए मनोवैज्ञानिक चिकित्सा थी इसका अभिप्राय यह नहीं है कि उस समय भारतवासी कर्तव्यों के लिए तैयार नहीं थी भारत तो हमेशा ही कर्म में विश्वास करता रहा है।             ...