भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 (ख) (1) के अनुसार (1) जहाँ विवाह के सात वर्ष के भीतर किसी स्त्री की मृत्यु जल जाने से अथवा शारीरिक क्षति से अथवा सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है, कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले उसे उसके पति द्वारा अथवा पति के रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लिये मांग को लेकर परेशान किया गया था अथवा उसके साथ निर्दयतापूर्वक व्यवहार किया गया था तो इसे दहेज मृत्यु [dowry death] कहा जायेगा और उसकी मृत्यु का कारण रिश्तेदारों को माना जायेगा।
भारत में दहेज प्रथा एक गंभीर सामाजिक समस्या रही है। यह कुप्रथा सिर्फ महिलाओं के लिये पीड़ा का कारण नहीं बनती। बल्कि समाज के नैतिक मूल्यों पर भी सवाल खड़ा करती है। जब दहेज के कारण किसी महिला को प्रताडित किया जाता है और उसकी हत्या कर दी जाती है या आत्महत्या करने के लिये मजबूर कर दिया जाता है तो इसे दहेज हत्या (Dowry death] कहा जाता है।
दहेज हत्या क्या होती है? सामाजिक रूप से देहज हत्या से हमारे समाज की सोच के बारे में चर्चा: दहेज हत्या वह अपराध है जिसमें विवाह के बाद पति या ससुराल पक्ष की ओर से दहेज की मांग पूरी न होने पर नवविवाहित महिला को प्रताडित किया जाता है। कई मामलों में यह प्रताडना इतनी बढ़ जाती है कि महिला आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती है या उसकी हत्या कर दी जाती है। यह हत्या आमतौर पर जलाकर जहर देकर या शारीरिक हिंसा के रुप में की जाती है।
दहेज हत्या के कारण :
[1] दहेज प्रथा का प्रचलन:- समाज से यह धारणा बनी हुई है कि विवाह के समय लड़की के परिवार को लड़के वालो को उपहार देने चाहिये।
[2] लालच :- कुछ लोग विवाह को एक अवसर मानते है जिसमें वे बीज के रूप में संपत्ति या धन प्राप्त कर सकते है।
[3] कानूनी जागरुकता की कमी :- कई महिलाओं की अपने अधिकारों और कानूनों की जानकारी नही होती है। जिससे वे शोषण का शिकार होती है।
[4] पारिवारिक दबाब : - कई बार लड़की के माता-पिता भी दहेज देने के दिये मजबूर होते है, जिससे दहेज का दबाव बढ़ता है।
[5] कमजोरी कानून का पालन :- दहेज विरोधी कानून तो है लेकिन इनका सही से पाचन नहीं होने के कारण अपराधी बच निकलते है।
दहेज हत्या हमारे समाज की गहरी जडे पकड़ चुकी एक क्रूर वास्तविकता है, जो यह दिखाती है कि हमारी सामूहिक 'मानसिकता में कितनी विरोधाभास भरी सोच है। जब किसी और के परिवार में दहेज हत्या की खबर सुनते है तो अधिकतर लोग इसे अमानवीय गलत और समाज पर कलंक मानते है। वे दोषियों को कठोर सजा देने की मांग करते है और महिला अधिकारों की बात करते है। लेकिन जब यही घटना उनके अपने परिवार में होती है- चाहे या अप्रत्यक्ष रूप से - तो वे इसे अलग नजरिये से देखते लगते हैं।
समाज की दोहरी मानसिकता : - (
[1] दूसरों के लिये कठोरता :- जब किसी और के घर में बहू की हत्या होती है, तो लोग इसे पाप, अपराध और अत्याचार मानते हैं । वे दोषियों की कठोर दंड देने की बात करते हैं। समाज में सुधार की जरूरत बताते है।
[2] अपने लिए तर्कः - जब उनके खुद के बैठे या परिवार के किसी सदस्य पर दहेज हत्या का आरोप लगता है तो वे उसे बदनाम करने की साजिश लड़की के परिवार की गलती, मानसिक तनाव का नतीजा या एक हादसा कहकर सफाई देने लगते है है। वे यह सावित करने की कोशिश करते हैं कि उनका बेटा निर्दोष है या लड़की ही गलती थी।
[3.] समाज का दबाब : - कई बार परिवार यह मानते हैं कि दहेज लेना कोई बड़ी बात नही 'क्योंकि समाज में सब ऐसा ही करते हैं। जब किसी दूसरे पर आरोप लगता है तो वे उसे अपराध मानते है लेकिन जब खुद पर बात आती है। तो इसे परंपरा या पारिवारिक मसला बताने लगते हैं।
इस मानसिकता का प्रभाव:-
[a] महिलाओं की स्थिति कमजोर बनी रहती है क्योकि अपराधियों को उनके परिवार का समर्थन मिल जाता है।
[b] न्याय पाने की प्रक्रिया कठिन हो जाती है क्योंकि समाज खुद विरोधाभासी रवैया अपनाता है।
[C] यह दोहरी सोच हमारी न्यायिक और सामाजिक व्यवस्था को कमजोर करती है, जिससे दहेज हत्या जैसी घटनाएं बार-बार होती है।
समाधान क्या हो सकता है?
[a] सामाजिक स्तर पर समान दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है- दहेज हत्या किसी के भी परिवार में हो उसे अपराध ही माना जाये ।
[b] परंपराओं के नाम पर अपराधों को न छिपाया जाये और परिवारों की अपने बेटों को भी कठोर सजा दिलाने के लिये तैयार रहना चाहिये ।
(c) समाज को यह समझना होगा कि न्याय किसी रिश्ते से बड़ा होता है और अन्याय का समर्थन भले ही परिवार के लिये किया जाये अंततः समाज को ही नुकसान पहुँचायेगा ।
जब तक यह दोहरी मानसिकता बनी रहेगी तब तक दहेज हत्या जैसी घटनायें हमारे समाज में जारी रहेगी। हमें अपने विचारों और मूल्यों में बदलाव लाना होगा, नहीं तो यह समस्या कभी खत्म नहीं होगा।
भारत में हत्या से जुड़े कानून:- भारत सरकार ने दहेज प्रथा और इससे जुड़ी हत्याओं को रोकने के लिये कई कानून बनाये हैं जिनमें प्रमुख हैं:-
(ⅰ) भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 304 B यदि विवाह के 7 साल के अन्दर महिला की अस्वाभाविक मृत्यु होती है और यह साबित हो जाता है कि उसे दहेज के लिये प्रताडित किया गया था तो इसे दहेज हत्या, माना जाता है।
[2] दहेज निषेध अधिनियम 1961:- यह कानून दहेज देने और लेने दोनों को अपराध घोषित करता है। इसके तहत दोषी पाये जाने पर 5 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है।
[3] धारा 498A (IPC): - यदि पति या ससुराल पक्ष महिला को दहेज के लिये प्रताडित करता है। तो इसे क्रूरता माना जाता है और इसके लिये कठोर दण्ड का प्रावधान है ।
वास्तविक जीवन से उदाहरण: - नीता नाम की एक लड़की की शादी " बड़े धूमधाम से हुई। शादी के कुछ महीने बाद उसके पति और ससुराल वालों ने उससे ज्यादा दहेज लाने का दबाव बनाना शुरु कर दिया। नीता के माता-पिता पहले ही अपनी क्षमता से अधिक दहेज दे चुके थे। लेकिन ससुराल वालों की मांग बढती ही गयी। जब नीता के घरवाले और अधिक दहेज नहीं दे पाये तो उसे रोजाना ही प्रताडित किया जाने लगा । कुछ ही महीनों बाद नीता की जली हुई लाश उसके ससुराल में पानी गयी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से साबित हुआ कि यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या थी।
उदाहरण 2 -: सीमा की शादी एक अच्छे परिवार में हुई, लेकिन शादी के बाद उसके पति ने बाइक और नकद रुपये की मांग शुरू कर दी । जब सीमा के परिवार ने यह देने से मना कर दिया तो उसे प्रताडित किया गया। एक दिन सीमा ने मानसिक तनाव में आकर फांसी लगा ली। यह एक स्पष्ट देहज मृत्यु का मामला था।
समाज की भूमिका और समाधान :-
[2] जागरुकता फैलाना :- लोगों को यह समझाने की जरूरत है कि दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध है।
[2] बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना यदि लडकियां (आर्थिक रूप से स्वतन्त्र होगी, तो वे दहेज प्रथा के खिलाफ मजबूती से खड़ी हो सकेगी।
[3] सख्त कानूनी कार्यवायी : - दहेज हत्या के मामलों में त्वरित न्याय और दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिये।
[4] शिक्षा का प्रचार:- महिलाओ और उनके परिवारों को उनके अधिकारों और कानूनों की जानकारी होनी चाहिए ।
[5] समाज में सोच बदलना :- दहेज की सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ने की मानसिकता को समाप्त करना होगा।
निष्कर्ष : - दहेज हत्या एक गम्भीर अपराध है जो महिलाओं के जीवन को खत्म कर देता है। इसे रोकने के लिये कानून तो बनाये गये है लेकिन असली बदलाव तभी आयेगा जब समाज खुद इसे खत्म करने के लिये आगे आयेगा। हमें मिलकर इस सामाजिक बुराई को जड़ से समाप्त करना होगा। ताकि आने वाली पीढ़ी को एक सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन मिल सके।
दहेज हत्या से सबन्धित कुछ प्रमुख मामलो पर नजर डालते है, जो इस गंभीर सामाजिक समस्या को उजागर करते हैं:-
[1] सतबीर सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2024):→ इस मामले में मृतका की शादी 1 जुलाई 1994 को हुई थी, और एक वर्ष बाद 31 जुलाई 1995 की उसकी ससुराल में जलने से मृत्यु हो गयी। अभियोजन पक्ष का दावा था कि मृतका ने आत्महत्या की क्योकि उसे दहेज की मांग के कारण पति और सास द्वारा प्रताडित किया जा रहा था। ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय ने अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B [ दहेज मृत्यु और धारा 306 [ आत्महत्या के लिये उकसाना के तहत दोषी ठहराया । सुप्रीम कोर्ट ने भी धारा 304-B के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन धारा 306 के तहत दोषसिद्धि को खारिज कर दिया, क्योकि आत्महत्या के पर्याप्त सबूत नहीं थे।
[2] रामबदन शर्मा वनाम विहार राज्यः→इस मामले में अभियुक्त द्वारा मृतका से निरंतर दहेज की मांग की जाती रही। दहेज को लेकर मृतका को परेशान किया जाता रहा, उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता रहा और समय-समय पर उसे पीटा जाता रहा। अंत में उसे जहर दिया गया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी।
[3] पवन कुमार बनाम हरियाणा राज्य :→ इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि दहेज मृत्यु के मामले में दहेज के लिये करार का होना आवश्यक नहीं है। मृतका और उसके पिता से निरंतर टीवी और स्कूटर की मांग करना दहेज की परिधि में आता है।
[4.] सरोजिनी बनाम मध्यप्रदेश राज्य: → इस मामले में मृतका का शव उसके ससुराल के मकान के स्टोर रूम में पूर्ण रुप से जली हुई अवस्था में पाया गया। उसकी जीभ और आंखे बाहर निकल आई थी और मुंह से खून रिस रहा था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट मेडिकल रिपोर्ट तथा अन्य प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर उच्चतम न्यायालय ने इसे हत्या का मामला माना न कि आत्महत्या का ।
इन मामलों से स्पष्ट होता है कि दहेज प्रथा के कारण महिलाओं की अत्यंत क्रूर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जो कभी-कभी उनकी मृत्यु का कारण बनती हैं। यह आवश्यक है कि समाज में जागरुकता फैलाई जाये और दहेज प्रथा के खिलाफ सख्त कदम उठाये जाये ताकि ऐसी दुखद घटनाओं को रोका जा सके।
[2] जो कोई दहेज से मृत्यु कारित करेगा वह उतनी अवधि तक के कारावास से जो सात वर्ष से कम नहीं होगी लेकिन जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी दण्डित किया जायेगा।
इस प्रकार इस धारा के अधीन मृत्यु कारित करना दण्डनीय बनाया गया है। भारतीय दण्ड विधान की धारा 304 (ख) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 (क) सुसंगत है। धारा 113 (क) के उपबन्ध निम्नवत है।
[1] यदि किसी विवाहिता स्त्री ने विवाह से सात वर्ष के भीतर आत्महत्या कर ली हो,
[२] यदि किसी भी मामले में यह साबित हो कि उसके पति और निकटतम रिश्तेदारों का व्यवहार उसके प्रति क्रूरतापूर्ण था।
[3] उक्त तथ्य के साबित हो जाने पर न्यायालय यह उपधारण करेगा कि आत्महत्या नहीं की थी अपितु उसे आत्महत्या हेतु उसके पति या नातेदारों द्वारा उत्प्रेरित किया गया था अन्तर मात्र दहेज शब्द का है। बीमेरु व्यकटेश्वर राव तथा अन्य बनाम स्टेट ऑफ आन्ध्र प्रदेश 1992 क्रि० ला० ज० 563 दहेज मृत्यु के मामले में अपराध तत्व धारा 304 (ख) में वर्णित संयोजक तत्वों की आरोपण में टिप्पणी से है। धारा 304(ख) के अधीन भाग पृथक आरोप की अनुपस्थिति में अभियुक्त पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती है।
अभियुक्त उस आरोप के अधीन दोषी ठहराया जा सकता है। अभियुक्तों द्वारा बार-बार मृतका के भाई तथा पिता से दहेज की कमी का परिवाद (complaint) करना या मृतका पत्नी के साथ हमेशा निर्दयतापूर्ण व्यवहार करना मरने के उपरान्त मृतका के भाई बहन को बिना बुलाये उसकी अंत्येष्टि इत्यादि करना इस धारा के भावबोध में दहेज मृत्यु का संकेत करते हैं श्रीमती शांति तथा अन्य बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा ए० आई० आर० 1991 सु० को ० 1226 |
दहेज मृत्यु के मामले में जो कुछ भी धारा 304 (ख) दोषसिद्ध करने हेतु साबित करने वाले तथ्यों के रुप में आशयित है वह है धारा 113 (ख) के अधीन की जाने वाली उपधारणा कि मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर हुई हो तथा विवाहिता के साथ उसके पति या निकटवर्ती सम्बन्धियों ने क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया है - गुरुदित्त सिंह बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान 1992 क्रि० ल०ज० 309।
जहाँ मृतका का विवाह अभियुक्त से तीन वर्ष पहले हुआ हो तथा अभियोजन पक्षकार द्वारा न्यायालय की पूर्णतया संतुष्ट करा दिया गया हो कि उसके माता-पिता दहेज के लिये उसके साथ सदैव क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया करते ही तथा दहेज के अभाव का परिवाद उसके भाई तथा पिता ने लिया था तो उक्त तथ्य अभियुक्त के दोषसिद्ध के लिये पर्याप्त है - लोक अभियोजक आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय बनाम टी० बनाम पुन्नैया तथा अन्य 1989 क्रि० ला० ज० 2230 मध्य प्रदेश ।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति द्वारा 'दहेज लेना और देना दोनों को ही अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। जिसके लिये 6 माह से लेकर 2 साल तक की सजा का प्रावधान है। यह सजा माल दहेज की डिमांड के कारण हो सकती है। यदि दहेज की मांग की गयी तो इसके लिये यह सजा हो सकती है। यदि दहेज का लेन देन किया गया तो ऐसी स्थिति में 5 साल तक की सजा या 15000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।
क्या भारतीय दण्ड संहिता [ आईपीसी की धारा 498A का समबन्ध दहेज निषेध अधिनियम 1964 से है? उदाहरण सहित विस्तार ।
दहेज निषेध (अधिनियम 1961- यानि कि Dowry Prohibition Act 1962 में दहेज लेना देना और उसकी मांग करना (अपराध की श्रेणी में आता है जिसके कारण यदि ऐसे साक्ष्य मिलते हैं जिनमें ऐसी परिस्थिति पायी जाती है तो ऐसी स्थिति में सजा का प्रावधान है। जिसमें स्थिति और परिस्थिति के अनुसार सजा हो सकती है।
Dowry Prohibition Act 1961 का Section 3 और Section 4 के तहत दहेज से जुड़े अपराधों के लिये सजा का प्रावधान है। दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिये इस Act बनाया गया है।
Dowry Prohibition Act का section 3 : - इस Act में Dowry लेना व देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आता है। इसमें पाँच साल से कम सजा और 15 हजार रुपये का जुर्माना दहेज के मूल्य की रकम जो भी ज्यादा हो।
Dowry Prohibition Act 1961 का section 4 में Dowry की मांग करने पर 6 महीने से दो साल तक की सजा लेकिन अदालत के निर्णय में कारणों, स्थिति, परिस्थितियों को ध्यान में रख कर 6 महीने से कम अवधि के कारावास की सजा दे सकती है।
Note: Dowry Prohibition Act में आरोपी नहीं किया है। करना होगा कि उसने कोई अपराध की यह साबित करना होगा कि उसने कोई अपराध नहीं किया है ।
दहेज उत्पीड़न के मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायता メ X:- सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटि स्वर सिंह की बेंच द्वारा यह कहा गया कि शादी में विवादों के चलते पति के पूरे, परिवार के साथ-साथ निकट सम्बन्धियों को भी इस मामले में शामिल कर दिया जाता है। अगर बिना विशेष आरोप के अगर केस में पारिवारिक सदस्यों का नाम जोड़ा जाता है तो इस पर तत्काल रोक लगाना आवश्यक है। क्योंकि बिना किसी ठोस सबूत और विशेष आरोपों की मामले में कार्यवाही का आधार नहीं माना जा सकता है।
Note: भारतीय दण्ड संहिता में दहेज हत्या को Section 304-ख में बताया गया है। जबकि भारतीय न्याय संहिता 2023 में दहेज हत्या की धारा 80 में बताया गया है।
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