भारतीय न्याय संहिता की धारा 125 और IPC की धारा 337: एक तुलना और विश्लेषण→
हमारे देश के कानूनों में समय-समय पर सुधार होते रहते हैं ताकि वे समाज के बदलते हुए स्वरूप के अनुरूप हों। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 337 और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 125 इस बदलाव का एक उदाहरण हैं। इन दोनों धाराओं के बीच जो अंतर और समानताएँ हैं, उन्हें समझना बहुत जरूरी है, ताकि हम समझ सकें कि कानून ने अपने दृष्टिकोण में कैसे बदलाव किए हैं और समाज के हित में उसे कैसे लागू किया जाता है।
IPC की धारा 337: लापरवाही से चोट पहुंचाना→
IPC की धारा 337 उन स्थितियों को नियंत्रित करती है, जब किसी व्यक्ति की लापरवाही से दूसरे व्यक्ति को चोट लगती है। इसके तहत यह माना जाता है कि किसी ने अपने कृत्य के दौरान आवश्यक सावधानी नहीं बरती, जिससे दूसरे व्यक्ति को शारीरिक रूप से नुकसान हुआ।
धारा 337 का उदाहरण:→
मान लीजिए कि एक व्यक्ति गाड़ी चला रहा है और उसने ट्रैफिक नियमों की अनदेखी की। इस कारण से किसी पैदल यात्री को चोट लग जाती है। यह घटना IPC की धारा 337 के तहत आती है, क्योंकि यहां गाड़ी चालक की लापरवाही के कारण चोट लगने का मामला है।
सजा:→
इस धारा के तहत सजा में जुर्माना, छह महीने तक की सजा या दोनों हो सकते हैं। इसके लिए यह जरूरी होता है कि यह साबित हो कि चोट के पीछे किसी की लापरवाही या असावधानी थी।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 125: पीड़ित को मुआवजा→
अब बात करते हैं भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 125 की, जिसे हाल ही में न्यायालयों में लागू किया गया है। यह धारा पीड़ित व्यक्ति को एक निश्चित मुआवजा देने के लिए है, जो किसी अपराध के परिणामस्वरूप शारीरिक, मानसिक या वित्तीय रूप से प्रभावित हुआ हो।
धारा 125 का उदाहरण:→
मान लीजिए कि एक व्यक्ति किसी दुर्घटना में घायल हो जाता है, और उस दुर्घटना का कारण दूसरे व्यक्ति की लापरवाही है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 125 के तहत, पीड़ित को मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार होता है। इसके तहत अदालतें यह सुनिश्चित करती हैं कि पीड़ित को उसके नुकसान का उचित मुआवजा मिले।
मुख्य अंतर:→
1. धारा 337 मुख्य रूप से लापरवाही से चोट पहुंचाने के लिए जिम्मेदारी तय करती है, जबकि धारा 125 पीड़ित को मुआवजा देने के अधिकार को कानूनी रूप से स्थापित करती है।
2. IPC की धारा 337 में जुर्माना या सजा का प्रावधान होता है, जबकि BNS की धारा 125 में अधिकतर पीड़ित को वित्तीय मुआवजा देने का प्रावधान है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 125 का महत्व→
धारा 125 का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह पीड़ित के लिए राहत का एक रास्ता प्रदान करती है। यह सिर्फ एक कानूनी प्रावधान नहीं, बल्कि पीड़ित की कठिनाई को समझते हुए उसे न्याय दिलाने का एक औजार है। जब तक किसी मामले में अदालतें अपराधी को सजा नहीं देतीं, तब तक पीड़ित को कम से कम मुआवजा मिल सके, यही इसका उद्देश्य है।
निष्कर्ष→:
भारतीय न्याय संहिता की धारा 125 और IPC की धारा 337 दोनों ही समाज में कानून के तहत सुरक्षा प्रदान करने के उपाय हैं। हालांकि दोनों का उद्देश्य एक ही है - अपराध या लापरवाही से हुई चोट से पीड़ित व्यक्ति को न्याय और राहत प्रदान करना, लेकिन तरीका अलग है। IPC की धारा 337 मुख्य रूप से अपराधी की लापरवाही पर केंद्रित है, जबकि BNS की धारा 125 पीड़ित को मुआवजा देने पर केंद्रित है।
इन दोनों का सम्मिलित उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न सिर्फ अपराधी को सजा मिले, बल्कि पीड़ित को भी उचित मुआवजा मिले ताकि उसे न्यायक क़ानूनी संरक्षण का एहसास हो।
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