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भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS 2023) की धारा 100 क्या है । विस्तृत जानकारी दो।

IPC की धारा 333 और BNS की धारा 121(2)सरकारी सेवकों की सुरक्षा के नये कानून का विश्लेषण

धारा 333 (IPC) और BNS की धारा 121(2) : एक विश्लेषण→
भारत में कानून हमेशा समाज की बदलती ज़रूरतों के अनुसार समय-समय पर संशोधित होते हैं। इसी तरह IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 333 को अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत धारा 121(2) में सम्मिलित किया गया है। इस लेख में हम इन दोनों धाराओं को विस्तार से समझेंगे और जानेंगे कि इनमें क्या समानता और भिन्नता है।

IPC की धारा 333 क्या कहती थी?→

IPC (Indian Penal Code) की धारा 333 का उद्देश्य सार्वजनिक सेवकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस धारा के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति किसी सरकारी कर्मचारी या सरकारी कार्य में लगे व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाने का प्रयास करता है, तो यह अपराध माना जाता है। यह धारा विशेष रूप से तब लागू होती है जब सार्वजनिक सेवक अपनी ड्यूटी निभाते समय किसी आक्रमण का शिकार हो जाता है। 

सजा:→
धारा 333 के तहत अपराधी को 10 वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती थी। यह अपराध गैर-जमानती होता है, जिसका अर्थ है कि गिरफ्तारी के बाद आरोपी को सीधे जमानत नहीं मिलती, और उसे अदालत में जमानत के लिए आवेदन करना पड़ता है।

उदाहरण:→
मान लीजिए, एक पुलिस अधिकारी एक झगड़े को शांत कराने गया और उस पर झगड़ा करने वाले लोग हमला कर देते हैं और उसे गंभीर चोट पहुंचाते हैं। इस स्थिति में हमलावर पर IPC की धारा 333 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता था।

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 121(2) का परिचय→

नए कानून, BNS के तहत, IPC की धारा 333 को अब धारा 121(2) में स्थानांतरित किया गया है। इस धारा का उद्देश्य भी पूर्ववर्ती धारा की तरह ही है - सार्वजनिक सेवकों को उनकी ड्यूटी के दौरान सुरक्षा प्रदान करना। BNS में इसे सम्मिलित करने का मुख्य उद्देश्य न्याय प्रक्रिया को अधिक स्पष्ट और सटीक बनाना है।

BNS धारा 121(2) की विशेषताएं:→
सार्वजनिक सेवकों की सुरक्षा→: यह धारा सार्वजनिक सेवकों को उनकी ड्यूटी के दौरान होने वाले आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करती है।
•गंभीर चोट→: यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक सेवक को गंभीर चोट पहुँचाने का प्रयास करता है या पहुँचाता है, तो इस धारा के अंतर्गत उस पर मामला दर्ज हो सकता है।

सजा:→
धारा 121(2) के अनुसार भी अपराधी को 10 साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है। इसे गैर-जमानती अपराध माना गया है।

उदाहरण:→
मान लीजिए एक सरकारी डॉक्टर, जो एक अस्पताल में अपने ड्यूटी पर है, किसी मरीज के परिजनों द्वारा गंभीर रूप से घायल किया जाता है क्योंकि वे इलाज से असंतुष्ट थे। इस स्थिति में डॉक्टर की सुरक्षा हेतु हमलावरों पर धारा 121(2) के अंतर्गत कार्रवाई की जा सकती है।

 धारा 333 और 121(2) में समानताएं और अंतर→

1. समानताएं→:  
   •दोनों धाराओं का उद्देश्य सार्वजनिक सेवकों की सुरक्षा करना है।
   •दोनों धाराओं में सजा समान है - 10 साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों।
   •दोनों ही गैर-जमानती अपराध हैं।
   
2. अंतर→:  
   •IPC की धारा 333 को अब नए कानून में धारा 121(2) के रूप में संहिताबद्ध किया गया है।
   •बीएनएस के तहत बदलाव का उद्देश्य अधिक स्पष्टता और तेजी से न्याय प्रदान करना है।

निष्कर्ष:→

BNS के तहत धारा 121(2) का लाना एक सकारात्मक बदलाव है जो कानून को अधिक स्पष्ट और सटीक बनाता है। इस धारा के माध्यम से सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सार्वजनिक सेवकों को उनकी ड्यूटी के दौरान किसी प्रकार की असुविधा या खतरे का सामना न करना पड़े। यह प्रावधान न केवल हमारे कानून को मजबूत बनाता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि सार्वजनिक सेवकों पर हमला सहन नहीं किया जाएगा।

इस प्रकार, IPC की धारा 333 और BNS की धारा 121(2) का उद्देश्य समान है, लेकिन नए कानून के तहत इसकी व्याख्या और प्रवर्तन को अधिक सटीक और प्रभावी बनाने का प्रयास किया गया है।

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