एक लड़की ने अपने मायके में करीब अपना ससुराल और पति को छोड़कर एक साल से रह रही थी । अचानक उसने फांसी लगाकर कर आत्महत्या कर ली।जिस पर लड़की के घरवालों ने लड़की के पति पर तथा उसके परिवार पर मुकदमा दर्ज करवा दिया। पुलिस ने उसके पति और ससुराल पक्ष के सभी लोगों को पकड़ कर जेल भेज दिया पुलिस उनके ऊपर कौन-कौन सी धाराओं में मुकदमा दर्ज करेगी। बचाव पक्ष के लोगों द्वारा यदि आप को अपना वकील नियुक्त किया गया हो तो आप उन लोगों की जमानत याचिका दायर करके किन तर्कों के आधार पर जमानत लोगे। और यदि परिवार के कितने लोगों को जमानत मिलने की उम्मीद की जाती है?
इस प्रकार के मामले में पुलिस आमतौर पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की निम्नलिखित धाराओं में मुकदमा दर्ज कर सकती है:→
1. धारा 304B (दहेज हत्या)→• अगर महिला की मृत्यु विवाह के सात साल के भीतर होती है और उसमें दहेज का आरोप लगता है।
2. धारा 498A (क्रूरता)→• पति या ससुराल के किसी सदस्य द्वारा महिला पर मानसिक या शारीरिक क्रूरता।
3. धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना)→ अगर किसी पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है।
4. धारा 34 या 120B (समान उद्देश्य से किए गए कार्य या आपराधिक षड्यंत्र)→सभी अभियुक्तों पर सामूहिक संलिप्तता के आधार पर।
जमानत के लिए तर्क→
यदि बचाव पक्ष के वकील के रूप में तर्क प्रस्तुत करने हों, तो निम्नलिखित बिंदुओं को जमानत याचिका में उठाया जा सकता है:→
1. साक्ष्य की कमी→ • यह साबित करने के लिए कि ससुराल पक्ष या पति का लड़की की आत्महत्या में प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है। इसके लिए अन्य गवाहों और सबूतों की जरूरत पर जोर दिया जा सकता है।
2. लड़की का मायके में रहना→ •यह तर्क दिया जा सकता है कि लड़की एक साल से मायके में रह रही थी, जो इस बात को कमजोर करता है कि ससुराल में प्रताड़ना से उसका आत्महत्या से संबंध हो सकता है।
3.बिना पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड→ अगर आरोपियों का आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है तो इसे जमानत के लिए एक सकारात्मक बिंदु माना जा सकता है।
4. परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति→ •परिवार में वृद्ध सदस्यों की स्वास्थ्य स्थिति, बच्चों की देखरेख आदि जैसे मानवीय आधारों पर भी जमानत का निवेदन किया जा सकता है।
5. लड़की की मानसिक स्थिति→यदि लड़की की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पहले से थीं या कोई अन्य व्यक्तिगत कारण हो सकता है, तो इसे भी तर्क में शामिल किया जा सकता है।
किसे जमानत मिलने की संभावना अधिक है→
अधिकतर मामलों में, वृद्ध सास-ससुर या छोटे बच्चों जैसे कमजोर वर्ग के सदस्यों को जमानत मिलने की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा, जो सदस्य प्रत्यक्ष रूप से लड़की के संपर्क में नहीं रहे हैं या जिनका सीधा संबंध साबित नहीं हो रहा, उनकी भी जमानत की संभावना अधिक हो सकती है।
ध्यान रखें, न्यायालय जमानत के निर्णय में मामले की गंभीरता, सबूतों की प्रकृति, और प्रत्यक्ष संलिप्तता को ध्यान में रखता है।
इस मामले को उदाहरण सहित पॉइंट-टू-पॉइंट तरीके से समझते हैं:→
1. पुलिस द्वारा दर्ज की जाने वाली संभावित धाराएं:→
•धारा 304B (दहेज हत्या)→:
•उदाहरण:→यदि लड़की के मायके वाले यह आरोप लगाते हैं कि ससुराल पक्ष ने दहेज के लिए उत्पीड़न किया और इसी कारण लड़की ने आत्महत्या की है, तो पुलिस इस धारा के तहत मुकदमा दर्ज कर सकती है।
•धारा 498A (क्रूरता)→:
•उदाहरण:→अगर मायके वाले या अन्य गवाह यह कहते हैं कि ससुराल पक्ष ने लड़की को मानसिक या शारीरिक रूप से परेशान किया, तो धारा 498A में केस बन सकता है।
•धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना)→:
•उदाहरण:→अगर यह साबित करने का प्रयास किया जाता है कि ससुराल पक्ष के कारण लड़की ने आत्महत्या की, तो पुलिस धारा 306 भी लगा सकती है।
•धारा 34 या 120B (समान उद्देश्य से किया गया कार्य/ आपराधिक षड्यंत्र)→:
•उदाहरण:→यदि सभी सदस्यों पर यह आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने मिलकर लड़की को परेशान किया, तो पुलिस सामूहिक संलिप्तता का केस बना सकती है।
2. जमानत के लिए तर्क:→
•साक्ष्य की कमी→:
•उदाहरण:→अगर मायके वालों का बयान सिर्फ आरोप है और कोई ठोस सबूत नहीं है, तो जमानत के लिए तर्क दिया जा सकता है कि बिना सबूत के आरोपियों को जेल में रखना गलत है।
•लड़की का मायके में रहना→:
•उदाहरण:→लड़की एक साल से मायके में रह रही थी, जिससे यह तर्क दिया जा सकता है कि ससुराल पक्ष ने उसे प्रताड़ित नहीं किया होगा। यह दर्शाता है कि ससुराल पक्ष से उसकी मृत्यु का सीधा संबंध कमजोर है।
•बिना पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड→:
•उदाहरण: अगर पति या अन्य परिजनों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, तो यह जमानत के लिए सकारात्मक तर्क बन सकता है कि वे फरार होने या गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास नहीं करेंगे।
•परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति→:
•उदाहरण: यदि ससुराल पक्ष में वृद्ध सदस्य या छोटे बच्चे हैं और परिवार पर आर्थिक निर्भरता है, तो यह भी मानवीय आधार पर जमानत के लिए तर्क दिया जा सकता है।
लड़की की मानसिक स्थिति→:
•उदाहरण:→यदि लड़की के मानसिक स्वास्थ्य में पहले से कोई समस्या थी और इसे मेडिकल रिपोर्ट या अन्य साक्ष्यों से सिद्ध किया जा सकता है, तो यह तर्क दिया जा सकता है कि उसकी आत्महत्या का कारण ससुराल पक्ष नहीं था।
3. किसे जमानत मिलने की संभावना अधिक है:→
•वृद्ध सदस्य (सास-ससुर)→:
•उदाहरण:→वृद्ध होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के आधार पर सास-ससुर को जमानत मिलने की संभावना अधिक हो सकती है।
•परिवार के अन्य सदस्य जो लड़की के संपर्क में नहीं थे→:
•उदाहरण:→अगर कोई अन्य रिश्तेदार या घर का सदस्य है, जो लड़की के सीधे संपर्क में नहीं था, तो यह तर्क दिया जा सकता है कि उसका इस मामले से सीधा संबंध नहीं है, जिससे जमानत मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
इन सभी तर्कों के आधार पर, अदालत से जमानत का निवेदन किया जा सकता है।
यदि परिवार में पति ही वृद्ध माता-पिता का एकमात्र सहारा है, तो यह एक महत्वपूर्ण मानवीय आधार बन सकता है जिसके आधार पर जमानत का निवेदन किया जा सकता है। इस स्थिति में निम्नलिखित तर्क देकर पति की जमानत की उम्मीद बढ़ाई जा सकती है:→
1. परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी→:
• पति पर यह तर्क दिया जा सकता है कि वह अपने वृद्ध माता-पिता का एकमात्र सहारा है, और उन्हें उसकी सहायता की जरूरत है। अदालतों में ऐसे मानवीय आधारों पर जमानत मिलने की संभावना होती है, खासकर जब अन्य किसी भी सदस्य पर माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी नहीं हो।
2. जमानत पर रहते हुए जांच में सहयोग का वादा→:
•पति की ओर से यह तर्क दिया जा सकता है कि वह जांच में पूरी तरह सहयोग करेगा और अदालत के आदेशों का पालन करेगा। इसके आधार पर अदालत पति को सशर्त जमानत दे सकती है।
3. बिना आपराधिक रिकॉर्ड→:
• यदि पति का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, तो इसे एक और सकारात्मक तर्क के रूप में रखा जा सकता है कि वह समाज के लिए खतरा नहीं है और न ही फरार होने की संभावना है।
4. सभी आरोपों का सामना करने की इच्छा→:
•पति की ओर से यह भी कहा जा सकता है कि वह निर्दोष है और सभी आरोपों का सामना करने को तैयार है, जिससे यह साबित होता है कि वह कानून से भागना नहीं चाहता।
इस प्रकार, वृद्ध माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी के आधार पर पति की जमानत की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। हालांकि, अंतिम निर्णय अदालत के विवेक पर निर्भर करेगा, जो कि मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिया जाएगा।
यहां कुछ ऐसे रोचक मामले हैं, जिनमें आत्महत्या के मामलों में पति या ससुराल पक्ष को आरोपी बनाया गया था, लेकिन अदालतों ने खास परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न निर्णय दिए। इनसे यह समझने में मदद मिलती है कि अदालतें किस प्रकार के आधारों पर निर्णय लेती हैं:→
1.के.जी. बालकृष्णन बनाम केरल राज्य (2011)→
•मामला→: इस मामले में एक महिला ने आत्महत्या कर ली थी, और उसके मायके वालों ने आरोप लगाया कि ससुराल पक्ष ने उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया। पुलिस ने ससुराल पक्ष के सभी लोगों पर धारा 304B और 498A के तहत केस दर्ज किया था।
•अदालत का निर्णय→: सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि महिला अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले अपने मायके में रह रही थी और प्रताड़ना के ठोस सबूत नहीं मिले। केवल मायके वालों के बयान पर केस बनाना उचित नहीं था। इस आधार पर अदालत ने ससुराल पक्ष को जमानत दे दी।
•सिखने योग्य→: इस केस में अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अगर महिला लंबे समय से मायके में रह रही हो और ससुराल से प्रत्यक्ष संपर्क न हो, तो ससुराल पक्ष के आरोपियों को जमानत मिलने की संभावना अधिक हो जाती है।
2. संजय चौधरी बनाम राजस्थान राज्य (2019)→
•मामला→: इस मामले में पति पर आरोप था कि उसने अपनी पत्नी को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी, जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली। महिला के मायके वालों ने कहा कि उसे दहेज के लिए तंग किया जा रहा था।
•अदालत का निर्णय→: राजस्थान हाईकोर्ट ने मामले में यह पाया कि पति और पत्नी के बीच कुछ व्यक्तिगत मतभेद जरूर थे, लेकिन दहेज के प्रताड़ना के ठोस सबूत नहीं थे। पति के वृद्ध माता-पिता भी उसके ऊपर निर्भर थे। इसलिए, पति को जमानत दे दी गई।
•सिखने योग्य→: अदालत ने इस मामले में पाया कि पति और पत्नी के बीच विवाद केवल वैवाहिक समस्याओं से जुड़े थे, और दहेज का सीधा संबंध नहीं था। वृद्ध माता-पिता की निर्भरता को भी अदालत ने महत्वपूर्ण आधार माना।
3.प्रेमचंद बनाम दिल्ली राज्य (2022)→
•मामला→: एक महिला ने अपने मायके में रहते हुए आत्महत्या कर ली थी, और उसके परिवार ने पति और ससुराल वालों पर प्रताड़ना का आरोप लगाया। ससुराल पक्ष ने दावा किया कि महिला का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं था।
•अदालत का निर्णय→: दिल्ली हाईकोर्ट ने यह पाया कि महिला की मेडिकल रिपोर्ट में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का उल्लेख था, और वह ससुराल से एक साल से दूर रह रही थी। इसलिए, कोर्ट ने ससुराल पक्ष को जमानत दे दी।
•सिखने योग्य→: इस केस में अदालत ने पाया कि महिला के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे उसकी आत्महत्या का कारण हो सकते हैं, और ससुराल पक्ष का इसके साथ प्रत्यक्ष संबंध नहीं था।
4.गुरप्रीत सिंह बनाम पंजाब राज्य (2017)→
•मामला→: पति पर आरोप था कि उसने अपनी पत्नी को दहेज के लिए तंग किया, जिसके कारण उसने आत्महत्या की। मायके वालों ने आरोप लगाया कि उसे मानसिक रूप से परेशान किया गया।
•अदालत का निर्णय→: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने यह पाया कि पत्नी की आत्महत्या का कोई ठोस सबूत दहेज के प्रताड़ना से नहीं जुड़ा था। पति के माता-पिता भी वृद्ध थे और पति पर निर्भर थे। अदालत ने पति और उसके माता-पिता को जमानत दे दी।
•सिखने योग्य→: अदालत ने इस मामले में वृद्ध माता-पिता की निर्भरता को मानवीय आधार पर माना और सबूतों के अभाव में पति को जमानत दे दी।
निष्कर्ष:→
इन मामलों से यह स्पष्ट होता है कि अदालतें आत्महत्या के मामलों में जमानत पर निर्णय लेते समय निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष ध्यान देती हैं:→
•साक्ष्य की पर्याप्तता और प्रत्यक्ष संलिप्तता।
•महिला का ससुराल में रहने या मायके में रहने का समय।
•मानसिक स्वास्थ्य संबंधी रिकॉर्ड या समस्याएं।
•आरोपी पर वृद्ध माता-पिता या अन्य निर्भर सदस्यों की जिम्मेदारी।
इन मामलों में अदालतें आमतौर पर किसी को जमानत देने से पहले मानवीय आधारों पर और सबूतों की गंभीरता पर विचार करती हैं।
ऐसे मामलों में कुछ प्रसिद्ध और रोचक उदाहरण हैं, जहाँ अदालत ने परिवारिक परिस्थितियों और मानवीय आधार पर फैसला दिया। निम्नलिखित केसों से यह समझा जा सकता है कि अदालतें कैसे विशेष परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए जमानत या निर्णय देती हैं:→
1. सुधीर कुमार बनाम बिहार राज्य (2020)→
•मामला:→ सुधीर कुमार पर अपनी पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था। सुधीर के बूढ़े माता-पिता केवल उसी पर निर्भर थे, और उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों में कोई ठोस साक्ष्य नहीं था।
•अदालत का निर्णय:→ कोर्ट ने यह देखते हुए कि सुधीर अपने माता-पिता का इकलौता सहारा है और सबूतों की कमी को ध्यान में रखते हुए उसे जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि परिवार के प्रति जिम्मेदारियाँ और साक्ष्य की कमी महत्वपूर्ण आधार हैं।
2.ललित मोहन शर्मा बनाम दिल्ली राज्य (2018)→
•मामला:→ ललित मोहन पर उनकी पत्नी के आत्महत्या मामले में दहेज उत्पीड़न का आरोप था। उनके माता-पिता वृद्ध थे और केवल ललित पर ही निर्भर थे। पत्नी के मायके वालों ने आरोप लगाया कि ललित के परिवार ने दहेज की मांग की थी, लेकिन कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं था।
•अदालत का निर्णय:→ हाईकोर्ट ने मानवीय आधारों पर ललित को जमानत दे दी, यह ध्यान में रखते हुए कि उनके माता-पिता को उनकी देखभाल की आवश्यकता थी। कोर्ट ने कहा कि इस स्थिति में आरोपी को जेल में रखना उचित नहीं होगा।
3. राजेश कुमार बनाम हरियाणा राज्य (2015)→
•मामला:→ राजेश कुमार पर अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था। उसके वृद्ध माता-पिता और छोटे भाई-बहन उस पर निर्भर थे। पत्नी के मायके वालों ने दावा किया कि प्रताड़ना के कारण उसने आत्महत्या की।
•अदालत का निर्णय:→ कोर्ट ने राजेश को जमानत दे दी, यह देखते हुए कि वह अपने परिवार के लिए एकमात्र सहारा था और साक्ष्यों में प्रत्यक्ष संबंध का अभाव था। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में परिवार की जिम्मेदारी को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
4. अरुणा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2012)→
•मामला:→ अरुणा सिंह के पति पर उसकी आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था। हालांकि, अरुणा के पति की माँ एक गंभीर बीमार स्थिति में थी और उन्हें मेडिकल सहायता की जरूरत थी।
•अदालत का निर्णय:→ पति को इस आधार पर जमानत दी गई कि उनकी माँ को तत्काल देखभाल की जरूरत थी। कोर्ट ने कहा कि मानवीय आधार पर राहत देना जरूरी है।
इन मामलों से यह समझा जा सकता है कि अदालतें केवल आरोपों के आधार पर ही नहीं, बल्कि साक्ष्यों और आरोपी के पारिवारिक दायित्वों को ध्यान में रखते हुए भी फैसले देती हैं।
ऐसे मामलों में एक वकील को पति की जमानत के लिए ठोस और कानूनी रूप से मान्य तर्क देने की आवश्यकता होती है। नीचे दिए गए कुछ प्रमुख तर्क और उन्हें साबित करने के तरीके हैं जो वकील द्वारा अदालत में दिए जा सकते हैं:→
1. लंबे समय से मायके में रहने का तर्क→
•तर्क→: यदि महिला एक साल से मायके में रह रही थी, तो यह दिखाता है कि पति और महिला के बीच प्रत्यक्ष संपर्क नहीं था।
•कैसे साबित करें→:
•मायके में रहने के समय की पुष्टि करने के लिए महिला के पड़ोसियों और परिवार के सदस्यों के बयान।
• महिला के मायके में रहने की अवधि से संबंधित दस्तावेज, जैसे पुलिस रिपोर्ट या अन्य आधिकारिक रिकॉर्ड (यदि पहले शिकायत दर्ज की गई हो)।
2. साक्ष्य की कमी→
•तर्क→: अगर पुलिस के पास प्रताड़ना के ठोस साक्ष्य नहीं हैं, तो केवल आरोप के आधार पर पति को आरोपी ठहराना अनुचित है।
•कैसे साबित करें→:
•सबूत के अभाव पर जोर देकर यह तर्क दें कि किसी प्रकार का फोन रिकॉर्ड, मैसेज या गवाह नहीं है जो पति द्वारा प्रताड़ना को साबित कर सके।
• महिला के अंतिम दिनों में अगर किसी गवाह ने कुछ ऐसा नहीं देखा जो प्रताड़ना को साबित करता हो, तो उसे भी अदालत के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है।
3. महिला का मानसिक स्वास्थ्य→
•तर्क→ अगर महिला का मानसिक स्वास्थ्य पहले से ठीक नहीं था, तो हो सकता है कि आत्महत्या का कारण उसका मानसिक तनाव हो, न कि पति या ससुराल वालों की प्रताड़ना।
•कैसे साबित करें→:
• महिला के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मेडिकल रिकॉर्ड अदालत के सामने प्रस्तुत करें।
•ऐसे गवाहों को पेश करें जो यह गवाही दे सकें कि महिला का मानसिक स्वास्थ्य स्थिर नहीं था, जैसे उसके दोस्त या परिवार के सदस्य।
4.पति का आपराधिक रिकॉर्ड न होना→
•तर्क→: यदि पति का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और समाज में उसकी अच्छी छवि है, तो यह दर्शाता है कि वह कानून का पालन करने वाला नागरिक है।
•कैसे साबित करें→:
•पुलिस रिकॉर्ड और चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें, जिनसे साबित हो कि पति का पूर्व में कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है।
•समाज के सम्मानित व्यक्तियों से प्राप्त चरित्र संबंधी पत्र (Character Certificate) अदालत के सामने पेश करें।
5. पति पर माता-पिता की निर्भरता→
•तर्क→: पति पर उसके वृद्ध माता-पिता की जिम्मेदारी है और वह उनका इकलौता सहारा है, इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए।
•कैसे साबित करें→:
• माता-पिता की उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित मेडिकल दस्तावेज पेश करें।
•यह दिखाने के लिए दस्तावेजी सबूत दें कि परिवार में केवल पति ही कमाने वाला है।
6.पति का जमानत के बाद जांच में सहयोग का वादा→
•तर्क→: पति जमानत के बाद जांच में सहयोग करेगा और अदालत के आदेशों का पालन करेगा।
•कैसे साबित करें→:
•अदालत के सामने यह लिखित आश्वासन दें कि वह नियमित रूप से जांच में सहयोग करेगा।
•अदालत को यह विश्वास दिलाएं कि पति कहीं भागने की कोशिश नहीं करेगा और अदालत द्वारा निर्धारित तारीखों पर हाज़िर रहेगा।
7. पति और पत्नी के बीच आपसी विवाद का सबूत (अगर हो)→
•तर्क→: अगर पति-पत्नी के बीच वैवाहिक समस्याएं थीं, तो यह साबित किया जा सकता है कि यह मामला प्रताड़ना से जुड़ा नहीं बल्कि आपसी विवाद से जुड़ा है।
•कैसे साबित करें→:
•आपसी विवाद के पिछले मामले या काउंसलिंग सत्रों के रिकॉर्ड पेश करें, अगर वे उपलब्ध हैं।
•इस तर्क को साक्ष्यों के माध्यम से दर्शाएं कि यह केवल पति-पत्नी का व्यक्तिगत मतभेद था और इसका दहेज या प्रताड़ना से सीधा संबंध नहीं था।
8. पुलिस द्वारा साक्ष्य का अभाव→
•तर्क→: अगर पुलिस के पास महिला के आत्महत्या से पति को जोड़ने के ठोस साक्ष्य नहीं हैं, तो यह स्पष्ट रूप से एक कमजोर मामला है।
•कैसे साबित करें→:
• पुलिस जांच में अगर ठोस साक्ष्य नहीं मिलते हैं, तो इस पर जोर दें और अदालत से कहें कि बिना साक्ष्य किसी को दोषी ठहराना न्याय का उल्लंघन होगा।
•यदि पुलिस ने बिना गहन जांच के आरोप लगाए हैं, तो यह तर्क दें कि जांच निष्पक्ष नहीं थी।
इन तर्कों और सबूतों के माध्यम से वकील यह साबित कर सकता है कि पति का महिला की आत्महत्या से कोई लेना-देना नहीं है। अदालत में साक्ष्यों के साथ मजबूती से प्रस्तुत किए जाने पर, इन तर्कों के आधार पर पति की जमानत मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
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