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CrPC धारा 174 और BNSS धारा 194: संदिग्ध मौतों की जांच में समानताएं क्या है?

धारा 194: संदिग्ध परिस्थितियों में होने वाली मौतों की जांच प्रक्रिया→

भारत में, संदिग्ध परिस्थितियों में होने वाली मौतें अक्सर चिंता का विषय होती हैं। ऐसी मौतों के पीछे छिपे सच को उजागर करना और न्याय को सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 194 इसी प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से स्थापित करती है। इस blog में, हम  BNSS  और Crpc की  धारा 194, 174 के विभिन्न प्रावधानों को सरल भाषा में समझाएँगे और उदाहरणों के साथ इसे स्पष्ट करेंगे।

1. धारा 194 (1): मौत की सूचना और पुलिस द्वारा जांच→

जब किसी व्यक्ति की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होती है, तो पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त कोई विशेष अधिकारी सबसे पहले निकटतम कार्यकारी मजिस्ट्रेट को सूचित करता है। इस तरह की मौतें मुख्य रूप से आत्महत्या, दुर्घटना, या आपराधिक गतिविधियों से संबंधित हो सकती हैं। सूचना प्राप्त होते ही पुलिस अधिकारी उस जगह जाता है जहां शव पाया गया है और स्थानीय निवासियों की उपस्थिति में मौत की जांच करता है।

उदाहरण:→
अगर किसी व्यक्ति की अपने घर में संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो जाती है और उसके सिर पर चोट के निशान होते हैं, तो पुलिस अधिकारी मौके पर जाता है, शरीर पर मौजूद घावों की जांच करता है और इसकी रिपोर्ट तैयार करता है। रिपोर्ट में यह उल्लेख किया जाता है कि व्यक्ति की मौत सिर पर किसी भारी वस्तु से चोट लगने के कारण हुई हो सकती है।

2. धारा 194 (2): रिपोर्ट का अग्रेषण→

जांच पूरी करने के बाद, पुलिस अधिकारी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर वह और गवाह हस्ताक्षर करते हैं। इसके बाद, यह रिपोर्ट 24 घंटे के अंदर जिला मजिस्ट्रेट या उप-मंडल मजिस्ट्रेट को भेजी जाती है ताकि आगे की कानूनी कार्रवाई हो सके।

उदाहरण:→
उपरोक्त मामले में, पुलिस अधिकारी अपनी रिपोर्ट तैयार करता है और उसे एक दिन के भीतर मजिस्ट्रेट के पास भेजता है ताकि समय पर आवश्यक कदम उठाए जा सकें।

3. धारा 194 (3): शादी के सात वर्षों के भीतर महिलाओं की मौत→

यदि किसी महिला की शादी के सात साल के भीतर मौत हो जाती है, तो इस उपधारा के अनुसार शव का मेडिकल परीक्षण करवाना अनिवार्य होता है। यह प्रावधान विशेष रूप से उन मौतों के लिए लागू होता है जो आत्महत्या या आपराधिक संदेह के अंतर्गत आती हैं, या जहां महिला के रिश्तेदार जांच की मांग करते हैं।

उदाहरण:→
यदि किसी महिला, जिसकी शादी को पाँच साल हुए हैं, की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो जाती है और उसके ससुराल वालों पर संदेह होता है, तो पुलिस अधिकारी शव को पोस्ट-मॉर्टम के लिए भेजता है ताकि मौत के असली कारण का पता चल सके।

4. धारा 194 (4): मजिस्ट्रेटों का अधिकार:→

धारा 194 के तहत, कुछ मजिस्ट्रेटों को मृत्यु की जांच करने का अधिकार दिया गया है। इनमें जिला मजिस्ट्रेट, उप-मंडल मजिस्ट्रेट, और अन्य विशेष रूप से नियुक्त कार्यकारी मजिस्ट्रेट शामिल हैं। यह अधिकार उन्हें सुनिश्चित करने के लिए दिया गया है कि जांच कानूनी और निष्पक्ष तरीके से हो।

उदाहरण:→
यदि किसी ग्रामीण इलाके में संदिग्ध मौत होती है, तो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त कार्यकारी मजिस्ट्रेट जांच करता है और सुनिश्चित करता है कि कानूनी प्रक्रिया का पालन हो।

धारा 194 का महत्व:→

     धारा 194 मौत की जांच की प्रक्रिया को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी संदिग्ध मौत की जांच सावधानीपूर्वक और विस्तृत रूप से हो। खासकर, महिलाओं की शादी के सात साल के भीतर होने वाली मौतों के मामलों में यह धारा विशेष ध्यान देती है ताकि घरेलू हिंसा या दहेज से संबंधित मौतों को गंभीरता से लिया जा सके।

निष्कर्ष:→

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 194 संदेहास्पद परिस्थितियों में होने वाली मौतों की जांच प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से निर्धारित करती है। यह सुनिश्चित करती है कि मौत की जांच कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार हो और न्याय सुनिश्चित किया जाए। खासकर, महिलाओं के मामलों में यह धारा उनकी सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

         धारा 194 का मुख्य उद्देश्य है, संदिग्ध मौतों की जांच को पारदर्शी, निष्पक्ष और जिम्मेदारीपूर्ण बनाना ताकि समाज में न्याय और विश्वास बना रहे।




धारा 174 (CrPC): संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत की जांच:→

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 174 पुलिस को संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौतों की जांच करने का अधिकार देती है। यह प्रावधान आत्महत्या, अप्राकृतिक मौत, या किसी अपराध से संबंधित मौत की स्थिति में लागू होता है। इसका मुख्य उद्देश्य मौत के कारणों को समझना और आवश्यक जानकारी जुटाना होता है, ताकि न्यायिक प्रक्रिया के लिए आधार तैयार किया जा सके।

धारा 174 का मुख्य उद्देश्य:→

धारा 174 के तहत पुलिस को यह अधिकार दिया जाता है कि वे मृत्यु की प्रारंभिक जांच करें, लेकिन यह जांच केवल प्रथम दृष्टया (Prima Facie) मौत के कारणों का निर्धारण करने के लिए होती है। यदि जांच के दौरान किसी अपराध की पुष्टि होती है, तो पुलिस अन्य प्रावधानों के तहत विस्तृत जांच शुरू करती है।

धारा 174 के अंतर्गत होने वाली जांच:→

जब पुलिस को किसी संदिग्ध मौत की सूचना मिलती है, तो पुलिस अधिकारी को निम्नलिखित कदम उठाने होते हैं:→

1. मौत की सूचना प्राप्त करना:→
   जब पुलिस को किसी अप्राकृतिक या संदिग्ध मौत की सूचना मिलती है, तो संबंधित पुलिस स्टेशन के अधिकारी घटना स्थल पर जाकर जांच शुरू करते हैं।

2. शव की जांच:→
   पुलिस अधिकारी मृतक के शरीर की जांच करता है, जिसमें शरीर पर चोट या घाव के निशान, शरीर की स्थिति और आस-पास के वस्तुओं का निरीक्षण शामिल होता है। अधिकारी इस बात की जानकारी जुटाता है कि क्या मौत प्राकृतिक है या किसी दुर्घटना, आत्महत्या, या हत्या से संबंधित है।

3. स्थानीय गवाहों की उपस्थिति:→
   पुलिस अधिकारी जांच के दौरान स्थानीय निवासियों या प्रत्यक्षदर्शियों (Witnesses) की उपस्थिति सुनिश्चित करता है, ताकि जांच में पारदर्शिता बनी रहे।

4. रिपोर्ट तैयार करना:→
   प्रारंभिक जांच के बाद, पुलिस अधिकारी एक रिपोर्ट तैयार करता है, जिसमें मौत के कारणों और परिस्थितियों का उल्लेख होता है। यह रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजी जाती है, ताकि आगे की कानूनी प्रक्रिया सुनिश्चित की जा सके।

धारा 174 का महत्व:→

यह धारा सुनिश्चित करती है कि किसी भी संदिग्ध मौत की जांच तेजी से और प्राथमिक स्तर पर हो सके। इस प्रक्रिया के तहत पुलिस एक बुनियादी जांच करती है, और अगर कोई अपराध का संकेत मिलता है, तो विस्तृत जांच शुरू की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि किसी भी अप्राकृतिक या संदेहास्पद मौत को नजरअंदाज न किया जाए और अपराधियों को कानून के दायरे में लाया जा सके।

उदाहरण:→
मान लीजिए कि एक व्यक्ति को उसके घर में फांसी पर लटका हुआ पाया जाता है। पुलिस को इसकी सूचना मिलती है, और पुलिस अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचते हैं। पुलिस को कमरे में कोई सुसाइड नोट नहीं मिलता है, लेकिन फांसी का फंदा ढीला होता है, और कमरे के अंदर कुछ सामान बिखरा हुआ है। 

          पुलिस इस मामले में धारा 174 के तहत प्रारंभिक जांच करती है, जिसमें मृतक के शरीर की स्थिति, फांसी के निशान और कमरे के हालातों का निरीक्षण किया जाता है। पुलिस इस मामले की रिपोर्ट तैयार करती है और इसे मजिस्ट्रेट को भेजती है, ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि यह आत्महत्या का मामला है या हत्या की आशंका है।

महत्वपूर्ण केस (धारा 174 से संबंधित)→

1.शशि कपूर बनाम राज्य (Shashi Kapoor v. State)→
   इस मामले में, पुलिस को एक महिला की संदिग्ध मौत की सूचना मिली थी। पुलिस ने धारा 174 के तहत जांच शुरू की और पाया कि महिला की शादी को सात साल से कम का समय हुआ था और उसकी मौत के हालात संदिग्ध थे। पुलिस ने मृतका के शरीर का पोस्ट-मॉर्टम करवाया और विस्तृत जांच के बाद पाया गया कि यह आत्महत्या का मामला नहीं बल्कि दहेज हत्या का मामला था। इस मामले ने दहेज के कारण होने वाली मौतों के प्रति जागरूकता बढ़ाई और पुलिस को विस्तृत जांच की जरूरत पर जोर दिया।

2.अरुणाचलम बनाम राज्य (Arunachalam v. State)→
   इस मामले में एक व्यक्ति की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। पुलिस ने धारा 174 के तहत जांच की और पाया कि व्यक्ति की मौत किसी दुर्घटना के कारण हुई थी। लेकिन बाद में विस्तृत जांच से यह स्पष्ट हुआ कि व्यक्ति को मार कर दुर्घटना का रूप देने की कोशिश की गई थी। इस मामले ने पुलिस द्वारा की जाने वाली प्रारंभिक जांच की सीमाओं को दर्शाया और यह साबित किया कि संदिग्ध मौतों के मामलों में सतर्कता और विस्तृत जांच की आवश्यकता होती है।

3.मृदुला शर्मा बनाम राज्य (Mridula Sharma v. State)→
   इस केस में एक नवविवाहित महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में जलने से मौत हो गई थी। पुलिस ने धारा 174 के तहत प्रारंभिक जांच की और पाया कि यह दहेज से संबंधित मामला हो सकता है। इस मामले में विस्तृत जांच के बाद ससुराल वालों को दोषी ठहराया गया। इस केस ने धारा 174 के तहत जांच प्रक्रिया की गंभीरता को साबित किया और इस धारा के महत्व को दर्शाया।

निष्कर्ष:→

धारा 174 भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो संदिग्ध मौतों की प्रारंभिक जांच सुनिश्चित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी अप्राकृतिक या संदिग्ध मौत की जानकारी जुटाई जाए, ताकि आगे की कानूनी प्रक्रिया उचित और निष्पक्ष रूप से हो सके। ऐसे मामलों में धारा 174 के तहत जांच की प्रक्रिया पुलिस को तेजी से और सतर्कता से काम करने का अवसर देती है, ताकि मौत के पीछे छिपे संभावित अपराध को उजागर किया जा सके और न्याय सुनिश्चित हो।


   CrPC (Criminal Procedure Code) की धारा 174 और BNSS (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita) की धारा 194 दोनों ही संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौतों की जांच से संबंधित हैं। ये प्रावधान इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि किसी अप्राकृतिक मौत के मामलों में पुलिस और मजिस्ट्रेट उचित जांच करें। हालांकि, इन दोनों धाराओं में कुछ समानताएं हैं, दोनों की भूमिका और प्रक्रिया लगभग समान होती हैं। आइए इन दोनों धाराओं के बीच समानताओं को उदाहरण सहित समझते हैं:

1. प्रारंभिक जांच का उद्देश्य:→

CrPC की धारा 174 और BNSS की धारा 194 दोनों का उद्देश्य मौत की प्रारंभिक जांच करना है। जब भी किसी व्यक्ति की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु होती है, तो पुलिस या मजिस्ट्रेट द्वारा प्रारंभिक जांच की जाती है ताकि मौत के संभावित कारण का पता लगाया जा सके।

समानता:→
दोनों धाराएं पुलिस को अधिकार देती हैं कि वह किसी भी अप्राकृतिक या संदिग्ध मौत की प्रारंभिक जांच करे और मौत के कारणों का पता लगाए।

उदाहरण:→
यदि किसी व्यक्ति को अपने घर में संदिग्ध परिस्थिति में मृत पाया जाता है, तो पुलिस CrPC की धारा 174 या BNSS की धारा 194 के तहत उसकी मौत की प्रारंभिक जांच करती है। पुलिस उस स्थान पर जाती है, जहां शव पाया गया है, और शव की जांच करती है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि मौत किस प्रकार की परिस्थितियों में हुई है।



2. मजिस्ट्रेट को सूचित करने का प्रावधान:→

दोनों धाराओं में यह प्रावधान है कि किसी संदिग्ध मौत की सूचना मिलने पर पुलिस को निकटतम कार्यकारी मजिस्ट्रेट को सूचित करना आवश्यक है।

समानता:→
जब भी पुलिस संदिग्ध मौत की जांच करती है, तो उसे अपने रिपोर्ट तैयार करके मजिस्ट्रेट को भेजना होता है, ताकि आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जा सके।

उदाहरण:→
अगर एक व्यक्ति की संदिग्ध हालत में आत्महत्या होती है, तो पुलिस CrPC की धारा 174 या BNSS की धारा 194 के तहत मजिस्ट्रेट को सूचित करती है। इसके बाद मजिस्ट्रेट इस रिपोर्ट की समीक्षा करता है और आगे की कार्रवाई तय करता है।


3. शव की जांच (Post-mortem):→

दोनों धाराओं में यह भी प्रावधान है कि संदिग्ध मौत की स्थिति में, यदि आवश्यक हो तो शव का पोस्ट-मॉर्टम करवाया जा सकता है, ताकि मौत के कारणों की पुष्टि हो सके।

समानता:→
यदि मौत संदिग्ध हो या किसी अपराध की आशंका हो, तो शव का पोस्ट-मॉर्टम करवाया जाता है। यह पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट न्यायिक जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

उदाहरण:→
अगर एक महिला की शादी के 5 साल के भीतर संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो जाती है, और उसके माता-पिता जांच की मांग करते हैं, तो पुलिस CrPC की धारा 174 या BNSS की धारा 194 के तहत शव को पोस्ट-मॉर्टम के लिए भेजती है, ताकि मौत के कारणों का पता लगाया जा सके।



4. स्थानीय गवाहों की उपस्थिति:→

दोनों धाराओं में यह प्रावधान है कि मौत की जांच के दौरान पुलिस को स्थानीय गवाहों या प्रत्यक्षदर्शियों की उपस्थिति में जांच करनी चाहिए, ताकि जांच प्रक्रिया पारदर्शी रहे और बाद में उस पर कोई सवाल न उठाया जा सके।

समानता:→
पुलिस जब भी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत की जांच करती है, तो वह स्थानीय निवासियों या अन्य गवाहों की उपस्थिति में शव का निरीक्षण करती है।

उदाहरण:→
यदि किसी व्यक्ति को उसके घर में सिर पर चोट के निशान के साथ मृत पाया जाता है, तो पुलिस CrPC की धारा 174 या BNSS की धारा 194 के तहत स्थानीय निवासियों की उपस्थिति में शव की जांच करती है, और चोटों का विवरण रिपोर्ट में दर्ज करती है।



5. विशेष रूप से महिलाओं की मौत के प्रावधान:→

दोनों धाराओं में विशेष रूप से उन मामलों पर ध्यान दिया गया है, जिनमें किसी महिला की शादी के सात साल के भीतर संदिग्ध मौत होती है। इस स्थिति में, पुलिस को शव का पोस्ट-मॉर्टम करवाना अनिवार्य होता है और महिला की मौत के कारणों की पूरी तरह से जांच की जाती है।

समानता:→
दोनों धाराओं में यह प्रावधान है कि यदि किसी महिला की शादी के 7 साल के भीतर मौत होती है, तो उस मामले में विशेष ध्यान दिया जाए और मौत की पूरी तरह से जांच की जाए।

उदाहरण:→
अगर किसी महिला की शादी के तीन साल बाद संदिग्ध परिस्थिति में जलकर मौत हो जाती है, तो पुलिस CrPC की धारा 174 या BNSS की धारा 194 के तहत शव का पोस्ट-मॉर्टम करवाती है और इस मामले की पूरी तरह से जांच करती है, ताकि यह पता चल सके कि यह आत्महत्या है या हत्या।


निष्कर्ष:→

CrPC की धारा 174 और BNSS की धारा 194 दोनों में कई समानताएं हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौतों की प्रारंभिक और उचित जांच सुनिश्चित करना है। इन धाराओं के तहत पुलिस और मजिस्ट्रेटों को यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि मौत की जांच निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हो। दोनों धाराएं खासतौर पर उन मामलों में महत्वपूर्ण हैं जहां मौत के पीछे अपराध या हिंसा का संदेह हो, और न्याय को सुनिश्चित करना आवश्यक हो।

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