Skip to main content

बलात्कार के मुकदमों में बचाव पक्ष की रणनीति: दोषमुक्ति के लिए वकील कैसे करता है सवाल

दहेज हत्या क्या होती है ? इसमें किन किन लोगों को कितनी सजा हो सकती है ? विस्तार से बताओ।

परिचय :→ 

 दहेज हत्या, एक जघन्य सामाजिक बुराई, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की एक भयावह सूची में शामिल है। भारतीय दण्ड संहिता [ आईपीसी में दहेज हत्या को अपराध घोषित किया गया है। और इसके लिये कड़ी सजा का प्रावधान है। 


    दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 2 के अनुसार दहेज ऐसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति है जो विवाह के एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार के लिये या विवाह के किसी पक्ष के माता-पिता या अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष या किसी अन्य व्यक्ति के लिये विवाह करने के सम्बन्ध में विवाह के समय या उससे पहले या बाद में किसी भी समय प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मांगी जाने या दी जाने वाली प्रतिज्ञा के रुप  में किया गया वादा दहेज की श्रेणी में आता है। इसको एक उदाहरण के रूप में समझते हैं। कि A नामक दूल्हे के पिता द्वारा शादी के वक्त B नाम वधू के पिता से ₹ 500000 की माँग की जाती है या दूल्हे द्वारा कार या मोटरसाइकिल की माँग की जाती है और वधु का पिता उसे विवाह बाद देने की बात करता है। यह दहेज है।


     यदि विवाह के पश्चात अतिरिक्त दहेज के कप में टी०वी० और गाडी की माँग की जाती है तो यह भी धारा 2 के अर्थ में दहेज ही माना जायेगाः। प्रेमसिंह बनाम स्टेट आफ हरियाण A.I.R. 1998 S.c. 2628 .


दहेज की माँग (Demand of Dowry)-→  दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अन्तर्गत अपराध के गठन के लिए केवल दहेज की माँग करना ही पर्याप्त नहीं है। दहेज या तो वास्तविक तौर पर दिया जाना चाहिए या दिये जाने का करार किया जाना चाहिए। दहेज की माँग को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 498 (क) के अन्तर्गत निर्दयता माना गया है और यह एक दण्डनीय अपराध है।


 उदाहरणार्थ- →


(1) श्रीमती प्रकाश कौर बनाम हरजिन्दर पाल सिंह A.I.R. 1999 Raj. 46 में दहेज की निरन्तर माँग को निर्दयता मानते हुए इसे विवाह विच्छेद का एक आधार बताया गया है। 


(ii) पवन कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा A.I.R. 1998 S.C. 958 में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि दहेज की माँग के मामलों में सदैव करार का होना हमेशा आवश्यक नहीं है। 



दहेज देने या लेने के लिए शास्ति (Penalty for Giving or Taking Dowry) - धारा 3 (1) के अनुसार, इस अधिनियम के आरम्भ होने के पश्चात् जो कोई भी दहेज देता है या लेता है अथवा लेने या देने के लिए दुष्प्रेरित करता है, तो वह ऐसी अवधि के कारावास से जो पाँच वर्ष की होगी और ₹ 15,000 या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम के जो भी अधिक हो, हो सकने वाले जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।


         परन्तु न्यायालय निर्णय में लिखित किए गए उचित और विशेष कारणों से पाँच वर्ष से कम की अवधि के कारावास का दण्ड आरोपित कर सकेगा।


 (2) उपधारा (1) की कोई बात निम्न पर या उनके सम्बन्ध में लागू नहीं होगी-→


 (क) विवाह के समय वधू को दी गई भेंटें (इस वास्ते कोई माँग किये गये बिना)।


 (ख) विवाह के समय वर को दी गई भेटें (इस वास्ते कोई माँग किये गये बिना)।


      परन्तु ऐसी भेटे इस अधिनियम के अधीन बनाये गये नियमों के अनुसार बनाई गई सूची प्रविष्ट की जायेगी- 


       परन्तु यह और कि जहाँ ऐसी भेटे वधू द्वारा या उसकी ओर से या वधू के किसी सम्बन्धी व्यक्ति द्वारा दी गई हों, ऐसी भेंट रूढ़िगत प्रकृति की हों उनका मूल्य उस व्यक्ति की, जिसके द्वारा या जिसकी ओर से ऐसी भेंटे दी गई हैं, वित्तीय हैसियत को ध्यान में रखते हुए, अत्यधिक नहीं है।


 दहेज माँगने के लिए शास्ति (Penalty for Demanding Dowry)-धारा 4 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति प्रत्यक्षत या परोक्षतः वर या वधू के माता-पिता या अन्य रिश्तेदारों या उसके पालक से दहेज माँगता है, तो वह कारावास से जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी किन्तु जो दो वर्षों तक की जा सकेगी और जुर्माने से जो ₹ 10,000 तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा। 


दहेज लेने और देने के लिए किये गये करारों का व्यर्थ होना (Agreement to Take or Give Dowry to be Void) - धारा 5 के अनुसार, दहेज देने या लेने के लिये किये गये सभी करार व्यर्थ (Void) होंगे।


 दहेज का पत्नी या उसके उत्तराधिकारियों के लाभ के लिए धारण करना (Dowry is to Hold for the Benefit of Wife or Her Successors) - धारा 6 (1) के अनुसार, जब कोई दहेज उस स्त्री के अतिरिक्त जिस सम्बन्ध में वह प्राप्त किया गया हो, अन्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया जाये तो वह व्यक्ति उसे उस स्त्री को हस्तान्तरित कर देगा-


 (क) यदि दहेज विवाह के पूर्व प्राप्त किया गया हो तो विवाह से तीन मास के भीतर, या


 (ख) यदि दहेज विवाह के समय या पश्चात् प्राप्त हुआ हो, तो ऐसी प्राप्ति के दिनांक से तीन मास के भीतर, या


 (ग) यदि स्त्री नाबालिग हो तो उसके द्वारा 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने के तीन मास के भीतर, और ऐसे अन्तरण तक उसे न्यास (Trust) के रूप में स्त्री के लाभ हेतु धारण करेगा।


 (2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) में यथाअपेक्षित उसके लिए निर्धारित समय के भीतर या उपधारा (3) द्वारा यथा अपेक्षित कोई सम्पत्ति अन्तरण करने में असफल रहता है, तो यह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी किन्तु जो, दो वर्ष की हो सकेगी या जुर्माने से जो ₹ 5,000 से कम नहीं होगा किन्तु जो ₹ 10,000 तक का हो सकेगा या दोनों से दण्डनीय होगा।


 (3) जब उपधारा (1) के अधीन सम्पत्ति के स्वत्व (Title) धारण करने वाली कोई स्त्री उसे प्राप्त करने के पूर्व मर जाये तो उस स्त्री के वारिस उस सम्पत्ति को उसी समय धारण करने वाले व्यक्ति से पाने का दावा करने के लिए अधिकारी होंगे- 


  परन्तु जहाँ ऐसी कोई स्त्री को उसके विवाह से सात वर्षों के भीतर प्राकृतिक कारणों के अलावा अन्य किसी कारण से मृत्यु हो जाती है, तो ऐसी सम्पत्ति-

 (क) यदि उसकी कोई सन्तान हो, तो उसके माता-पिता को अन्तरित होगी, या 


(ख) यदि उसकी सन्तान हों, तो ऐसी सन्तानों को अन्तरित होगी और ऐसे अन्तरण के लम्बित रहने के दौरान ऐसी सन्तानों के लिए न्यास (Trust) में धारित की जायेगी। 



(3-क) जहाँ कोई उपधारा (1) या (3) द्वारा यथाअपेक्षित किसी सम्पत्ति का अन्तरण के लम्बित रहने के लिए उपधारा (1) के अधीन सिद्ध दोष व्यक्ति ने, उस उपधारा के अधीन अपनी दोषसिद्धि के पूर्व ऐसी सम्पत्ति उसकी हकदार स्त्री या यथास्थिति उसके वारिसों, माता-पिता या सन्तान को अन्तरित न की हो, तो न्यायालय इस उपधारा के अधीन दण्ड अधिनिर्णीत करने के अतिरिक्त न की हो, तो न्यायालय इस उपधारा के अधीन दण्ड अधिनिर्णीत करने के अतिरिक्त लिखित में आदेश द्वारा यह निर्देश दे सकेगा कि वह व्यक्ति ऐसी सम्पत्ति को ऐसी स्त्री या,यथास्थिति, उसके वारिस, माता-पिता या सन्तान को ऐसी कालावधि में अन्तरित करे जैसे आदेश में निर्धारित की जाये और यदि ऐसा व्यक्ति इस प्रकार निर्धारित कालावधि में निर्देश का पालन करने में असफल रहता है, जो सम्पत्ति के मूल्य के बराबर की रकम उससे वसूल की जा सकेगी मानो कि वह ऐसे न्यायालय द्वारा आरोपित जुर्माना हो और ऐसी स्त्री या, 'यथास्थिति उसके वारिसों माता-पिता या सन्तान को दी जायेगी।


 (4) इस धारा में शामिल कोई बात धारा 3 या 4 उपबन्धों को प्रभावित नहीं करेगी। दहेज प्रतिषेध (वर और वधू को दिए गए उपहारों की सूचियाँ रखना) नियम, 1985 दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 9 के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केन्द्र सरकार एतद्वारा निम्न नियम बताती है।


 1. संक्षिप्त नाम एवं प्रसार-


 (1) ये नियम 'दहेज प्रतिषेध (वर और वधू को दिए गए उपहारों की सूचियाँ रखना) नियम 1985" कहे जायेंगे।


 (2) ये 2 अक्टूबर 1985 से प्रभावशील होंगे, जो तिथि दहेज प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम, 1984 के लिए नियत की गई है।


 2. नियम जिसके अनुसार उपहारों की सूचियाँ रखी जानी है- 


(1) उपहारों की सूची जो वधू को विवाह के समय दिये जाते हैं, वधू के द्वारा रखी जायेगी। 


(2) उपहारों की सूची जो वर को विवाह के समय दिए जाते हैं, वर के द्वारा रखी जाये..। 


3. उपनियम (1) और उपनियम (2) में वर्णित उपहारों की प्रत्येक सूची- 


(क) विवाह के समय या विवाह के बाद यथा सम्भव शीघ्र तैयार को जायेगी।


 (ख) लिखित में होगी,


 (ग) उनमें निम्नलिखित शामिल होगा- 

(i) प्रत्येक उपहार का संक्षिप्त विवरण,

 (ii) उपहार का सम्भावित मूल्य, 

(iii) उस व्यक्ति का नाम जिसने उपहार दिया,

 (iv) जहाँ उपहार देने वाला व्यक्ति, वर या वधू का सम्बन्धी है, ऐसे सम्बन्ध का विवरण। 


(घ) वर और वधू दोनों के द्वारा हस्ताक्षरित होगा।


 स्पष्टीकरण (Explanation) - 1. जहाँ वधू हस्ताक्षर करने के अयोग्य हो वहाँ उसकी सूची पढ़कर सुनाये जाने के बाद और सूची में उस व्यक्ति के हस्ताक्षर करवा लेने के बाद जिसने कि सूची में शामिल विवरण को पढ़कर सुनाया हो, वह अपने हस्ताक्षर के बदले में अपना निशान अगूठा लगा सकती है।


 स्पष्टीकरण (Explanation)-2. जहाँ वह हस्ताक्षर करने के अयोग्य हो वहाँ उसको सूची पढ़कर सुनाए जाने के बाद और सूची में उस व्यक्ति के हस्ताक्षर करवा देने के बाद जिसने कि सूची में शामिल विवरणों को पढ़कर सुनाया हो, वह अपने हस्ताक्षर के बदले में अपना निशान अगूंठा लगा सकता है।


दहेज हत्या [ Dowry death]:- आईपीसी की धारा 304B के अनुसार किसी महिला की मृत्यु यदि विवाह के सात साल के भीतर होती है और मृत्यु के पूर्व

 • उसे दहेज के लिये प्रताडित किया गया था।

 • या दहेज के लिये उसे आत्महत्या करने के लिये मजबूर किया गया था।

 • या उसकी मृत्यु ऐसी परिस्थितियों में हुई थी जो सन्देहास्पद लगती हो। तो ऐसी मृत्यु को दहेज हत्या माना जायेगा।


 दहेज हत्या का उदाहरण : रिया 23 वर्षीय, एक खुशमिजाज और महत्वाकांक्षी लडकी थी। शादी के बाद उसे दहेज के लिये उसके ससुराल वालों द्वारा लगातार प्रताडित किया' जाने लगा। वे लोग उसे और दहेज लाने के लिये मजबूर करते थे अन्यथा उसे गंभीर परिणाम भुगतने होगे । रिया के पति ने भी उसे प्रताडित किया और उसकी मदद नहीं की। कुछ महीनों के इस अत्याचार के बाद रिया ने खुद को आग लगाकर आत्महत्या कर ली। रिया की मृत्यु के बाद, उसके माता-पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और दहेज हत्या का मामला दर्ज किया गया। इस प्रकार इस धारा के अधीन दहेज में मृत्यु को कारित करना दण्डनीय बनाया गया है। भारतीय दण्ड विधान की धारा 304[B] और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 [A] है। Section 113 [A] में निम्नवत  है कि:-



[1] यदि किसी विवाहिता स्त्री जो विवाह से सात वर्ष के भीतर आत्महत्या कर ली हो।

 [2] मामले में यह साबित हो कि उसके पति और, निकटतम रिश्तेदारों का व्यवहार उसके प्रति क्रूरतापूर्ण था।

 [3] उक्त तथ्य के साबित हो जाने पर न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि आत्महत्या नहीं की थी अपितु उसे आत्महत्या हेतु उसके पति या नातेदारों द्वारा उत्प्रेरित किया गया था। अन्तर मात्र दहेज शब्द का है। बीमेक व्यंकटेश्वर राव तथा अन्य बनाम स्टेट ऑफ आन्ध्र प्रदेश 1992 क्रि० ला० जD 563 दहेज मृत्यु के मामले में अपराध तब धारा 304 [B) में वर्णित संयोजक तत्वों की आरोपण में टिप्पणी से है। धारा 304 [ख] के अधीन भाग पृथक आरोप की अनुपस्थिति में अभियुक्त पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती है। अभियुक्त उस आरोप के अधीन दोषी ठहराया जा सकता है।.. 


    अभियुक्तों द्वारा बार-बार मृतका के भाई तथा पिता से दहेज की कमी का परिवाद Ecomplaint] करना या मृतका पत्नी के साथ हमेशा निर्देयतापूर्ण व्यवहार करना मरने के उपरान्त मृतका के भाई बहन को बिना बुलाये उसकी अंत्येष्टि इत्यादि करना इस धारा के भावबोध में दहेज मृत्यु का संकेत करते हैं - श्रीमति शांति तथा अन्य बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा A.I .R. 1991 S.c. 1226/ 


दहेज मृत्यु के मामले में जो कुछ भी धारा 304[B] दोषसिद्ध करने हेतु साबित करने वाले तथ्यों के रूप में आशयित है वह है, धारा 113[B] के अधीन की जाने वाली उपधारणा कि मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर हुई हो तथा विवाहिता के साथ उसके पति या निकटवर्ती सम्बन्धियों ने क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया है। गुरुदित्त सिंह बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान 1992. क्रि० ला० ज. 3091.

         जहाँ मृतका का विवाह अभियुक्त से तीन वर्ष पहले हुआ हो तथा अभियोजन पक्षकार द्वारा न्यायालय को पूर्णतया संतुष्ट करा दिया गया हो कि उसके माता-पिता दहेज के लिये उसके साथ सदैव क्रूरता पूर्ण व्यवहार किया करते थे। तथा दहेज के अभाव का परिवाद उसके भाई तथा पिता ने लिया था तो उक्त तथ्य अभियुक्त के दोषसिद्ध के लिये पर्याप्त लोक अभियोजक आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय बनाम टी० बनाम पुन्नैया तथा अन्य 1989 क्रि० ला० ज .2230 


कानूनी प्रावधान : दहेज हत्या एक जघन्य अपराध है और इसके लिये आईपीसी की धारा 304B के तहत 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। 


    इसके अलावा दहेज, निषेध अधिनियम 1961 के तहत भी दहेज लेने-देने वालों को दण्डित किया जाता है। 


  निष्कर्ष: दहेज हत्या एक सामाजिक कलंक है जिसे मिटाना होगा। महिलाओं को शिक्षित करना कानूनों के बारे में जागरुकता फैलाना और सामाजिक सोच में बदलाव लाना इस बुराई से लड़ने के लिये आवश्यक है।


Note: यह ध्यान रखना 'महत्वपूर्ण है दहेज हत्या का यह उदाहरण केवल एक काल्पनिक परिदृश्य है। वास्तविक जीवन में दहेज हत्या के कई अलग-अलग मामले होते हैं जिनमें विभिन्न परिस्थितियां और जटिलतायें शामिल होती है। 


दहेज हत्या से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण मामले →


[1] शीला बनाम हरिश्चन्द्र [2002]!→

 इस मामले में शीला की शादी हरिश्चन्द्र से हुई थी। शादी के बाद उसे दहेज के लिये प्रताड़ित किया जाने लगा। उसे बार-बार पीटा जाता था और उसे घर से बाहर निकालने की धमकी दी जाती थी। अंततः उसने खुद को जहर देकर आत्महत्या कर ली। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया कि शीला की मृत्यु दहेज हत्या थी और उसके पति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी।


 [2] नीता गुप्ता बनाम रमेश गुप्ता [2010] नीता गुप्ता की शादी रमेश गुप्ता से हुई थी। शादी के बाद उसे दहेज के लिये प्रताडित किया जाने लगा । उसे लगातार अपमानित किया जाता था और उसे ताने मारे जाते थे । एक दिन उसके ससुराल वालों ने उसे बुरी तरह से पीटा और उसे जला दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया कि नीता की मृत्यु दहेज हत्या थी और उसके पति और ससुराल वालों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी।



[3] मोनिका जैन बनाम विनोद जैन (2018):- मोनिका जैन की शादी विनोद जैन से हुयी थी। शादी के बाद उसे दहेज के लिये प्रताड़ित किया जाने लगा। उसे लगातार ताने मारे जाते थे और उसे घर से निकालने की धमकी दी जाती थी 1 एक दिन उसके पति ने उसकी  गला दबाकर हत्या कर दी। राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया कि मोनिका की मृत्यु देहेष हत्या थी और उसके पति को मृत्युदण्ड की सजा सुनाई गयी।


 Note:→ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये केवल कुछ उदाहरण हैं। दहेज हत्या के कई अन्य मामले भी हैं जो समान रूप से जघन्य और हृदयविदारक हैं। दहेज हत्या के खिलाफ लड़ाई में इन मामलों को याद रखना और उनसे सीखना महत्वपूर्ण हैं। हमें इस सामाजिक बुराई के खिलाफ आवाज उठाने और महिलाओं के लिये न्याय सुनिश्चित करने के लिये एक साथ काम करने की आवश्यकता है।


 दहेज हत्या के खिलाफ सरकार और पुलिस की नीतियां:- भारत सरकार ने दहेज हत्या को रोकने और पीडितों को न्याय दिलाने के लिये कई नीतियां और कानून बनाये हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण नीतियां और कानून इस प्रकार हैं।-


 कानून:- • दहेज निषेध अधिनियम 1962:- यह कानून दहेज लेने और देने की अपराध घोषित करता है। इनमें दहेज हत्या के लिये कठोर दंड का भी प्रावधान है, जिनमें आजीवन कारावास और जुर्माना शामिल है।


 • भारतीय दण्ड संहिता [ आईपीसी की धारा 304 B- 


यह धारा विशेष रूप से दहेज हत्या से सम्बन्धित है। इसमें कहा गया है कि अगर किसी 'महिला की शादी के सात साल के अंदर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है और उसकी मृत्यु से पहले उसे दहेज के लिये प्रताड़ित किया गया था तो यह दहेज हत्या माना जायेगा ।


 • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005:- यह कानून घरेलू हिंसा से पीडित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है जिसमें दहेज प्रताड़ना भी शामिल है। यह कानून पीडित महिलाओं को आश्रय, चिकित्सा सहायता और कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार देता है।


 नीतियां:-

 • राष्ट्रीय महिला आयोग: यह आयोग महिलाओं से संबन्धित मुद्दों पर जांच करता है और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिये सरकार को सलाह देता है। आयोग दहेज हत्या के मामलों की भी जांच करता है और पीडितों को न्याय दिलाने में मदद करता है। 


एकल महिला हेल्पलाइन : यह हेल्पलाइन दहेज प्रताड़ना और अन्य मुद्दों से पीडित महिलाओं को परामर्श और सहायता प्रदान करती है। यह हेल्पलाइन महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जागरुक करती है।


 दहेज हत्या में सजा: किसको कितनी सजा हो सकती है १


 भारतीय दण्ड संहिता [आईपीसी की धारा 304B में दहेज हत्या के लिये सजा का प्रावधान है। इस धारा के अनुसार दहेज हत्या के लिये निम्नलिखित  सजा हो सकती है'-. 

[1] पतिः • यदि पति ने अकेले ही दहेज हत्या की है तो उसे आजीवन कारावास और जुर्माना की सजा हो सकती है। 

• यदि पति ने दहेज हत्या में अन्य लोगों के साथ मिलकर साजिश रची है। तो उसे मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास और जुर्माना की सजा हो सकती है। 


[2] ससुराल वाले :


 • यदि ससुराल वालों ने दहेज हत्या में पति के साथ मिलकर साजिश रची है तो उन्हें आजीवन कारावास और जुर्माना की सजा हो सकती है। 

• यदि ससुराल वालों ने दहेज हत्या में सीधे तौर पर भाग नहीं लिया है लेकिन उन्होने पति को दहेज हत्या के लिये उकसाया है या प्रोत्साहित किया है तो उन्हें सात साल तक की कैद और जुर्माना की सजा हो सकती है।


 [3] अन्यः


 • यदि कोई अन्य व्यक्ति दहेज हत्या में शामिल है तो उसे सात साल तक की कैद और जुर्माना की सजा हो सकती है।


Note!:- यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह केवल सामान्य जानकारी है और कानूनी सलाह नहीं है। दहेज हत्या से संबन्धित किसी भी मामले में आपको हमेशा एक वकील से सलाह लेनी चाहिये। दहेज हत्या एक जघन्य अपराध है और इसके लिये कड़ी सजा का प्रावधान है। • हमें इस सामाजिक बुराई के खिलाफ आवाज उठाने और महिलाओं के लिये न्याय सुनिश्चित करने के लिये एक साथ काम करने की आवश्यकता है।







    

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता है या ग्राम पंचायत का ग्राम सभा या राज्य सरकार द्वारा पट्टे पर दी जाने वाली

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद - पत्र में न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का नाम लिखना आवश्यक

मान्यता से क्या अभिप्राय है?मान्यता से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धातों का संक्षेप में उल्लेख करो।what do you mean by Recognition ?

मान्यता शब्द की परिभाषा तथा अर्थ:- मान्यता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा नए राज्य को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय पटल पर जब किसी नये राज्य का उदय होता है तो ऐसा राज्य तब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सदस्य नहीं हो सकता जब तक कि अन्य राष्ट्र उसे मान्यता प्रदान ना कर दें। कोई नया राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों द्वारा मान्यता प्राप्त होने पर ही अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व प्राप्त करता है। प्रोफेसर स्वार्जनबर्जर(C.Schwarzenberger) के अनुसार मान्यता को अंतर्राष्ट्रीय विधि को विकसित करती हुई उस प्रक्रिया द्वारा अच्छी तरह समझा जा सकता है जिसके द्वारा राज्यों ने एक दूसरे को नकारात्मक सार्वभौमिकता को स्वीकार कर लिया है और सहमति के आधार पर वह अपने कानूनी संबंधों को बढ़ाने को तैयार है। अतः सामान्य शब्दों में मान्यता का अर्थ अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा किसी नए राज्य को एक सदस्य के रूप में स्वीकार या सत्ता में परिवर्तन को स्वीकार करना है।       प्रोफ़ेसर ओपेनहाइम के अनुसार" किसी नये राज्य को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्य के रूप में मान्यता प्