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विदेशों में भारतीय कानून: IPC, UAPA, और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत भारतीय अधिकार क्षेत्र की समझ

उ.प्र . जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम द्वारा कृषि भूमि के अंतरण पर अधिरोपित अवरोध कौन कौन से होते हैं ?अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन में किए गए अंतरण का क्या प्रभाव है ? ( Mention the restriction imposed by U.P.Z.A. and L.R.Act on transfer of agricultural land . What are the consequences of the transfer made in contravention of provisions of the Act . )

उत्तर प्रदेश जमदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम के द्वारा कृषि भूमि के अन्तरण पर निम्नलिखित अवरोध ( प्रतिबन्ध स्थापित किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं 


( 1 ) साढ़े बारह एकड़ का प्रतिबन्ध ( Restriction of 12, 1/2 , hectare ) - अधिनियम की धारा -154 के अनुसार , क्रेता या दानग्रहीता के पास पहले की भूमि और ली जाने वाली भूमि को मिलाकर , उसके तथा उसके परिवार के पास 12, 1/2 , एकड़ भूमि से अधिक नहीं होनी चाहिए । यदि इस प्रतिबन्ध के उल्लंघन में अन्तरण ( Transfer ) होता है तो ऐसा अन्तरण ( Transfer ) शून्य होगा तथा उसके निम्नलिखित परिणाम होंगे 


( I ) अन्तरण की विषयवस्तु को ऐसे अन्तरण के दिनांक के समस्त भारों से मुक्त कराकर राज्य सरकार में निहित समझा जायेगा । 


( II ) अन्तरण के दिनांक पर जोत में विद्यमान वृक्षों और कुओं को समस्त भारों से मुक्त , तथा राज्य सरकार में निहित समझा जायेगा । 

( III ) अन्तरण के दिनांक पर जोत मे  विद्यमान अन्य चल सम्पत्ति को या किसी अचल सम्पत्ति के सामान को संक्रमणी ऐसे समय के अंदर , जो नियत किया जाये , हटा सकता है । 

उदाहरण के लिए यदि ' क ' के पास 11 एकड़ भूमि है और ' ख ' के पास 3 एकड़ भूमि है । ' ख ' अपनी भूमि का विक्रय ' क ' को कर देता है । किन्तु ' क ' के पास पहल से ही 11 एकड़ भूमि थी तथा ' ख ' की भूमि को मिलाकर 14 एकड़ भूमि हो जाती है । अतः इस प्रकार का अन्तरण अधिनियम की धारा -154 का अतिक्रमण करता है ।


 ( 2 ) विदेशी नागरिक के द्वारा भूमि के अर्जन पर रोक ( No equisition of land by foreigners ) - इस अधिनियम के अनुसार या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अनुसार किसी बात के होते हुए भी , कोई विदेशी नागरिक राज्य सरकार की लिखित पूर्व अनुज्ञा के बिना न कोई भूमि खरीद सकता है और न ही दान ( Gift ) में ले सकता है । यदि कोई विदेशी नागरिक इस प्रकार का अन्तरण करता है तो वह शून्य होगा और ऐसी भूमि समस्त भारों से मुक्त होकर राज्य सरकार में निहित हो जायेगी ।


 ( 3 ) अनुसूचित जाति की भूमि के अन्तरण पर प्रतिबन्ध ( No transfer of land belonging to SC ) - अधिनियम की धारा -157 ( क ) के अनुसार , अनुसूचित जाति का कोई भी भूमिधर अपनी जोतगत भूमि का विक्रय , दान , बन्धक या पट्टा अनुसूचित जाति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को नहीं कर सकता है । 


  किन्तु कलेक्टर की पूर्व आज्ञा से अन्तरण अनुसूचित जाति के अलावा किसी भी व्यक्ति को किया जा सकता है । कलेक्टर द्वारा पूर्व आज्ञा प्रदान नहीं की जायेगी यदि संक्रमणकर्ता आवेदन पत्र के दिनांक पर उत्तर प्रदेश में 1.26 हेक्टेअर से कम भूमि धारण किये हुए है । यदि इस प्रावधान का उल्लंघन कर अन्तरण किया जायेगा जो वह मान्य होगा । 


( 4 ) अनुसूचित जनजाति की भूमि के अन्तरण पर प्रतिबन्ध ( No transfer of land belonging to scheduled tribe ) - अधिनियम की धारा -157 ( ख ) के अनुसार , अनुसूचित जनजाति के किसी भूमिधर की कोई भूमि किसी ऐसे व्यक्ति को , जो अनुसूचित जनजाति का न हो , विक्रय , दान , बन्धक या पट्टे द्वारा अन्तरित करने का अधिकार न होगा । यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार का अन्तरण करता है तो इस प्रकार का अन्तरण शून्य होगा । 


( 5 ) भोग बन्धक पर रोक ( No mortgage of land ) अधिनियम की धारा -155 के अनुसार , कोई भी भूमिधर अपनी जोतगत भूमि का ऐसा बन्धक न कर सकेगा , जिसमें बन्धकी को भूमि का कब्जा दे दिया गया हो । इस प्रकार से अधिनियम भोग बन्धक और सशर्त विक्रय बन्धक को मना करता है । अत : भूमिधर अपनी भूमि का केवल साधारण बन्धक ही कर सकता है । 


( 6 ) भूमि के टुकड़े करने पर रोक ( No further fragmentation of land ) - अधिनियम की धारा -168 ( क ) के अनुसार जहाँ चकबन्दी अन्तिम हो चुकी हो , वहाँ कोई भी भूमिधर अपने चक के किसी टुकड़े का संक्रामण विक्रय , दान , या विनियम नहीं कर सकता है । किन्तु चक के टुकड़े का विनिमय , दान या विक्रय ऐसे जोतदार से कर सकता है जो उसकी भूमि ( चक ) से सटा हुआ हो । इस धारा के उल्लंघन में दिया गया संक्रमण शून्य होगा ।




( 7 ) भूमि के पट्टे पर रोक ( Restriction on lease of land ) - अधिनियम की धारा -156 तथा धारा -157 के अनुसार , जमींदारी प्रथा फिर से न उठ खड़ी हो , इसको रोकने के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे लोगों के अपनी भूमि लगान पर उठाने का अधिकार दिया जाये , जो असमर्थ हैं । 

[ धारा -157 ( 1 ) ] 

अधिनियम की धारा -156 के अनुसार कोई भी भूमिधर अपनी भूमि को पट्टे पर नहीं दे सकता है । 

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