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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

मुस्लिम कानून के अनुसार संरक्षकता कितने प्रकार के हो सकते हैं? या बच्चों का संरक्षक मुस्लिम विधि के अनुसार किन को नियुक्त किया जा सकता है? संरक्षकता की दृष्टि से माता का स्थान मुस्लिम कानून में क्या होता है?

 मुस्लिम विधि के अनुसार वैध संरक्षक उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी अवयस्क ( नाबालिग ) के शरीर या सम्पत्ति , या उसके शरीर और सम्पत्ति दोनों की देख - रेख करे या जो अवयस्क के विवाह संविदा करने की शक्ति रखता हो । 

            संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम में संरक्षक शब्द की परिभाषा अवयस्क के शरीर या सम्पत्ति की देखभाल करने वाले व्यक्ति के रूप में की गई है । " संरक्षक " शब्द का किसी अवयस्क की अभिभावकता से है ।


 मुस्लिम विधि के अनुसार संरक्षकता निम्न बातों के लिए होती है :-

( अ ) व्यक्ति ( Person ) , 

( ब ) सम्पत्ति ( Property ) , 

( स ) विवाह , ( Marriage )



- संरक्षक की नियुक्त ( Appointment of Guardian ) - जब न्यायालय को इस विषय में सन्तोष हो जाय कि किसी अवयस्क के शरीर या सम्पत्ति या दोनों के लिए किसी को संरक्षक नियुक्त करने या घोषित करने का आदेश उसके कल्याण के लिए होगा , तो वह तदनुसार आदेश पारित कर सकता है । किसी अवयस्क का संरक्षक नियुक्त करने या घोषित करने में न्यायालय संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम के उपबन्धों के अन्तर्गत उस विधि से सुसंगत अवयस्क जिसके अधीन हो तथा उसकी परिस्थितियों में उसके कल्याण का ध्यान रखेगा । अवयस्क का कल्याण किसमें है , इस पर विचार विमर्श करने में न्यायालय अवयस्क की आयु , लिंग और धर्म , प्रस्तावित संरक्षक के चरित्र और योग्यता , अवयस्क से उसके रिश्ते या अवयस्क को आयु , उसको सम्पत्ति , प्रस्तावित संरक्षक के पूर्व - सम्बन्धों को दृष्टि में रखेगा । यदि अवयस्क की आयु ऐसी हो कि वह विवेकपूर्ण अधिमान ( intelligent preference ) दे सकता है तो न्यायालय उसके अधिमान पर विचार कर सकता है ।

  मुस्लिम विधि के अनुसार संरक्षकता कितने प्रकार की होती है । प्रत्येक का वर्णन कीजिए । संरक्षक की दृष्टि से माता के स्थान का उल्लेख कीजिए । ( What are the kinds of guardianship according to Muslim Law ? Describe about cach . Discuss the position of mother in respect of guradianship . 


उत्तर - मुस्लिम विधि के अनुसार संरक्षकता निम्न बातों के लिये होती है :-

( अ ) व्यक्ति ( Person ) ,

 ( ब ) सम्पत्ति ( property )

 ( स ) विवाह ( Marriage ) 

( अ ) व्यक्ति की संरक्षकता ( Guardianship of Person ):- भारतीय विधि के अन्तर्गत नाबालिग के लिए संरक्षक की निम्न श्रेणियाँ हैं

 ( i ) वह व्यक्ति , जिसको आयु 15 वर्ष की हो वह मुस्लिम विधि के अनुसार , नाबालिग है । 

( 2) वह व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है , वह भारतीय वयस्कता अधिनियम ( Indian Majority Act ) के अनुसार नाबालिग है । विवाह , मेहर और तलाक के मामलों को छोड़ मुसलमान इसी अधिनियम में शामिल होते हैं ।

 ( 3) वह व्यक्ति जो 21 वर्ष से कम है जिसके लिए न्यायालय ने अभिभावक नियुक्त किया हो या जो कोर्ट ऑफ वर्ड्स ( Court of Wards ) के नियन्त्रण में हो , नाबालिग माना जाता है । 


                     किसी अवयस्क मुस्लिम के शरीर का नैसर्गिक ( Natural ) संरक्षक पिता और अकेले पिता ही होता है । यदि पिता की मृत्यु हो जाये तो सुन्नी विधि के अनुसार उसका निष्पादक ( Exccutor ) ही विधिक संरक्षक होता है । अन्य कोई वैध संरक्षक तभी हो सकता है जब वह न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाय । पिता द्वारा पुनर्विवाह कर लेने मात्र से वह अपने बच्चे की संरक्षकता से वंचित नहीं किया जा सकता । ' पिता के रहते हुए यद्यपि माता अपने बच्चे की संरक्षक नहीं होती किन्तु बच्चे को अभिरक्षा ( Custody ) का अधिकार माता को तब तक जब तक कि वह एक निश्चित आयु का न हो जाये ।


                       ( व ) सम्पत्ति का सम्पत्ति की संरक्षकता ( Guardianship of Property ) - प्रायः सन्तान की संरक्षक पिता होता है । यदि किसी नाबालिग का पिता जीवित न हो तो  उसका कोई कानूनी संरक्षक ( Legal guardian ) जो निम्नलिखित में से कोई हो सकता है 

( i ) पिता की वसीयत द्वारा नियुक्त निष्पादक ( Father's cxecutor ) । 

( ii ) पिता का पिता ( Father's father ) ।

 ( iii ) पितृ पक्ष की ओर से पितामह को वसीयत द्वारा नियुक्त निष्पादक ( Parental grandfathers cxecutor ) | 

इस प्रकार सुन्नी विधि में निम्नलिखित व्यक्ति वरीयता क्रम में अवयस्क की सम्पत्ति के संरक्षक होते हैं

 ( 1 ) पिता , 

( 2 ) पिता की वसीयत द्वारा नियुक्त निष्पादक , 

( 3 ) पिता के पिता ( अर्थात् दादा ) ,

 ( 4 ) पिता के पिता के वसीयत द्वारा नियुक्त निष्पादक ।


              मुस्लिम विधि के अन्तर्गत उपर्युक्त व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई भी किसी अवयस्क का नैसर्गिक या विधिक संरक्षक नहीं होता । इस प्रकार माँ , भाई , चाचा वगैरह अवयस्क को सम्पत्ति में कानूनी संरक्षक नहीं हो सकते । एक वाद में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है  कि मुस्लिम विधि के अन्तर्गत माँ अवयस्क की कानूनी संरक्षक नहीं होती है । पिता या पिता के पिता उसमें से किसी को या किसी और को भी अपना निष्पादक नियुक्त कर सकता है और उसमें पिता या पिता के समान शक्ति होगी । पिता और पिता के अतिरिक्त किसी और को माँ को भी नहीं ) विधितः वसीयत द्वारा किसी को निष्पादक नियुक्त करने का अधिकार नहीं होगा ।


         अवयस्क की सम्पत्ति का संरक्षक या निष्पादक वसीयत द्वारा नियुक्ति के हकदार जो व्यक्ति हैं , वे हैं पिता और पितामह । अतएव माता द्वारा , भाई द्वारा या चाचा द्वारा नियुक्त निष्पादक किसी अवयस्क की सम्पत्ति का वैध संरक्षक या निष्पादक नहीं हो सकता है । 


       अवयस्क की सम्पत्ति के विधिक संरक्षक को अवयस्क की चल सम्पत्ति को बेचने , बन्धक रखने की शक्ति प्राप्त है , किन्तु अचल सम्पत्ति के सिलसिले में उसको शक्ति सीमित तथा प्रतिबन्धित है ।

 संरक्षक को अपने प्रतिपाल्य ( Ward ) की ओर से व्यापार चलाने की शक्ति नहीं है । यह नियम उस समय विशेष रूप से लागू होता है जब कि व्यापार में अवयस्क की सम्पत्ति को हानि होने की आशंका हो । इस तथ्य के आधार पर कि अवयस्क व्यापार के लाभ का अधिकारी निर्णीत किया गया है , यह निर्णीत नहीं किया जा सकता कि व्यापार उसकी ओर से चलाया गया जिससे कि उसे व्यापार के ऋणों को देनदार ठहराया जा सके । 

                              अवयस्क की अनिवार्य आवश्यकताओं जैसे भोजन , वस्त्र और पालन के लिए अवयस्क की सम्पत्ति के संरक्षक को उसके सामान और चल सम्पत्ति ( Chattels ) को विक्रय करने या बन्धक रखने की शक्ति होती है । 


( स ) विवाह के लिए संरक्षकता ( Guardianship in Marriage ): मुस्लिम विधि के अनुसार विवाह एक दीवानी - संविदा ( Civil contract ) है जिसको करने के लिए दोनों पक्षों को संविदा करने की सक्षमता ( Competency ) होनी चाहिए । अतः कोई पक्ष नाबालिग हो तो उसकी ओर से उसके पिता को संविदा करने का अधिकार होता । अमीर अली ( Ammer Ali ) ने लिखा है , " इस्लामी विधिशास्त्र का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि वह पिता की नाबालिग सन्तान की ओर से विवाह सम्बन्ध स्थापित करने का अधिकार देता है । इस प्रकार के अधिकार को जब ( Jabr ) संरक्षकता के अमूर्त अधिकार को विलायत ( Wilayat ) और उस अधिकार को धारण करने वाले को मैली ( Mali ) कहा जाता है । 


      " विवाह के उद्देश्यों के लिए पिता की संरक्षकता को इस्लाम की उत्पत्ति से पूर्व अरब ( Arabians ) और यहूदी ( Jewe ) लोग मान्यता देते थे चाहे उसका रूप आज - कल जैसे भले हो अन्यथा रहा हो । पिता को संरक्षकता को मुस्लिम समाज के सारे सम्प्रदाय मानते हैं और उसको इस बात का अधिकार देते हैं कि वह नाबालिग की अनुमति के बिना निकाह की संविदा कर ले । इस सम्बन्ध में नाबालिग को वयस्कता ( Puberty ) प्राप्त करने के बाद यह अधिकार होता है कि वह उस समय को बताये रखे या तोड़ दे ।


        यदि कोई नाबालिग का पिता या कोई अन्य संरक्षक न हो तो न्यायालय विवाह के उद्देश्य  के लिए संरक्षक नियुक्त कर देता है । कभी - कभी काजी भी विवाह के लिए अभिभावक बन जाते हैं।

 सामान्यतः संरक्षक बनने के लिए निम्न बातें आवश्यक होती है 

( i ) उस व्यक्ति ने वयस्कता प्राप्त कर ली हो ।
 ( ii ) स्वस्थ चित्त हो । 

( iii ) मुसलमान हो ।  

किसी नाबालिग के विवाह के लिए निम्नलिखित को अभिभावक माना जाता है


पिता(Father )

 ( i ) पिता के पिता ( Father's father ) चाहे उतनी ही पीढ़ी ऊपर हो । 

( iii ) सगा भाई व अन्य पिता पक्ष के सम्बन्धी , 

( iv ) माँ और माँ की ओर के सम्बन्धी ,

 ( v ) प्रशासनिक सत्ता जैसे काजी या न्यायालय 


         भारत और पाकिस्तान में " विवाह में संरक्षकता " अब व्यापारिक हो चुकी हैं , क्योंकि बाल - विवाह अधिनियम 1929 के अनुसार विवाह के समय पर लड़के की उम्र कम से कम 21 वर्ष और लड़की की उम्र कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए । न्यूनतम आयु के उल्लंघन में किया गया विवाह तो स्वतः शून्य नहीं होगा । किन्तु पक्षकार तथा जो लोग विवाह में सक्रिय भूमिका  अदा करेंगे उन्हें तीन मास तक का साधारण कारावास या एक हजार रुपया जुर्माना या दोनों हो  सकेगा। 


शिया विधि - परन्तु शिया विधि केवल क्रम संख्या ( i ) और ( ii ) को अभिभावक की मान्यता देती है ।


 पिता संरक्षक द्वारा नाबालिगपन में किये विवाह को वह नाबालिक वयस्कता ( Majority ) करने पर तोड़ सकता है या उसे मान्यता दे सकता है । यदि कोई नाबालिग अविवाहित ही रह जाये तो वह बालिग होने पर स्वतन्त्रतापूर्वक अपना विवाह कर सकता है । यह नियम यद्यपि स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से लागू होता है परन्तु स्त्रियों के सम्बन्ध में इस बारे में मतभेद है जैसे हनाफी और इथना आशिरी सम्प्रदाय के अनुसार संरक्षक को ( Jabr ) को अधिकार किसी नाबालिग को वयस्कता प्राप्त करने तक रहता है । बालिग होने पर स्त्री स्वयं स्वतंत्र  रूप से विवाह कर सकती है , जबकि मलिकी , शफाई और भातिमी शिया सम्प्रदाय के अनुसार स्त्री उस समय तक जब में रहती है जब तक उसका विवाह न हो जाय पैतृक नियन्त्रण   से छूट न जाये ।

विवाहार्य संरक्षकता पर धर्म त्याग ( Apostasy ) का प्रभाव - विवाहार्य संरक्षकता पर धर्म त्याग का यह प्रभाव पड़ता है कि यदि किसी मुस्लिम ने धर्म त्याग कर दिया है तो वह धर्म त्याग करते ही अभिभावकता का अधिकार खो देगा । परन्तु जाति अनर्हता निराकरण अधिनियम 1850 ( Casts Disabilities Removal Act . 1850 ) यह उपबन्धित करता है कि दूसरा धर्म ग्रहण करने से कोई अपना अधिकार या सम्पत्ति नहीं खो देता ।


 इस अधिनियम के आधार पर मुचू बनाम अर्जुन के वाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय यह निर्णय दिया कि हिन्दू पिता ईसाई धर्म को अंगीकार कर लेने पर अपने बच्चों के संरक्षण और उनकी शिक्षा की व्यवस्था करने के अधिकार से वंचित नहीं होता ।


संरक्षकता की दृष्टि से माता का स्थान  

( Mother ) - नाबालिग बच्चे के शरीर की संरक्षकता ( Guardianship ) या  अभिरक्षा का अधिकार सबसे पहले उसकी माँ ( Mother ) का होता है जिसे हिजानत(Hizanat)  कहा जाता है ।

( i ) हनाफी सम्प्रदाय ( Hanafi School ) के अनुसार

 ( ii ) लड़के के लिए अभिभावक और अभिरक्षा 7 वर्ष तक की आयु तक रहती है ।  


( ii ) लड़की के सम्बन्ध में यौवनागमन ( Puberty ) तक रहती है ।

 इथना आशिरी ( Ithana Ashari ) विधि के अनुसार

 ( i ) लड़के के अभिरक्षा 2 वर्ष की आयु तक रहती है । 

( i ) लड़की की अभिरक्षा 7 वर्ष तक की आयु तक रहती है । 

बेली ( Baillic ) का इस सम्बन्ध में कथन है कि किसी बच्चे की अभिरक्षा के लिए सबसे अच्छा संरक्षक उसकी माँ होती है जो कि विवाह - विच्छेद से दूसरा निकाह होने तक बच्चे को संरक्षकता करने में पूर्ण समर्थ मानी जाती है । बजाय इसके कि वह धर्म त्याग कर दे या दृष्ट हो अथवा विश्वसनीय न हो ।


     इस सम्बन्ध में यह बात उल्लेखनीय है कि पिता के होते हुए किसी नाबालिग बच्चे के बारे में माता का दायित्व बहुत सीमित होता है । किसी नाबालिग के पिता के होते हुए माता के अधिकार और दायित्व के बारे में इमाम बन्दी बनाम मुत्सद्दी के वाद में  कौंसिल ने यह मत प्रकट किया कि यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि मुस्लिम विधि में माता नाबालिग बच्चे को उसके लिए लिंग ( Sex ) के अनुसार एक निर्दिष्ट अवधि तक संरक्षण करने की अधिकारी है । परन्तु वह प्राकृतिक संरक्षण ( Natural guardian ) कदापि नहीं है । केवल पिता ही और यदि वह जीवित न हो तो उसकी वसीयत द्वारा नियुक्त निष्पादक ही कानूनी संरक्षक होता है । 

                  जब किसी नाबालिग बच्चे के माता - पिता एक साथ रहते हों तो न अकेला पिता उस बच्चे को पत्नी की सहमति के बिना कहीं ले जा सकता है और न पत्नी पति की अनुमति के बिना कहीं ले जा सकती है । जब बच्चा पति - पत्नी में किसी एक की अभिरक्षा में हो तो दूसरा उस बच्चे को देखने या मिलने से मना नहीं कर सकता । नाबालिग बच्चे पर पिता का नियन्त्रण जारी रहता है बेशक बच्चा कहीं दूर माँ के पास रहता हो । 

        सुहराबी बनाम मुहम्मद के वाद में केरल न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि ' मुस्लिम विधि के हनाफी सम्प्रदाय के अनुसार माँ नाबालिग लड़की को अभिरक्षा की हकदार होती है जब तक कि वह लड़की बालिग न हो जाये । ' जबकि शफी और मलिकी विधि के अन्तर्गत माँ एक अवयस्क लड़क ( Female child ) के अभिरक्षा की हकदार उस समय तक रहती है जब तक कि उसका विवाह न हो जाय । 


 माँ के न होने पर अन्य सभी सम्बन्धी - माँ के न होने पर सात वर्ष से कम आयु बालक आयु यौवनावस्था को न प्राप्त हुई बालिका की अभिरक्षा का अधिकार निम्नलिखित स्त्री सम्बन्धियों को नीचे दिये क्रम से पहुंचता है


 ( 1 ) मां की माँ , चाहे कितनी पीढ़ो ऊपर हो 

 ( 2 ) पिता की माँ , चाहे कितनी पीढ़ी ऊपर हो । 
। ( 3 ) सभी बहिन ।

( 4 ) सहोदर बहिन ।

 ( 5 ) सहयोगी बहिन 

( 6 ) सगी बहिन की लड़की 

( 7 ) सहोदर बहिन की लड़की ।

 ( 8 ) सगोत्री बहिन की लड़की ।

 ( 9 ) मौसी , बहिनों के समान क्रम में

 ( 10 ) बुआ , बहिनों के समान क्रम में । 

माँ के अभिभावक बनने की अयोग्यता - माता या अन्य स्त्री किसी नाबालिग बच्चे की  अभिभावक या अभिरक्षक नहीं बन सकती है , यदि :-

( i ) वह पर पुरुष गमन करे । 

( ii ) वेश्या बन जाए ।

 ( iii ) पेशेवर आने वाली हो । 

( iv ) किसी दुराचार , पाप या फौजदारी अपराध की दोषी हो ।

 ( v ) किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करे जिसके साथ बच्चे के कारण विवाह वर्जित हो । 

( vi ) बच्चे के पिता से इतनी दूर रहे कि पिता बच्चे की देखभाल न कर सके । 

( vii ) बच्चे की ठीक से देखभाल न करे और लापरवाही बरते ।

 


  • ( 1918 ) 451 आईए 83 

  • ए.आई.आर. 1988 केरल 30 


  • ( 1866 ) 5 डब्ल्यू .आर .235

  • सिद्दीकुन्निसा बनाम निजामुद्दीन आ .इ. रि.1932 इलाहाबाद , 215 

  • सैयदशाह बनाम सैयदशाह , ए . आई . आर 1971 सु .को .2184 

  • गुरबक्श सिंह बनाम बेगम रफीया ए . आई . आर. 1979 एन . सी . 66

  • 1 सलामत अली बनाम श्रीमती मन्नो बेगम . ए . आई आर 1985 इला 29 


  • (2)इमाम बॉरी बनाम मुस्तरी ( 1918 ) 45 इण्डियन अपील्स 73 पृष्ठ 83 पर

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