मुस्लिम विधवा स्त्री का भुगतान किए गए मेहर की धनराशि के बदले में मृतक पति की संपत्ति पर कब्जा रखने के अधिकार को उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता है या उसे बेचा जा सकता है?
मुस्लिम विधि के अनुसार जिस मुस्लिम स्त्री का पति मेहर का भुगतान करने से पूर्व मर जाता है तो ऐसी स्त्री ( विधवा ) मृत व्यक्ति की सम्पत्ति पर कब्जा कर सकती है । ऐसा कब्जा उस समय तक रहेगा जब तक कि उक्त मुस्लिम विधवा के मेहर की धनराशि का भुगतान न हो जाये ।
अतः यदि किसी मामले ' में पत्नी ने कानूनी ढंग से बिना किसी धोखे या दबाव के अपने मेहर का भुगतान न होने के कारण अपने मृत पति की सम्पत्ति पर अधिकार कर लिया है तो वह उसको उत्तराधिकारियों और अन्य महाजनों ( creditors ) के बिना जारी रखने की अधिकारिणी है , परन्तु पत्नी ( विधवा ) के अधिकार किन्हीं दूसरे असुरक्षित महाजनों ( unsecured creditors ) से अधिक नहीं होते । अतः वह उस सम्पत्ति से अन्य उत्तराधिकारी और महाजनों को निष्कासित नहीं कर सकती । वे सब उसके साथ संयुक्त अधिकारी होते हैं । इसी अधिकार को ग्रहणाधिकार या सम्पत्ति में स्वत्व ( Licn in property ) कहा जाता है । इस अधिकार को कानून की दृष्टि से पक्का नहीं कहा जा सकता ।
पत्नी द्वारा अपने मृत पति की सम्पत्ति पर स्वत्व बनाये रखने का कब्जा ग्रहण किये रखने के सम्बन्ध में कुछ निम्न प्रमुख बातें भी हैं
( क ) कब्जा बनाये रखने का अधिकार पति के जीवन काल में नहीं होता — यदि पति के जीवन काल में कोई महाजन उस पर ऋण के लिए न्यायालय से डिक्री ले आये तो स्त्री उस सम्पत्ति पर कब्जा नहीं रोक सकती । उसके पति के जीवन काल में पति की सम्पत्ति का विक्रय होकर ऋणदाताओं का ऋण तुष्ट किया जायेगा । पति की सम्पत्ति पर कब्जा बनाये रखने का प्रश्न तो विवाह - विच्छेद होने या पति की मृत्यु होने पर उत्पन्न होता है ।
इमाम बी . बनाम ख्वाजा हुसैन व अन्य के वाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि मेहर के ऋण के बदले में भूमि का सम्बन्धित विवाहित पत्नी को अन्तरित किया जाना सर्वथा न्यायोचित है । ऐसी भूमि के अन्तरण को मेहर के भुगतान स्वरूप में पत्नी को अन्तरित किया जाना केवल इसलिए अवैध नहीं माना जायेगा कि अन्तरण हैदराबाद टैनेन्सी एवं कृषि भूमि अधिनियम 1958 की धारा 47 के विरुद्ध था ।
कपूर चन्द बनाम खदरुन्निसा के वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि मुस्लिम विधवा अन्य उत्तराधिकारियों की सहमति से अपने मेहर की एवज में अपने मृतक पति की सम्पत्ति पर कावित हो सकती है , परन्तु इस प्रकार विधवा का अन्य अप्रतिभूत ऋणदाताओं ( unsequred ] [ credaors ) की अपेक्षा प्राथमिकता का अधिकार नहीं होता ।
विधवा चूंकि पति को सम्पत्ति में उत्तराधिकारिणी है इस कारण ऋण की अदायगी में उसे भी अंशदान करना पड़ता है । मेहर ऋण की अदायगी में प्रत्येक उत्तराधिकारी अन्य ऋणों की भांति मृतक से प्राप्त होने वाली सम्पत्ति के अनुपात में ही अपना योगदान करेगा ।
( ख ) स्त्री की सम्पत्ति पर वास्तविक कब्जा हो - मेहर की धनराशि के भुगतान के बदले में विधवा को को सम्पत्ति पर कब्जा वास्तविक रूप में ( Actual Possession ) होना चाहिए किसी दूसरे व्यक्ति के माध्यम से कब्जा किये होने या काल्पनिक कब्जा स्त्री को मेहर के भुगता में सहायता नहीं कर सकता ।
( ग ) अधिग्रहण स्थापित किये रखना तथा बंधक - मुस्लिम विधवा की स्थिति ऐसी होती है कि वह अपने पति की सम्पत्ति को वास्तविक पूर्ण स्वामिनी न होकर केवल उस न्यासकर्ता होती है जो सम्पत्ति पर कब्जा बिना किसी पहले से किये गये समझौते के आधार करती है । " Two widows holds possession of her husband's property until . she has been paid her dower on estate of interest in the property as she has a mortgage under a ordinary mortgage . "
प्रभार ( Charge ) - मुस्लिम स्त्री को सम्पत्ति पर कब्जा रखने का अधिकार उस ( सम्पत्ति पर कोई प्रभार ( Charge ) उत्पन्न नहीं करता ।
( क ) सम्पत्ति पर केवल स्वत्व होना ( Only lien on the property ) विधवा द्वारा मृतक पति को सम्पत्ति पर केवल स्वत्व ( licn ) ही होता है । अतः वह
( i ) उस सम्पत्ति में केवल किराया और लाभ ही वसूल कर सकती है ।
( ii ) उस सम्पत्ति पर यह अन्य उत्तराधिकारियों के समान ही अपना स्वत्व ( title ) रखती है और उसका अपना कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता ।
( ii ) इस सम्पत्ति को बन्धक ( mortgage ) या विक्रय ( sale ) नहीं कर सकती । वह चाहे तो केवल हिस्से का विक्रय कर सकती है
" “ विधवा का धारणाधिकार कब्जा बनाये रखने का अधिकार है , कब्जा प्राप्त करने का नही।
ध्यान रखने योग्य बात यह है कि इस विधवा स्त्री को उसके उत्तराधिकारी या अन्य द्वारा बेदखल कर दिया जाता है तब उसे अधिकार होगा कि वह विशिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 9 के अन्तर्गत 6 माह के अन्दर कब्जे के लिए वाद प्रस्तुत कर सकती है अन्यथा पुनः कब्जा करने का उसका यह अधिकार समाप्त माना जायेगा और जहाँ उसे किसी अतिक्रमणकारी ने बेदखल किया है तो वह भारतीय मर्यादा विधि को अनु . 12 के अन्तर्गत 12 वर्ष के अन्दर वाद दायर कर सकती है ।
( ख ) सम्पत्ति के उत्तराधिकारी का दायित्व ( Liability of success or of property ) – इस प्रकार की सम्पत्ति के प्रत्येक उत्तराधिकारी को प्राप्त हिस्से के अनुसार विधवा स्त्री के मेहर की धनराशि का भुगतान करना पड़ता है ।
( ग ) वाद दायर करना -यदि किसी मृत मुसलमान की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी उसकी सम्पत्ति प्राप्त करने के बाद उसकी विधवा के मेहर की धनराशि का भुगतान नहीं करते हैं तो उक्त विधवा वाद ( suit ) दायर कर सकती है ।
क्या मृतक पति की सम्पत्ति पर कब्जा रखने के अधिकार को उत्तराधिकार:-
क्या मृत पति की सम्पत्ति पर कब्जा रखने के अधिकार को उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता है या उसे बेचा जा सकता है ? Is the right of a widow to retain possession of her husband's property heritable or alienable ? उत्तर - मृत पति की सम्पत्ति पर मेहर का भुगतान न होने के फलस्वरूप विधवा स्त्री द्वारा किये जाने वाले कब्जे के अधिकार को अन्तरित या ( transfer ) या उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता है परन्तु इस सम्बन्ध में भिन्न उच्च न्यायालयों में मतभेद है , परन्तु अधिकांश उच्च न्यायालयों का यह मत है कि कब्जा रखने के अधिकार ( Right to retain possession ) को उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता है ।
मेहर के ऋण ( dower debt ) को अन्तरित करने मात्र से ही अन्तरकर्त्ता को कब्जा पाने अधिकार प्राप्त नहीं होता । पटना उच्च न्यायालय के अनुसार विधवा स्त्री की सम्पत्ति पर बिना मेहर ऋण प्राप्त किये कब्जे का अधिकार उसका व्यक्तिगत अधिकार ( personal right ) है जिसे वह मेहर ऋण के साथ या विना बेच नहीं सकती ।
1950 एम . सी . आर . 74
अब्दुल समद बनाम अलीमुद्दीन ( 1943 ) 22 पटना 750
A. I. R. 1938 Kant 5 , I.M.M. 81
हमीरा बोबो बनाम जुबैदा बोबी 8 All . ( P.C. )
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