समागम की पुन र्प्राप्ति क्या होती है ? इसका मुस्लिम विवाह से या मुस्लिम विधि से किस प्रकार सम्बन्ध है?
समागम की पुनर्प्राप्ति का अधिकार ( The restitution of Conjugal Right ) – मुस्लिम विधि के अनुसार , निकाह की पूर्णता तभी होती है जब पुरुष अपनी पत्नी के साथ सहवास करके उस निकाह को पूर्ण करे । कोई निकाह तब तक पूरा नहीं होता जब तक कि उसका भोग ( Consummation ) न किया गया हो और तभी सम्बन्धित स्त्री भी मेहर की अधिकारिणी होती है । अतः किसी मामले में यदि पति या पत्नी दोनों में से कोई सहवास के
अधिकार के बिना किसी मामले में यदि पति या पत्नी दोनों में से कोई सहवास के अधिकार के बिना उचित कारण से वंचित कर दिया जाये तो इससे पीड़ित पक्ष ( aggrieved party ) को यह अधिकार होता है कि वह सहवास के अधिकार भी पुनश्राप्ति ( restitution ) के लिए न्यायालय में वाद स्थापित कर सके ।
यदि पति द्वारा अपनी पत्नी के विरुद्ध सहवास के अधिकारक पुनर्प्राप्ति के लिए वाद दायर किया जाता है तो पत्नी निम्नलिखित तथ्यों को अपने लिए अच्छे बचाव ( good defence ) के रूप में प्रस्तुत कर सकती है
( 1 ) अमान्य रीति से विवाह
( 2 ) कानूनी निर्दयता
( 3 ) तुरन्त मेहर न दिया जाना ।
( 4 ) लियन तथा जिहार ।
( 5 ) पति का नपुंसक होना ।
( 6 ) पति द्वारा धर्म परिवर्तन ।
( 7 ) कोई अवैध सम्बन्ध होना ।
( 1 ) किसी अमान्य रीति से निकाह ( Marriage of same Illegal Manner ) - पत्नी , सहवास या समागम की पुनःप्राप्ति के वाद में कह सकती है कि उक्त पुरुष ने उसके साथ अमान्य ( invalid ) तरीके से निकाह किया था । अतः वह उसके साथ संभोग को तैयार नहीं है ।
( 2 ) कानूनी निर्दयता ( Legal cruelty ) यदि पति पत्नी के साथ निर्दयता का व्यवहार करता है जिसके कारण वह उसके साथ सहवास करना पसन्द नहीं करती तो उसे ऐसा करने को बाध्य नहीं किया जा सकता । निर्दयता ( Cruelty ) शब्द बड़ा व्यापक है जिसकी न तो कोई निश्चित परिभाषा की जा सकती है और न व्यवहार में निर्धारित ही किया जा सकता है सिवाय कुछ निम्नलिखित विशिष्ट बातों के जिनके आधार पर निर्दयता का अंकन किया जा सके ।
( i ) पति द्वारा अकारण ही पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाया जाना ।
( ii ) पत्नी को शारीरिक पीड़ा पहुंचाना ।
( iii ) पति द्वारा पत्नी को ऐसे अधिकारों से जान - बूझकर वंचित रखना जो कि मान्य निकाह के कारण पत्नी को मिलने चाहिए ।
( iv ) पति के नपुंसक होने से पत्नी को लैंगिक सुख से वंचित रखना ।
( v ) पत्नी को किसी कानूनी अभिलेखों पर हस्ताक्षर करने को बाध्य करना या उत्पीड़ित करना ।
( vi ) पत्नी पर मिथ्या दीवानी या फौजदारी लगाना ।
इतवारी बनाम मुसम्पात असगरी ' के वाद में पति ने अपनी पहली पत्नी के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों के पुर्नस्थापन का वाद दायर किया । इस पत्नी ने पति द्वारा दूसरी पत्नी लाने और निर्दयता के आधार पर अपने माता - पिता के साथ रहने का औचित्य दिखलाया । यह धारण किया गया कि दाम्पत्य अधिकारों के पुनःस्थापन के बाद में यदि न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि परिस्थितियाँ ऐसी है कि दूसरी पत्नी लाने पर पत्नी को उसके साथ रहने के लिये विवश करना अन्याय होगा , तो वह अनुतोष प्रदान करने से इन्कार कर देगा ।
( स ) तुरन्त मेहर का भुगतान न होना ( Non - payment of prompt dower ) :-निकाह में पुरुष स्त्री को मेहर ( Meher ) देने का वायदा करता है । जिसका संविदा के अनुसार कुल भुगतान तो निकाह के समय हो जाता है बाकी को बाद में देने का वचन देता है । निकाह के समय तो मेहर दिया जाता है उसको नगद मेहर ( Prompt dower ) कहते हैं । ऐसे मेहर का भुगतान न होने पर पत्नी सहवास को मना कर सकती है ।
( 4 ) लियन तथा जिहार ( Lian and Zihar ) :- कुछ परिस्थितियों में स्त्री अपने पति के साथ समागम करने को मना कर सकती है क्योंकि उस समय ऐसा करना अनुचित होता है ।
( 5 ) पति की नपुंसकता ( Impotency of husband ) - स्त्री और पुरुष में काम वासना का होना प्रकृति की एक देन होती है । यदि पुरुष नपुंसक होगा तो स्त्री की जन्मजात प्रकृति से उत्पन्न कामेच्छा अपूर्ण रह जायेगी और उसको क्लेश होगा । अतः नपुंसक पति के द्वारा समागम करने का अधिकार मांगने पर वह मना कर सकती है ।
( 6 ) पति द्वारा धर्म का त्याग ( Apostacy ) - पति द्वारा मुस्लिम धर्म त्याग कर अन्य धर्म अपना लेने पर स्त्री उसको छोड सकती है।
( 7 ) अवैध संविदा ( Illegal contract ) - यदि पति - पत्नी के मध्य निकाह के पूर्व या बाद में अवैध संविदा हो जाये और पति उस संविदा का पालन करने के लिए अपनी पत्नी को मना कर सकती है , जैसे पति अपनी पत्नी से यह लिखवा ले कि वह निकाह के बाद सदा अपने माता - पिता के घर ही रहेगी और पत्नी को ऐसा करने को प्रदान करने से मजबूर किया जा सकता है ।
( 8 ) जाति बहिष्कार - जब पति जाति से निकाल दिया गया हो तो पुनर्स्थापन की डिक्री प्रदान करने से इन्कार किया जा सकता है।
( 9 ) विवाह की मान्यता - दाम्पत्य अधिकारों के पुर्नस्थापन के बाद में विवाहों की वैधता एक पूर्वापेक्षा ( Pre - requisite ) है । वह यह अभिवचन कर सकती है कि विवाह मान्य नहीं है ।
( 10 ) पर पुरुष गमन का मिथ्या आरोप - पति द्वारा दाम्पत्य अधिकारों को पुनर्स्थापन का वाद संस्थित किये जाने पर पत्नी यह प्रतिवाद ले सकती है कि पति ने उसके ऊपर पर पुरुष गमन का मिथ्या आरोप लगाया है।
ए . आई . आर ( 1960 ) इलाहाबाद 684
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