सदोष मानव वध क्या होता है?कब सदोष मानव वध हत्या हो सकता है ?(what do you understand by culpable homicide?)
सदोष मानव वध(Culpable Homicide ): भारतीय दंड संहिता की धारा 299 में सदोष मानव वध की परिभाषा इस प्रकार की गई है कि जो व्यक्ति मृत्यु करने के आशय से या ऐसा शारीरिक आघात पहुंचाने के आशय से जिससे कि मृत्यु किया जाना संभव हो और यह जानते हुए कि उस कार्य से मृत्यु होने की संभावना है कोई कार्य करके मृत्यु करता है तो वह सदोष मानव वध का अपराध करता है।
स्पष्टीकरण: इस संबंध में निम्नलिखित स्पष्टीकरण है:
(1) वह व्यक्ति जो किसी दूसरे व्यक्ति की जो किसी विकार रोग यह अंग शैथिल्य से पीड़ित हो शारीरिक क्षतिकारित करता है जिससे दूसरे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो यह समझा जायेगा कि उसने सदोष मानव वध का अपराध किया है।
(2) जब मृत्यु किसी शारीरिक क्षति से हो तो ऐसी क्षति करने वाले व्यक्ति के लिए यह समझा जायेगा कि उसने वह मृत्युकारित की है यद्यपि उचित उपचार या कौशलपूर्ण चिकित्सा से वह मृत्यु रोकी जा सकती हो।
(3) मां के गर्भ में स्थित किसी शिशु की मृत्युकारित करना मानव वध नहीं है परंतु किसी जीवित शिशु की हत्या करना उस समय अपराध की श्रेणी में आ जाएगा जब शिशु का कोई भाग बाहर निकल आया हो चाहे उस शिशु ने ना तो सांस ली हो और ना पूर्णतः उत्पन्न नहीं हुआ हो।
सदोष मानव वध के अपराध के तत्व(Elements of offence of culpable homicide): सदोष मानव वध के अपराध निम्नलिखित तत्व है
(1) किसी मानवीय प्राणी(human being )की मृत्युकारित करना
(2) ऐसी मृत्यु का ऐसे किसी कार्य के द्वारा कारित करना
(अ) जो मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो या
(ब) जो ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने की आशंका से किया गया हो जिससे मृत्यु का रित हो जाना संभाव्य हो या
(स) जो यह जानकर किया गया हो कि जिससे मृत्यु कारित होना संभाव्य
मृत्यु से अभिप्राय यहां मानवीय प्राणी(human being ) की मृत्यु से है(धारा) 46। किसी अजन्मे शिशु की मृत्यु इसमें सम्मिलित नहीं है। यहाँ यह आवश्यक नहीं है कि मृत्यु उसी व्यक्ति की कारित हुई जिसकी मृत्यु करने का आशय था। ज्यों हि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु कारित होती है यह अपराध पूर्ण हो जाता है।
उदाहरण(1)'अ' एक गड्ढे पर लकड़ियां और फूस इस आशय से बिछाता है कि किसी को उस गड्ढे का पता ना चले और कोई व्यक्ति मर जाए इस जानकारी से बिछाता हैकि उससे किसी व्यक्ति की मृत्यु हो। 'क' यह विश्वास करके कि वह स्थान ठोस भूमि है उस पर से निकलते समय गड्ढे में गिर कर मर जाता है यहां'अ' ने सदोष मानव वध का अपराध किया है ।।
(2) 'क' को यह मालूम है कि झाड़ी के पीछे 'य' बैठा है परंतु फिर भी वह इस आशय और यह जानकर भी यदि'ग'' ने उस झाड़ी की तरफ गोली चलाई तो "य" की मृत्यु हो सकती है 'ग' को उस झाड़ी की ओर गोली चलाने को उकसाता है और गोली चलने से 'य' की मृत्यु हो जाती है तो 'ग' का कोई अपराध हो या न हो 'क' सदोष मानव वध का दोषी है ।
(3) "अ' ने भरपूर लाठी प्रहार करके 'क' का वध कर दिया। लाठी प्रहार करने का कारण यह था कि 'क' ने उसको प्रेत आत्मा समझा और भयभीत होने के कारण वह इस बात को ठीक से जांच नहीं सका की 'क' कोई प्रेतात्मा है या मनुष्य ।'अ' सदोष मानव वध का दोषी है।
(4) जोसेफ बनाम केरल राज्य के बाद में मृतक तथा अभियुक्त के बीच झगड़ा हुआ। अभियुक्त ने मृतक के सिर पर लाठी से वार किया जिससे उसके सिर पर दो चोटें लगी जिससे मृतक की मृत्यु हो गई । अभियुक्त को सेशन न्यायालय द्वारा 2 वर्ष की सजा सुनाई गई राज्य द्वारा अपील करने पर उच्च न्यायालय द्वारा अभियुक्त को अजीवन कारावास से दंडित किया गया। अभियुक्तों द्वारा उच्चतम न्यायालय में अपील की गई उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि इस मामले में अभियुक्त द्वारा मृतक को जो लाठी से सिर पर चोट पहुंचाई गई थी वह भी मृत्यु के सामान्य अन्य रूप में है पहुंचाई जाने वाली नहीं थी और ना ही इससे मृत्यु कारित करने का आशय सिद्ध होता है। अतः धारा 302 के अंतर्गत दी गई अजीवन कारावास की सजा को धारा 304 भाग(2) में दी गयी सजा में बदल दिया गया।
(5) राम प्रसाद बनाम बिहार राज्य के मामले में अभियुक्त ने एक भीड़ पर गोली चलाई भीड़ के पास खड़े एक व्यक्ति लगी और इसके परिणाम स्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि यद्यपि अभियुक्त का आशय उस व्यक्ति की मृत्यु या वध करना नहीं था परंतु फिर भी उसे इस बात का ज्ञान अवश्य था कि भीड़ पर चलाई गई गोली किसी ना किसी व्यक्ति को जाकर उसकी जान अवश्य ले सकती है। अभियुक्त को अपराधिक मानव वध के लिए सिद्ध दोष किया गया।
(6) पालानी का मामला इसमें अभियुक्त ने अपनी पत्नी पर एक फाल से वार किया। यद्यपि यह ज्ञात नहीं था कि ऐसे वार से मृत्यु हो जाने की संभावना है परंतु वह बेहोश हो गई। अभियुक्त ने उसे मृत समझकर आत्महत्या सिद्ध करने की दृष्टि से उसे रस्सी से बांधकर लटका दिया और इसके परिणाम स्वरूप घुटन से उसकी मृत्यु हो गई। यह धारण किया कि अभियुक्त सदोष मानव वध का दोषी है।
टाखाजी हीराजी बनाम ठाकुर कुबर सिंह चमनसिंह के वाद में गांव के दो समुदायों के बीच गांव के चौक पर अचानक झगड़ा हो गया । मृतक के पेट के निचले भाग में अभियुक्त ने चाकू मारकर घायल कर दिया जिससे आत कट जाने से उसकी मृत्यु हो गई। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि यद्यपि अभियुक्त का आशय मृत्युकारित करना या ऐसी शारीरिक क्षति पहुंचाना जिससे अभियुक्त की मृत्यु हो जाए नहीं था। यह कहा जा सकता है कि उसे इस बात का ज्ञान था कि पेट के निचले भाग में घायल करने से उसकी मृत्यु हो जाती है और इस कारण धारा 299(3) के आधार पर वह धारा 304 भाग 2 के अधीन दंडनीय है।
आपराधिक मानव वध के लिए दंड: जो कोई व्यक्ति अपराधिक या सदोष मानव वध का अपराध करेगा जो हत्या की कोटि में नहीं आता है । यदि वह कार्य जिसके कारण मृत्यु की गई है मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति जिससे मृत्यु होना संभव है करने के आशय से किया जाए तो उसे आजीवन कारावास या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 10 वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
हत्या (Murder) : भारतीय दंड संहिता की धारा 300 में उन स्थितियों का उल्लेख किया गया है जिसमें सदोष मानव वध हत्या होती है जो इस प्रकार है:
पहला: सिवाय उन मामलों में जो अपवाद स्वरूप हो सदोष मानव वध हत्या होती है यदि वह कार्य जिसमें व्यक्ति की हत्या की गई हो मृत्यु करने के आशय से किया गया हो
(2) वह ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिसको अपराधी जानता हो कि उससे उस व्यक्ति की मृत्यु होना संभव है जिसे क्षति पहुंचाई गई है ।
(3) वह किसी शारीरिक क्षति पहुंचाने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति जिसे करने का आशय हो प्रकृति के साधारण क्रम में मृत्यु करने के लिए पर्याप्त है।
(4) यदि कार्य करने वाला व्यक्ति या जानता हो कि वह कार्य इतना संकटपूर्ण है कि उससे मृत्यु होना या ऐसी किसी शारीरिक क्षति होने की पूरी संभावना है जिससे मृत्यु हो जाए या पूर्व उल्लेखित किसी रूप में क्षति पहुंचने के जोखिम के लिए किसी बहाने के बिना ऐसा कार्य करें या किया जाए।
कृष्णमूर्ति लक्ष्मीपति नायडू बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में मृतक और अभियुक्त में कहासुनी हो गई जिससे उत्तेजित होकर अपराधी ने मृतक के पेट में छुरे से वार किया। इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी गवाह ने पहले यह कहा कि पहले मृतक ने अभियुक्त पर लाठी का प्रहार किया था उसके पश्चात उसने अपने बयान में कहा जब अव्यक्त हाथ में खुला चाकू लेकर मृतक के पीछे दौड़ा तोमर तक अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा था। इस संबंध में गवाह का बयान कुछ भी रहा हो परंतु इतना तो निर्विवाद था कि जो घातक चोट मृतक को पहुंची है वह किसी आकस्मिक अचेतना या आशय रहित क्रोध का परिणाम नहीं था। अतः इस मामले में धारा 300 लागू ना होकर धारा 302 लागू होगी। इस मामले में आत्मरक्षा के लिए वार किए जाने का प्रश्न उठाना उचित नहीं था।
अब्दुल आईसी सुलेमान बनाम गुजरात के वाद में अभियुक्त पर एक 10 वर्षीय बालक की हत्या तथा एक अन्य व्यक्ति की गोली से चोट पहुंचाने का आरोप लगाया गया। बालक की हत्या असावधानीवश ना होकर आशयपूर्वक की गई थी। उत्तम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के अंतर्गत दोषी ना होकर धारा 300 पठित 301 के अंतर्गत हत्या का दोषी था। न्यायालय द्वारा अभियुक्त को जो आजन्म कारावास की सजा दी गई थी वह उचित थी।
बासप्पा बनाम राज्य के मामले में मृतक अभियुक्त के मकान की छत पर खड़ा था उसी समय अभियुक्त ने अपने तीन अन्य साथियों के साथ मिलकर मृतक को घेर लिया और उस पर खतरनाक हथियार से वार किये। अभियुक्त क्रमांक 1व 2 ने मृतक की गर्दन पर कुल्हाड़ी से वार किया । दो घाव लगने के पश्चात मृतक अपनी जान बचाने हेतु छत से नीचे कूद गया जिसके कारण नीचे गिरते ही उसकी मृत्यु हो गई । मैसूर उच्च न्यायालय ने विनिश्चित किया कि उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्तों का आशय मृतक की हत्या करना था अतः उन्हें हत्या के अपराध के लिए दंडित किया गया।
जवाहरलाल बनाम मध्यप्रदेश राज्य में अभियुक्त और उसके परिवार के सदस्यों ने अभिकारित 270 से अभियुक्त की पत्नि के ऊपर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा दी जिससे उसकी मृत्यु हो गई। शव परीक्षण और मृत्यु परीक्षा रिपोर्टों तथा शव परीक्षण करने वाले चिकित्सक के साक्ष्य से यह पूर्णतः रूप से साबित हो गया कि मृतका ने आत्महत्या नहीं की थी। घटना के समय पति का व्यवहार पूर्णता संदेहास्पद था। मृतक के भाई और बहन के साक्ष्य से यह स्पष्ट हो गया कि विवाह के पश्चात मृतक के पति और पति के माता-पिता पर्याप्त दहेज ना लाने के लिए पत्नी को अत्यधिक तंग करते थे जिससे हत्या का कारण तो स्पष्ट साबित होता है। मृतक के मुंह में कपड़ा ठूंस कर उसे पूर्णतया असहाय बना दिया गया था जिससे यह भी स्पष्ट होता है कि हत्या एक अकेले व्यक्ति द्वारा भी की जा सकती थी। क्योंकि अन्य अभियुक्तों के विरुद्ध युक्तियुक्त संदेह पर अपराध साबित नहीं किया जा सकता अतः केवल पति को ही हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया।
सदोष मानव वध और हत्या में अंतर(Distinction between culpable homicide andan murder): मेलविल जे. ने अपराधिक मानव वध और हत्या में बहुत ही स्पष्ट अंतर प्रस्तुत किया है। यह अन्तर इन.रि. गोविंद (1बम्बई 342) के संदर्भ में से यह स्पष्ट होता है। इस वाद में गोविंदा जिसकी आयु 18 वर्ष की थी अपनी पत्नी जिसकी आयु 15 वर्ष की थी के साथ दुर्व्यवहार करता है। एक दिन गोविंदा ने अपनी पत्नी को नीचे गिरा कर एक पैर उसकी छाती पर रखा तथा जोर से कई घुसे उसके चेहरे पर मारे जिसके परिणाम स्वरूप खून की धारा बह निकली और थोड़ी देर बाद वह लड़की मर गई।
सत्र न्यायाधीश ने अभियुक्त को हत्या का दोषी ठहराया। बाद में यह मामला बम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की बेंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिसमें उन न्यायाधीशों के विचारों में मतभेद हो गया। अतः मामला तीसरे न्यायाधीश मेलबिल (Melvill j.) को सुपुर्द किया गया जिन्होंने मामले का निर्णय करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 299 और 300 में निम्नलिखित अंतर प्रस्तुत किया
धारा 299 (सदोष मानव वध)
कोई व्यक्ति सदोष मानव वध करता है यदि वह कार्य से मृत्यु हो
(1) मृत्यु करने के आशय से किया गया हो
(2) ऐसी शारीरिक क्षति पहुंचाने के आशय से जिससे मृत्यु होना संभव है
(3) इस ज्ञान से कार्य करना जिससे कि मृत्यु होने की संभावना ही की जाए
धारा 300( हत्या)
कुछ अपवादों के अधीन रहते हुए सदोष मानव वध हत्या है यदि वह कार्य जिससे मृत्यु हो जाती है
(1) मृत्यु करने के आशय से किया गया हो
(2) इस आशय से शारीरिक चोट पहुंचाना जिससे अपराधी जानता हो कि जिस व्यक्ति को हानि पहुंचा रहा है उसकी मृत्यु होने की संभावना है
(3) इस आशय से शारीरिक चोट पहुंचाना जो कि प्रकृति के साधारण क्रम में मृत्यु के लिए पर्याप्त
उपायुक्त अंतरों में धारा299 क(अ) और 300 का(2) एक समान जिसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति जान से मारने के आशय से मृत्यु करता है तो वह हत्या होगी। धारा 299(स) और 300(4) में अन्ततः यह है कि पहले में मृत्यु होने की संभावना होती है और दूसरे में मृत्यु होना अवश्यंभावी (all probability ) होता है।
धारा 299(ब) और 300 के (2) और (3) में यह अंतर है कि पहली धारा में शारीरिक क्षति से मृत्यु होना संभव होती है जबकि दूसरी धारा के अनुसार अभियुक्त को पता होता है कि उसको वह शारीरिक क्षति पहुंचा रहा है उसकी मृत्यु हो जाएगी।
वह शारीरिक क्षति अपने आप में इतनी पर्याप्त है कि प्रकृति के सामान्य क्रम में से क्षति पहुंचने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी।
अतः धारा 299 और 300 में मृत्यु होने की संभावना में मात्रा (degree) का अंतर जिसके अनुसार धारा 290 में मृत्यु होना संभावित परिणाम हो सकता है जब की धारा 300 में मृत्यु होना निश्चित संभावित परिणाम होता है।
उपर्युक्त व्यवस्था के अनुसार गोविंदा ने धारा 299 के अंतर्गत सदोष मानव वध का अपराध किया है।
न्यायाधीश पीकाॅक ने गोराचन्द गोपी (1866)5, डब्ल्यू .आर.45 कलकत्ता के मुकदमे में अभिनिर्धारित किया कि कोई कृत्य हत्या तभी माना जाएगा जब अपराधी को यह ज्ञात हो कि उस कृत्य से हर प्रकार की संभाव्यता में मृत्यु होना अनिवार्य है। यदि उसे ज्ञान हो कि उसके अमुक कृत्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है लेकिन उस व्यक्ति को मार डालने का उसका आशय ना हो तो ऐसी स्थिति में मृत्यु होने पर वह आपराधिक मानव वध का दोषी होगा। उदाहरण के रूप में यदि कोई व्यक्ति एक सकरी गली में से अपनी कार उतावले पर सावधानीपूर्वक तेज गति से चलाता है तो उसे यह ज्ञात रहता है कि उसके इस कृत्य से कार की चपेट में आकर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है परंतु किसी को मार डालने का उसका आशय नहीं रहता ऐसी दशा में उसकी कार से किसी की मृत्यु हो जाए तो वह धारा 304 के अंतर्गत आपराधिक मानववाद का दोषी होगा।
(1) ए.आई.आर. 1994 सु.को.35
(2)ए.आई.आर. 1970 सु.को. 326
(3) (1919) 42 मद्रास 547 पूर्ण पीठ
(4)2001 क्रि.एल.जे. 2602 (एस.सी.)
(5)ए.आई.आर.1981 सु.को. 617
(6) ए.आई.आर. 1994 सु. को. 1911
(7) ए.आई.आर. 1960 मैसूर 22
(8)2001 क्रि.एल.जे. 2923 एस.सी.
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