गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक निरुद्ध ना रखा जाएगा और उसे गिरफ्तारी के आधारों तथा जमानत के अधिकार से अवगत कराया जाएगा: (no person shall be detained in custody for more than 24 hours and person arrested to be informed the grounds of arrest and of right to bail)
यदि गिरफ्तार किए जाने वाला व्यक्ति गिरफ्तारी का बल पूर्वक प्रतिरोध करें अथवा गिरफ्तारी से बचने का प्रयास करें वहां गिरफ्तार करने वाला पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति उसे गिरफ्तार करने के लिए भी आवश्यक साधनों का प्रयोग कर सकेगा.
इस प्रकार जहां चौकीदार को किसी भागते हुए चोर को गिरफ्तार करना हो और उसे गिरफ्तार करने के लिए उसके पास कोई साधन नहीं हो वहां वह उस को गिरफ्तार करने के लिए आवश्यक हिंसा का प्रयोग कर सकेगा.
लेकिन ऐसे किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय उसकी मृत्यु कार्यत नहीं की जा सकेगी जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध के लिए अभियुक्त नहीं है.
हथकड़ी का प्रयोग: - गिरफ्तारी के समय हथकड़ी का प्रयोग आवश्यक होने पर ही किया जाना चाहिए. हथकड़ी का प्रयोग करते समय गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की हैसियत को ध्यान में रखा जाना अपेक्षित है. एक मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को गिरफ्तार किए जाने उसे हथकड़ी लगाने एवं उसके साथ बल प्रयोग किए जाने की प्रवृत्ति को उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुचित माना गया है. (दिल्ली न्यायिक सेवा संघ तीस हजारी कोर्ट बनाम गुजरात राज्य एआईआर 1991 एससी.2176).
(b) गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक निरुद्ध न रखा जाना
संहिता की धारा 57 गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर न्यायालय के समक्ष पेश किए जाने का निर्देश देती है यदि किसी अभियुक्त को 24 घंटों से अधिक समय अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध किया जाना आवश्यक प्रतीत हो तो इसके लिए मजिस्ट्रेट का विशेष आदेश प्राप्त करना होगा लेकिन ऐसा आदेश भी 15 दिनों से अधिक का नहीं हो सकेगा स्टेट बनाम आर एस चौधरी ए आई आर 1955 इलाहाबाद 138.
इन 24 घंटों में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक पहुंचने में लगा आवश्यक समय सम्मिलित नहीं है (स्टेट बनाम कनकडू ए आई आर 1954 हैदराबाद 85.
यह एक संवैधानिक व्यवस्था है जिसका उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 में किया गया है.
यहां यह उल्लेखनीय है कि जहां किसी अभियुक्त को अवैध रूप से निरुद्ध किया गया हो वहां यदि उसे गिरफ्तार किया जाकर 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर दिया जाता है तो ऐसा निरोध विधि पूर्ण हो जाता है( सप्त बना बनाम स्टेट ऑफ़ आसाम ए आई आर 1971 एस सी 813).
इस प्रकार यह से स्थापित विधि है कि जियो हूं किसी व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार किया जाता है क्योंकि उसे बिना किसी आवश्यक विलंब के उस मामले का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष अथवा किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष ले जाया जाना चाहिए बिना अधिकृत स्वीकृति के उसे अनावश्यक रूप से निरुद्ध नहीं किया जा सकता है( गुलाम मोहम्मद बनाम स्टेट ए आई आर 1955 एमपी 147).
जहां किसी युवा स्त्री को मजिस्ट्रेट द्वारा न्यायिक अभिरक्षा में भेजे जाने का आदेश दिया गया है लेकिन मुख्य आरक्षी में आदेश की अवहेलना करते हुए उस स्त्री को अपनी ही अभिरक्षा में रखा है वहां यह भी निर्धारित किया गया है कि मुख्य आरक्षी द्वारा उसे अपनी अभिरक्षा में रखा जाना अवैध था( मोहम्मद भगन बनाम स्टेट ऑफ़ पेप्सू ए आई आर 1955 पेप्सू 33)।
गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों एवं जमानत के अधिकार से अवगत कराया जाना
धारा 50 गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को दो महत्वपूर्ण संरक्षण प्रदान करती है
(1) जहां किसी व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार किया गया हो वहां उसे गिरफ्तारी के कारणों से तुरंत अवगत कराया जाएगा.
(2) यदि गिरफ्तार किए जाने वाला व्यक्ति जमानती अपराध का अभियुक्त हो तो उसे इतना दी जाएगी कि वह जमानत पर छोड़े जाने का अधिकारी है और प्रतिभुओं की व्यवस्था करें।
दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन( अधिनियम) 45 द्वारा धारा 53 में स्पष्टीकरण के माध्यम से स्पष्टीकरण( क) जोड़ा गया जिसके अनुसार परीक्षा में खून खून के धब्बे सीमन लैंगिक अपराधों की दशा में सुआव थूक और स्वेद बाल के नमूने और अंगुली के नाखूनों हकीकत रनों की आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीक के जिसके अंतर्गत डीएनए प्रोफाइल करना भी है प्रयोग द्वारा परीक्षा और ऐसे अन्य परीक्षण जिन्हें रजिस्ट्री कृत चिकित्सा व्यवसाई किसी विशिष्ट मामले में आवश्यक समझता है सम्मिलित होंगे।
यह एक संवैधानिक व्यवस्था है जिसका उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में किया गया है इसके अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने के कारणों से शीघ्र अवगत कराया जाएगा जहां ऐसे कारण दर्शित करने में किसी प्रकार का विलंब किया जाता है वहां ऐसे विलंब का औचित्य सिद्ध करना होगा (तारा पद डे बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल ए आई आर 1951 एस सी 174).
कारण जानने का अधिकार उस समय भी बना रहता है जबकि निरुद्ध व्यक्ति को जमानत पर छोड़े जाने की उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया गया हो (स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश बनाम शोभाराम एआईआर 1966 एसी 1910).
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