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भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS 2023) की धारा 100 क्या है । विस्तृत जानकारी दो।

भारत के संविधान के अंतर्गत भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: Scope of freedom of speech and expression under the constitution of India

 भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of speech and expression)




भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है सब तो लिखो मुद्रण वचनों या किसी अन्य प्रकार से अपने विचार व्यक्त करना. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हें संप्रेषित कर सके इस प्रकार इसमें संकेत को अंको चिन्ह तथा ऐसी ही अन्य क्रियाओं द्वारा किसी व्यक्ति के विचारों के व्यक्ति सम्मिलित है अनुच्छेद 19 में प्रयुक्त अव्यक्त शब्द के क्षेत्र को बहुत विस्तृत कर देता है विचारों को व्यक्त करने के जितने भी माध्यम से व्यक्ति पदावली के अंतर्गत आ जाते हैं.


                         भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र शासन प्रणाली का आधारशिला है क्योंकि इस स्वतंत्रता के द्वारा ही जनता की तार्किक और आलोचना आत्मक शक्ति का विकास हो सकता है और जनता की इस शक्ति के विकास से लोकतंत्र में सरकार को सुचारू रूप से चलाने में सहायता मिलती है.


इंडियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर बनाम भारत संघ 1985 एसईसी 641 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 4 विशेष उद्देश्यों की पूर्ति करती है:

( 1) यह व्यक्ति की आत्मा उन्नति में सहायक है

( 2) सत्य की खोज में सहायक है

( 3) व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत करती है

( 4) स्थिरता तथा सामाजिक परिवर्तन में युक्तियुक्त सामंजस्य स्थापित करने में सहायक होती है

रमेश ठाकुर बना मद्रास राज्य ए आई आर 1950 एस सी 124 के केस में उच्चतम न्यायालय ने अभी निर्धारित किया है कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विचारों के प्रचार और प्रसार की स्वतंत्रता शामिल है भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल अपने ही विचारों के प्रसार की स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है इसमें दूसरों के विचारों के प्रसार एवं प्रकाशन की भी स्वतंत्र शामिल है जो प्रेस की स्वतंत्रता राही संभव है.



साकल पेपर्स लिमिटेड बनाम भारत संघ ए आई आर 1962 एस सी 305 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है क्योंकि समाचार पत्र विचारों की अभिव्यक्ति करने के लिए एक माध्यम मात्र ही है


सेक्रेट्री मिनिस्ट्री आफ इनफॉरमेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग बनाम क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ वेस्ट बंगाल 1995 2 एसईसी 161 के बाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया है कि क्रिकेट के खेल को दूरदर्शन एवं रेडियो का प्रसारण अभिव्यक्ति का एक माध्यम है तथा यह अनुच्छेद 19 ए में सम्मिलित है भाषण द्वारा अभिव्यक्त की स्वाधीनता के अंतर्गत सूचना प्राप्त करना और उसका प्रसारण करना भी शामिल है इसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं है हवाई तरंगे सार्वजनिक संपत्ति है और इनका प्रयोग सार्वजनिक हित के लिए ही होना चाहिए.


चीफ इनफॉरमेशन कमिशन बनाम स्टेट ऑफ मणिपुर ए आई आर 2012 एस सी 864 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह भी निर्धारित किया गया है कि कोशिंदर बंधुओं के साथ का अधिकार एवं व्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का एक अभिन्न भाग है.


चल चित्रों पर सेंसर के ए अब्बास बनाम भारत संघ ए आई आर 1972 एस सी 481 के मामले में सिनेमैटोग्राफ 1952 की धारा 502 की संविधान नेता को चुनौती दी गई है क्योंकि यह धारा फिल्मों के प्रदर्शन पर सेंसर का उपबंध करती थी जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिक्रमण है उच्चतम न्यायालय ने सेंसर लोकहित में संवैधानिक घोषित किया है.


विज्ञापन का अधिकार:

विज्ञापन भी प्रचार ओं की अवधि के साधन है किंतु यदि वे व्यापारिक प्रकृति के हैं तो उन्हें देश के समान  कर कानून से छूट नहीं मिलेगी और सरकार उन पर यह उचित कर और प्रतिबंध लगा सकती है.


हमदर्द दवाखाना बनाम भारत संघ ए आई आर 1960 एस सी 354 के मामले में सरकार ने औषधि और जादू उपचार अधिनियम पारित किया जिसका उद्देश्य औषधियों के विज्ञापन को नियंत्रित करना और बीमारियों को अच्छा करने के लिए जादू के गुण वाली औषधि के विज्ञापन को निषिद्ध करना था उच्चतम न्यायालय ने इस अधिनियम को वैध घोषित करते हुए कहा कि यद्यपि विज्ञापन अभिव्यक्ति का ही एक माध्यम है फिर भी प्रत्येक विज्ञापन वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित नहीं होता है प्रस्तुत मामले में विज्ञापन विचारों के प्रसार से नहीं बल्कि विशुद्ध रूप से व्यापार एवं वाणिज्य से संबंधित है और सदियों का विज्ञापन अनुच्छेद 10 (1) (का) क्षेत्र से बाहर है और ऐसे विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं.



              दूसरी और बैनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड बनाम भारत संघ के मामले में सरकार की सन 1973 की अखबारी कागज नीति और अखबारी कागज नियंत्रण आदेश 1962 की वैधता को चुनौती दिए जाने पर जब सरकार ने अखबारी कागज की कमी के आधार पर और इस आधार पर कि बड़े-बड़े दैनिक अखबार विज्ञापनों के लिए अखबार के बहुत अधिक स्थान का उपयोग करते हैं और यदि वह अपने विज्ञापन के स्थान में कुछ समायोजन कर ले तो अखबार के प्रश्नों का स्तर घटाने की अपनी नीति को न्यायोचित ठहराया तब उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अखबारों के लिए आय का मुख्य स्रोत विज्ञापन है प्रश्नों को घटाने के कारण उन्हें विज्ञापन बनाना पड़ेगा ऐसे समाचारों को कम स्थान मिलेगा और उनका परिचालन घटेगा क्योंकि पाठकों को कम समाचार मिलेंगे इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रतिबंधित होती और अखबारों को आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है इसलिए न्यायालय ने सरकार की अखबारी कागज नीति को असंवैधानिक घोषित कर दिया.



प्रदर्शन धरना हड़ताल तथा बंद का आह्वान (demonstration picketing strike and calling off close)


कामेश्वर सिंह बनाम बिहार राज्य ए आई आर 1972 एस सी 1166 में अभिनय दायित्व किया गया है कि प्रदर्शन तथा धरना देना अभिव्यक्ति के साधन है परंतु उन्हें हिंसात्मक नहीं होना चाहिए.


           ओके घोष बनाम जोसेफ ए आई आर 1973 एस सी 80 13 में निर्धारित किया गया है कि हड़ताल करने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (का) के अंतर्गत मौलिक अधिकार नहीं है और जब प्रदर्शन हड़ताल का रूप धारण कर लेता है तब वह भी विचारों की अभिव्यक्ति का साधन नहीं होता है.


                 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बनाम भारत कुमार ए आई आर 1998 एस सी 184 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभी निर्धारित किया है कि बंद करने का आव्हान अनुच्छेद 19 (1)  (    ) के तहत मूल अधिकार नहीं है बल्कि या असंवैधानिक है.



              राज्य अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत निम्नलिखित किन आधारों पर इस स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बना सकता है


( 1) भारत की संप्रभुता एवं अखंडता के हित में

( 2) राज्य की सुरक्षा के हित में

( 3) विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में

( 4 ) व्यवस्था के हित में

( 5 ) शिष्टाचार या सदाचार के हित मे

( 6) न्यायालय अवाना के संबंध में

( 7) मानहानि के संबंध में

( 8) किसी अपराध के उद्दीपन के संबंध में

                  कोई भी प्रतिबंध केवल उपयुक्त कीनिया धारों पर ही आरोपित किया जाना चाहिए और ऐसी आधार से निरबंधन का निकट संबंध होना चाहिए और ऐसे किसी निरबंधन को युक्तियुक्त भी होना चाहिए.

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