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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

भारतीय मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के अन्तर्गत एक कर्मकार महिला को गर्भावस्था से सम्बन्धित कौन-कौन से प्रावधान हैं? वर्णन करो।

मातृत्व एक महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत और महत्वपूर्ण अनुभव होता है। यह खुशी का अवसर होने के साथ-साथ, शारीरिक और  मानसिक रूप से थकाऊ भी होता है। प्रसव और उसके बाद एक महिला को शारीरिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ होने के लिये "समय और समर्थन की आवश्यकता होती है।     यहीं पर मातृत्व लाभ की महत्वपूर्ण भूमिका शुरु होती है। मातृत्व लाभ, कामकाजी महिलाओं को प्रसव और उसके बाद कुछ समय के लिये वेतन सहित छुट्टी लेने का अधिकार देता है । यह लाभ महिलाओं को शारीरिक रूप से ठीक होने अपने नवजात शिशु की देखभाल करने और मां बनने की जिम्मेदारी के लिये तैयार होने में मदद करता है।   भारत में मातृत्व लाभ: भारत में मातृत्व लाभ मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 द्वारा शासित होता है। यह अधिनियम सभी स्थायी महिला कर्मचारियों को 90 दिनों की भुगतान वाली मातृत्व छुट्टी का अधिकार देता है। कुछ राज्यों ने अपनी नीतियों के तहत 180 दिनों तक छुट्टी का भी प्रावधान किया है।   मातृत्व लाभ के लाभ  • महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार : मातृत्व लाभ महिलाओं को पर्याप्त आराम करने और शारीरिक रूप से ठीक होन...

भारतीय कानून में गर्भपात तथा नवजात शिशुओं के सम्बन्ध में अपराधों को रोकने के लिए क्या प्रावधान किये गये हैं?What provisions have been made in Indian law to prevent crimes related to abortion and newborn babies?

भूमिका : भारत में गर्भपात और नवजात शिशु हत्या गंभीर सामाजिक और कानूनी मुद्दे हैं।इन अपराधों के खिलाफ लड़ाई में भारतीय  दण्ड संहिता [IPC] महत्वपूर्ण  भूमिका निभाता है। यह कानून महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की रक्षा करता है और नवजात शिशुओं के जीवन को सुरक्षा प्रदान करता है।    भारतीय दण्ड संहिता में बालकों और महिलाओं से सम्बन्धित विभिन्न अपराधों के बारे में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं-  1. गर्भपात सम्बन्धी (धारा 312 से 314)  2. नवजात शिशु सम्बन्धी अपराध (धारा 315 से 318)  1. गर्भपात का अर्थ (Meaning of Miscarriage) - गर्भपात से तात्पर्य "गर्भाधान की अवधि पूर्ण होने के पूर्व ही किसी भी समय अविकसित बच्चे को या माता के गर्भ से भ्रूण को बाहर निकाल देना या अलग कर देने से है।      स्पन्दगर्भा से तात्पर्य, "स्त्री की उस अनुभूति से है जो उसे गर्भावस्था के चौथे या पाँचवे महीने में प्रतीत होती है।        भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 312, 313 और 314 में गर्भापात के बारे में प्रावधान किया गया है।  गर्भपात क...

समन क्या होता है? इसके कितने प्रकार हैं बताओ?What is summons? How many types are there?

कानूनी भाषा में समन :- समन एक (आधिकारिक दस्तावेज है जो किसी व्यक्ति को अदालत में गवाह के रुप में हाजिर होने या प्रतिवादी के रुप में मुकदमें का सामना करने का आदेश देता है। यह अदालत या अन्य कानूनी प्राधिकरण द्वारा जारी किया जाता है।   उद्देश्य:- समन का मुख्य उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को सुचाक रूप से चलाना है। यह सुनिश्चित करता है कि :-  • गवाह अदालत में उपस्थित हों और गवाही दें।  • प्रतिवादी को मुकदमें की सूचना मिल सके और वह अपनी रक्षा कर सके।  समन कितने प्रकार के होते हैं?  समन के मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं-  • सिविल समन :- इसका उपयोग सिविल मामलों में किया जाता है जैसे कि विवाद, तलाक, सम्पत्ति विवाद आदि।  • आपराधिक समन : इसका उपयोग आपराधिक मामलों में किया जाता है। जैसे कि चोरी, हत्या बलात्कार आदि।  समन में शामिल कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु :-  • अदालत का जाम और पता।  मुकदमें का क्रमांक प्रतिवादी ।  गवाह का नाम और पता  • हाजिर होने की तारीख, समय और स्थान  • अदालत द्वारा जारी किये जाने की तारीख  • हस्ताक्षर औ...

उ प्र जमींदारी एवं भूमि सुधार अधिनियम के अन्तर्गत धारा 172 व धारा 174 क्या होती है कुछ उदाहरण सहित बताओ?What are Section 172 and Section 174 under the UP Zamindari and Land Reforms Act? Tell me with some examples?

वैदिक काल से ही भारत की सामाजिक व्यवस्था पुरुष प्रधान रही है। स्त्रियों के विषय में शुरू में यह विचारधारा बलवती थी कि "पिता रक्षति कौमार्य भरता रक्षित यौवने" तात्यपर्य यह है कि स्त्रियों का सरक्षण हमेशा पुरुषों द्वारा होता रहा है। इसीलिये उनके स्वतंत्र अस्तित्व तथा साम्पत्तिक स्वामित्व के स्वरूप में स्त्रीधन की परिकल्पना की जाती थी। इस प्रकार सयुक्त परिवार की परम्परा में स्त्रियों की सह स्वामित्व या सहभागीदारी की क्षीण परिकल्पना की जाती थी। क्रमशः सामाजिक परिवर्तन और स्त्री वर्चस्व के विकास की गति में स्त्रियों के द्वारा साम्पत्तिक अधिकारों और भौमिक सह-खातेदारी तथा उत्तराधिकार आदि के मामले विचाराधीन हुये। जमींदारी प्रथा के समय भी सीर- खुदकाश्त भूमि में पुरुष जोतदार मध्यवर्ती के रूप में अंकित किया जाता था और मृत जमीदारों की विधवाओं को भरण-पोषण के निमित्त तथा तीर्थ - व्रत करने के लिये सीर-खुदकाश्त की भूमि दे दी जाती थी। संविधानोत्तर काल में पारिवारिक विधि के द्वारा स्त्रियों को विस्तारित किया गया तथा 1956 के हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14 में स्त्रियों के समूर्ण स्वामित्...

उ.प्र जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 157 के तहत अक्षम व्यक्ति : एक विश्लेषण Disabled person under section 157 of U.P. Zamindari Abolition and Land Reforms Act 1950 : An analysis

उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 भूमि सुधारों के लिये एक महत्वपूर्ण कानून है। इसमें धारा 157 अक्षम व्यक्ति को परिभाषित करती है जो उन लोगों के लिये महत्वपूर्ण अधिकार और सुरक्षा प्रदान करती है जो अपनी सम्पत्ति का प्रबन्धन करने में सक्षम नहीं है।   अल्पवयस्क 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति । केवल वही नाबालिग  अपनी भूमि को लगान पर उठा सकता है। जिसका पिता न हो या पिता की मृत्यु हो गयी हो या अगर जीवित हो तो वह पागल या जड हो। या अन्धेंपन आदि किसी शारीरिक दुर्बलता से पीडित हो । यह निरर्थक है किं नाबालिग संयुक्त परिवार में पिता के साथ रह रहा है या पिता से अलग है। नाबालिक द्वारा दिया हुआ पट्टा शून्य होगा, क्योंकि नाबालिक संविदा नहीं कर सकता किन्तु धारा 157[1] एक नाबालिग को आज्ञा प्रदान करती है कि वह अपनी भूमि को लगान पर दे सकता है। लगान पर देने का काम नाबालिक के संरक्षक द्वारा किया जाना चाहिये। पट्टा नाबालिग पर बाधित होने के लिये यह आवश्यक है कि जिला-जज की आज्ञा प्राप्त कर ली गयी हो। क्योंकि धारा 157[1] नाबालिग के संरक्षक को कोई अतिरिक्त कानूनी शक्ति नहीं ...

सार्वजनिक उपयोग की भूमि से अधिनियम 1950 के अन्तर्गत धारा 48 क्यों इतनी महत्वपूर्ण है कुछ उदाहरण सहित बताओ?Why is section 48 of the Public Land Use Act 1950 so important? Explain with some examples.

भूमि अधिनियम 1950 भारत में भूमि सुधार का एक महत्वपूर्ण कानून है। इसका उद्‌देश्य कृषि भूमि के स्वामित्व और उपयोग में सुधार करना, काश्तकारों के अधिकारों की रक्षा करना और ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक न्याय स्थापित करना था। सार्वजनिक उपभोग की भूमि से तात्पर्य ऐसी भूमि से है जो सार्वजनिक उपयोगिता की भूमि में दर्ज हो या गाँव के रीति-रिवाज के अनुसार हो जैसे -  [i] चारागाह  [ii] शमशान या कब्रिस्तान  [iii] तालाब या खलिहान आदि      सभी भूमियाँ सार्वजनिक उपयोग की भूमि मानी जाती है भूमि अधिनियम 1950 के तहत सरकार को सार्वजनिक उपयोग के लिये भूमि अधिग्रहित करने का अधिकार है। यह अधिग्रहण उचित मुआवजे के भुगतान पर किया जाता है। अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि अधिग्रहित भूमि का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिये किया जा सकता है जिसके लिये अधिग्रहण किया गया था। यदि भूमि का उपयोग उस उद्देश्य के लिये नहीं किया जाता है तो उसे अधिग्रहीत किये गये व्यक्ति को वापस लौटाया भी जा सकता है।     भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1950 की धारा 48 के तहत, यदि अधिग्रहित भूमि का उपयोग ...