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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

आवेदन पत्र अन्तर्गत आदेश 22 नियम 3 सहपठित धारा 151 सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत एक drafting Drafting an application under Order 22 Rule 3 read with Section 151 Code of Civil Procedure

 CPC आदेश २२ नियम 3 (Order 22 Rule3); का आवेदन पत्र न्यायालय में कब पेश किया जाता है? आसान भाषा में कहा जाये तो जब किसी सिविल केस में वादी की मृत्यु हो जाती है और उसके कानूनी प्रतिनिधि या उत्तराधिकारियों को उस मृत वादी ने, स्थान पर उस केस में पार्टी बनाने के लिये जिस प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है, वह आदेश 22 नियम 3 के तहत किया जाता है।          दूसरे शब्दों में कहे तो जब वादी या प्रतिवादी मे से किसी एक मृत्यु हो जाती है। इस आवेदन का उद्देश्य न्यायालय को यह बताना है कि मृतक पक्ष के कानूनी प्रतिनिधि को मुकदमें में शामिल किया जाये ।  आवेदन  कब पेश किया जा सकता है:  मृत्यु के बाद 90दिनों के भीतर  • यदि 90 दिनों की अवधि समाप्त हो गयी है तो न्यायालय को उचित कारण बताते हुये विलम्ब के लिये माफी मांगनी होगी।   आवेदन में क्या शामिल होना चाहिये:-  • मृतक पक्ष का नाम  और मृत्यु की तारीख  कानूनी प्रतिनिधि का नाम और पता  • मुकदमें का विवरण  • अन्य आवश्यक दस्तावेज   न्यायालय द्वारा आवेदन  पर विचार ...

धारा 323, 506, 504, 3/4DP Act और 308B के तहत जमानत याचिका

जमानत: जमानत एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत किसी आरोपी को जेल से रिहा कर दिया जाता है, जब तक कि उसका मुकदमा पूरा नहीं हो जाता। जमानत के लिए, आरोपी को जमानत राशि जमा करनी होगी और कुछ शर्तों का पालन करना होगा। धारा 323: यह धारा स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक जमानती अपराध है। धारा 506: यह धारा आपराधिक धमकी देने के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक जमानती अपराध है। धारा 504: यह धारा जानबूझकर अपमान करने के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक जमानती अपराध है। धारा 3/4 DP Act: यह धारा दहेज उत्पीड़न के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक गैर-जमानती अपराध है। धारा 308B: यह धारा गैर इरादतन हत्या का प्रयास करने के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक गैर-जमानती अपराध है। जमानत याचिका कैसे दायर करें: एक वकील से संपर्क करें और उन्हें अपनी स्थिति के बारे में बताएं। वकील आपके लिए जमानत याचिका तैयार करेगा और उसे अदालत में दायर करेगा। अदालत जमानत याचिका पर सुनवाई करेगी और आरोपी को जमानत देने या न देने का फैसला करेगी। जमानत याचिका में क्या शामिल होना चाहिए: आरोपी का नाम और पत...

किसी स्त्री का अपहरण अथवा विधि विरुद्ध निरुद्ध किसी स्त्री अथवा बालिका का प्रत्यावर्तन कराने के लिये प्रार्थना पत्र किस तरह लिखे ?How to write an application for the return of a woman or girl who has been abducted or detained unlawfully?

अपहारण स्त्रियों को वापस करने के लिये विवश करने की शक्ति:      किसी से स्त्री या अठारह वर्ष से कम आयु की किसी बालिका के किसी विधिविरुद्ध प्रयोजन के लिये अपहरण किये जाने या विधि विरुद्ध निरूद्ध  रखे जाने का शपथ पर परिवाद किये जाने की दशा में जिला मजिस्ट्रेट, उपरखण्ड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट यह आदेश कर सकता है कि उस स्त्री को तुरन्त स्वतंन्त्र किया जाये। या वह बालिका उसके पति माता-पिता संरक्षक या अन्य व्यक्ति को जो उस बालिका का विधिपूर्ण भार साधक है तुरन्त वापस कर दी जाये और ऐसे आदेश का अनुपालन ऐसे बल के प्रयोग द्वारा जैसा आवश्यक हो करा सकता है।   न्यायालय श्रीमान जिला / उपरखण्ड मजिस्ट्रेट, मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी  CrimeNo-xxx/2024      अन्तर्गत धारा 98 द. प्र० सं०                                                 थाना XXXX                          ...

भारत में विधिक व्यवसाय का प्रारंभ कैसे हुआ?How did legal profession start in India?

विधिक व्यवसाय का महत्व : न्याय प्रशासन में अधिवक्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। न्यायाधीशों को सही निर्णय देने में अधिवक्ता सहायता प्रदान करते हैं। अधिवक्ता वाद से सम्बन्धित विधिक सामग्री एकत्रित करके न्यायालय  के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। उपस्थित की गयी सामग्री के आधार पर न्यायाधीश निर्णय देते हैं।       अधिवक्ताओं के अभाव में निर्णय देना न्यायाधीश के लिये एक अलौकिक कार्य से कम नहीं है। न्यायमूर्ति श्री० पी० एन० सप्रू के अनुसार अधिवक्ता के अस्तित्व का उचित आधार यह है कि किसी भी विवाद का प्रत्येक पक्षकार इस स्थिति में होना चाहिये कि वह निष्पक्ष अधिकरण के समक्ष अपने पक्ष को सर्वोत्तम ढंग से और सबसे अधिक प्रभावी ढंग से अपना पक्ष प्रस्तुत कर सके।       वास्तव में विधि बहुत ही जटिल होती है अधिनियमों एवं विनियमों की भाषा प्रायः बहुत ही जटिल होती है। जिसको समझना एक कठिन कार्य से कम नहीं है। इसको समझने के लिये आम नागरिकों को अधिवक्ताओं की मदद लेनी पड़ती है। जहाँ तक अधिवक्ता के सद्‌भाव तथा उचित आचरण का सबन्ध है अधिवक्ता अपने मुवक्किल के हाथो की कठपुतली...

भारत में वकालत कैसे आरम्भ हुई?How did advocacy start in India?

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के न्यायालयों में भी विधि व्यवसाय सुव्यवस्थित नहीं था। कम्पनी की अदालतों के लिये विधि व्यवसाय की नियमित व्यवस्था सर्वप्रथम 1793 के बगाल रेगुलेशन एक्ट II द्वारा की गयी।     इस रेग्युलेशन ने सदर दीवानी अदालत को कपनी की अदालतों के लिये वकीलों की सूचीबद्ध करने का अधिकार दिया। इस रेग्युलेशन के अन्तर्गत केवल हिन्दु और मुसलमान ही वकीलों के रूप में सूचीबद्ध किये जा सकते थे। मद्रास और बंबई के प्रान्तों में भी इसी प्रकार की व्यवस्था की गयी।      1814 के बगाल रेग्युलेशन में भी विधि व्यवसाय को व्यवस्थित करने के लिये कतिपय उपबंध बनाया गया। 1835 के बंगाल रेग्युलेशन द्वारा वकीलों की नियुक्ति के सम्बन्ध में पहले के रेग्युलेशन  में बनाये गये उपबन्ध में कुछ परिवर्तन किया गया । इस रेगुलेशन में निर्धारित योग्यता रखने वाले किसी भी व्यक्ति की उसकी राष्ट्रीयता या धर्म चाहे जो भी हो सदर दीवानी अदालत में वकील के रूप में सूचीबद्ध किये जाने की अनुमति प्रदान कर दी।      लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट 1846 ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी राष्ट्रीयता या धर्म के ...

What is the Bail in Law?

                      Introduction:-  bail is a set of pre trial restrictions that are imposed on a suspect to  ensure that they comply with the judicial process. Bail is the conditional release of a defendant with the promise to appear in court when required .The Code of Criminal procedure 1973 does not defie bail although the terms bailable offence and non- bailable offence have been defined in section 2(a) of the code.   Bailable offence:- A bailable offence is an offence which is shown as  bailable in the first schedule of the code or which is made bailable by any other Law. It is use serious offence.   Non-Bailable offence: It means any other offence. These are serious nature crimes. The police can not grant bails. it can only be granted by a Judicial magestrate / Judge.  Section 436 to 450 Set out the provisions for the grant of bail in criminal cases.   Object of Bail: The provis...

शपथपत्र की drafting कैसे करें?How to draft an affidavit?

न्यायालय श्रीमान प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश महोदय  मु०सं० सं० XXX/2023                     थाना......                                    ABCD आदि बनाम सरकार                       धारा 498 A, 304 B, 504 आई०पी सी व 3/4 डी ०पी० एक्ट                 प्रति शपथपत्र मिनजानिब DCBA पुत्र ARDCA निवासी DABN रोड कस्बा BN थाना CN जिला GN निम्नलिखित है : →      शपथकर्ता कसम खाता व हलफ से निम्नलिखित बमान करता है:  [1] यह कि एफ० आई० आर० प्राम्ट है और हरगिज फर्जी नहीं फंसाना गया है।  [२] यह कि अभियुक्तगण का एक्टिव रोल व पार्ट एसाइन है और अभियुक्तगण मुख्य अभियुक्त है।  [३] यह कि शादी के कुछ दिनों बाद दहेज की मांग को लेकर अभियुक्तों द्वारा जघन्य घटना कि गयी है।  [4.] यह कि मृतका द्वारा प्रताड़ना की सूचना दी जाती रही जिस पर...