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विशेष विवाह अधिनियम 1954 क्या होता है ? यह किस प्रकार से अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाह से सम्बंधित है ?

जजमेंट लेखन की कला (The Art and Skills of Judgment Writing) क्या होती है? उदाहरण के साथ समझाओ।


Note:-

Skills of Judgment Writing” , वह Judicial Training & Research Institute, लखनऊ द्वारा प्रकाशित एक संपूर्ण गाइड है जिसमें जजमेंट लिखने की कला, संरचना, तर्क (reasoning), भाषा, तथा केस लॉ के उदाहरण दिए गए हैं।

Credit goes to:-

(सोर्स Judicial Training & Research Institute, लखनऊ द्वारा )


  • सरल और समझने योग्य भाषा में,

  • उदाहरण सहित विस्तारपूर्वक,

  • तथा जिसमें ड्राफ्टिंग फॉर्मेट, महत्वपूर्ण केस लॉ और पॉइंट-वाइज स्ट्रक्चर सब शामिल हो।

इस ब्लॉग की संरचना इस प्रकार होगी👇


🏛️ ब्लॉग का विषय: जजमेंट लेखन की कला (The Art and Skills of Judgment Writing)

ड्राफ्टिंग स्ट्रक्चर (Blog Outline / Drafting Points):

  1. प्रस्तावना — न्याय का अर्थ और जज का दायित्व

  2. जजमेंट क्या है? (परिभाषा, प्रकार और उद्देश्य)

  3. एक अच्छे जजमेंट की विशेषताएँ

  4. जजमेंट लिखने की संरचना —

    • (i) परिचय भाग

    • (ii) तथ्यों का उल्लेख

    • (iii) विधि और मुद्दे

    • (iv) कानून का प्रयोग

    • (v) निर्णय और आदेश

  5. जजमेंट लेखन में आवश्यक गुण (स्पष्टता, तार्किकता, निष्पक्षता, brevity)

  6. सिविल और क्रिमिनल मामलों में जजमेंट का प्रारूप

  7. Ratio Decidendi और Obiter Dicta क्या होते हैं?

  8. जजमेंट में कारण (Reasoning) का महत्व

  9. सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देश — (जैसे Saheli Leasing Case, Kranti Associates Case आदि)

  10. केस लॉ के उदाहरण सहित व्याख्या

  11. न्यायिक भाषा और लेखन शैली

  12. जजमेंट में नैतिकता, निष्पक्षता और संयम

  13. निष्कर्ष — “स्पष्ट विचार, सरल लेखन”


  • हर बिंदु पर उदाहरण,

  • सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के केस रेफरेंस (जैसे Krishena Kumar v. Union of India, Som Mittal v. Govt. of Karnataka आदि),

  • और अंत में “जजमेंट ड्राफ्टिंग” का एक नमूना प्रारूप (sample format) भी दिया जाएगा।


“जजमेंट लेखन की कला (The Art and Skills of Judgment Writing)” — जो होगा:

  • सरल और रोचक हिंदी में,

  • विस्तृत उदाहरणों, महत्वपूर्ण केस लॉ, और

  • ड्राफ्टिंग फॉर्मेट सहित।

इस ब्लॉग का उद्देश्य होगा कि —
👉 कोई भी लॉ स्टूडेंट, वकील या न्यायिक अधिकारी इस लेख को पढ़कर “जजमेंट लेखन की संपूर्ण कला” को सरलता से समझ सके।



🏛️ भाग 1 : प्रस्तावना — न्याय और जजमेंट लेखन का महत्व

🔹 प्रस्तावना

“न्याय” किसी भी सभ्य समाज की रीढ़ होता है। न्याय केवल दंड या राहत देने का कार्य नहीं है, बल्कि यह समाज में विश्वास, संतुलन और व्यवस्था बनाए रखने का माध्यम है। एक जज का सबसे बड़ा कर्तव्य होता है — न्याय करना और न्याय होते हुए दिखाना।

जज के लिए “जजमेंट” केवल एक आदेश नहीं, बल्कि उसकी विचारधारा, निष्पक्षता और विधिक समझ का प्रतिबिंब होता है। इसलिए जजमेंट लेखन को एक “कला” कहा गया है — The Art of Judgment Writing.

सच कहा है,

“Four things belong to a Judge — to hear courteously, to proceed wisely, to consider soberly and to decide impartially.”
Socrates

यानी एक अच्छे न्यायाधीश को विनम्रता से सुनना, विवेकपूर्वक कार्य करना, गंभीरता से विचार करना और निष्पक्ष रूप से निर्णय लेना चाहिए।

🔹 न्याय का उद्देश्य

न्याय का मूल उद्देश्य है “हर व्यक्ति को उसका उचित अधिकार देना।”
जब जज किसी विवाद या अपराध पर निर्णय देता है, तो वह केवल पक्षकारों के बीच नहीं, बल्कि पूरे समाज के प्रति न्याय करता है।

🔹 जजमेंट की भूमिका

जजमेंट वह दस्तावेज़ है जिसमें न्यायाधीश अपने निर्णय के कारणों को स्पष्ट करता है।
इसमें कानून, तर्क, साक्ष्य और निष्कर्ष — सब कुछ दर्ज होता है ताकि:

  1. पक्षकार यह समझ सकें कि फैसला क्यों हुआ,

  2. उच्च न्यायालय अपील में समीक्षा कर सके, और

  3. समाज में न्यायपालिका पर भरोसा बना रहे।


⚖️ भाग 2 : जजमेंट क्या है? (परिभाषा, प्रकार और उद्देश्य)

🔹 जजमेंट की परिभाषा (Definition)

Code of Civil Procedure, 1908 की धारा 2(9) के अनुसार:

“Judgment” का अर्थ है — वह कथन जो जज द्वारा डिक्री या आदेश के आधार पर दिया गया हो।

अर्थात जजमेंट केवल परिणाम नहीं होता, बल्कि वह “कारणों सहित निर्णय” होता है।

Black’s Law Dictionary के अनुसार:

“A Judgment is the final determination of the rights and obligations of the parties in a case.”

🔹 जजमेंट के प्रकार

  1. Civil Judgment (सिविल निर्णय) – जिसमें संपत्ति, अनुबंध, हक या देयता से जुड़ी बातें होती हैं।

  2. Criminal Judgment (आपराधिक निर्णय) – जिसमें अपराध, दोष और सजा का निर्धारण होता है।

  3. Interlocutory Judgment (अंतरिम निर्णय) – जो मुख्य मुकदमे के बीच में किसी एक मुद्दे पर दिया जाता है।

  4. Final Judgment (अंतिम निर्णय) – जिससे मुकदमे का पूर्ण निपटारा हो जाता है।

🔹 उद्देश्य

जजमेंट का चार प्रमुख उद्देश्य होते हैं (Justice Roslyn Atkinson के अनुसार):

  1. अपने विचारों को स्पष्ट करना,

  2. पक्षकारों को निर्णय के कारण समझाना,

  3. जनता को यह दिखाना कि न्याय हुआ है,

  4. अपीलीय अदालत को निर्णय की समीक्षा में सहायता देना।


🧩 भाग 3 : एक अच्छे जजमेंट की विशेषताएँ

एक “अच्छा जजमेंट” वह होता है जो स्पष्ट, तार्किक, निष्पक्ष और संक्षिप्त हो।
Justice Sabyasachi Mukherjee के शब्दों में —

“Reason is the soul of a judgment.”
यानी, “तर्क ही जजमेंट की आत्मा है।”

आवश्यक गुण:

  1. स्पष्टता (Clarity) – निर्णय और कारण दोनों समझ में आने चाहिए।

  2. संक्षिप्तता (Brevity) – अनावश्यक विस्तार से बचें।

  3. तार्किकता (Reasoning) – हर निष्कर्ष के पीछे ठोस कारण हों।

  4. निष्पक्षता (Impartiality) – कोई व्यक्तिगत पक्षपात न हो।

  5. संतुलित भाषा (Balanced Language) – शब्दों में मर्यादा और गरिमा बनी रहे।

  6. कानूनी आधार (Legal Foundation) – निर्णय कानून और साक्ष्य पर आधारित हो।


🏗️ भाग 4 : जजमेंट की संरचना (Structure of a Judgment)

जजमेंट लिखते समय कुछ निश्चित भागों का पालन किया जाता है — जैसा कि Justice M.M. Corbett (Chief Justice, South Africa) ने सुझाया है:

1️⃣ Introduction (परिचय भाग):

  • पक्षकारों के नाम

  • वाद का स्वरूप (Civil/Criminal)

  • मुकदमे की पृष्ठभूमि

2️⃣ Facts (तथ्य):

  • घटनाओं या विवाद का संक्षिप्त और सटीक विवरण।

  • केवल प्रासंगिक तथ्य लिखे जाएँ।

3️⃣ Law and Issues (कानून और मुद्दे):

  • कौन-कौन से मुद्दे (Issues) तय किए गए हैं।

  • लागू होने वाले कानून, धारा और मिसालें।

4️⃣ Application (कानून का प्रयोग):

  • कानून को तथ्यों पर लागू कर तार्किक विश्लेषण।

  • साक्ष्य की विवेचना और तर्कों की जांच।

5️⃣ Relief and Order (निर्णय और आदेश):

  • अंतिम निष्कर्ष, आदेश और लागत (costs)।

  • आदेश स्पष्ट और स्वयं निष्पादित (self-contained) होना चाहिए।


🔹 Supreme Court ने Joint CIT v. Saheli Leasing & Industries Ltd. (2010) 6 SCC 384 में जजमेंट लेखन के लिए दिशा-निर्देश दिए —

  • निर्णय तथ्यों और कानून से जुड़ा हो,

  • भाषा सरल और गैर-भावनात्मक हो,

  • ज्यादा मिसालें न दें, केवल आवश्यक उद्धृत करें,

  • निर्णय जल्द लिखें (3 महीने के भीतर),

  • किसी समाज या व्यक्ति की भावनाओं को ठेस न पहुँचाएँ।


👉 अब आगे के भागों में हम विस्तार से लिखेंगे:

  • जजमेंट लेखन की तकनीक,

  • Ratio Decidendi और Reasoning का महत्व,

  • केस लॉ के उदाहरण,

  • जजमेंट ड्राफ्टिंग का नमूना,

  • और सुप्रीम कोर्ट द्वारा विकसित सिद्धांत।




🏛️ जजमेंट लेखन की कला

(The Art and Skills of Judgment Writing)


🔹 भाग 2 : न्यायालय में जजमेंट का उद्देश्य और महत्व

न्यायालय केवल विवाद का निपटारा नहीं करता, बल्कि समाज में कानून का शासन स्थापित करता है। न्यायालय के आदेश या निर्णय (Judgment) से न केवल पक्षकारों के अधिकार तय होते हैं, बल्कि वह एक कानूनी मिसाल (Precedent) भी बन जाता है, जिस पर भविष्य के मामले तय किए जाते हैं।

Justice Oliver Wendell Holmes ने कहा था —

“The life of the law has not been logic, it has been experience.”
यानी, कानून का जीवन केवल तर्क नहीं बल्कि अनुभव पर आधारित है।

✳️ जजमेंट का सामाजिक और विधिक महत्व

  1. न्याय की पारदर्शिता:
    एक सुविचारित और स्पष्ट निर्णय यह दर्शाता है कि न्याय केवल किया नहीं गया बल्कि दिखाई भी दिया।

  2. जन-विश्वास की स्थापना:
    जब जनता देखती है कि न्यायालय निष्पक्ष और कारणसहित निर्णय देता है, तो कानून पर विश्वास मजबूत होता है।

  3. कानूनी विकास (Legal Development):
    सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णय Precedent बनकर विधि के विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

  4. अपील की सुविधा:
    जजमेंट में कारण लिखे जाने से ऊपरी अदालत को अपील सुनने में आसानी होती है।


🔹 भाग 3 : Ratio Decidendi और Obiter Dicta

जजमेंट समझने और लिखने के लिए इन दो सिद्धांतों को जानना आवश्यक है —

1️⃣ Ratio Decidendi (निर्णय का कारण)

यह उस मूल कानूनी सिद्धांत को दर्शाता है जिस पर न्यायालय का निर्णय आधारित होता है।
उदाहरण:
यदि किसी केस में अदालत कहती है कि “जो अनुबंध बिना प्रतिफल (consideration) के है, वह अमान्य है” — तो यह उसका ratio decidendi है।

👉 महत्वपूर्ण केस:
Krishena Kumar v. Union of India (AIR 1990 SC 1782)
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा —

“Ratio decidendi को तथ्यों और कानूनी तर्कों के विश्लेषण से समझा जाना चाहिए; जो बातें निर्णय से सीधी जुड़ी नहीं हैं, वे binding नहीं होतीं।”

2️⃣ Obiter Dicta (अतिरिक्त टिप्पणियाँ)

यह वे विचार हैं जो न्यायालय ने मुख्य निर्णय से इतर कहे होते हैं।
ये binding precedent नहीं होते, परंतु भविष्य के मामलों में मार्गदर्शन का कार्य करते हैं।


🔹 भाग 4 : जजमेंट लेखन में Reasoning का महत्व

एक जजमेंट तभी प्रभावी होता है जब उसमें कारण (reasons) स्पष्ट हों।
तर्क (Reasoning) वह सेतु है जो साक्ष्य और निर्णय को जोड़ता है।

⚖️ सुप्रीम कोर्ट के अनुसार:

M/S Kranti Associates Pvt. Ltd. v. Masood Ahmed Khan (2010) 9 SCC 496 में कहा गया —

“Reason is the heartbeat of every conclusion; without reason, it becomes lifeless.”

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना कारण बताए निर्णय देना न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

कारण देने के उद्देश्य:

  1. पक्षकारों को निर्णय की सत्यता समझाने के लिए,

  2. उच्च न्यायालय को समीक्षा में सहायता देने के लिए,

  3. न्याय की निष्पक्षता प्रदर्शित करने के लिए,

  4. मनमानेपन (arbitrariness) से बचने के लिए।


🔹 भाग 5 : जजमेंट लेखन की तकनीक (Techniques of Judgment Writing)

✳️ 1. स्पष्ट संरचना (Structured Writing)

जैसा कि Justice M.M. Corbett ने बताया, एक जजमेंट के छह प्रमुख भाग होते हैं:

  1. Introduction (परिचय) – मुकदमे का स्वरूप और पक्षकारों का विवरण।

  2. Facts (तथ्य) – विवाद से संबंधित आवश्यक तथ्य।

  3. Issues (मुद्दे) – विवाद के प्रमुख प्रश्न।

  4. Law and Analysis (कानूनी विवेचना) – लागू विधियाँ और मिसालें।

  5. Findings (निष्कर्ष) – प्रत्येक मुद्दे पर निर्णय।

  6. Order (आदेश) – अंतिम निष्कर्ष, सजा या राहत।


✳️ 2. संक्षिप्त और स्पष्ट भाषा

जजमेंट की भाषा न अधिक अलंकारिक हो न अत्यधिक तकनीकी।
Justice Sunil Ambwani के अनुसार —

“Brevity, simplicity and clarity are the hallmarks of a good judgment.”

सुझाव:

  • छोटे वाक्य प्रयोग करें।

  • सक्रिय वाच्य (Active Voice) का प्रयोग करें।

  • अनावश्यक कानूनी शब्दजाल से बचें।

उदाहरण:
❌ “The order was passed by the learned trial court.”
✅ “Trial court ने आदेश पारित किया।”


✳️ 3. निष्पक्षता और संयम

जजमेंट में भावनात्मक या व्यंग्यात्मक भाषा से बचें।
Som Mittal v. State of Karnataka (2008) 3 SCC 574 में कहा गया —

“जज को केवल उस विषय तक सीमित रहना चाहिए जो उसके सामने है; नीति या शासन से संबंधित टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।”


🔹 भाग 6 : सिविल और क्रिमिनल जजमेंट का प्रारूप

🧾 (A) सिविल जजमेंट (Civil Case)

Order XX Rule 4(2) CPC के अनुसार:

“हर जजमेंट में केस का संक्षिप्त विवरण, मुद्दे, निर्णय और कारण लिखे जाने चाहिए।”

नमूना प्रारूप:

  1. शीर्षक (Court, Case Number, Parties)

  2. पक्षकारों का विवरण

  3. विवाद का सारांश

  4. मुद्दों की सूची

  5. साक्ष्य का संक्षिप्त उल्लेख

  6. प्रत्येक मुद्दे पर निर्णय व कारण

  7. अंतिम आदेश व लागत


⚖️ (B) क्रिमिनल जजमेंट (Criminal Case)

Section 354 CrPC के अनुसार:

  • अपराध और IPC की धारा का उल्लेख,

  • दोषसिद्धि या बरी किए जाने के कारण,

  • सजा या जुर्माने का विवरण,

  • सजा एकसाथ या अलग-अलग (concurrent/consecutive),

  • यदि बरी किया गया हो तो स्पष्ट आदेश कि अभियुक्त रिहा किया जाए।


🔹 भाग 7 : केस लॉ और उदाहरण

1️⃣ Balraj Taneja v. Sunil Madan (AIR 1999 SC 3381)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजमेंट “स्वयं-स्पष्टीकरण (self-contained)” होना चाहिए; ताकि उसमें विवाद, तथ्य और निष्कर्ष सब एक साथ स्पष्ट हों।

2️⃣ Asst. Commissioner v. Shukla & Brothers (2010) 4 SCC 785

बिना कारण दिए निर्णय देना न्याय के विरुद्ध है। कारण देना प्राकृतिक न्याय का हिस्सा है।

3️⃣ State of Orissa v. Sudhanshu Shekhar Mishra (AIR 1968 SC 647)

निर्णय केवल उसी बात का प्राधिकार होता है जो वास्तव में तय की गई है, न कि हर टिप्पणी का।

4️⃣ K.V. Rami Reddy v. Prema (2009) 17 SCC 308

जजमेंट तब तक पूरा नहीं होता जब तक उसे औपचारिक रूप से लिखित और खुले न्यायालय में सुनाया न जाए।


🔹 भाग 8 : जजमेंट लेखन की नैतिकता

  1. कानूनी ज्ञान से अधिक मानवीय संवेदनशीलता जरूरी है।

  2. भाषा में मर्यादा रखें — कभी भी पक्षकार या गवाह के प्रति अपमानजनक टिप्पणी न करें।

  3. निर्णय तर्कसंगत हो लेकिन दया और करुणा से शून्य न हो।

  4. आलोचना से बचें — खासकर निचली अदालत या वकीलों पर।

Justice R.V. Raveendran के शब्दों में —

“The duty of a judge is to render justice, not to win popularity.”


🔹 भाग 9 : जजमेंट लेखन के स्वर्ण नियम (Golden Rules)

  1. Reasoning को स्पष्ट रखें — हर निष्कर्ष का आधार लिखें।

  2. Clarity को प्राथमिकता दें — भाषा साधारण रखें।

  3. Avoid verbosity — आवश्यकता से अधिक न लिखें।

  4. Neutral रहें — व्यक्तिगत मत या भावना से दूर।

  5. Findings पर Focus करें — विषय से भटकें नहीं।

  6. Case law उद्धरण सीमित रखें — केवल प्रासंगिक निर्णय ही दें।

  7. Self-Contained Judgment — निर्णय स्वतंत्र रूप से समझा जा सके।

  8. Time-bound Writing — सुनवाई के 3 माह में निर्णय अवश्य।

  9. Reason = Soul of Justice.

  10. Justice must not only be done but seen to be done.


🔹 भाग 10 : निष्कर्ष

जजमेंट लेखन केवल तकनीकी कार्य नहीं है — यह “कानून और साहित्य का संगम” है।
एक अच्छा निर्णय वही है जो —

  • तर्क से परिपूर्ण हो,

  • भाषा में स्पष्ट हो,

  • निष्पक्ष हो, और

  • जनता को यह विश्वास दिलाए कि “न्याय जिंदा है।”

“A clear judgment is the mirror of a clear mind.”


📜 नमूना जजमेंट ड्राफ्ट (Sample Civil Judgment Format)

IN THE COURT OF CIVIL JUDGE (JR. DIV.)
___________________________

Case No. : 45/2025
A vs. B

Date of Judgment : 07.10.2025

Present: Shri _________, Civil Judge

1. परिचय  
   वादी द्वारा संपत्ति के कब्जे और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए यह वाद दायर किया गया।

2. तथ्य  
   वादी का कहना है कि संपत्ति उसक़ी स्वामित्व में है और प्रतिवादी ने अतिक्रमण किया।

3. मुद्दे  
   (i) क्या वादी संपत्ति का वैध स्वामी है?  
   (ii) क्या प्रतिवादी ने अवैध अतिक्रमण किया है?  
   (iii) क्या वादी राहत का अधिकारी है?

4. साक्ष्य  
   वादी ने Exhibit-1 से स्वामित्व प्रमाणित किया। प्रतिवादी द्वारा कोई वैध दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया गया।

5. निष्कर्ष  
   सभी मुद्दों पर वादी के पक्ष में निर्णय।

6. आदेश  
   वादी का वाद स्वीकार किया जाता है। प्रतिवादी को अतिक्रमण हटाने और आगे से हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया जाता है।

घोषित दिनांक: 07.10.2025  
(हस्ताक्षर)  
Civil Judge (Jr. Div.)

📚 संदर्भित केस लॉ सूची

क्रमांक केस का नाम वर्ष निर्णय
1 Krishena Kumar v. Union of India 1990 Ratio decidendi का सिद्धांत
2 Saheli Leasing & Industries Ltd. 2010 Judgment guidelines
3 Kranti Associates Pvt. Ltd. 2010 Reason is heartbeat
4 Som Mittal v. State of Karnataka 2008 Judicial restraint
5 Balraj Taneja v. Sunil Madan 1999 Self-contained judgment
6 K.V. Rami Reddy v. Prema 2009 Formal pronouncement
7 State of Orissa v. Sudhanshu Mishra 1968 Scope of precedent

🔹 अंतिम निष्कर्ष

जजमेंट लेखन का सार यही है —

“स्पष्ट सोच, निष्पक्ष दृष्टि और तर्कपूर्ण भाषा।”

यह केवल निर्णय लिखने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि न्याय के दर्शन की अभिव्यक्ति है।
एक अच्छा जजमेंट वह है जो पक्षकारों को संतुष्ट करे, जनता को भरोसा दे और विधि के इतिहास में मिसाल  बन जाए ।

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