अनुसूचित जाति भूमिधर भूमि बिक्री की अनुमति की क्या प्रक्रिया होती है? धारा 98 व Rule 99(8) के अंतर्गत भूमि बिक्री अनुमति की सम्पूर्ण कानूनी प्रक्रिया क्या है?
ब्लॉग ड्राफ्टिंग स्ट्रक्चर (Outline)
-
परिचय: भूमि हस्तांतरण की अनुमति का महत्व – क्यों ज़रूरी है?
-
कानूनी आधार: धारा 98 – U.P. Revenue Code 2006 का सिद्धांत
-
Collector Permission का नियम: Rule 99 (8) का पूरा विवरण
-
SC भूमिधर के अधिकार व प्रतिबंध: धारा 98 की व्याख्या सरल भाषा में
-
Ramautar Case का तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
-
Collector द्वारा आवेदन खारिज किए जाने का कारण
-
High Court का विचार व निर्णय
-
“OR” vs “And” का कानूनी मतलब – अदालत की व्याख्या
-
Explanation to Rule 99(8) का महत्व – कैसे लचीलापन दिया गया
-
संबंधित महत्वपूर्ण केस-लॉ:
-
Bajrangi vs State of U.P. (2023 ADJ 598)
-
Sitaram vs State of U.P. (2022 ADJ 90)
-
Smt. Omwati vs Collector Pilibhit (2023 ADJ 280)
-
Krishna Shri Gupta Case – “Or” की व्याख्या
-
-
इस फैसले से क्या कानूनी सिद्धांत निकले
-
सरल उदाहरण से समझें – जैसे बीमार भूमिधर का मामला
-
Collector के लिए Guidelines – कब अनुमति देनी चाहिए
-
सामाजिक व आर्थिक पहलू: SC भूमिधरों की सुरक्षा का संतुलन
-
आम व्यक्ति के लिए निष्कर्ष – अगर आपको भूमि बेचना है तो क्या करें
-
FAQs: आम प्रश्न जवाब
-
निष्कर्ष (Conclusion)
-
Reference List (केस-लॉ + धारा + Rules)
🏛️ Ramautar vs State of U.P. (2025): अनुसूचित जाति के भूमिधरों द्वारा भूमि हस्तांतरण की कानूनी प्रक्रिया – पूरी जानकारी उदाहरण सहित
🪶 भाग 1: परिचय – भूमि हस्तांतरण अनुमति क्यों ज़रूरी है?
भारत में भूमि सिर्फ संपत्ति नहीं बल्कि आजीविका, सम्मान और सामाजिक पहचान का प्रतीक मानी जाती है। विशेषकर अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) वर्ग के लोगों के लिए यह उनकी आर्थिक सुरक्षा की रीढ़ होती है।
लेकिन समय-समय पर सामाजिक या आर्थिक मजबूरियों के कारण भूमि बेचने या स्थानांतरित करने की आवश्यकता भी पड़ती है — जैसे बीमारी, शिक्षा, कर्ज़, या परिवारिक आवश्यकताएँ।
इसी कारण राज्य सरकारों ने यह व्यवस्था की है कि अनुसूचित जाति के भूमिधर (bhumidhar) यदि अपनी भूमि किसी गैर-अनुसूचित जाति व्यक्ति को बेचना चाहते हैं, तो उन्हें पहले Collector (जिला अधिकारी) से लिखित अनुमति (Permission under Section 98 of U.P. Revenue Code, 2006) लेनी होगी।
इस व्यवस्था का उद्देश्य है —
-
कमजोर वर्गों की भूमि को बेइमानी से छीने जाने से बचाना,
-
सामाजिक समानता बनाए रखना,
-
और यह सुनिश्चित करना कि भूमिधर आर्थिक संकट में न फँसे।
⚖️ भाग 2: कानूनी ढांचा – धारा 98, U.P. Revenue Code 2006
धारा 98 (Section 98) कहती है कि कोई भी अनुसूचित जाति का भूमिधर अपनी भूमि किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं बेच सकता जो अनुसूचित जाति का न हो, जब तक कि उसे Collector की पूर्व अनुमति न मिल जाए।
यह अनुमति “in writing” दी जाती है, और यह एक कानूनी प्रक्रिया के तहत होती है। यदि यह अनुमति नहीं ली जाती, तो—
ऐसी बिक्री अमान्य (void) मानी जाती है (Section 104 के अनुसार),
और राज्य उस भूमि को कब्जे में लेने का अधिकार रखता है (Section 105)।
📜 भाग 3: Collector Permission की प्रक्रिया – Rule 99(8), 2016 के अनुसार
U.P. Revenue Code Rules, 2016 के Rule 99(8) में Collector द्वारा अनुमति देने की प्रक्रिया और शर्तें तय की गई हैं।
Collector तभी अनुमति देगा जब इनमें से कोई एक शर्त पूरी होती हो:
(a) भूमिधर के पास कोई उत्तराधिकारी (heir) नहीं है,
(b) भूमिधर किसी दूसरे ज़िले या राज्य में बस गया है (नौकरी, व्यापार आदि कारणों से),
(c) भूमिधर या परिवार का कोई सदस्य गंभीर बीमारी से पीड़ित है और इलाज के लिए पैसे की आवश्यकता है,
(d) भूमि बेचने के बाद भी उसके पास 1.26 हेक्टेयर से कम भूमि नहीं बचेगी,
(e) बिक्री की कीमत Collector द्वारा तय किए गए सर्किल रेट से कम नहीं होगी।
Note:- यानि अगर इन पाँच में से कोई एक भी शर्त पूरी हो, तो Collector को अनुमति देनी चाहिए।
🧩 भाग 4: केस का पृष्ठभूमि (Ramautar vs State of U.P., 2025)
इस केस में रामऔतर @ रामअवतार नामक व्यक्ति अनुसूचित जाति से थे।
वे बुलंदशहर ज़िले के निवासी थे और उनके पास कृषि भूमि थी — जो उन्होंने 2011 में विधिवत रजिस्ट्री द्वारा खरीदी थी।
🔹 समस्या:
रामऔतर को गंभीर बीमारी (Hepatitis B) थी।
इलाज के लिए धन की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने Collector के पास आवेदन किया कि उन्हें अपनी ज़मीन एक गैर-एससी व्यक्ति को बेचने की अनुमति दी जाए।
🔹 प्रक्रिया:
-
तहसीलदार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि रामऔतर वास्तव में बीमार हैं, इसलिए अनुमति दी जा सकती है।
-
परंतु उप-जिलाधिकारी (SDM) ने विपरीत राय दी कि यह भूमि पहले लीज़ (lease) पर दी गई थी, इसलिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
-
Collector ने 23.11.2024 को आवेदन खारिज कर दिया यह कहते हुए कि “यदि बिक्री हुई तो रामऔतर भूमिहीन हो जाएंगे।”
-
बाद में Commissioner, मेरठ ने 03.07.2025 को पुनरीक्षण भी खारिज कर दिया।
⚖️ भाग 5: याचिका और हाईकोर्ट का दृष्टिकोण
रामऔतर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिट याचिका (Writ – C No. 35385/2025) दायर की।
न्यायमूर्ति डॉ. योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने इस मामले की गहराई से सुनवाई की।
याचिकाकर्ता का पक्ष:
-
Collector ने बिना कारण के आवेदन खारिज कर दिया।
-
रिपोर्ट में कहीं नहीं लिखा कि बिक्री के बाद रामऔतर भूमिहीन हो जाएंगे।
-
Collector और Commissioner ने बिना तथ्यों के निर्णय दिया।
-
Rule 99(8) में यह साफ है कि किसी एक भी शर्त के पूरे होने पर अनुमति दी जा सकती है।
📚 भाग 6: अदालत का विश्लेषण – "OR" बनाम "AND" का अर्थ
यहाँ अदालत ने सबसे महत्वपूर्ण बिंदु पर प्रकाश डाला —
Rule 99(8) में जो पाँच शर्तें हैं, वे ‘or’ (या) शब्द से जुड़ी हैं, ‘and’ (और) से नहीं।
इसका अर्थ है कि Collector को सभी शर्तों के पूरे होने की ज़रूरत नहीं है;
अगर किसी एक शर्त (जैसे बीमारी) के आधार पर आवेदन किया गया है, तो वही पर्याप्त है।
न्यायालय ने कहा:
“‘OR’ शब्द का अर्थ है विकल्प (alternative)।
इसलिए यदि कोई एक भी शर्त पूरी हो जाए तो Collector को अनुमति देने का अधिकार और दायित्व दोनों है।”
⚖️ भाग 7: Explanation to Rule 99(8) – एक महत्वपूर्ण लचीलापन
Rule 99(8) के साथ एक “Explanation” (व्याख्या) जुड़ी है।
यह कहती है कि यदि भूमिधर की भूमि बिक्री के बाद 1.26 हेक्टेयर से कम रह जाती है (Clause d पूरा नहीं होता),
फिर भी यदि अन्य किसी शर्त (a, b, c) पूरी होती है — तो अनुमति दी जा सकती है।
इसका मतलब:
👉 यदि भूमिधर बीमार है (Clause c) और इलाज के लिए पैसा चाहिए,
तो Collector को “भूमिहीन होने” का बहाना बनाकर मना नहीं करना चाहिए।
🧾 भाग 8: न्यायालय का निष्कर्ष (Judgment Summary)
-
Collector और Commissioner दोनों के आदेश मनमाने, यांत्रिक और तथ्यहीन थे।
-
उन्होंने Rule 99(8) की व्याख्या को गलत समझा।
-
न्यायालय ने दोनों आदेश रद्द कर दिए।
-
मामला पुनः Collector को भेजा गया ताकि वह नया आदेश दे,
और यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता की स्थिति Clause (c) में फिट बैठती है।
🔹 अदालत ने कहा:
“Collector को चाहिए कि वह प्रत्येक आवेदन में Rule 99(8) की सभी शर्तों का स्वतंत्र रूप से परीक्षण करे,
और यदि कोई एक शर्त भी पूरी हो, तो अनुमति देने से इनकार नहीं किया जा सकता।”
📖 भाग 9: महत्वपूर्ण केस-लॉ जिनका हवाला दिया गया
1️⃣ Bajrangi vs State of U.P. (2023) 7 ADJ 598
इस केस में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Rule 99(8) की शर्तें “Alternative” हैं, न कि “Cumulative”।
Collector केवल एक शर्त पूरी होने पर भी अनुमति दे सकता है।
2️⃣ Sitaram vs State of U.P. (2022) 5 ADJ 90
Collector को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्णय केवल कानूनी शर्तों पर आधारित हो,
न कि किसी बाहरी या असंबंधित कारण पर।
3️⃣ Smt. Omwati vs Collector, Pilibhit (2023) 1 ADJ 280
Collector द्वारा बिना सुनवाई के निर्णय लेना न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
प्रत्येक आवेदन पर वस्तुनिष्ठ (objective) जांच आवश्यक है।
4️⃣ Krishna Shri Gupta vs State of U.P. (2020) 3 ADJ 358
इस निर्णय में ‘or’ शब्द की व्याख्या की गई थी कि इसे disjunctive sense में पढ़ा जाना चाहिए,
यानि विकल्प के रूप में, न कि “सभी शर्तें एक साथ”।
👨🌾 भाग 10: एक उदाहरण से समझिए
मान लीजिए —
श्री मोहनलाल एक अनुसूचित जाति भूमिधर हैं।
वे गंभीर रूप से बीमार हैं और इलाज के लिए पैसों की आवश्यकता है।
उनके पास 1 हेक्टेयर जमीन है।
अगर वे Collector के पास आवेदन करते हैं कि वे जमीन का कुछ हिस्सा बेचना चाहते हैं —
तो Collector को Rule 99(8)(c) के तहत अनुमति देनी चाहिए,
भले ही मोहनलाल के पास बिक्री के बाद 1.26 हेक्टेयर से कम भूमि बचती हो।
क्योंकि Clause (c) पूरा हो रहा है — बीमारी के इलाज हेतु बिक्री।
यह वही स्थिति है जो रामऔतर केस में थी।
📋 भाग 11: Collector के लिए अदालत की दिशा-निर्देश
-
Collector को प्रत्येक आवेदन Rule 99(8) के तहत जांचना चाहिए।
-
यदि कोई एक शर्त (a–e) पूरी होती है, तो अनुमति देने से मना नहीं किया जा सकता।
-
"भूमिहीन होने" का कारण स्वतः मना करने का आधार नहीं है।
-
रिपोर्ट (Tehsildar/SDM) को वस्तुनिष्ठ रूप से पढ़ना आवश्यक है।
-
निर्णय देते समय Collector को “reasons recorded in writing” देना चाहिए।
🌾 भाग 12: सामाजिक दृष्टिकोण से महत्व
यह कानून अनुसूचित जाति के भूमिधरों की भूमि को अनधिकृत कब्जे या शोषण से बचाने के लिए बना है।
परंतु कानून को इतना कठोर नहीं होना चाहिए कि जरूरतमंद व्यक्ति अपनी कठिन परिस्थिति में भी अपनी संपत्ति का उपयोग न कर सके।
Ramautar केस ने यह संतुलन स्थापित किया —
👉 कानून सुरक्षा देता है, पर ज़रूरत के समय संवेदनशील भी होना चाहिए।
📌 भाग 13: आम जनता के लिए सलाह
अगर आप अनुसूचित जाति के भूमिधर हैं और अपनी भूमि बेचना चाहते हैं:
-
आवेदन RC Form-27 में Collector को दें।
-
बीमारी या अन्य कारण के प्रमाण (Medical Certificate, Sale Agreement आदि) संलग्न करें।
-
तहसीलदार की रिपोर्ट पर ध्यान दें।
-
यदि Collector मना करे — तो Revisional Authority (Commissioner) के पास अपील कर सकते हैं।
-
अंत में High Court में रिट याचिका दायर की जा सकती है।
💬 भाग 14: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1. क्या अनुसूचित जाति व्यक्ति बिना अनुमति के भूमि बेच सकता है?
❌ नहीं, धारा 98(1) के अनुसार Collector की पूर्व अनुमति आवश्यक है।
Q2. अगर Collector मना कर दे तो क्या करें?
➡️ आप Section 210 के तहत Commissioner के पास पुनरीक्षण दाखिल कर सकते हैं।
Q3. Collector किन शर्तों पर अनुमति दे सकता है?
✔ बीमारी, रोजगार, अन्य ज़िले में निवास, उत्तराधिकारी न होना, या भूमि सीमा नियम पूरा होना।
Q4. क्या बीमारी का मेडिकल प्रमाण पत्र आवश्यक है?
✔ हाँ, Specialist Doctor का प्रमाण पत्र जरूरी होता है।
Q5. अगर Collector का आदेश मनमाना लगे तो क्या High Court जा सकते हैं?
✔ बिल्कुल। जैसा कि Ramautar केस (2025) में हुआ।
📘 भाग 15: निष्कर्ष (Conclusion)
Ramautar vs State of U.P. (2025) एक महत्वपूर्ण फैसला है जिसने स्पष्ट किया कि –
Collector अनुमति देने से मना नहीं कर सकता यदि Rule 99(8) की किसी एक शर्त का पालन होता है।
यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टि से बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।
इससे प्रशासन को यह संदेश गया कि कानून का उद्देश्य प्रतिबंध नहीं बल्कि संरक्षण है।
भूमिधर की परिस्थिति को संवेदनशीलता से समझना प्रशासन का कर्तव्य है।
⚖️ संदर्भ सूची (References)
-
U.P. Revenue Code Rules, 2016 – Rule 99(8)
-
Ramautar @ Ramavtar vs State of U.P. (Writ-C No. 35385/2025)
🟢 अंतिम बात:
यह ब्लॉग किसी भी अनुसूचित जाति भूमिधर को यह समझाने के लिए पर्याप्त है कि —
भूमि हस्तांतरण की अनुमति कैसे ली जाए, कब Collector अनुमति देगा,
और अगर मना कर दे तो क्या कानूनी उपाय हैं।
🏷️
📝
🔑
💬 FAQs | |
---|---|
इस तरह के मामलों से सम्बंधित कुछ प्रश्नों को ध्यान में रखकर समझाया गया है । जिससे आप को इस तरह के मामलों की जानकारी और आसान हो सके। | |
❓1. Ramautar vs State of U.P. (2025) केस क्या है?
Answer :- यह इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला है जिसमें अनुसूचित जाति भूमिधर द्वारा भूमि बिक्री की अनुमति (Section 98) को लेकर Collector द्वारा मनमाने ढंग से इनकार करने पर न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि Rule 99(8) की किसी एक शर्त का पालन होता है, तो Collector को अनुमति देनी चाहिए।
❓2. धारा 98 U.P. Revenue Code, 2006 क्या कहती है?
Answer:- कोई भी अनुसूचित जाति भूमिधर अपनी भूमि किसी गैर-अनुसूचित जाति व्यक्ति को बिना Collector की पूर्व अनुमति के नहीं बेच सकता। बिना अनुमति बिक्री अवैध मानी जाती है।
❓3. Rule 99(8) के तहत कौन-कौन सी शर्तें होती हैं?
Answer :- (a) उत्तराधिकारी न होना
(b) दूसरे ज़िले/राज्य में निवास करना
(c) गंभीर बीमारी के इलाज हेतु बिक्री
(d) भूमि 1.26 हेक्टेयर से कम न बचे
(e) बिक्री सर्किल रेट से नीचे न हो
इनमें से कोई एक भी शर्त पूरी होने पर Collector को अनुमति देनी चाहिए।
❓4. अगर Collector आवेदन खारिज कर दे तो क्या उपाय है?
Answer:- आप Section 210 के तहत Commissioner के पास Revision (पुनरीक्षण) दाखिल कर सकते हैं।
अगर वहाँ से भी राहत न मिले, तो High Court में Writ Petition दायर कर सकते हैं।
❓5. इस केस से क्या सीख मिलती है?
Answer:- कानून का उद्देश्य संरक्षण है, प्रतिबंध नहीं।
यदि भूमिधर वास्तव में किसी वैध कारण से (जैसे बीमारी) भूमि बेचना चाहता है, तो Collector को अनुमति देने से इनकार नहीं करना चाहिए।
❓6. क्या बीमारी के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट देना ज़रूरी है?
Answer:- हाँ, गंभीर बीमारी के आधार पर आवेदन करते समय Specialist Doctor का प्रमाण पत्र संलग्न करना अनिवार्य है।
❓7. क्या Collector “भूमिहीन हो जाने” के आधार पर अनुमति मना कर सकता है?
Answer:- नहीं। अगर Rule 99(8)(a–c) में से कोई शर्त पूरी होती है तो Explanation के अनुसार Collector को अनुमति देनी ही होगी।
❓8. यह निर्णय अनुसूचित जाति किसानों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
Answer:- क्योंकि यह फैसला संतुलन बनाता है — भूमि सुरक्षा और मानवीय आवश्यकताओं दोनों को ध्यान में रखता है।
इससे Collector के निर्णयों में पारदर्शिता और न्यायसंगतता सुनिश्चित होती है।
Comments
Post a Comment