इस ब्लॉग पोस्ट में दीनानाथ सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के 2025 के महत्वपूर्ण न्यायालय फ़ैसले को सरल हिंदी में बताया जा रहा है, जिसमें सभी मुख्य केस लॉ (उदाहरण, सुप्रीम कोर्ट के फैसले) और मूल अधिकार के बिंदुओं का उल्लेख किया गया है ताकि आम आदमी भी इस कानूनी प्रक्रिया को आसानी से समझ सके।
शीर्षक: "समय-सीमा और अपील का अधिकार: न्यायालय के आदेश का सरल विश्लेषण"🧑🎓
भूमिका
क्या होता है जब किसी सरकारी अपीलीय अदालत में कोई अपील तय समय-सीमा (limitation period) के बाद दायर की जाती है? क्या अदालत उस अपील को सुन सकती है, या अपील पूरी तरह अमान्य हो जाती है? इसी सवाल का जवाब देती है – "दीनानाथ सिंह व अन्य बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य" केस की निर्णायक जजमेंट।
केस की पृष्ठभूमि
🦸♂️ दीनानाथ सिंह के पिता ने विवादित ज़मीन के सीमांकन के लिए उपजिलाधिकारी के समक्ष 1 सितम्बर 2017 को आवेदन किया।
🦸♂️उक्त आदेश के खिलाफ विरोधी पक्ष ने बिना नोटिस के पारित आदेश को चुनौती दी, लेकिन रिकॉल अर्जी खारिज हो गई।
🦸♂️ आगे चलकर उपजिलाधिकारी ने सीमांकन आदेश पारित किया, जिसे विरोधी पक्ष (उत्तरदाता) ने लगभग 10 महीने बाद 12 अप्रैल 2023 को अपीलीय न्यायालय (अपर आयुक्त) के समक्ष चुनौती दी।
🦸♂️ इस अपील के साथ समय-सीमा से देरी माफ करने की अर्जी और शपथपत्र भी लगाया गया, लेकिन अपीलीय न्यायालय ने बिना औपचारिक देरी माफ किए, अपील को स्वीकार कर लिया; अंतरिम आदेश (status quo) भी दे दिया।
याचिकाकर्ता/पक्षकार की आपत्तियाँ
🦸♂️ याचिकाकर्ता की आपत्ति थी कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 244 के तहत अपील सिर्फ 30 दिन के भीतर की जा सकती है। दस माह बाद की गई अपील बिना इल्ज़ाज़त के स्वीकार नहीं की जा सकती।
🦸♂️ उन्होंने बताया कि देरी माफी पर कोर्ट का विशेष आदेश ज़रूरी है, वरना अपील सुनवाई योग्य नहीं होती।
अदालत का निर्णय और कानूनी कसौटी
🦸♂️निर्णय में न्यायालय ने इस बात को साफ किया कि जब अपील लेट (समय से बाहर) हो, तो कोर्ट को सबसे पहले "देरी माफ़ी" (condonation of delay) पर फैसला करना ज़रूरी है, उसके बाद ही केस की मेरिट (गुण-दोष) पर जा सकते हैं।
यदि देरी माफ नहीं हुई, तो अपील का कोई कानूनी अस्तित्व नहीं और अदालत को उसपर सुनवाई का अधिकार नहीं।
संदर्भित सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालय के फैसले (मुख्य केस लॉ)🧑⚖️
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, विशुद्ध कानूनी सवाल या अधिकार क्षेत्र में त्रुटि हो तो वैकल्पिक उपाय (alternative remedy) की उपलब्धता भी उच्च न्यायालय को 226 के तहत याचिका सुनने से नहीं रोकती।
एप्लिकेशन फॉर कंडोनेशन ऑफ डिले (देरी माफी अर्जी) को बहुत गंभीरता से, पूर्ण कारण के साथ देखा जाना चाहिए; न कि सिर्फ टेक्निकल तरीके से स्वीकार या खारिज किया जाना चाहिए।
3. Whirlpool Corporation बनाम Registrar of Trade Marks
उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मामूली तकनीकी आधार नहीं, बल्कि अधिकार क्षेत्र की कमी, प्रकृति न्याय का उल्लंघन या संवैधानिक सवाल हों तो अपवादस्वरूप सीधे 226 में हस्तक्षेप किया जा सकता है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया, जब तक देरी माफ नहीं की जाती, कोई मध्यवर्ती आदेश (जैसे अंतरिम राहत) भी अवैध मानी जाएगी।
5. Anil Kumar Nigam बनाम राज्य उत्तर प्रदेश
दिखाया गया कि बिना देरी माफ़ी के, अपील में कोई भी कार्यवाही (जैसे स्थगन आदेश) अवैध होगी।
उदाहरण से समझें: 🧑⚖️
मान लीजिए –
रामलाल जी को सीमांकन विवाद है। कोर्ट ने फैसला रामलाल के पक्ष में कर दिया। श्यामलाल ने 1 साल बाद अपील कर दी, जबकि कानून में सिर्फ 30 दिन का समय मिलता है। श्यामलाल ने तो आवेदन पत्र के साथ "देरी माफ़ी" की अर्जी लगाई, मगर अदालत ने बिना इस पर राय दिए, पूरी सुनवाई करके आदेश जारी कर दिया। यह पूरी प्रक्रिया नियमों के खिलाफ है। पहले देरी जायज़ है या नहीं, इसपर सुनवाई/आदेश होगा, फिर केस की मेरिट (गुण-दोष) पर फैसला होगा।
इस फैसले का महत्व🧑⚖️
• कोई भी अपील यदि तय समय से बाद में दाखिल हो, तो अदालत पहले देरी माफ़ी की मांग की वैधता पर ही फैसला देगी।
• ऐसा न करने पर, किया गया आदेश कानून की नजर में शून्य (void) होगा और बड़ी अदालत इसमें दखल दे सकती है।
• यह एक मिसाल है कि "न्याय" केवल मेरिट पर नहीं, बल्कि प्रक्रिया और समय-सिमा के सख्त पालन के साथ ही मिलता है।
निष्कर्ष🦸♂️
यह फैसला बताता है कि कोर्ट की कार्यवाही प्रक्रिया के हर चरण का पालन करती है। वादी-विवादी या आम नागरिक (reader) को चाहिए कि अपनी वादियों या अपील में समय-सीमा का विशेष ध्यान रखें। यदि कभी देर हो जाए, तो न्यायालय में सशक्त और प्रमाणित कारण बताएं और इंतजार करें कि कोर्ट सबसे पहले सिर्फ इसी सवाल पर विचार करेगा।
👨🏻⚖️आम आदमी के लिए सलाह
• जब भी कोर्ट में ऑर्डर का विरोध या अपील करनी हो, अपने वकील से पूछें – क्या समय-सीमा बीते तो देरी माफ़ी आवेदन और उसका सबूत लगाया गया?
• कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए ही न्याय की उम्मीद करें; शॉर्टकट या कमजोरी से फैसला उलट सकता है।
यह ब्लॉग पोस्ट आम नागरिक की समझ के अनुकूल, केस लॉ आधारित और पूरी तरह यूनिक तथा कॉपीराइट मुक्त है। इसमें दी गई जानकारी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा स्थापित नियमों पर आधारित है।
👨⚖️ Download PDF
Comments
Post a Comment