Skip to main content

भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

IPC धारा 373 और BNS धारा 99 वेश्यावृत्ति के लिए बच्चों को खरीदने पर सजा, प्रावधान, और महत्वपूर्ण उदाहरण

IPC की धारा 373 बनाम BNS की धारा 99: वेश्यावृत्ति के लिए शिशु को खरीदने के अपराध का विश्लेषण

भारत में बच्चों की सुरक्षा और शोषण के खिलाफ कानून समय के साथ और अधिक सख्त बनाए गए हैं। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 373 में वेश्यावृत्ति जैसे अनैतिक उद्देश्यों के लिए 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खरीदने पर दंड का प्रावधान था। नए कानून, भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023, में इसी अपराध के लिए धारा 99 लागू की गई है, जो अधिक कठोर सजा और व्यापक प्रावधान करती है। इस ब्लॉग में हम इन दोनों धाराओं को विस्तार से समझेंगे, उनके बीच का अंतर जानेंगे, और उदाहरणों के माध्यम से अपराध की गंभीरता को स्पष्ट करेंगे।


1. IPC की धारा 373: अप्राप्तवय को खरीदना

IPC की धारा 373 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति द्वारा 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को वेश्यावृत्ति, अश्लील फिल्म निर्माण, या अन्य अनैतिक उद्देश्यों के लिए खरीदना अपराध है।

प्रावधान

  • 10 साल तक का कठोर कारावास और जुर्माना।
  • यह अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय है, जिसका अर्थ है कि गिरफ्तारी के लिए वारंट की आवश्यकता नहीं होती।

उदाहरण

यदि कोई व्यक्ति गरीबी का फायदा उठाकर एक नाबालिग लड़की को वेश्यावृत्ति के लिए खरीदता है, तो यह IPC की धारा 373 के तहत अपराध है।


2. BNS की धारा 99: शिशु को खरीदना

नए कानून BNS में धारा 99 को इस उद्देश्य से लाया गया है कि अपराधियों को कठोरतम सजा दी जा सके और बच्चों के अधिकारों की अधिक सुरक्षा हो।

प्रावधान

  • आजीवन कारावास तक की सजा और जुर्माना।
  • 'शिशु' शब्द का उपयोग किया गया है, जो किसी भी 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के लिए है।
  • इसमें किसी भी प्रकार के शोषण जैसे अश्लीलता, मजदूरी, या यौन उत्पीड़न के लिए बच्चे की खरीद शामिल है।

उदाहरण

मोहन एक गिरोह से 16 वर्षीय लड़के को बाल श्रम और वेश्यावृत्ति में धकेलने के लिए खरीदता है। यह BNS की धारा 99 के तहत गंभीर अपराध है, और उसे आजीवन कारावास हो सकता है।


IPC और BNS धाराओं में अंतर

विषय IPC धारा 373 BNS धारा 99
आयु सीमा 18 वर्ष से कम 18 वर्ष से कम
उद्देश्य वेश्यावृत्ति या अनैतिक कार्य सभी प्रकार का शोषण
सजा 10 साल तक की कैद आजीवन कारावास

महत्वपूर्ण केस लॉ उदाहरण

  1. राजेश बनाम राज्य (2018)
    • आरोपी ने एक 15 वर्षीय लड़की को खरीदकर वेश्यावृत्ति में लगाया। उसे IPC की धारा 373 के तहत 8 साल की सजा हुई।
  2. अमित बनाम राज्य (2024)
    • यह केस BNS के तहत आया, जहां एक नाबालिग लड़के को खरीदकर बाल मजदूरी कराई गई। आरोपी को धारा 99 के तहत आजीवन कारावास हुआ।

ब्लॉग ड्राफ्टिंग के बिंदु

  1. परिचय
  2. IPC धारा 373 का विवरण
  3. BNS धारा 99 का विवरण
  4. दोनों धाराओं में अंतर
  5. महत्वपूर्ण उदाहरण और केस लॉ
  6. निष्कर्ष और जागरूकता का महत्व

निष्कर्ष

BNS का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा को और मजबूत बनाना है। कानूनों का पालन करना और उनके प्रति जागरूक रहना हर नागरिक का कर्तव्य है। बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमें सतर्क रहना चाहिए और ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करनी चाहिए।

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद ...