Skip to main content

भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

भारत की जेलों में जाति आधारित भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: एक विस्तृत विश्लेषण

भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में जेलों में जाति आधारित भेदभाव को असंवैधानिक घोषित करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। यह निर्णय न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने दिया। यह फैसला भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17, 21 और 23 के सिद्धांतों पर आधारित है, जो समानता, भेदभाव के निषेध और मानवीय गरिमा की रक्षा की गारंटी देते हैं।

मुद्दा क्या था?

यह मामला तब सामने आया जब पत्रकार सुकन्या शांता ने "From Segregation to Labour: Manu Caste Law Governs the Indian Prison System" नामक एक लेख प्रकाशित किया। इस लेख में उन्होंने भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव के कड़वे सच को उजागर किया।

उनके लेख में सामने आए प्रमुख तथ्य:

  1. शारीरिक श्रम का जातिगत विभाजन:

    • उच्च जाति के कैदियों को हल्के कार्य (जैसे पुस्तकालय प्रबंधन, रिकॉर्ड कीपिंग) दिए जाते हैं।
    • निचली जातियों के कैदियों को कठिन शारीरिक श्रम (जैसे सफाई, टॉयलेट साफ करना) करवाया जाता है।
  2. जेल बैरकों का जातिगत पृथक्करण:

    • उच्च जातियों के कैदियों को साफ-सुथरे और बेहतर सुविधाओं वाले बैरकों में रखा जाता है।
    • अनुसूचित जाति और जनजाति के कैदियों को खराब स्थिति वाले बैरकों में रखा जाता है।
  3. अधिसूचित जनजातियों और हाशिए पर पड़े समुदायों के साथ भेदभाव:

    • कुछ समुदायों के कैदियों को "आदतन अपराधी" मानकर उनके साथ कठोर व्यवहार किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका क्यों दाखिल की गई?

सुकन्या शांता ने अपनी जाँच के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की, जिसमें उन्होंने जेल मैन्युअल में जातिगत भेदभाव वाले प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की।

याचिका के मुख्य तर्क:

  • जेलों में जातिगत भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव का निषेध), 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन), 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) और 23 (जबरन श्रम का निषेध) का उल्लंघन करता है।
  • यह भेदभाव समाज में व्याप्त जातिगत पूर्वाग्रहों को और सशक्त करता है।
  • कैदियों को जाति के आधार पर श्रम आवंटित करना उनकी गरिमा और मूलभूत अधिकारों का हनन है।

राज्य सरकार का तर्क क्या था?

राज्य सरकार ने अपने बचाव में तर्क दिया कि:

  • सामुदायिक झड़पों को रोकने के लिए यह व्यवस्था आवश्यक है।
  • खासकर तमिलनाडु के तिरुनेलवेली और तूतीकोरिन जिलों में जातिगत हिंसा की संभावना को देखते हुए यह नीति अपनाई गई थी।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को सिरे से खारिज कर दिया।


सुप्रीम कोर्ट का फैसला: जातिगत भेदभाव असंवैधानिक है

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा:

  1. "अलग लेकिन समान" सिद्धांत का खंडन:

    • सुप्रीम कोर्ट ने अलग लेकिन समान (Separate but Equal) सिद्धांत को खारिज करते हुए कहा कि यह विचारधारा संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
    • जेल में कैदियों को जाति के आधार पर अलग रखना अस्वीकार्य है।
  2. संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन:

    • अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) का उल्लंघन।
    • अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) के तहत जाति आधारित भेदभाव अस्वीकार्य है।
    • अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 23 (जबरन श्रम का निषेध) का उल्लंघन।
  3. जातिगत भेदभाव से गरिमा का हनन:

    • किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति के आधार पर अपमानजनक श्रम के लिए विवश करना उसकी मानवीय गरिमा का सीधा उल्लंघन है।
  4. जेलों में गैर-भेदभावपूर्ण विकल्पों की आवश्यकता:

    • कोर्ट ने कहा कि अनुशासन बनाए रखने के लिए जातिगत अलगाव जरूरी नहीं है।
    • जेल अधिकारियों को गैर-भेदभावपूर्ण विकल्प अपनाने चाहिए।

कोर्ट ने दिए ये महत्वपूर्ण निर्देश:

  1. जातिगत श्रम विभाजन समाप्त किया जाए।
  2. सभी कैदियों को समान सुविधाएं दी जाएं।
  3. जातिगत बैरक विभाजन पूरी तरह बंद किया जाए।
  4. जेल अधिकारियों को संवेदनशीलता और समानता का प्रशिक्षण दिया जाए।
  5. मानवाधिकार आयोग को समय-समय पर जेलों का निरीक्षण करना चाहिए।

उदाहरणों के माध्यम से समझें:

उदाहरण 1:
रामलाल और सुरेश एक ही जेल में बंद हैं। रामलाल (ऊंची जाति) को जेल की लाइब्रेरी मैनेज करने की जिम्मेदारी दी गई, जबकि सुरेश (निचली जाति) को जेल की सफाई और टॉयलेट साफ करने का काम सौंपा गया।
→ सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार का कार्य आवंटन संविधान के खिलाफ है।

उदाहरण 2:
पलायमकोट्टई जेल (तमिलनाडु) में अनुसूचित जाति के कैदियों को खराब बैरकों में रखा गया, जबकि उच्च जातियों के कैदियों को बेहतर बैरकों में।
→ यह व्यवहार भी असंवैधानिक घोषित किया गया।


निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत के सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों को सशक्त करता है। जेलों में जातिगत भेदभाव न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह समाज में जातिवादी मानसिकता को और बढ़ावा देता है।
यह फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है जो यह दर्शाता है कि कानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं और जाति के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव अस्वीकार्य है।


ब्लॉग ड्राफ्टिंग के महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. शीर्षक: आकर्षक और स्पष्ट
  2. परिचय: मुद्दे का संक्षिप्त परिचय
  3. मुद्दे की पृष्ठभूमि: घटना, रिपोर्ट और याचिका
  4. सुप्रीम कोर्ट में याचिका और तर्क:
  5. राज्य सरकार का पक्ष:
  6. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
  7. उदाहरण: रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े
  8. कोर्ट के निर्देश:
  9. निष्कर्ष और आगे का रास्ता:

यह ब्लॉग पोस्ट पूरी तरह यूनिक, विस्तृत और सरल भाषा में लिखी गई है, ताकि आम पाठक भी इसे समझ सके।

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद ...