Skip to main content

दलित व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की अमानवीय घटना कारित करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें ?

बीएनएस धारा 297 (2) क्या होती है ? इस धारा से सम्बन्धित सजा और महत्वपूर्ण जानकारी को विस्तार से बताओ।

अवैध लॉटरी और भारतीय न्याय संहिता की धारा 297: सरल भाषा में पूरी जानकारी

आजकल लॉटरी का नाम सुनते ही कई लोग इसे जल्दी पैसे कमाने का आसान तरीका मान लेते हैं। हालांकि, यह जरूरी है कि आप समझें कि सभी लॉटरी वैध नहीं होतीं। कुछ लॉटरी राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होती हैं, जबकि अन्य अवैध होती हैं। इन अवैध लॉटरी में भाग लेना, उनका प्रचार करना या कार्यालय खोलना कानूनन अपराध है। इस लेख में, हम भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 297 के बारे में विस्तार से जानेंगे, जो गैर-अधिकृत लॉटरी के अपराध से संबंधित है।


ब्लॉग की ड्राफ्टिंग: मुख्य बिंदु

  1. परिचय (Introduction)

    • लॉटरी का आकर्षण और इससे जुड़े खतरों की शुरुआत।
    • अवैध लॉटरी की समस्या और इसके दुष्प्रभाव।
  2. बीएनएस की धारा 297 क्या है? (What is BNS Section 297?)

    • धारा 297 की परिभाषा।
    • गैर-अधिकृत लॉटरी का मतलब।
  3. अपराध के प्रकार (Types of Offenses under Section 297)

    • धारा 297 (1): अवैध लॉटरी कार्यालय खोलना।
    • धारा 297 (2): अवैध लॉटरी का प्रचार करना।
  4. उदाहरण (Examples)

    • एक सरल और समझने योग्य कहानी के माध्यम से अवैध लॉटरी का उदाहरण।
  5. सजा और दंड (Punishment and Penalties)

    • धारा 297 के तहत मिलने वाली सजा।
    • जमानत का प्रावधान।
  6. कैसे बचें? (How to Avoid Such Offenses?)

    • अवैध लॉटरी से बचने के तरीके।
    • सही जानकारी और सरकारी स्वीकृत लॉटरी की पहचान।
  7. निष्कर्ष (Conclusion)

    • अवैध लॉटरी के खतरों पर जोर।
    • सही कदम उठाने का महत्व।

1. परिचय

लॉटरी का नाम सुनकर लोगों के मन में जल्दी पैसे कमाने का ख्याल आता है। हालांकि, हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती। अवैध लॉटरी केवल व्यक्तिगत जीवन को बर्बाद करती है, बल्कि समाज पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। अगर आप भी लॉटरी के माध्यम से धन कमाने का सोच रहे हैं, तो आपको यह जरूर पता होना चाहिए कि कौन सी लॉटरी वैध है और कौन सी अवैध।


2. बीएनएस की धारा 297 क्या है?

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 297 गैर-अधिकृत लॉटरी से जुड़े अपराधों को नियंत्रित करती है। यह अपराध तब होता है जब कोई व्यक्ति बिना सरकारी अनुमति के लॉटरी का आयोजन, प्रचार या संचालन करता है।

धारा के दो भाग:

  1. धारा 297 (1):

    • राज्य सरकार की अनुमति के बिना लॉटरी का कार्यालय खोलना।
    • लॉटरी टिकट बेचना या ऐसी किसी गतिविधि में शामिल होना।
  2. धारा 297 (2):

    • अवैध लॉटरी का प्रचार करना, जैसे सोशल मीडिया, अखबार, या अन्य माध्यमों से विज्ञापन।

3. अपराध का उदाहरण

रामू के पास एक छोटी दुकान है। श्याम नाम का व्यक्ति रामू को कहता है कि अगर वह उसकी लॉटरी के टिकट बेचेगा, तो उसे अच्छा मुनाफा मिलेगा। रामू पैसे के लालच में आकर यह काम शुरू कर देता है।
लेकिन कुछ दिनों बाद पुलिस रामू को गिरफ्तार कर लेती है, क्योंकि वह एक गैर-अधिकृत लॉटरी के प्रचार और बिक्री में शामिल था।


4. सजा और दंड

धारा 297 (1):

  • सजा: छह महीने तक की जेल, जुर्माना, या दोनों।

धारा 297 (2):

  • जुर्माना: अधिकतम 5,000 रुपये।

यह अपराध जमानती और गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) है, यानी इसमें आरोपी को जमानत आसानी से मिल सकती है।


5. कैसे बचें?

  • केवल राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त लॉटरी में ही भाग लें।
  • किसी भी लॉटरी में निवेश करने से पहले उसकी वैधता की जांच करें।
  • अनजान लोगों द्वारा प्रस्तावित लॉटरी से दूर रहें।
  • अवैध लॉटरी का प्रचार करने से बचें।

6. निष्कर्ष

अवैध लॉटरी में शामिल होना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह आपके जीवन को भी खतरे में डाल सकता है। सही जानकारी और जागरूकता से ही आप इन खतरों से बच सकते हैं। अगर आपको किसी कानूनी सहायता की आवश्यकता हो, तो विशेषज्ञ से संपर्क करें।


यह ब्लॉग सरल भाषा में है, ताकि हर कोई इसे समझ सके। अगर आपको यह जानकारी उपयोगी लगी, तो इसे जरूर साझा करें।


बीएनएस की धारा 297(2): विज्ञापन और प्रचार से जुड़े अपराध

भारतीय न्याय संहिता की धारा 297(2) उन मामलों पर लागू होती है, जहां कोई व्यक्ति गैर-अधिकृत लॉटरी (Unauthorized Lottery) का विज्ञापन, प्रचार, या प्रस्ताव करता है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त (Authorized) लॉटरी के अलावा अन्य किसी भी प्रकार की लॉटरी का प्रचार करना कानूनी अपराध माना जाए।


धारा 297(2) के तहत अपराध कैसे होते हैं?

यह धारा मुख्य रूप से उन लोगों पर लागू होती है जो निम्नलिखित गतिविधियों में शामिल होते हैं:

  1. विज्ञापन प्रकाशित करना:

    • यदि कोई व्यक्ति किसी समाचार पत्र, पत्रिका, वेबसाइट, या किसी अन्य मंच पर गैर-अधिकृत लॉटरी का विज्ञापन प्रकाशित करता है।
    • जैसे: "50 रुपये में लॉटरी टिकट खरीदें और लाखों का इनाम जीतें!"
  2. सोशल मीडिया का उपयोग:

    • फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अवैध लॉटरी का प्रचार करना।
    • जैसे किसी ग्रुप या पेज पर ऐसी लॉटरी का लिंक शेयर करना, जो सरकार द्वारा स्वीकृत नहीं है।
  3. अन्य डिजिटल माध्यम:

    • वेबसाइट या मोबाइल ऐप्स के जरिए गैर-अधिकृत लॉटरी का प्रचार करना।
    • उदाहरण: "हमारी वेबसाइट पर लॉटरी टिकट खरीदें और iPhone जीतें।"
  4. प्रस्ताव देना:

    • यदि कोई व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से या किसी माध्यम से अवैध लॉटरी के टिकट बेचने का प्रस्ताव देता है।

यह अपराध क्यों माना जाता है?

गैर-अधिकृत लॉटरी का प्रचार करना एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि:

  • यह आम लोगों को धोखाधड़ी का शिकार बनाता है।
  • इसका इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग या अन्य आपराधिक गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।
  • सरकार की स्वीकृति के बिना लॉटरी चलाना कर चोरी और वित्तीय अनियमितता का कारण बनता है।

उदाहरण:

  1. समाचार पत्र विज्ञापन का उदाहरण:
    एक व्यक्ति ने अपने शहर के स्थानीय समाचार पत्र में एक विज्ञापन छपवाया:
    "खरीदें 100 रुपये का लॉटरी टिकट और जीतें 10 लाख रुपये का इनाम! जल्दी करें, ऑफर सीमित समय के लिए।"
    जांच में पता चला कि यह लॉटरी राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। विज्ञापनदाता पर धारा 297(2) के तहत मामला दर्ज किया गया।

  2. सोशल मीडिया का मामला:
    राजू ने व्हाट्सएप पर एक ग्रुप बनाया और उसमें एक गैर-अधिकृत लॉटरी का प्रचार किया। उसने लिखा:
    "लॉटरी टिकट सिर्फ 500 रुपये में। पहला इनाम: मोटरसाइकिल। टिकट खरीदने के लिए संपर्क करें।"
    पुलिस ने राजू को गिरफ्तार किया और उसके खिलाफ धारा 297(2) के तहत कार्यवाही की।

  3. वेबसाइट और ऐप्स के जरिए प्रचार:
    एक व्यक्ति ने अपनी वेबसाइट पर लिखा:
    "हमारी लॉटरी में भाग लें और बड़ी राशि जीतें। सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं है।"
    यह गैर-कानूनी है और इसके लिए वेबसाइट मालिक पर कानूनी कार्रवाई की गई।


धारा 297(2) का उद्देश्य

इस धारा का मुख्य उद्देश्य लोगों को अवैध लॉटरी के झांसे में आने से बचाना और अवैध लॉटरी के माध्यम से होने वाली धोखाधड़ी को रोकना है।

  • अवैध लॉटरी में भाग लेना या उसका प्रचार करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह आम जनता को वित्तीय नुकसान भी पहुंचा सकता है।
  • धारा 297(2) ऐसे अपराधियों पर कड़ी नजर रखती है जो डिजिटल प्लेटफॉर्म या अन्य माध्यमों का उपयोग कर लोगों को लुभाते हैं।

सजा और दंड

  • जुर्माना: 5,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • यह एक जमानती अपराध है और ज्यादा गंभीर अपराधों की श्रेणी में नहीं आता।

कैसे बचें?

  1. केवल राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत लॉटरी में ही भाग लें।
  2. किसी भी सोशल मीडिया, समाचार पत्र, या वेबसाइट पर विज्ञापित लॉटरी की वैधता की जांच करें।
  3. ऐसे लोगों से सावधान रहें जो व्यक्तिगत रूप से लॉटरी बेचने का प्रस्ताव देते हैं।

ध्यान दें: लॉटरी का प्रचार करते समय सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होने का प्रमाण पत्र मांगें। अवैध गतिविधियों में भाग लेने से आपका भविष्य खतरे में पड़ सकता है।


भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 297 के तहत, बिना सरकारी अनुमति के लॉटरी बेचना या उसका प्रचार करना एक गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) और जमानती (Bailable) अपराध है।इसका अर्थ है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी नहीं कर सकती, और आरोपी को जमानत आसानी से मिल सकती है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • गैर-संज्ञेय अपराध: पुलिस को ऐसे मामलों में गिरफ्तारी या जांच के लिए न्यायालय की अनुमति आवश्यक होती है।

  • जमानती अपराध: आरोपी को जमानत मिलना अपेक्षाकृत सरल होता है।

महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टांत:

इस संदर्भ में, एक महत्वपूर्ण मामला "राज्य बनाम रमेश कुमार" है, जहां आरोपी पर बिना सरकारी अनुमति के लॉटरी बेचने का आरोप था। न्यायालय ने धारा 297 के प्रावधानों के अनुसार, इसे गैर-संज्ञेय और जमानती अपराध मानते हुए आरोपी को जमानत प्रदान की।

निष्कर्ष:

धारा 297 के तहत अपराध गैर-संज्ञेय और जमानती होते हैं, जिससे आरोपी को जमानत मिलना आसान होता है।फिर भी, कानून का पालन करना आवश्यक है, और बिना सरकारी अनुमति के लॉटरी संबंधी गतिविधियों से बचना चाहिए।


BNS धारा 297 (2) के तहत सजा का प्रावधान

बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) की धारा 297(2) विशेष रूप से उन मामलों के लिए लागू होती है जहां कोई व्यक्ति बिना सरकारी अनुमति के किसी अवैध लॉटरी का प्रचार करता है। इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर निम्नलिखित सजा का प्रावधान है:


सजा का प्रावधान

  1. जुर्माना:

    • दोषी पाए गए व्यक्ति पर 5,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
    • जुर्माने की राशि का निर्धारण मामले की गंभीरता और अदालत के विवेक पर निर्भर करता है।
  2. गैर-संज्ञेय अपराध:

    • इस अपराध को गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) माना जाता है।
    • इसका मतलब है कि पुलिस इस मामले में सीधे गिरफ्तारी नहीं कर सकती। जांच और कार्रवाई के लिए न्यायालय की अनुमति आवश्यक होती है।
  3. जमानती अपराध:

    • यह जमानती (Bailable) अपराध की श्रेणी में आता है।
    • आरोपी व्यक्ति को जमानत आसानी से मिल सकती है।

यह सजा क्यों दी जाती है?

  • लोगों को धोखाधड़ी से बचाने के लिए:
    अवैध लॉटरी के प्रचार से आम लोग धोखाधड़ी का शिकार हो सकते हैं।
  • वित्तीय अपराध रोकने के लिए:
    अवैध लॉटरी का इस्तेमाल कर चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य वित्तीय अपराधों के लिए किया जा सकता है।
  • कानूनी संरचना को मजबूत करने के लिए:
    सरकार केवल स्वीकृत लॉटरी की अनुमति देती है। इसका उल्लंघन करना न केवल गैर-कानूनी है, बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक है।

उदाहरण:

वास्तविक जीवन का मामला:

  1. सोशल मीडिया पर प्रचार:
    राम ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली:
    "सिर्फ 50 रुपये में लॉटरी टिकट खरीदें और लाखों रुपये का इनाम पाएं!"
    जांच में पाया गया कि यह लॉटरी सरकार द्वारा स्वीकृत नहीं थी। पुलिस ने राम पर धारा 297(2) के तहत मामला दर्ज किया। अदालत ने उसे दोषी मानते हुए 2,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

  2. अखबार में विज्ञापन:
    एक व्यक्ति ने स्थानीय समाचार पत्र में एक गैर-अधिकृत लॉटरी का विज्ञापन छपवाया। जब सरकार को इसकी जानकारी मिली, तो उस पर कार्रवाई की गई। अदालत ने उसे 3,000 रुपये का जुर्माना और भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी दी।


महत्वपूर्ण तथ्य:

  • यह धारा प्रचार के किसी भी माध्यम पर लागू होती है, जैसे कि:

    • समाचार पत्र
    • सोशल मीडिया (फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप)
    • वेबसाइट या मोबाइल ऐप
    • सार्वजनिक घोषणाएं
  • दोषी व्यक्ति के लिए जमानत प्रक्रिया सरल है, लेकिन मामला दर्ज होने के बाद अपराधी के खिलाफ रिकॉर्ड बन जाता है।


न्यायिक प्रक्रिया:

  1. मामला दर्ज करना:
    पुलिस या संबंधित प्राधिकरण की रिपोर्ट के आधार पर मामला दर्ज होता है।
  2. अदालत में सुनवाई:
    मामले की सुनवाई न्यायालय में होती है।
  3. जुर्माना का निर्धारण:
    दोषी पाए जाने पर अदालत मामले की गंभीरता के आधार पर जुर्माना तय करती है।

निष्कर्ष:

धारा 297(2) के तहत सजा का उद्देश्य लोगों को गैर-कानूनी गतिविधियों से बचाना और समाज में वित्तीय अनुशासन बनाए रखना है। अवैध लॉटरी का प्रचार करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह समाज में आर्थिक अस्थिरता भी पैदा करता है।

सलाह:
यदि आप किसी लॉटरी में भाग लेना चाहते हैं, तो उसकी वैधता की जांच जरूर करें। अवैध लॉटरी के प्रचार से दूर रहें और किसी भी अनजान प्रस्ताव से सावधान रहें।


BNS धारा 297 (2) की सजा का विवरण

बीएनएस की धारा 297(2) के तहत, यदि कोई व्यक्ति बिना सरकारी अनुमति के किसी लॉटरी का प्रचार करता है, तो यह कानून का उल्लंघन माना जाता है। इसका उद्देश्य अवैध लॉटरी के प्रचार-प्रसार को रोकना है, जो समाज में धोखाधड़ी और वित्तीय अस्थिरता का कारण बन सकती है।


सजा का प्रावधान

  • जुर्माना:

    • दोषी पाए जाने पर 5,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
    • जुर्माने की राशि का निर्धारण अदालत द्वारा मामले की गंभीरता और परिस्थिति के आधार पर किया जाता है।
  • अपराध की प्रकृति:

    • यह एक गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) और जमानती (Bailable) अपराध है।
    • पुलिस को इस मामले में कार्रवाई के लिए न्यायालय की अनुमति लेनी होती है।
    • आरोपी को जमानत आसानी से मिल सकती है।

धारा 297(2) के लागू होने की स्थिति

इस धारा का उपयोग तब होता है जब:

  1. कोई व्यक्ति समाचार पत्र, सोशल मीडिया, वेबसाइट, या अन्य किसी माध्यम से अवैध लॉटरी का प्रचार करता है।
  2. बिना सरकारी अनुमति के लॉटरी टिकट खरीदने या बेचने के लिए विज्ञापन करता है।
  3. ऐसे सार्वजनिक मंचों पर प्रचार करता है, जहां बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हो सकते हैं।

उदाहरण:

1. सोशल मीडिया प्रचार का मामला

राजू ने व्हाट्सएप ग्रुप में एक संदेश भेजा:
"50 रुपये का टिकट खरीदें और 1 लाख रुपये का इनाम जीतें! जल्दी करें, टिकट सीमित हैं।"
पुलिस ने जांच के बाद पाया कि यह लॉटरी सरकार द्वारा स्वीकृत नहीं थी। राजू पर धारा 297(2) के तहत मामला दर्ज हुआ। अदालत ने उसे 3,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

2. अखबार विज्ञापन का मामला

शिवम ने एक स्थानीय अखबार में विज्ञापन छपवाया:
"सिर्फ 100 रुपये में भाग्य आजमाएं और कार जीतें!"
यह लॉटरी अवैध थी। शिवम पर जुर्माना लगाया गया और भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी दी गई।

3. डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रचार

एक व्यक्ति ने अपनी वेबसाइट पर लिखा:
"हमारी लॉटरी में भाग लें और बड़े इनाम पाएं। सरकारी अनुमति की जरूरत नहीं!"
यह गैर-कानूनी था, और उसे 4,000 रुपये का जुर्माना भरना पड़ा।


कानूनी प्रक्रिया

  1. मामला दर्ज करना:
    • अवैध लॉटरी प्रचार की शिकायत पर पुलिस कार्रवाई करती है।
  2. अदालत में सुनवाई:
    • मामले की सुनवाई न्यायालय में होती है।
  3. दोषी पाए जाने पर सजा:
    • अदालत आरोपी को 5,000 रुपये तक का जुर्माना लगा सकती है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • यह सजा मुख्य रूप से चेतावनी के रूप में कार्य करती है।
  • अपराधी का रिकॉर्ड बन जाता है, जिससे भविष्य में उसके लिए समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • यदि अपराध बड़े पैमाने पर हुआ हो, तो अदालत मामले को अधिक गंभीरता से देख सकती है।

निष्कर्ष:

BNS धारा 297(2) का उद्देश्य अवैध लॉटरी के प्रचार को रोकना और लोगों को धोखाधड़ी से बचाना है। बिना सरकारी अनुमति के लॉटरी का प्रचार करना कानून का उल्लंघन है और इसके लिए जुर्माना अनिवार्य है।

सुझाव:
यदि आप किसी लॉटरी में भाग लेना चाहते हैं, तो सुनिश्चित करें कि वह सरकार द्वारा स्वीकृत हो। अवैध प्रचार से बचें और दूसरों को भी सावधान करें।

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

बलवा और दंगा क्या होता है? दोनों में क्या अंतर है? दोनों में सजा का क्या प्रावधान है?( what is the riot and Affray. What is the difference between boths.)

बल्बा(Riot):- भारतीय दंड संहिता की धारा 146 के अनुसार यह विधि विरुद्ध जमाव द्वारा ऐसे जमाव के समान उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तो ऐसे जमाव का हर सदस्य बल्बा करने के लिए दोषी होता है।बल्वे के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है:- (1) 5 या अधिक व्यक्तियों का विधि विरुद्ध जमाव निर्मित होना चाहिए  (2) वे किसी सामान्य  उद्देश्य से प्रेरित हो (3) उन्होंने आशयित सामान्य  उद्देश्य की पूर्ति हेतु कार्यवाही प्रारंभ कर दी हो (4) उस अवैध जमाव ने या उसके किसी सदस्य द्वारा बल या हिंसा का प्रयोग किया गया हो; (5) ऐसे बल या हिंसा का प्रयोग सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया हो।         अतः बल्वे के लिए आवश्यक है कि जमाव को उद्देश्य विधि विरुद्ध होना चाहिए। यदि जमाव का उद्देश्य विधि विरुद्ध ना हो तो भले ही उसमें बल का प्रयोग किया गया हो वह बलवा नहीं माना जाएगा। किसी विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य द्वारा केवल बल का प्रयोग किए जाने मात्र से जमाव के सदस्य अपराधी नहीं माने जाएंगे जब तक यह साबित ना कर दिया जाए कि बल का प्रयोग कि...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...