Skip to main content

दलित व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की अमानवीय घटना कारित करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें ?

IPC की धारा 376(1)/(2) जोकि अब BNS की धारा 64 हो गयी है इन धाराओं में किस अपराध को बताया गया है?

IPC की धारा 376(1)/(2) और BNS की धारा 64: बलात्कार के गंभीर मामलों पर कानूनी दृष्टिकोण

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(1) और 376(2) यौन अपराधों के लिए सख्त दंड का प्रावधान करती हैं। जब IPC को संशोधित कर भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू की गई, तो इन धाराओं को BNS की धारा 64 के तहत सम्मिलित किया गया। यह कानून गंभीर मामलों में महिलाओं के खिलाफ किए गए अपराधों को रोकने और न्याय सुनिश्चित करने का एक सशक्त माध्यम है।

IPC की धारा 376(1)/(2): परिभाषा और दायरा

धारा 376 बलात्कार के अपराध को परिभाषित करने के साथ-साथ इसके लिए दंड का प्रावधान करती है।

  1. धारा 376(1):

    • यह किसी महिला के साथ बलात्कार के सामान्य मामलों को कवर करती है।
    • दोषी पाए जाने पर सजा 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक हो सकती है, जिसमें जुर्माना भी शामिल है।
  2. धारा 376(2):

    • यह बलात्कार के गंभीर और संवेदनशील मामलों को कवर करती है, जैसे:
      • पुलिस अधिकारी द्वारा अपनी हिरासत में महिला के साथ बलात्कार।
      • सार्वजनिक सेवक द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करते हुए बलात्कार।
      • अस्पतालों में मरीजों के साथ डॉक्टर, वार्ड बॉय या अन्य कर्मचारियों द्वारा बलात्कार।
      • किसी महिला के साथ सामूहिक बलात्कार।
    • इन मामलों में सजा और अधिक कठोर हो जाती है, जिसमें न्यूनतम 20 साल से लेकर आजीवन कारावास या फांसी तक हो सकती है।

Here is the cartoon-style illustration depicting IPC Section 376(1)/(2) and BNS Section 64. It highlights custodial abuse, hospital-related offenses, and gang rape scenarios with clear and simple messaging.

BNS की धारा 64: IPC का नया रूप

BNS की धारा 64, IPC की धारा 376(1) और 376(2) का स्थान लेती है। यह संशोधित कानून अपराधों को आधुनिक सामाजिक और कानूनी आवश्यकताओं के अनुसार परिभाषित करता है।

  • सजा में सख्ती: गंभीर मामलों में न्यूनतम सजा को बढ़ाया गया है।
  • जेंडर न्यूट्रलिटी: कानून में अब अन्य जेंडर को भी न्याय दिलाने का प्रावधान किया गया है।
  • डिजिटल साक्ष्य का समावेश: बलात्कार के मामलों में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल साक्ष्य को अधिक मान्यता दी गई है।

उदाहरणों के माध्यम से समझें

  1. पुलिस हिरासत में बलात्कार:

    • घटना: एक महिला को चोरी के आरोप में हिरासत में लिया गया। थाने में पुलिस अधिकारी ने उसके साथ बलात्कार किया।
    • कानून का दृष्टिकोण: यह धारा 376(2)(a) और अब BNS की धारा 64 के अंतर्गत आता है। आरोपी अधिकारी को न्यूनतम 20 साल की सजा होगी।
  2. अस्पताल में डॉक्टर द्वारा बलात्कार:

    • घटना: एक महिला मरीज को सर्जरी के लिए बेहोश किया गया, और डॉक्टर ने उसका यौन शोषण किया।
    • कानून का दृष्टिकोण: यह धारा 376(2)(d) के अंतर्गत आएगा, और आरोपी को कठोर दंड दिया जाएगा।
  3. सामूहिक बलात्कार का मामला:

    • घटना: एक महिला को गांव के चार पुरुषों ने अगवा करके सामूहिक बलात्कार किया।
    • कानून का दृष्टिकोण: यह धारा 376(2)(g) के अंतर्गत आएगा, जिसमें दोषियों को न्यूनतम 20 साल की सजा या फांसी दी जा सकती है।

सजा का प्रावधान

BNS की धारा 64 के तहत निम्नलिखित सजा का प्रावधान है:

  • 376(1): 10 साल से आजीवन कारावास तक।
  • 376(2): न्यूनतम 20 साल से लेकर आजीवन कारावास या फांसी।
  • जुर्माना: आरोपी को पीड़िता के इलाज और पुनर्वास के लिए जुर्माना भी देना होगा।

निष्कर्ष

IPC की धारा 376(1)/(2) और BNS की धारा 64 महिलाओं के खिलाफ होने वाले गंभीर यौन अपराधों पर रोक लगाने और न्याय प्रदान करने के लिए बेहद प्रभावशाली हैं। इन धाराओं का उद्देश्य न केवल अपराधियों को सख्त सजा देना है, बल्कि समाज में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करना भी है।

इन कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए जागरूकता और सही कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना बेहद जरूरी है। समाज को भी चाहिए कि वह पीड़ितों को सहारा दे और इन अपराधों के खिलाफ सख्त रुख अपनाए।

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

बलवा और दंगा क्या होता है? दोनों में क्या अंतर है? दोनों में सजा का क्या प्रावधान है?( what is the riot and Affray. What is the difference between boths.)

बल्बा(Riot):- भारतीय दंड संहिता की धारा 146 के अनुसार यह विधि विरुद्ध जमाव द्वारा ऐसे जमाव के समान उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तो ऐसे जमाव का हर सदस्य बल्बा करने के लिए दोषी होता है।बल्वे के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है:- (1) 5 या अधिक व्यक्तियों का विधि विरुद्ध जमाव निर्मित होना चाहिए  (2) वे किसी सामान्य  उद्देश्य से प्रेरित हो (3) उन्होंने आशयित सामान्य  उद्देश्य की पूर्ति हेतु कार्यवाही प्रारंभ कर दी हो (4) उस अवैध जमाव ने या उसके किसी सदस्य द्वारा बल या हिंसा का प्रयोग किया गया हो; (5) ऐसे बल या हिंसा का प्रयोग सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया हो।         अतः बल्वे के लिए आवश्यक है कि जमाव को उद्देश्य विधि विरुद्ध होना चाहिए। यदि जमाव का उद्देश्य विधि विरुद्ध ना हो तो भले ही उसमें बल का प्रयोग किया गया हो वह बलवा नहीं माना जाएगा। किसी विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य द्वारा केवल बल का प्रयोग किए जाने मात्र से जमाव के सदस्य अपराधी नहीं माने जाएंगे जब तक यह साबित ना कर दिया जाए कि बल का प्रयोग कि...