Skip to main content

भारत में विधिक व्यवसाय का विकास का इतिहास क्या है ? इस पर चर्चा।

IPC की धारा 376-ख और BNS की धारा 67 बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों को रोकने का कानून

IPC की धारा 376-ख और BNS की धारा 65(2): बालिका से बलात्कार के लिए सजा का नया दृष्टिकोण

भारत में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए समय-समय पर कानूनी सुधार किए गए हैं। एक बड़ा बदलाव भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376-ख और नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 65(2) के तहत हुआ है, जो विशेष रूप से वर्ष से कम आयु की बालिका के साथ बलात्कार से संबंधित हैं। इस लेख में, हम इन दोनों धाराओं का विस्तार से विश्लेषण करेंगे और उदाहरणों के साथ समझाएंगे कि नए कानून ने इन अपराधों से निपटने के लिए क्या कदम उठाए हैं।


IPC की धारा 376-ख: वर्ष से कम आयु की महिला से बलात्कार

IPC की धारा 376-ख को भारतीय दंड संहिता में शामिल किया गया था ताकि विशेष रूप से उन मामलों को सजा मिल सके, जहाँ बलात्कार के शिकार की आयु कम है, यानी 12 वर्ष से कम की कोई लड़की बलात्कार का शिकार हो जाती है। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों के मामलों में अपराधी को सबसे कठोर सजा दी जाए।

सजा का प्रावधान:

  1. मृत्युदंड (Death Penalty)
  2. आजीवन कारावास (Life imprisonment)
  3. आर्थिक दंड (Financial penalty), जो पीड़िता के परिवार को सहायता प्रदान करने के लिए हो सकता है।

इस धारा के तहत, यदि किसी 12 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ बलात्कार किया जाता है, तो आरोपी को गंभीर सजा का सामना करना पड़ता है, और यह सुनिश्चित किया जाता है कि उसके द्वारा किए गए अपराध को समाज के सामने कड़ी सजा के रूप में पेश किया जाए।


BNS की धारा 65(2): नया कानून और कड़े दंड

2023 में जब भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू की गई, तो इसमें IPC की धारा 376-ख को बदलकर BNS धारा 65(2) में रूपांतरित कर दिया गया। BNS का मुख्य उद्देश्य सभी अपराधों की परिभाषा को स्पष्ट करना और सजा के प्रावधानों को एक नया दृष्टिकोण देना था। इस धारा के तहत, 12 वर्ष से कम आयु की लड़की से बलात्कार के मामलों को विशेष महत्व दिया गया है और अपराधी को कड़ी सजा देने का प्रावधान किया गया है।

BNS धारा 65(2) के तहत सजा:

  1. मृत्युदंड (Death penalty), यदि अपराध इतना गंभीर हो कि समाज की सुरक्षा को खतरे में डाले।
  2. आजीवन कारावास (Life imprisonment) के साथ आर्थिक दंड, जो पीड़िता और उसके परिवार की सहायता के लिए होगा।
  3. विशेष न्यायिक प्रक्रिया, जो त्वरित सुनवाई और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करती है।

BNS में बदलाव का मुख्य उद्देश्य न्याय प्रक्रिया को तेज करना, दोषियों को जल्द सजा दिलवाना और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।


उदाहरण: इन धाराओं का व्यावहारिक प्रभाव

उदाहरण 1:

मान लीजिए एक 10 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार किया जाता है, और आरोपी पर यह स्पष्ट होता है कि उसने बलात्कारी कार्रवाई जानबूझकर और लापरवाही से की।

  • IPC की धारा 376-ख के तहत आरोपी को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास और आर्थिक दंड दिया जा सकता है।
  • BNS धारा 65(2) के तहत यह सजा उसी प्रकार दी जाएगी, लेकिन प्रक्रिया में अधिक स्पष्टता और त्वरित निष्पादन होगा।

उदाहरण 2:

एक 7 वर्ष की बच्ची के साथ बलात्कार करने का मामला सामने आता है, और यह साबित होता है कि आरोपी की मानसिकता और नीयत पूरी तरह से जघन्य थी।

  • इस मामले में, BNS की धारा 65(2) के तहत आरोपी को त्वरित न्याय के साथ मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी।

IPC और BNS में अंतर

  1. धारा की संरचना:
    IPC में अपराधों की परिभाषा और सजा की प्रक्रिया को सरल रूप में रखा गया था, जबकि BNS में इसे और अधिक स्पष्ट और विस्तृत किया गया है।

  2. प्रोसीजर:
    BNS में अपराधों की सुनवाई त्वरित और सरल तरीके से की जाएगी, ताकि न्याय की प्रक्रिया में किसी प्रकार की देरी न हो।

  3. सजा का विस्तार:
    BNS में दोषी को विशेष रूप से आर्थिक दंड भी दिया जा सकता है, जो पीड़िता के परिवार के लिए आर्थिक मदद के रूप में कार्य करता है।


निष्कर्ष

IPC की धारा 376-ख और BNS की धारा 65(2), दोनों ही बालकों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों को रोकने और दोषियों को कड़ी सजा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन धाराओं के तहत कानून ने बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है और अपराधियों को कठोर सजा देने का एक कड़ा संदेश दिया है।

"समान्य न्याय से ज्यादा जरूरी है बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करना।"

यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि अपराधी चाहे जितना भी ताकतवर क्यों न हो, उसे अपनी कार्रवाई का परिणाम भुगतना पड़े।

अगर आप इस विषय पर और जानकारी चाहते हैं या कानूनी परामर्श की आवश्यकता महसूस करते हैं, तो आप हमारे साथ संपर्क कर सकते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...