Skip to main content

भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

BNS की धारा 138 क्या होती है ? इसका IPC की धारा 362 से किस प्रकार से सम्बन्धित है?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 362 और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 138: अपहरण और उनके कानूनी पहलू

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 362 और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 138 दोनों ही अपराधों से संबंधित हैं, लेकिन इनके अंतर्गत कानून की प्रक्रिया और प्रभाव भिन्न हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम इन दोनों धाराओं के बारे में विस्तार से जानेंगे, उनके अंतर्गत होने वाले अपराधों और कानूनी दृष्टिकोण को समझेंगे, और उदाहरणों के माध्यम से इसे सरल भाषा में स्पष्ट करेंगे।

1. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 362: अपहरण का अपराध

धारा 362 का परिभाषा

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 362, अपहरण (Kidnapping) के अपराध से संबंधित है। इस धारा के तहत, यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को उसकी इच्छा के खिलाफ या किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी के माध्यम से अपहरण करता है, तो उसे अपराध माना जाता है। अपहरण एक गंभीर अपराध है, जो किसी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्र इच्छा के खिलाफ पकड़ने या उसके गंतव्य से दूर ले जाने को संदर्भित करता है।

धारा 362 के तहत अपराध की परिभाषा

IPC की धारा 362 के अनुसार, "यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को या तो किसी धोखाधड़ी से या उसकी इच्छा के बिना उसे किसी स्थान से लेकर चला जाता है, तो यह अपहरण के अंतर्गत आता है।"

उदाहरण: मान लीजिए कि एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को यह झूठ बोलकर अपने घर ले आता है कि उसकी माँ बीमार है, जबकि ऐसा नहीं है। फिर उस व्यक्ति को किसी अन्य स्थान पर ले जाकर उसके खिलाफ अपराध कर सकता है। इसे आईपीसी की धारा 362 के तहत अपराध माना जाएगा।

सजा

इस धारा के तहत अपराध साबित होने पर आरोपी को 3 साल तक की सजा या जुर्माना हो सकता है, या फिर दोनों सजा एक साथ भी हो सकती हैं।

2. भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 138: अपहरण के अपराध का नया रूप

BNS धारा 138 की परिभाषा

BNS की धारा 138 में भारतीय दंड संहिता की धारा 362 को विस्तार से संशोधित किया गया है। BNS की धारा 138 के तहत, अगर कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को उसकी इच्छा के खिलाफ या किसी धोखाधड़ी से अवैध रूप से रोककर, या किसी अन्य तरीके से उसके स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है, तो इसे अपहरण के अपराध के रूप में माना जाता है। यह धारा अपराधी के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने की अनुमति देती है, और इसमें सजा की अवधि भी अधिक हो सकती है।

BNS धारा 138 का विस्तार

BNS की धारा 138 में अपहरण के अपराधों के लिए अधिक गंभीर सजा का प्रावधान है। यह कानून अपहरणकर्ताओं के खिलाफ ज्यादा कठोर कार्रवाई करता है, ताकि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन न हो सके। इस धारा में अपहरण के मामलों को एक बड़ा अपराध मानते हुए इसके तहत संबंधित व्यक्ति के खिलाफ विशेष कानूनी प्रक्रिया को शुरू किया जाता है।

सजा

BNS धारा 138 के तहत यदि अपहरण का अपराध साबित हो जाता है, तो आरोपी को अधिकतम 7 साल की सजा हो सकती है, और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह सजा IPC की धारा 362 से ज्यादा कठोर है, जो इस अपराध की गंभीरता को दर्शाता है।

3. IPC की धारा 362 और BNS की धारा 138 में अंतर

IPC की धारा 362 और BNS की धारा 138 में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं, जो इस प्रकार हैं:

IPC की धारा 362 BNS की धारा 138
इसमें अपहरण की गंभीरता कम होती है। इसमें अपहरण की गंभीरता ज्यादा होती है।
इसमें सजा अधिकतम 3 साल तक हो सकती है। इसमें सजा अधिकतम 7 साल तक हो सकती है।
यह आम तौर पर चोरी और धोखाधड़ी के मामलों में लागू होती है। यह अधिक गंभीर अपराधों के लिए लागू होती है, जहां व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है।

4. उदाहरण के साथ समझाएं

उदाहरण 1: IPC की धारा 362

मान लीजिए कि एक व्यक्ति अपने प्रतिद्वंदी को यह झूठ बोलकर अपने घर बुलाता है कि उसने उसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की है। जब वह व्यक्ति घर पहुँचता है, तो उसे बंधक बना लिया जाता है और उसे एक अन्य स्थान पर ले जाया जाता है। इसे IPC की धारा 362 के तहत अपहरण माना जाएगा।

उदाहरण 2: BNS की धारा 138

मान लीजिए कि एक व्यक्ति किसी महिला को उसकी इच्छा के खिलाफ एक जगह से दूसरी जगह ले जाता है और उसके स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इसके लिए उसे BNS की धारा 138 के तहत अधिक गंभीर सजा हो सकती है।

5. महत्वपूर्ण कानूनी मामले

केस 1: State of Maharashtra v/s Pappu

इस केस में, आरोपी ने किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के खिलाफ अपहरण किया था। कोर्ट ने आरोपी को IPC की धारा 362 के तहत दोषी ठहराया और उसे 3 साल की सजा सुनाई।

केस 2: State v/s Prakash

यह केस BNS की धारा 138 के तहत था, जिसमें आरोपी ने एक महिला को धोखाधड़ी से ले जाकर उसकी स्वतंत्रता का उल्लंघन किया। कोर्ट ने आरोपी को 7 साल की सजा सुनाई, और उसे जुर्माना भी लगाया गया।

निष्कर्ष

IPC की धारा 362 और BNS की धारा 138 दोनों ही अपहरण से संबंधित अपराधों से निपटने के लिए महत्वपूर्ण कानूनी धाराएं हैं। जहां IPC की धारा 362 अपहरण के सामान्य मामलों को संबोधित करती है, वहीं BNS की धारा 138 इस अपराध को और अधिक गंभीर रूप से देखती है। दोनों ही धाराओं के अंतर्गत अपराधियों को सजा दी जाती है, लेकिन BNS की धारा में अधिक कठोर सजा का प्रावधान है।

ब्लॉग की ड्राफ्टिंग

इस ब्लॉग में निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल किया गया है:

  1. IPC की धारा 362 का विवरण
  2. BNS की धारा 138 का विस्तार
  3. दोनों धाराओं के बीच अंतर
  4. उदाहरण के माध्यम से समझाना
  5. महत्वपूर्ण कानूनी केस और उनका उदाहरण
  6. निष्कर्ष


Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...