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भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

धारा 377 का विलोपन: BNS में LGBTQ+ अधिकारों की नई दिशा और प्रकृति विरुद्ध अपराधों का अंत

IPC की धारा 377 और BNS में इसका विलोपन: प्रकृति विरुद्ध अपराधों पर एक दृष्टिकोण

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377, जिसे "प्रकृति विरुद्ध अपराधों" से संबंधित माना जाता था, लंबे समय तक भारतीय कानूनी प्रणाली में विवाद का विषय रही है। नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) में इस धारा को विलोपित कर दिया गया है। इस लेख में हम धारा 377 के प्रावधानों, इसके ऐतिहासिक महत्व, और इसके विलोपन के प्रभावों पर चर्चा करेंगे।

IPC की धारा 377 का परिचय

IPC की धारा 377 ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के समय 1860 में लागू की गई थी। इसका उद्देश्य "प्राकृतिक व्यवस्था" के विरुद्ध यौन संबंधों को दंडित करना था।

प्रावधान

यह धारा किसी भी व्यक्ति को उस समय दंडित करती थी यदि वह:

  • प्राकृतिक व्यवस्था के विरुद्ध यौन संबंध बनाता था।
  • यह संबंध किसी भी पुरुष, महिला, या पशु के साथ हो सकता था।

सजा का प्रावधान:

  • आजीवन कारावास या
  • 10 साल तक का कारावास और जुर्माना।

समाज और कानून में विवाद

धारा 377 के अंतर्गत कई वर्षों तक समलैंगिक संबंधों को अपराध माना गया, भले ही वे आपसी सहमति से बनाए गए हों। इसने LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों और समाज में उनके स्थान को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए।

BNS में विलोपन का कारण

2023 में भारतीय न्याय संहिता (BNS) में सुधार करते हुए धारा 377 को विलोपित कर दिया गया। इसके पीछे मुख्य तर्क यह था कि:

  1. यह धारा मानव अधिकारों और निजता के अधिकार का उल्लंघन करती थी।
  2. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत सरकार मामले में आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
  3. LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों को संरक्षित करने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए इस धारा का हटाया जाना आवश्यक था।

विलोपन के प्रभाव

  1. समानता की दिशा में कदम:
    LGBTQ+ समुदाय के लिए यह विलोपन एक बड़ी जीत है। इसे उनके अधिकारों और सम्मान को मान्यता देने के रूप में देखा गया।

  2. कानून का दायरा सीमित:
    अब केवल बलात्कार, जबरन यौन संबंध, और यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों को दंडित किया जाएगा, जबकि आपसी सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध नहीं माना जाएगा।

  3. समाज पर प्रभाव:
    भारतीय समाज में LGBTQ+ समुदाय को धीरे-धीरे स्वीकार्यता मिल रही है। यह बदलाव उनके अधिकारों और पहचान को मुख्यधारा में शामिल करने की दिशा में मदद करेगा।

उदाहरण के माध्यम से समझें

उदाहरण 1:

राज और अमित, दो वयस्क पुरुष, आपसी सहमति से एक रिश्ते में हैं। पहले, IPC की धारा 377 के तहत उनका संबंध अपराध की श्रेणी में आता। लेकिन अब, BNS में इस धारा को विलोपित कर दिए जाने के बाद, यह आपसी सहमति का मामला है और कानूनी रूप से मान्य है।

उदाहरण 2:

रवि ने जबरदस्ती अपने सहकर्मी पर हमला किया और यौन उत्पीड़न किया। यह मामला अब IPC या BNS के तहत दंडनीय है क्योंकि यह सहमति के बिना हुआ है और यौन हिंसा के अंतर्गत आता है।

निष्कर्ष

IPC की धारा 377 का विलोपन भारतीय न्याय प्रणाली के एक ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक है। यह कदम LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता को मान्यता देने की दिशा में उठाया गया है।
हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि कानून और समाज, यौन अपराधों को रोकने और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए प्रभावी उपाय जारी रखें।

धारा 377 का हटना केवल कानून का बदलाव नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज के बदलते दृष्टिकोण और समावेशिता की ओर बढ़ते कदम का प्रतीक है।

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