Skip to main content

भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

आईपीसी धारा 368 और बीएनएस धारा 142: अपहरण किए व्यक्ति को छिपाने या कैद में रखने का अपराध और इसके सख्त प्रावधान

आईपीसी की धारा 368 और भारतीय न्याय संहिता की धारा 142: अपहरण किए गए व्यक्ति को छिपाने या कैद में रखने का अपराध→

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 368 और संशोधित भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 142 उन अपराधों को कवर करती हैं जहां अपहृत व्यक्ति को गलत तरीके से छिपाया या कैद में रखा जाता है। यह लेख इन दोनों धाराओं का विश्लेषण करेगा, उनके अंतर्गत दिए गए प्रावधानों को समझाएगा और वास्तविक उदाहरणों व केसों के माध्यम से इन धाराओं को स्पष्ट करेगा।

आईपीसी की धारा 368 का परिचय→

IPC की धारा 368 का उद्देश्य उन लोगों को दंडित करना है, जो जानते हुए भी अपहृत या व्यपहृत व्यक्ति को छिपाते या गलत तरीके से कैद में रखते हैं।

मुख्य तत्व:→

अपहरण की जानकारी:→
दोषी को यह पता होना चाहिए कि व्यक्ति का अपहरण या व्यपहरण हुआ है।

गैरकानूनी कैद:→
अपहृत व्यक्ति को जानबूझकर छिपाना या कैद में रखना।

सजा:→

•दोषी को वही सजा दी जाती है जो अपहरणकर्ता को दी जाती है।

•इसमें कारावास, जुर्माना या दोनों शामिल हो सकते हैं।

BNS की धारा 142 का परिचय→

BNS की धारा 142 IPC की धारा 368 का अद्यतन और विस्तारित रूप है। इसमें अपराध को और स्पष्टता और सख्ती से परिभाषित किया गया है।

प्रमुख विशेषताएँ:→

अपराध का विस्तार:→
इसमें केवल छिपाने और कैद में रखने तक ही नहीं, बल्कि किसी प्रकार की सहायता करने वाले व्यक्तियों को भी शामिल किया गया है।

सजा का प्रावधान:→

•न्यूनतम 3 वर्ष का कठोर कारावास।

•गंभीर मामलों में आजीवन कारावास।

•जुर्माना।

धारा 368 और धारा 142 के बीच मुख्य अंतर→

आईपीसी धारा 368→
•केवल छिपाने और कैद करने वालों पर लागू।
•सजा में स्पष्टता की कमी।
•पुराने कानून के तहत।

बीएनएस धारा 142→
•सहायता करने वालों को भी शामिल करता है।
•नए कानून के तहत। 
•सजा का दायरा और स्पष्ट है।

उदाहरणों से समझें→

उदाहरण 1: पारिवारिक साजिश→
एक परिवार अपने बेटे की शादी रोकने के लिए उसकी मंगेतर को अपहरण करवाकर अपने घर में छिपा लेता है। इस मामले में परिवार के सभी सदस्य IPC की धारा 368 (अब BNS धारा 142) के तहत दोषी होंगे।

उदाहरण 2: मानव तस्करी→
एक व्यक्ति को दूसरे राज्य में मानव तस्करी के लिए बेच दिया जाता है और स्थानीय गिरोह उसे बंधक बनाकर रखता है। गिरोह के सभी सदस्य इस धारा के तहत दंडनीय होंगे।

उदाहरण 3: सहायता प्रदान करना→
एक व्यक्ति अपहरणकर्ता को अपना घर छिपने के लिए देता है और पुलिस से जानकारी छिपाता है। यह व्यक्ति भी BNS धारा 142 के तहत दोषी माना जाएगा।
महत्वपूर्ण केस स्टडीज→

केस: State of Maharashtra v. Suresh (2000)
इस मामले में, दोषी ने एक अपहृत व्यक्ति को अपने घर में छिपाया था, और पुलिस जांच में झूठी जानकारी दी। कोर्ट ने दोषी को IPC की धारा 368 के तहत दोषी ठहराया और सख्त सजा दी।

केस: Raja v. State of Tamil Nadu (2013)→
एक व्यक्ति ने अपहरणकर्ताओं को अपने फार्महाउस में छिपने की अनुमति दी। पुलिस ने उसे भी अपराध में शामिल पाया और उसे धारा 368 के तहत दोषी ठहराया गया।

केस: State of Uttar Pradesh v. Karimuddin (2022)→
इस मामले में, स्थानीय पुलिस ने मानव तस्करी के शिकार बच्चों को एक गिरोह के चंगुल से बचाया। गिरोह के सदस्यों को BNS की धारा 142 के तहत दोषी ठहराया गया।

इस कानून का महत्व और प्रभाव→

अपराधियों पर सख्ती:→
IPC की तुलना में BNS के प्रावधान अधिक सख्त हैं, जो अपराधियों के लिए दंड को प्रभावी बनाते हैं।

पीड़ितों की सुरक्षा:→
कानून पीड़ितों को अधिक सुरक्षा और अपराधियों को दंडित करने में सहायक है।

अपराध में सहयोग पर रोक:→
यह कानून उन लोगों पर भी शिकंजा कसता है जो अपराध में सहायता करते हैं।

निष्कर्ष:→

IPC की धारा 368 से BNS की धारा 142 तक का यह बदलाव कानून की सख्ती और स्पष्टता को दर्शाता है। यह केवल अपराधियों को दंडित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में अपराध के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोगों को भी जवाबदेह बनाता है।

क्या आप मानते हैं कि यह बदलाव अपराधों पर लगाम लगाने में प्रभावी होगा? अपने विचार साझा करें।

    

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद ...