IPC की धारा 361 और BNS की धारा 137(1)-ख: अपहरण से जुड़े कानून की पूरी जानकारी और उदाहरण
भारतीय कानून व्यवस्था में सुधार और अद्यतन करते हुए, भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं को नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) में परिवर्तित किया गया है। इसी क्रम में, IPC की धारा 361, जो वैध अभिभावक की संरक्षा से अपहरण (Kidnapping from Lawful Guardianship) से संबंधित थी, अब BNS की धारा 137(1)-ख के अंतर्गत सम्मिलित की गई है। यह बदलाव न केवल कानून को अधिक स्पष्ट बनाता है बल्कि इसमें आधुनिक समय की जरूरतों को भी शामिल किया गया है।
इस लेख में हम IPC की धारा 361 और BNS की धारा 137(1)-ख का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, इनके बीच का अंतर समझेंगे, और उदाहरणों के माध्यम से इनके उपयोग को स्पष्ट करेंगे।
IPC की धारा 361 का परिचय→
IPC की धारा 361 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कोई भी व्यक्ति नाबालिग या मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति को उनके वैध अभिभावक की अनुमति के बिना अपनी हिरासत में न ले। इस धारा में नाबालिग बच्चों और मानसिक रूप से असक्षम व्यक्तियों को विशेष सुरक्षा प्रदान की गई थी।
धारा 361 के प्रावधान:→
नाबालिगों की सुरक्षा: →
यदि कोई 16 वर्ष से कम आयु के लड़के या 18 वर्ष से कम आयु की लड़की को उसके अभिभावक की सहमति के बिना ले जाता है या रोकता है, तो यह अपहरण माना जाएगा।
मानसिक रूप से असक्षम व्यक्ति: →
मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति को वैध अभिभावक की सहमति के बिना ले जाना भी अपराध के अंतर्गत आता है।
वैध अभिभावक: →
माता-पिता, कानूनी संरक्षक, या कोई अन्य व्यक्ति जिसे अदालत ने अभिभावक नियुक्त किया हो।
सजा:→
IPC की धारा 361 के तहत दोषी पाए जाने पर 7 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना लगाया जा सकता था।
BNS की धारा 137(1)-ख: नया प्रावधान→
2023 में भारतीय न्याय संहिता (BNS) को लागू करने के साथ, IPC की धारा 361 को BNS की धारा 137(1)-ख में स्थानांतरित कर दिया गया है। यह नया प्रावधान न केवल पुरानी धारा को स्पष्ट करता है बल्कि इसमें डिजिटल युग और आधुनिक परिस्थितियों को भी शामिल किया गया है।
धारा 137(1)-ख के प्रावधान:→
अभिभावक की सहमति का अभाव: →
यदि नाबालिग या मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति को किसी भी प्रकार से ले जाया जाता है, और यह कार्य वैध अभिभावक की सहमति के बिना होता है, तो इसे अपराध माना जाएगा।
डिजिटल माध्यम: →
डिजिटल और ऑनलाइन माध्यम से नाबालिग को बहलाना या उनकी सहमति प्राप्त करना भी इस धारा के अंतर्गत आएगा।
सामाजिक स्थिति: →
यदि अपराधी ने नाबालिग की सामाजिक या आर्थिक स्थिति का गलत लाभ उठाया है, तो यह अपराध अधिक गंभीर माना जाएगा।
सजा:→
•7 से 10 साल तक का कठोर कारावास।
•आर्थिक दंड का प्रावधान।
•संगीन मामलों में अदालत अधिक कठोर सजा भी दे सकती है।
उदाहरण के माध्यम से समझना→
उदाहरण 1: नाबालिग का अपहरण→
रवि, एक 17 वर्षीय लड़की को बहला-फुसलाकर उसके माता-पिता की सहमति के बिना, शहर से बाहर ले जाता है।
यह मामला BNS की धारा 137(1)-ख के तहत आएगा क्योंकि लड़की नाबालिग है और उसे वैध अभिभावक की अनुमति के बिना ले जाया गया।
उदाहरण 2: मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति का अपहरण→
संदीप, एक मानसिक रूप से असक्षम व्यक्ति को उसके भाई की अनुमति के बिना अपने साथ ले जाता है।
यह घटना भी BNS की धारा 137(1)-ख के अंतर्गत आएगी क्योंकि व्यक्ति मानसिक रूप से अक्षम है और वैध अभिभावक की सहमति नहीं थी।
उदाहरण 3: डिजिटल माध्यम से अपहरण→
•अजय, एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 15 वर्षीय लड़के को बहलाता है और उसे घर छोड़कर भागने के लिए प्रेरित करता है।
•यह मामला BNS की धारा 137(1)-ख के तहत अधिक गंभीर माना जाएगा क्योंकि इसमें डिजिटल माध्यम का उपयोग किया गया है।
अदालत में इसे कैसे साबित किया जाएगा?
BNS की धारा 137(1)-ख के तहत अपराध साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को निम्नलिखित साक्ष्य और तर्क प्रस्तुत करने होंगे:→
पीड़ित की आयु का प्रमाण: →
जन्म प्रमाणपत्र, स्कूल रिकॉर्ड या अन्य कानूनी दस्तावेज।
अभिभावक की सहमति का अभाव: →
अभिभावक का बयान जो यह साबित करे कि अनुमति नहीं दी गई थी।
डिजिटल साक्ष्य: →
सोशल मीडिया चैट, कॉल रिकॉर्ड, या अन्य डिजिटल साक्ष्य।
गवाह: →
घटना स्थल पर उपस्थित लोग या वे लोग जिन्होंने अपराध होते हुए देखा।
निष्कर्ष:→
IPC की धारा 361 और BNS की धारा 137(1)-ख का उद्देश्य नाबालिग और मानसिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करना है। नए प्रावधान डिजिटल युग की चुनौतियों का समाधान करते हैं और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
इसलिए, यह जरूरी है कि आम नागरिक इन धाराओं के बारे में जागरूक रहें और किसी भी प्रकार के अपराध की सूचना समय पर दें। "कानून का पालन न केवल सरकार की जिम्मेदारी है, बल्कि समाज के हर व्यक्ति का दायित्व है।"
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