Skip to main content

भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

IPC की धारा 359 और BNS की धारा 137(1) किन मामलों में मुकदमा दर्ज होता है?

IPC की धारा 359 और BNS की धारा 137(1): विस्तृत जानकारी और उदाहरण

भारतीय कानून में समय-समय पर बदलाव किए जाते हैं ताकि इसे अधिक प्रभावी और समयानुकूल बनाया जा सके। इसी क्रम में, भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code - IPC) की धारा 359, जो अपहरण (Kidnapping) से संबंधित थी, अब भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita - BNS) की धारा 137(1) के रूप में सम्मिलित की गई है। इस लेख में हम इन दोनों धाराओं का विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि कैसे यह प्रावधान लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम करता है।

IPC की धारा 359 का परिचय

IPC की धारा 359 का उद्देश्य अपहरण को परिभाषित करना और इससे संबंधित अपराधों के लिए सजा निर्धारित करना था। यह धारा विशेष रूप से दो प्रकार के अपहरण पर केंद्रित थी:

भारतीय क्षेत्र से अपहरण (Kidnapping from India): जब किसी व्यक्ति को भारत की सीमा से बाहर ले जाया जाता है, उसकी सहमति के बिना।

संरक्षण से अपहरण (Kidnapping from Lawful Guardianship): जब किसी नाबालिग (16 वर्ष से कम आयु के लड़के और 18 वर्ष से कम आयु की लड़की) या मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति को उनके वैध अभिभावक की अनुमति के बिना ले जाया जाता है।

BNS की धारा 137(1): बदलाव का उद्देश्य

2023 में, भारत सरकार ने भारतीय दंड संहिता को संशोधित करके भारतीय न्याय संहिता लागू की। इस बदलाव का उद्देश्य कानून को अधिक स्पष्ट, सरल और आधुनिक बनाना था। IPC की धारा 359 को BNS की धारा 137(1) में स्थानांतरित किया गया, लेकिन इसमें कुछ अतिरिक्त प्रावधान और परिभाषाएं जोड़ी गईं, ताकि इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

BNS धारा 137(1): मुख्य प्रावधान

BNS की धारा 137(1) के अनुसार:

यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना और कानूनन अधिकार वाले अभिभावक की अनुमति के बिना कहीं ले जाता है या रोकता है, तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा।

यह धारा नाबालिगों, मानसिक रूप से अक्षम व्यक्तियों, और सहमति के बिना किसी को भारत से बाहर ले जाने से संबंधित सभी मामलों को कवर करती है।

सजा: दोषी पाए जाने पर 3 से 7 वर्ष तक का कारावास और आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।

दोनों धाराओं के बीच मुख्य अंतर

भाषा और संरचना में स्पष्टता: IPC में कई धाराओं की भाषा जटिल थी, जो अदालतों में भ्रम पैदा करती थी। BNS में इन प्रावधानों को सरल और स्पष्ट बनाया गया है।

आधुनिक संदर्भ का समावेश: BNS की धारा 137(1) में डिजिटल युग के संदर्भ में नए पहलुओं को जोड़ा गया है, जैसे ऑनलाइन या डिजिटल माध्यम से किसी को बहलाकर अपहरण करना।

सजा में बदलाव: IPC की धारा 359 के मुकाबले BNS की धारा 137(1) में सजा को अधिक कठोर और दंडात्मक बनाया गया है।

उदाहरण के माध्यम से समझना

उदाहरण 1: भारतीय क्षेत्र से अपहरण

रमेश, एक व्यक्ति, बिना सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force) को सूचित किए, सीमा पार से भारत के एक गांव से एक बच्चे को बांग्लादेश ले जाता है।
इस मामले में, रमेश पर BNS की धारा 137(1) के तहत आरोप लगाया जाएगा क्योंकि उसने बच्चे को भारत से बाहर ले जाने के लिए कानूनी अनुमति नहीं ली।

उदाहरण 2: अभिभावक की सहमति के बिना अपहरण

सुरेश, एक 17 वर्षीय लड़की को बहलाकर और उसकी सहमति के बिना, उसके घर से दूर एक अज्ञात स्थान पर ले जाता है। लड़की के माता-पिता ने सुरेश के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई।
यह मामला भी BNS की धारा 137(1) के तहत आएगा, क्योंकि सुरेश ने लड़की के वैध अभिभावक की अनुमति नहीं ली।

उदाहरण 3: डिजिटल माध्यम से अपहरण

रोहित, एक नाबालिग को सोशल मीडिया के जरिए फुसलाता है और उसे अपने घर से भागकर मिलने के लिए मजबूर करता है।
यह आधुनिक समय का एक उदाहरण है, जिसे अब BNS की धारा 137(1) में शामिल किया गया है।

निष्कर्ष

IPC की धारा 359 से BNS की धारा 137(1) तक का सफर इस बात का प्रमाण है कि भारत का कानूनी ढांचा समय के साथ बदल रहा है। यह बदलाव न केवल कानून को अधिक प्रभावी बनाता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि आधुनिक समय के अपराधों को भी ध्यान में रखा जाए।
इसलिए, कानून का सही उपयोग सुनिश्चित करना न केवल न्यायपालिका की जिम्मेदारी है, बल्कि आम नागरिकों को भी इन प्रावधानों की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझ सकें।

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...