IPC की धारा 324 और BNS की धारा 118(1)नए भारतीय न्याय संहिता के तहत चोट से जुड़े अपराध और सजा का पूरा विवरण
IPC की धारा 324 और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 118(1): विस्तार से समझिए→
भारतीय कानून में समय-समय पर बदलाव होते रहे हैं ताकि यह समय की आवश्यकताओं के अनुसार प्रासंगिक बना रहे। ऐसा ही एक बड़ा बदलाव भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code या IPC) में किया गया है। IPC की धारा 324, जो चोट पहुंचाने से संबंधित है, अब भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita या BNS) के तहत धारा 118(1) के रूप में पुनः व्यवस्थित कर दी गई है। आइए इन दोनों धाराओं को विस्तार से समझें और जानें कि इनका उद्देश्य और प्रक्रिया क्या है, साथ ही इसके कुछ उदाहरण भी देखें।
IPC की धारा 324 क्या थी?
IPC की धारा 324 एक आपराधिक धारा थी, जिसमें किसी भी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को किसी हथियार या खतरनाक वस्तु से चोट पहुँचाने की स्थिति में सजा का प्रावधान था। इस धारा के अंतर्गत चोट पहुँचाने के इरादे से किए गए ऐसे कार्य आते थे जिनसे दूसरे व्यक्ति को चोट लगने की संभावना होती है। यह धारा गैर-ज़मानती और संज्ञेय थी, यानी पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती थी, और कोर्ट से जमानत लेना भी आवश्यक होता था।
इस धारा में उन मामलों को कवर किया गया था जहाँ चोटें पहुँचाने के लिए निम्नलिखित हथियारों या वस्तुओं का प्रयोग किया गया हो:→
•कोई घातक हथियार (जैसे चाकू, तलवार)
•विषाक्त पदार्थ (जैसे ज़हर या एसिड)
•आग या गरम वस्त्र से चोट पहुँचाना
इसमें दोषी पाए जाने पर दोषी व्यक्ति को तीन साल तक की जेल, जुर्माना, या दोनों सज़ा का प्रावधान था।
IPC की धारा 324 को BNS की धारा 118(1) में बदलने का उद्देश्य:→
कानून में हुए बदलावों के अनुसार, अब IPC की धारा 324 को BNS की धारा 118(1) में सम्मिलित कर दिया गया है। इस नए कानून का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मामलों को और भी स्पष्ट तरीके से परिभाषित किया जा सके और आरोपी को उचित सजा दी जा सके।
BNS की धारा 118(1) के तहत भी चोट पहुँचाने के इरादे से किसी खतरनाक हथियार या वस्तु का प्रयोग करने वाले को दंडित किया जाता है। यह धारा भी गैर-ज़मानती और संज्ञेय है, जोकि दोषियों के प्रति सख्त कार्रवाई को सुनिश्चित करती है। BNS में धारा 118(1) के अंतर्गत सज़ा और प्रक्रियाओं को लगभग उसी तरह रखा गया है जैसे IPC की धारा 324 में था, लेकिन कुछ छोटे बदलाव भी किए गए हैं।
BNS की धारा 118(1) के तहत सजा:→
•दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को तीन साल तक की जेल, जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।
•यह धारा संज्ञेय और गैर-ज़मानती है, जिससे पुलिस को तुरंत कार्रवाई करने का अधिकार मिलता है।
उदाहरण के माध्यम से समझें:→
1. उदाहरण 1→:
मान लीजिए कि राम और श्याम के बीच झगड़ा हो गया और इस झगड़े के दौरान राम ने श्याम पर चाकू से हमला कर दिया, जिससे श्याम को गहरी चोट आई। यह कार्य चोट पहुँचाने के इरादे से किया गया, और चाकू एक खतरनाक हथियार की श्रेणी में आता है। इसलिए, इस मामले में BNS की धारा 118(1) के तहत राम पर मामला दर्ज हो सकता है और उसे सजा का प्रावधान है।
2. उदाहरण 2→:
रीता और गीता के बीच कोई व्यक्तिगत विवाद हुआ। झगड़े के दौरान रीता ने गीता के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया। तेजाब एक खतरनाक वस्तु के रूप में माना जाता है, जिससे व्यक्ति को गंभीर चोट लग सकती है। इस स्थिति में, रीता पर BNS की धारा 118(1) के तहत मामला दर्ज हो सकता है, और उसे जेल या जुर्माने के रूप में सजा दी जा सकती है।
3. उदाहरण 3→:
किसी गर्म लोहे की रॉड से हमला करने का मामला भी इसी धारा के अंतर्गत आएगा, क्योंकि यह एक खतरनाक वस्तु से हमला करने की स्थिति है।
निष्कर्ष:→
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 118(1) और पहले की IPC की धारा 324 दोनों ही ऐसे मामलों को कवर करती हैं, जहाँ चोट पहुँचाने के इरादे से खतरनाक वस्तुओं का प्रयोग किया गया हो। इन धाराओं के तहत दोषियों को कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है, ताकि समाज में अपराधियों के प्रति एक सख्त संदेश जाए और लोगों में भय बना रहे।
इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य कानून को और भी प्रभावशाली बनाना है ताकि न्यायपालिका पीड़ित को त्वरित और उचित न्याय दिला सके।
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