IPC की धारा 315 और BNS की धारा 91: →
गर्भवती महिला के भ्रूण को नष्ट करने और जन्म के बाद शिशु की मृत्यु पर कानून का विश्लेषण→
भारतीय कानून में गर्भवती महिला और शिशु की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। इसी उद्देश्य से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 315 और नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 91 बनाई गई हैं। ये धाराएँ गर्भवती महिला के भ्रूण को नुकसान पहुँचाने और जन्म के बाद शिशु की मृत्यु के कारण होने वाले अपराधों को नियंत्रित करने का कार्य करती हैं। इस ब्लॉग में हम IPC की धारा 315 और BNS की धारा 91 का विस्तार से विश्लेषण करेंगे और इसे समझने के लिए कुछ उदाहरण भी देंगे।
IPC की धारा 315: जन्म से पहले या बाद शिशु की मृत्यु का अपराध→
IPC की धारा 315 का उद्देश्य गर्भवती महिला के भ्रूण या जन्म लेने वाले शिशु को नुकसान पहुँचाने की किसी भी प्रकार की कोशिशों को रोकना है। यह धारा उस स्थिति में लागू होती है जब कोई व्यक्ति किसी गर्भवती महिला के भ्रूण को हानि पहुँचाने या जन्म लेने वाले शिशु को मारने का प्रयास करता है, यदि ऐसा करना शिशु के जीवन को खतरे में डालता हो। इसमें उन मामलों को भी शामिल किया गया है जहाँ जन्म के बाद शिशु की मृत्यु को जानबूझकर अंजाम दिया गया हो।
IPC धारा 315 के तहत दंड→
IPC की धारा 315 के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति जन्म के पहले या बाद में शिशु की मृत्यु का प्रयास करता है और इसके कारण शिशु की जान जाती है, तो उसे 10 साल तक की कैद, जुर्माना, या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
BNS की धारा 91: नए कानून में भ्रूण को नुकसान पहुँचाने और जन्म के बाद शिशु की मृत्यु का प्रावधान→
नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) में IPC की धारा 315 को धारा 91 के रूप में पुनः स्थापित किया गया है। BNS की धारा 91 का उद्देश्य भी यही है कि भ्रूण को नुकसान पहुँचाने या जन्म के बाद शिशु की जान लेने के प्रयास को रोका जाए। इसमें गर्भवती महिला के स्वास्थ्य और शिशु के जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
BNS धारा 91 के तहत दंड→
BNS धारा 91 के तहत, अपराधी को 10 साल तक की कठोर सजा, जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है। चाहे शिशु का जन्म हुआ हो या नहीं, लेकिन अगर उसकी जान को खतरे में डालने का प्रयास किया गया है, तो यह धारा लागू होती है।
उदाहरण: IPC धारा 315 और BNS धारा 91 का व्यावहारिक दृष्टांत→
उदाहरण 1: भ्रूण को हानि पहुँचाने का प्रयास→
माना कि एक व्यक्ति अपनी गर्भवती पत्नी के गर्भ को समाप्त करने का प्रयास करता है, जिससे भ्रूण को गंभीर क्षति पहुँचती है। अगर ऐसा प्रयास शिशु के जीवन को खतरे में डालता है, तो यह BNS धारा 91 या IPC धारा 315 के तहत अपराध माना जाएगा। दोषी को 10 साल की सजा और जुर्माना का सामना करना पड़ सकता है।
उदाहरण 2: जन्म के बाद शिशु की जान लेने का प्रयास→
एक महिला का नवजात शिशु गंभीर रूप से बीमार हो जाता है। परिवार का कोई सदस्य इस शिशु को जीवित नहीं रखना चाहता और उसकी देखभाल में लापरवाही बरतता है। अगर इस लापरवाही के कारण शिशु की मृत्यु हो जाती है, तो यह भी BNS धारा 91 के अंतर्गत अपराध होगा। ऐसे मामलों में, दोषी को कठोर सजा दी जा सकती है, भले ही जानबूझकर हत्या का इरादा न हो।
उदाहरण 3: नाजायज संतान के कारण शिशु को हानि पहुँचाना→
माना एक व्यक्ति किसी महिला के गर्भवती होने पर उसे छोड़ देता है और उसके परिवार द्वारा उस शिशु को अस्वीकार कर दिया जाता है। जन्म के बाद शिशु को कोई आवश्यक देखभाल नहीं मिलती और उसकी मृत्यु हो जाती है। यह घटना भी BNS धारा 91 के तहत आती है और दोषियों पर कानून के अनुसार सख्त कार्यवाही की जा सकती है।
उदाहरण 4: अवांछित गर्भावस्था में भ्रूण को हानि पहुँचाने का प्रयास→
एक महिला अवांछित गर्भावस्था के दौरान अपने भ्रूण को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करती है, जिससे गर्भ में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है। यदि ऐसा प्रयास उसके जीवन को खतरे में डालता है, तो यह मामला BNS धारा 91 के अंतर्गत दर्ज हो सकता है, और इसमें भी सख्त सजा का प्रावधान है।
निष्कर्ष: IPC धारा 315 और BNS धारा 91 का महत्व→
IPC धारा 315 और BNS धारा 91 के तहत गर्भवती महिला और शिशु की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। इन धाराओं का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गर्भवती महिला के भ्रूण को जान-बूझकर कोई हानि न पहुँचाई जाए और जन्म के बाद शिशु के जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित हो।
IPC की धारा 315 के BNS धारा 91 में परिवर्तन के साथ, भारतीय न्याय प्रणाली ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि शिशु के जीवन के प्रति कोई भी अनैतिक कृत्य कानूनी कार्रवाई का कारण बन सकता है। इन धाराओं के अंतर्गत गंभीर सजा का प्रावधान करके, भारतीय कानून ने यह सुनिश्चित किया है कि शिशु और भ्रूण के जीवन की रक्षा प्राथमिकता रहे।
इस प्रकार, BNS धारा 91 ने IPC धारा 315 का स्थान लेकर कानून को और अधिक स्पष्ट और प्रभावी बनाया है, ताकि समाज में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।
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