IPC की धारा 293 और BNS की धारा 295: अश्लील सामग्री से जुड़े कानून और उनके उदाहरण→
भारत में समय-समय पर कानूनी सुधारों के चलते पुराने कानूनों को अद्यतन किया गया है। भारतीय दंड संहिता (IPC) में कई ऐसे कानून थे, जिन्हें आधुनिक संदर्भ में अद्यतन करने की आवश्यकता थी। इसी क्रम में IPC की धारा 293 को नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत धारा 295 के रूप में स्थानांतरित किया गया है। इस लेख में, हम IPC की धारा 293 और नए BNS की धारा 295 के बीच समानताओं और अंतरों पर चर्चा करेंगे, और इसे उदाहरण के साथ समझेंगे।
IPC की धारा 293: बच्चों को अश्लील सामग्री की बिक्री पर प्रतिबंध→
IPC की धारा 293 का उद्देश्य था, बच्चों को अश्लील सामग्री की पहुंच से दूर रखना और उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित करने वाले तत्वों से बचाना। इसके तहत कोई भी व्यक्ति 20 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को अश्लील वस्त्र, सामग्री या चित्र बेचने, वितरित करने या प्रदर्शन करने का दोषी हो सकता है। यह धारा इसलिए बनाई गई थी, ताकि बच्चों को इस प्रकार की सामग्री से सुरक्षित रखा जा सके और वे मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकें।
IPC धारा 293 का दंड→
अगर कोई व्यक्ति इस कानून का उल्लंघन करता है, तो पहली बार दोषी पाए जाने पर उसे 3 साल की कैद या जुर्माना, या दोनों की सजा हो सकती है। अगर व्यक्ति इस अपराध को दोबारा करता है, तो सजा बढ़कर 7 साल की कैद और जुर्माना भी हो सकता है।
BNS की धारा 295: बच्चों को अश्लील सामग्री से सुरक्षा का अद्यतन→
भारतीय न्याय संहिता (BNS) के अनुसार धारा 295 को IPC की धारा 293 के स्थान पर लाया गया है। इसका उद्देश्य पूर्ववत ही है, लेकिन नए कानून में बच्चों को अश्लील सामग्री की बिक्री और वितरण पर और भी स्पष्टता से रोक लगाई गई है। इस धारा का मुख्य फोकस बच्चों को हानिकारक और अश्लील सामग्री से सुरक्षा प्रदान करना है, ताकि उनके मानसिक विकास पर नकारात्मक असर न पड़े।
BNS धारा 295 का दंड→
IPC के समान, BNS की धारा 295 के तहत भी पहली बार उल्लंघन करने पर 3 साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों की सजा हो सकती है। यदि अपराध दोबारा किया जाता है, तो सजा बढ़कर 7 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। इस प्रकार से, सजा की मात्रा में कोई विशेष अंतर नहीं किया गया है, लेकिन इसे और आधुनिक संदर्भों में परिभाषित किया गया है ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
उदाहरण: IPC धारा 293 और BNS धारा 295 का व्यावहारिक दृष्टांत→
उदाहरण 1: पहली बार अपराध→
माना एक दुकानदार के पास कई प्रकार की किताबें और पत्रिकाएं हैं, जिनमें से कुछ में अश्लील चित्र और सामग्री है। अगर वह इन्हें 18 साल से कम उम्र के बच्चों को बेचता है और पुलिस को इसकी जानकारी मिलती है, तो उसे IPC धारा 293 या BNS धारा 295 के तहत दोषी माना जा सकता है। पहली बार अपराध के लिए उसे 3 साल तक की सजा या जुर्माना भुगतना पड़ सकता है।
उदाहरण 2: दोबारा अपराध→
उपरोक्त दुकानदार को पुलिस द्वारा चेतावनी दी गई और सजा सुनाई गई, लेकिन उसने फिर भी अपनी आदत नहीं छोड़ी और पुनः अश्लील सामग्री बच्चों को बेची। इस बार उसे 7 साल तक की कैद या जुर्माने की सजा हो सकती है। इस प्रकार, कानून का उल्लंघन करने वाले को दोबारा अपराध करने पर अधिक सख्त सजा का प्रावधान है।
निष्कर्ष: IPC की धारा 293 और BNS की धारा 295 का महत्व→
IPC की धारा 293 और BNS की धारा 295 का मुख्य उद्देश्य बच्चों को हानिकारक और अश्लील सामग्री से सुरक्षित रखना है। यह कानून बच्चों की मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन धाराओं के अंतर्गत अपराधियों को सख्त सजा देने का प्रावधान है, ताकि समाज में बच्चों के लिए एक स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।
IPC धारा 293 और BNS धारा 295: रोचक उदाहरणों के साथ समझना→
IPC की धारा 293 और नए कानून BNS की धारा 295 का उद्देश्य बच्चों को अश्लील सामग्री से सुरक्षित रखना है। कानून के इस पहलू को बेहतर तरीके से समझने के लिए आइए कुछ रोचक और वास्तविक जीवन में घटित होने वाले उदाहरणों के माध्यम से इसे जानते हैं।
उदाहरण 1: कॉमिक्स और मैगज़ीन की बिक्री का मामला→
माना कि किसी पुस्तक स्टोर पर बच्चों के लिए कई प्रकार की कॉमिक्स और मैगज़ीन उपलब्ध हैं, लेकिन इनमें से कुछ में अनुचित सामग्री है। एक दिन, एक अभिभावक ने देखा कि उसका बच्चा एक ऐसी मैगज़ीन पढ़ रहा है जिसमें अश्लील चित्र शामिल हैं। गुस्से में आकर उस अभिभावक ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। पुलिस जांच में पाया गया कि दुकानदार बच्चों को इस तरह की मैगज़ीन बेचता था।
इस मामले में, IPC की धारा 293 और BNS की धारा 295 के तहत उस दुकानदार पर मामला दर्ज हो सकता है, क्योंकि उसने बच्चों को अश्लील सामग्री बेची। पहली बार अपराध के लिए उसे 3 साल तक की सजा या जुर्माना लगाया जा सकता है। अगर उसने पहले भी ऐसा अपराध किया हो, तो उसकी सजा बढ़कर 7 साल तक हो सकती है।
उदाहरण 2: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़ा मामला→
आजकल इंटरनेट और सोशल मीडिया पर बच्चों की पहुंच बढ़ती जा रही है। माना कि एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कुछ ऐसे गेम्स या किताबें उपलब्ध हैं जिनमें अश्लील या अनुचित सामग्री है। अगर प्लेटफॉर्म की ओर से जानबूझकर इस प्रकार की सामग्री बच्चों के लिए प्रमोट की जाती है और इसका पता चलता है, तो उस प्लेटफॉर्म के मालिक या जिम्मेदार व्यक्ति के खिलाफ IPC की धारा 293 और नए BNS की धारा 295 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।
इस मामले में भी, पहली बार अपराध पर 3 साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। अगर वे बार-बार ऐसी गतिविधियों में शामिल पाए जाते हैं, तो सजा बढ़कर 7 साल तक हो सकती है। यह उदाहरण दिखाता है कि डिजिटल युग में भी बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखा गया है।
उदाहरण 3: सिनेमा हॉल में बच्चों को अनुचित फिल्म दिखाने का मामला→
मान लीजिए, एक सिनेमा हॉल में किसी वयस्क (एडल्ट) फिल्म का शो हो रहा है, जिसमें अश्लील और हिंसक दृश्य हैं। यदि सिनेमा हॉल प्रबंधक बच्चों को इस प्रकार की फिल्म का टिकट बेचता है और वे फिल्म देखने जाते हैं, तो यह IPC की धारा 293 और BNS की धारा 295 के उल्लंघन के रूप में देखा जाएगा।
इस मामले में, बच्चों को वयस्क फिल्में दिखाने की अनुमति देने के लिए सिनेमा हॉल के मालिक को दोषी ठहराया जा सकता है। पहली बार दोषी पाए जाने पर उसे 3 साल की सजा या जुर्माना भुगतना पड़ सकता है, और दोबारा अपराध के लिए यह सजा 7 साल तक हो सकती है।
उदाहरण 4: स्कूल के पास किताबें बेचने वाले का मामला→
माना एक स्कूल के पास एक व्यक्ति किताबें बेच रहा है, जिसमें कुछ कॉमिक्स और अन्य उपन्यास शामिल हैं। लेकिन उसकी किताबों में कुछ अश्लील कॉमिक्स भी हैं, जिन्हें वह बच्चों को आसानी से बेच रहा है। अगर स्कूल के किसी अध्यापक ने देखा कि बच्चे इस प्रकार की कॉमिक्स पढ़ रहे हैं और इस पर शिकायत की, तो पुलिस की जांच के बाद उस व्यक्ति के खिलाफ धारा 293 और अब BNS की धारा 295 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।
यह मामला स्पष्ट करता है कि कैसे यह कानून न केवल बच्चों की सुरक्षा करता है, बल्कि उन लोगों के लिए भी एक चेतावनी है जो बच्चों को इस प्रकार की सामग्री बेचने का प्रयास करते हैं।
निष्कर्ष→
IPC की धारा 293 और नए BNS की धारा 295 के ये उदाहरण बताते हैं कि बच्चों को अश्लील सामग्री से सुरक्षित रखना कानून का मुख्य उद्देश्य है। यह बच्चों की मानसिक सुरक्षा और विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
नोट:→ यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए।
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