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विदेशों में भारतीय कानून: IPC, UAPA, और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत भारतीय अधिकार क्षेत्र की समझ

cheque बाउंस क्या होता है? इससे संबंधित नोटिस की drafting कैसे करते हैं?

चेक बाउंस का मुद्दा आजकल बहुत आम हो गया है, खासकर तब जब लोग बड़ी मात्रा में नकद लेन-देन से बचते हुए डिजिटल माध्यमों या चेक से भुगतान करते हैं। चेक बाउंस होने की स्थिति न केवल वित्तीय समस्या पैदा करती है, बल्कि इसके गंभीर कानूनी परिणाम भी हो सकते हैं। आइए इसे सरल और विस्तृत तरीके से समझते हैं।

1. चेक बाउंस (Cheque Dishonour) का मतलब क्या होता है?

जब कोई व्यक्ति किसी अन्य को चेक के माध्यम से भुगतान करता है और उस चेक को बैंक में प्रस्तुत किया जाता है, तो वह चेक क्लियर होने पर बैंक उस राशि को दूसरे के खाते में जमा करता है। लेकिन जब बैंक उस चेक की रकम का भुगतान करने में असमर्थ होता है (अर्थात चेक "बाउंस" हो जाता है), तो इसे चेक बाउंस कहा जाता है।

मुख्य रूप से, चेक बाउंस तब होता है जब:→
  • चेक जारीकर्ता के बैंक खाते में पर्याप्त पैसे नहीं होते।
  • चेक पर हस्ताक्षर गलत होते हैं।
  • चेक में भरी गई जानकारी गलत होती है, जैसे कि तारीख, नाम, या राशि।
  • चेक पुराना हो चुका होता है (अधिकतम तीन महीने पुराने चेक मान्य होते हैं)।
  • बैंक खाता फ्रीज हो गया हो या बंद हो चुका हो।

2. चेक कितने समय तक वैध रहता है?

चेक की वैधता की अवधि 3 महीने होती है। यानी जिस तारीख का चेक जारी किया गया है, उसे 3 महीनों के भीतर बैंक में जमा किया जाना चाहिए। अगर यह अवधि बीत जाती है, तो चेक बाउंस हो जाएगा क्योंकि चेक की वैधता समाप्त हो चुकी होती है।

3. चेक बाउंस होने के कारण:→

चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:→
खाते में अपर्याप्त धन:→ सबसे सामान्य कारण यह होता है कि जिस व्यक्ति ने चेक जारी किया है, उसके खाते में चेक की राशि जितने पैसे नहीं होते।
गलत हस्ताक्षर: →अगर चेक पर किया गया हस्ताक्षर बैंक में रिकॉर्ड से मेल नहीं खाता, तो चेक बाउंस हो सकता है।
पुराना चेक: →तीन महीने से अधिक पुराना चेक जमा करने पर वह अमान्य हो जाता है।
बैंक अकाउंट फ्रीज:→अगर चेक जारीकर्ता का बैंक खाता किसी कारण से फ्रीज हो गया है, तो चेक बाउंस हो सकता है।
जानकारी में गलती:→चेक पर नाम, तारीख या राशि में गलती होने पर भी चेक बाउंस हो सकता है।

4. चेक बाउंस होने पर क्या करना चाहिए?

जब आपका चेक बाउंस हो जाता है, तो सबसे पहले बैंक से इसकी लिखित सूचना प्राप्त करें, जिसमें चेक बाउंस होने का कारण स्पष्ट किया गया हो। इसके बाद आप निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:→

  • कदम 1:→चेक जारीकर्ता को सूचना देना→
चेक बाउंस होने की जानकारी चेक देने वाले व्यक्ति को दें। हो सकता है कि उसने जानबूझकर ऐसा नहीं किया हो और वह जल्द ही आपकी समस्या का समाधान कर दे। अगर वह अपनी गलती मानकर भुगतान करने को तैयार है, तो कानूनी कार्रवाई से बचा जा सकता है।

  • कदम 2:→  लीगल नोटिस भेजना
अगर चेक जारीकर्ता आपकी बातों को नजरअंदाज करता है या भुगतान करने से इनकार करता है, तो आप उसे एक लीगल नोटिस भेज सकते हैं। यह नोटिस चेक बाउंस होने के 30 दिनों के भीतर भेजना जरूरी है। इसमें चेक बाउंस की वजह, रकम और भुगतान की मांग का उल्लेख किया जाता है।

  • कदम 3: →अदालत में मुकदमा दायर करना
यदि 15 दिनों के भीतर लीगल नोटिस का कोई उत्तर नहीं मिलता या चेक जारीकर्ता भुगतान करने से इनकार कर देता है, तो आप उसके खिलाफ अदालत में मुकदमा दर्ज कर सकते हैं। मुकदमा दो प्रकार के हो सकते हैं:→

1. सिविल मुकदमा:→आपसिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 37: →के तहत सिविल मुकदमा दायर कर सकते हैं। इसमें आपको बकाया राशि और हर्जाना मिल सकता है।
2. आपराधिक मुकदमा : →आप नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881की  धारा 138 के तहत आपराधिक मुकदमा दायर कर सकते हैं। इसमें चेक जारीकर्ता को दो साल की सजा या चेक की राशि का दोगुना जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।

5. चेक बाउंस के मामलों में कौन-कौन सी धाराएं लागू होती हैं?

चेक बाउंस के मामलों में निम्नलिखित धाराएं प्रमुख रूप से लागू होती हैं:→

धारा 138 (नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881):→ यह धारा चेक बाउंस के मामलों में कानूनी कार्रवाई का प्रावधान करती है। इस धारा के तहत, अगर चेक जारीकर्ता भुगतान करने में असफल रहता है, तो उसे जेल या जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 420: → अगर चेक जारीकर्ता ने जानबूझकर धोखाधड़ी की है, तो उस पर धारा 420 के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।

6. मुकदमा दायर करते समय आवश्यक दस्तावेज

अगर आप अदालत में चेक बाउंस का मामला दायर करने जा रहे हैं, तो निम्नलिखित दस्तावेज आपके पास होने चाहिए:→
(1.) चेक की मूल प्रति जो बाउंस हुआ है।
(2.) बैंक द्वारा चेक बाउंस की स्लिप, जिसमें बाउंस होने का कारण लिखा हो।
(3.) लीगल नोटिस की प्रति जो आपने चेक जारीकर्ता को भेजी थी।
(4. )रजिस्टर्ड पोस्ट की रसीद जो लीगल नोटिस भेजने का प्रमाण हो।
(5. )अगर चेक किसी व्यापार या लेन-देन से संबंधित है, तो उस लेन-देन के दस्तावेज।
(6. )किसी भी प्रकार का अग्रीमेंट (अगर कोई हो) जो चेक जारीकर्ता और प्राप्तकर्ता के बीच हुआ हो।

(7. )कब चेक बाउंस होने पर मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता?

कानूनी प्रक्रिया तब लागू होती है जब चेक किसी व्यापारिक लेन-देन या भुगतान के उद्देश्य से दिया गया हो। अगर चेक:→
  • गिफ्ट के रूप में दिया गया हो,
  • दान या चंदे के रूप में दिया गया हो,
  • या किसी निजी उपहार के रूप में दिया गया हो,

तो चेक बाउंस होने पर आप कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकते।

8. कुछ ऐतिहासिक केस स्टडीज:→

Dalmia Cement Ltd. vs Galaxy Traders & Agencies Ltd.:→
इस केस में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला किया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस एक गंभीर आपराधिक अपराध है। अदालत ने चेक बाउंस को एक सख्त अपराध माना और दोषी को सजा सुनाई। यह केस यह दर्शाता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था चेक बाउंस के मामलों में कितनी कठोर हो सकती है।

Kusum Ingots & Alloys Ltd. vs Pennar Peterson Securities Ltd.→
इस मामले में, अदालत ने चेक बाउंस के कारण आरोपी को दोषी ठहराया। यह केस यह दर्शाता है कि अगर व्यक्ति जानबूझकर धोखाधड़ी करता है और चेक बाउंस होता है, तो कानून उसे कड़ी सजा दे सकता है।

निष्कर्ष:→

चेक बाउंस एक गंभीर मामला है और इसके कानूनी परिणाम हो सकते हैं। इसे सुलझाने का सही तरीका है कि चेक जारीकर्ता को समय पर लीगल नोटिस भेजा जाए और अगर वह जवाब नहीं देता है तो अदालत में उचित मुकदमा दायर किया जाए। अगर सभी प्रक्रियाओं को सही तरीके से किया जाता है, तो चेक बाउंस के मामलों में न्याय मिलने की संभावना अधिक होती है।

Cheque बाउंस होने पर क्या सजा होती है?

हाँ, चेक बाउंस पर सजा हो सकती है, और यह नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत अपराध माना जाता है। चेक बाउंस होने की स्थिति में अदालत द्वारा दोषी पाए जाने पर सजा के दो प्रकार हो सकते हैं:→

1. आपराधिक सजा (Criminal Penalty):→

यदि चेक बाउंस का मामला अदालत में जाता है और चेक जारीकर्ता दोषी पाया जाता है, तो उसे निम्नलिखित सजा हो सकती है:→

जेल की सजा:  →दोषी व्यक्ति को अधिकतम 2 साल तक की जेल हो सकती है।
  
जुर्माना: →अदालत चेक जारीकर्ता पर चेक की राशि का दोगुना  तक जुर्माना भी लगा सकती है।

या दोनों: →अदालत स्थिति के अनुसार दोनों सजा दे सकती है दो साल तक की जेल और चेक की राशि का दोगुना जुर्माना।

2. सिविल सजा (Civil Penalty):→

सिविल मुकदमे के अंतर्गत, चेक प्राप्तकर्ता (जिसका चेक बाउंस हुआ है) सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर सकता है। इसमें निम्नलिखित प्रकार की सजा हो सकती है:→

बकाया राशि की वसूली: →चेक की असली राशि और बकाया की वसूली के लिए सिविल कोर्ट आदेश दे सकता है।
  
मुआवजा और हर्जाना:→सिविल कोर्ट चेक जारीकर्ता से मुआवजा या हर्जाना भी दिलवा सकती है, जो उस व्यक्ति द्वारा हुई असुविधा या नुकसान की भरपाई हो।

सजा की प्रक्रिया:→

चेक बाउंस की स्थिति में शिकायतकर्ता को पहले चेक जारीकर्ता को लीगल नोटिस भेजना होता है। यदि 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया जाता, तो शिकायतकर्ता अदालत में मामला दायर कर सकता है। दोष सिद्ध होने पर, उपरोक्त सजा दी जा सकती है।

विशेष ध्यान देने योग्य बातें:→

  •  चेक बाउंस मामलों में अधिकतम सजा 2 साल की जेल या चेक राशि का दोगुना जुर्माना हो सकता है।
  • सजा का निर्धारण चेक बाउंस की परिस्थितियों, मंशा, और आरोपी के रुख के आधार पर किया जाता है।


चेक बाउंस के मामलों में कई ऐतिहासिक और रोचक केस सामने आए हैं, जिन्होंने इस कानून के दायरे में महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं। यहाँ कुछ प्रमुख केस दिए जा रहे हैं जो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत चेक बाउंस पर सजा से जुड़े हैं:→

1. दालमिया सीमेंट बनाम गैल्को स्टील्स (Dalmia Cement v. Galaxy Steels Ltd., 2001):→

मामले का सार:→
इस केस में, गैल्को स्टील्स ने दालमिया सीमेंट को एक बड़ी राशि का भुगतान चेक के माध्यम से किया था, लेकिन चेक बाउंस हो गया। जब दालमिया सीमेंट ने गैल्को स्टील्स को नोटिस भेजा और कोई भुगतान नहीं हुआ, तो मामला अदालत में पहुंचा।

फैसला:→
अदालत ने गैल्को स्टील्स को दोषी पाया और उसे सजा सुनाई गई। यह केस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें यह साफ किया गया कि कंपनी के निदेशकों को भी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है यदि चेक उनके आदेश पर जारी किया गया था। इस केस में निदेशकों को भी सजा मिली, जिसमें जेल और भारी जुर्माना शामिल था।

महत्त्व:→
यह फैसला चेक बाउंस मामलों में जिम्मेदारी तय करने के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ, खासकर कॉर्पोरेट मामलों में।



2. मोदी सीमेंट बनाम कुशारे (Modi Cements Ltd. v. Kuchil Kumar Nandi, 1998):→

मामले का सार:→
इस केस में, आरोपी ने चेक जारी किया था लेकिन बाद में बैंक को चेक को स्टॉप पेमेंट के निर्देश दे दिए, जिससे चेक बाउंस हो गया। शिकायतकर्ता ने चेक बाउंस के लिए कानूनी कार्रवाई की मांग की।

फैसला:→
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि चेक जारीकर्ता ने जानबूझकर स्टॉप पेमेंट के निर्देश दिए और चेक बाउंस हुआ, तो इसे धारा 138के तहत अपराध माना जाएगा। इस मामले में आरोपी को सजा दी गई और जुर्माना भी लगाया गया।

महत्त्व:→
इस केस ने स्पष्ट किया कि भले ही चेक बाउंस का कारण स्टॉप पेमेंट हो, फिर भी धारा 138 के तहत यह अपराध होगा यदि आरोपी के पास पर्याप्त धनराशि नहीं थी।



3. श्रीकृष्णा बनाम नागेश (Shri Krishna v. Nagesh, 2011):→

मामले का सार:→
चेक बाउंस का मुद्दा आजकल बहुत आम हो गया है, खासकर तब जब लोग बड़ी मात्रा में नकद लेन-देन से बचते हुए डिजिटल माध्यमों या चेक से भुगतान करते हैं। चेक बाउंस होने की स्थिति न केवल वित्तीय समस्या पैदा करती है, बल्कि इसके गंभीर कानूनी परिणाम भी हो सकते हैं। आइए इसे सरल और विस्तृत तरीके से समझते हैं।

1. चेक बाउंस (Cheque Dishonour) का मतलब क्या होता है?

जब कोई व्यक्ति किसी अन्य को चेक के माध्यम से भुगतान करता है और उस चेक को बैंक में प्रस्तुत किया जाता है, तो वह चेक क्लियर होने पर बैंक उस राशि को दूसरे के खाते में जमा करता है। लेकिन जब बैंक उस चेक की रकम का भुगतान करने में असमर्थ होता है (अर्थात चेक "बाउंस" हो जाता है), तो इसे चेक बाउंस कहा जाता है।

मुख्य रूप से, चेक बाउंस तब होता है जब:→
  • चेक जारीकर्ता के बैंक खाते में पर्याप्त पैसे नहीं होते।
  • चेक पर हस्ताक्षर गलत होते हैं।
  • चेक में भरी गई जानकारी गलत होती है, जैसे कि तारीख, नाम, या राशि।
  • चेक पुराना हो चुका होता है (अधिकतम तीन महीने पुराने चेक मान्य होते हैं)।
  • बैंक खाता फ्रीज हो गया हो या बंद हो चुका हो।

2. चेक कितने समय तक वैध रहता है?

चेक की वैधता की अवधि 3 महीने होती है। यानी जिस तारीख का चेक जारी किया गया है, उसे 3 महीनों के भीतर बैंक में जमा किया जाना चाहिए। अगर यह अवधि बीत जाती है, तो चेक बाउंस हो जाएगा क्योंकि चेक की वैधता समाप्त हो चुकी होती है।

3. चेक बाउंस होने के कारण:→

चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:→
खाते में अपर्याप्त धन:→ सबसे सामान्य कारण यह होता है कि जिस व्यक्ति ने चेक जारी किया है, उसके खाते में चेक की राशि जितने पैसे नहीं होते।
गलत हस्ताक्षर: →अगर चेक पर किया गया हस्ताक्षर बैंक में रिकॉर्ड से मेल नहीं खाता, तो चेक बाउंस हो सकता है।
पुराना चेक: →तीन महीने से अधिक पुराना चेक जमा करने पर वह अमान्य हो जाता है।
बैंक अकाउंट फ्रीज:→अगर चेक जारीकर्ता का बैंक खाता किसी कारण से फ्रीज हो गया है, तो चेक बाउंस हो सकता है।
जानकारी में गलती:→चेक पर नाम, तारीख या राशि में गलती होने पर भी चेक बाउंस हो सकता है।

4. चेक बाउंस होने पर क्या करना चाहिए?

जब आपका चेक बाउंस हो जाता है, तो सबसे पहले बैंक से इसकी लिखित सूचना प्राप्त करें, जिसमें चेक बाउंस होने का कारण स्पष्ट किया गया हो। इसके बाद आप निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:→

कदम 1:→चेक जारीकर्ता को सूचना देना→
चेक बाउंस होने की जानकारी चेक देने वाले व्यक्ति को दें। हो सकता है कि उसने जानबूझकर ऐसा नहीं किया हो और वह जल्द ही आपकी समस्या का समाधान कर दे। अगर वह अपनी गलती मानकर भुगतान करने को तैयार है, तो कानूनी कार्रवाई से बचा जा सकता है।

कदम 2:→  लीगल नोटिस भेजना
अगर चेक जारीकर्ता आपकी बातों को नजरअंदाज करता है या भुगतान करने से इनकार करता है, तो आप उसे एक लीगल नोटिस भेज सकते हैं। यह नोटिस चेक बाउंस होने के 30 दिनों के भीतर भेजना जरूरी है। इसमें चेक बाउंस की वजह, रकम और भुगतान की मांग का उल्लेख किया जाता है।

कदम 3: →अदालत में मुकदमा दायर करना
यदि 15 दिनों के भीतर लीगल नोटिस का कोई उत्तर नहीं मिलता या चेक जारीकर्ता भुगतान करने से इनकार कर देता है, तो आप उसके खिलाफ अदालत में मुकदमा दर्ज कर सकते हैं। मुकदमा दो प्रकार के हो सकते हैं:→

1. सिविल मुकदमा:→आपसिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 37: →के तहत सिविल मुकदमा दायर कर सकते हैं। इसमें आपको बकाया राशि और हर्जाना मिल सकता है।
2. आपराधिक मुकदमा : →आप नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881की  धारा 138 के तहत आपराधिक मुकदमा दायर कर सकते हैं। इसमें चेक जारीकर्ता को दो साल की सजा या चेक की राशि का दोगुना जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।

5. चेक बाउंस के मामलों में कौन-कौन सी धाराएं लागू होती हैं?

चेक बाउंस के मामलों में निम्नलिखित धाराएं प्रमुख रूप से लागू होती हैं:→

धारा 138 (नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881):→ यह धारा चेक बाउंस के मामलों में कानूनी कार्रवाई का प्रावधान करती है। इस धारा के तहत, अगर चेक जारीकर्ता भुगतान करने में असफल रहता है, तो उसे जेल या जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 420: → अगर चेक जारीकर्ता ने जानबूझकर धोखाधड़ी की है, तो उस पर धारा 420 के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।

6. मुकदमा दायर करते समय आवश्यक दस्तावेज

अगर आप अदालत में चेक बाउंस का मामला दायर करने जा रहे हैं, तो निम्नलिखित दस्तावेज आपके पास होने चाहिए:→
(1.) चेक की मूल प्रति जो बाउंस हुआ है।
(2.) बैंक द्वारा चेक बाउंस की स्लिप, जिसमें बाउंस होने का कारण लिखा हो।
(3.) लीगल नोटिस की प्रति जो आपने चेक जारीकर्ता को भेजी थी।
(4. )रजिस्टर्ड पोस्ट की रसीद जो लीगल नोटिस भेजने का प्रमाण हो।
(5. )अगर चेक किसी व्यापार या लेन-देन से संबंधित है, तो उस लेन-देन के दस्तावेज।
(6. )किसी भी प्रकार का अग्रीमेंट (अगर कोई हो) जो चेक जारीकर्ता और प्राप्तकर्ता के बीच हुआ हो।

(7. )कब चेक बाउंस होने पर मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता?

कानूनी प्रक्रिया तब लागू होती है जब चेक किसी व्यापारिक लेन-देन या भुगतान के उद्देश्य से दिया गया हो। 

अगर चेक:→
  • गिफ्ट के रूप में दिया गया हो,
  • दान या चंदे के रूप में दिया गया हो,
  • या किसी निजी उपहार के रूप में दिया गया हो,

तो चेक बाउंस होने पर आप कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकते।

8. कुछ ऐतिहासिक केस स्टडीज:→

Dalmia Cement Ltd. vs Galaxy Traders & Agencies Ltd.:→
इस केस में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला किया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस एक गंभीर आपराधिक अपराध है। अदालत ने चेक बाउंस को एक सख्त अपराध माना और दोषी को सजा सुनाई। यह केस यह दर्शाता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था चेक बाउंस के मामलों में कितनी कठोर हो सकती है।

Kusum Ingots & Alloys Ltd. vs Pennar Peterson Securities Ltd.→
इस मामले में, अदालत ने चेक बाउंस के कारण आरोपी को दोषी ठहराया। यह केस यह दर्शाता है कि अगर व्यक्ति जानबूझकर धोखाधड़ी करता है और चेक बाउंस होता है, तो कानून उसे कड़ी सजा दे सकता है।

निष्कर्ष:→

चेक बाउंस एक गंभीर मामला है और इसके कानूनी परिणाम हो सकते हैं। इसे सुलझाने का सही तरीका है कि चेक जारीकर्ता को समय पर लीगल नोटिस भेजा जाए और अगर वह जवाब नहीं देता है तो अदालत में उचित मुकदमा दायर किया जाए। अगर सभी प्रक्रियाओं को सही तरीके से किया जाता है, तो चेक बाउंस के मामलों में न्याय मिलने की संभावना अधिक होती है।



         हाँ, चेक बाउंस पर सजा हो सकती है, और यह नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत अपराध माना जाता है। चेक बाउंस होने की स्थिति में अदालत द्वारा दोषी पाए जाने पर सजा के दो प्रकार हो सकते हैं:→

1. आपराधिक सजा (Criminal Penalty):→

यदि चेक बाउंस का मामला अदालत में जाता है और चेक जारीकर्ता दोषी पाया जाता है, तो उसे निम्नलिखित सजा हो सकती है:→

जेल की सजा:  →दोषी व्यक्ति को अधिकतम 2 साल तक की जेल हो सकती है।
  
जुर्माना: →अदालत चेक जारीकर्ता पर चेक की राशि का दोगुना  तक जुर्माना भी लगा सकती है।

या दोनों: →अदालत स्थिति के अनुसार दोनों सजा दे सकती है—दो साल तक की जेल और चेक की राशि का दोगुना जुर्माना।

2. सिविल सजा (Civil Penalty):→

सिविल मुकदमे के अंतर्गत, चेक प्राप्तकर्ता (जिसका चेक बाउंस हुआ है) सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर सकता है। इसमें निम्नलिखित प्रकार की सजा हो सकती है:→

बकाया राशि की वसूली: →चेक की असली राशि और बकाया की वसूली के लिए सिविल कोर्ट आदेश दे सकता है।
  
मुआवजा और हर्जाना:→सिविल कोर्ट चेक जारीकर्ता से मुआवजा या हर्जाना भी दिलवा सकती है, जो उस व्यक्ति द्वारा हुई असुविधा या नुकसान की भरपाई हो।

सजा की प्रक्रिया:→

चेक बाउंस की स्थिति में शिकायतकर्ता को पहले चेक जारीकर्ता को लीगल नोटिस भेजना होता है। यदि 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया जाता, तो शिकायतकर्ता अदालत में मामला दायर कर सकता है। दोष सिद्ध होने पर, उपरोक्त सजा दी जा सकती है।

विशेष ध्यान देने योग्य बातें:→

  • चेक बाउंस मामलों में अधिकतम सजा 2 साल की जेल या चेक राशि का दोगुना जुर्माना हो सकता है।
  • सजा का निर्धारण चेक बाउंस की परिस्थितियों, मंशा, और आरोपी के रुख के आधार पर किया जाता है।


चेक बाउंस के मामलों में कई ऐतिहासिक और रोचक केस सामने आए हैं, जिन्होंने इस कानून के दायरे में महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं। यहाँ कुछ प्रमुख केस दिए जा रहे हैं जो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत चेक बाउंस पर सजा से जुड़े हैं:→

1. दालमिया सीमेंट बनाम गैल्को स्टील्स (Dalmia Cement v. Galaxy Steels Ltd., 2001):→

मामले का सार:→
इस केस में, गैल्को स्टील्स ने दालमिया सीमेंट को एक बड़ी राशि का भुगतान चेक के माध्यम से किया था, लेकिन चेक बाउंस हो गया। जब दालमिया सीमेंट ने गैल्को स्टील्स को नोटिस भेजा और कोई भुगतान नहीं हुआ, तो मामला अदालत में पहुंचा।

फैसला:→
अदालत ने गैल्को स्टील्स को दोषी पाया और उसे सजा सुनाई गई। यह केस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें यह साफ किया गया कि कंपनी के निदेशकों को भी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है यदि चेक उनके आदेश पर जारी किया गया था। इस केस में निदेशकों को भी सजा मिली, जिसमें जेल और भारी जुर्माना शामिल था।

महत्त्व:→
यह फैसला चेक बाउंस मामलों में जिम्मेदारी तय करने के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ, खासकर कॉर्पोरेट मामलों में।



2. मोदी सीमेंट बनाम कुशारे (Modi Cements Ltd. v. Kuchil Kumar Nandi, 1998):→

मामले का सार:→
इस केस में, आरोपी ने चेक जारी किया था लेकिन बाद में बैंक को चेक को स्टॉप पेमेंट के निर्देश दे दिए, जिससे चेक बाउंस हो गया। शिकायतकर्ता ने चेक बाउंस के लिए कानूनी कार्रवाई की मांग की।

फैसला:→
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि चेक जारीकर्ता ने जानबूझकर स्टॉप पेमेंट के निर्देश दिए और चेक बाउंस हुआ, तो इसे धारा 138के तहत अपराध माना जाएगा। इस मामले में आरोपी को सजा दी गई और जुर्माना भी लगाया गया।

महत्त्व:→
इस केस ने स्पष्ट किया कि भले ही चेक बाउंस का कारण स्टॉप पेमेंट हो, फिर भी धारा 138 के तहत यह अपराध होगा यदि आरोपी के पास पर्याप्त धनराशि नहीं थी।



3. श्रीकृष्णा बनाम नागेश (Shri Krishna v. Nagesh, 2011):→

मामले का सार:→
इस केस में, आरोपी ने व्यवसायिक सौदे के दौरान चेक जारी किया था, लेकिन चेक बाउंस हो गया। जब शिकायतकर्ता ने आरोपी को नोटिस भेजा और जवाब नहीं मिला, तो उन्होंने अदालत में मामला दर्ज किया।

फैसला:→
अदालत ने आरोपी को दोषी पाया और उसे एक साल की जेल और चेक की राशि का दोगुना जुर्माना लगाया। 

महत्त्व:→
यह केस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें अदालत ने साफ किया कि धारा 138 के तहत सजा के अलावा आरोपी को जुर्माना भी भरना होगा, जिससे शिकायतकर्ता को आर्थिक नुकसान की भरपाई हो सके।


4. अनीता मालवीय बनाम संजय शर्मा (Anita Malviya v. Sanjay Sharma, 2015):→

मामले का सार:→
इस केस में, आरोपी ने उधारी के रूप में एक बड़ी राशि का चेक जारी किया था, लेकिन चेक बाउंस हो गया। आरोपी ने दावा किया कि चेक गलती से जारी हुआ था और उसने इसे सही तरीके से भरने की कोशिश नहीं की थी।

फैसला:→
अदालत ने आरोपी के इस तर्क को खारिज किया और कहा कि यदि चेक जारी किया गया है, तो यह मान लिया जाएगा कि यह वैध रूप से जारी हुआ था। अदालत ने आरोपी को दोषी पाया और उसे एक साल की जेल और जुर्माने की सजा सुनाई।

महत्त्व:→
इस केस ने साफ किया कि अगर चेक किसी गलती या चूक के आधार पर जारी हुआ है, तो भी जारीकर्ता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, यदि चेक बाउंस हो जाता है।



5. एम.एस. आहूजा बनाम हरिशंकर (M.S. Ahuja v. Harishankar, 2020):→

मामले का सार:→
आरोपी ने व्यापारिक लेन-देन में बड़ी राशि का चेक जारी किया, जो बैंक में बाउंस हो गया। जब शिकायतकर्ता ने नोटिस भेजा और फिर भी भुगतान नहीं हुआ, तो अदालत में मामला दर्ज हुआ।

फैसला:→
अदालत ने इस केस में आरोपी को दोषी पाया और सजा के रूप में 2 साल की जेल और चेक की राशि का तीन गुना जुर्माना लगाया।

महत्त्व:→
यह मामला इसलिए रोचक है क्योंकि इसमें अदालत ने सख्त सजा दी और चेक की राशि से तीन गुना तक जुर्माना लगाया गया, जिससे भविष्य के मामलों में चेक जारी करने वाले लोगों को चेतावनी मिली।



निष्कर्ष:→
इन केसों ने यह साबित किया है कि चेक बाउंस का अपराध गंभीर माना जाता है और इसके परिणामस्वरूप जेल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं। हर केस में आरोपी की मंशा और परिस्थिति के आधार पर सजा तय की जाती है।
ने व्यवसायिक सौदे के दौरान चेक जारी किया था, लेकिन चेक बाउंस हो गया। जब शिकायतकर्ता ने आरोपी को नोटिस भेजा और जवाब नहीं मिला, तो उन्होंने अदालत में मामला दर्ज किया।

फैसला:→
अदालत ने आरोपी को दोषी पाया और उसे एक साल की जेल और चेक की राशि का दोगुना जुर्माना लगाया। 

महत्त्व:→
यह केस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें अदालत ने साफ किया कि धारा 138 के तहत सजा के अलावा आरोपी को जुर्माना भी भरना होगा, जिससे शिकायतकर्ता को आर्थिक नुकसान की भरपाई हो सके।


4. अनीता मालवीय बनाम संजय शर्मा (Anita Malviya v. Sanjay Sharma, 2015):→

मामले का सार:→
इस केस में, आरोपी ने उधारी के रूप में एक बड़ी राशि का चेक जारी किया था, लेकिन चेक बाउंस हो गया। आरोपी ने दावा किया कि चेक गलती से जारी हुआ था और उसने इसे सही तरीके से भरने की कोशिश नहीं की थी।

फैसला:→
अदालत ने आरोपी के इस तर्क को खारिज किया और कहा कि यदि चेक जारी किया गया है, तो यह मान लिया जाएगा कि यह वैध रूप से जारी हुआ था। अदालत ने आरोपी को दोषी पाया और उसे एक साल की जेल और जुर्माने की सजा सुनाई।

महत्त्व:→
इस केस ने साफ किया कि अगर चेक किसी गलती या चूक के आधार पर जारी हुआ है, तो भी जारीकर्ता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, यदि चेक बाउंस हो जाता है।



5. एम.एस. आहूजा बनाम हरिशंकर (M.S. Ahuja v. Harishankar, 2020):→

मामले का सार:→
आरोपी ने व्यापारिक लेन-देन में बड़ी राशि का चेक जारी किया, जो बैंक में बाउंस हो गया। जब शिकायतकर्ता ने नोटिस भेजा और फिर भी भुगतान नहीं हुआ, तो अदालत में मामला दर्ज हुआ।

फैसला:→
अदालत ने इस केस में आरोपी को दोषी पाया और सजा के रूप में 2 साल की जेल और चेक की राशि का तीन गुना जुर्माना लगाया।

महत्त्व:→
यह मामला इसलिए रोचक है क्योंकि इसमें अदालत ने सख्त सजा दी और चेक की राशि से तीन गुना तक जुर्माना लगाया गया, जिससे भविष्य के मामलों में चेक जारी करने वाले लोगों को चेतावनी मिली।



निष्कर्ष:→
इन केसों ने यह साबित किया है कि चेक बाउंस का अपराध गंभीर माना जाता है और इसके परिणामस्वरूप जेल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं। हर केस में आरोपी की मंशा और परिस्थिति के आधार पर सजा तय की जाती है।


चेक बाउंस नोटिस एक कानूनी दस्तावेज होता है जो चेक बाउंस होने पर जारी किया जाता है। इसके माध्यम से चेक जारी करने वाले व्यक्ति को बकाया राशि का भुगतान करने के लिए एक निर्दिष्ट समय दिया जाता है, अन्यथा कानूनी कार्यवाही की चेतावनी दी जाती है।

चेक बाउंस नोटिस का ड्राफ्ट (उदाहरण सहित):

                          विधिक नोटिस

सेवा में,

[चेक जारीकर्ता का नाम],  
[पता],  
दिनांक: [तारीख]

विषय: चेक बाउंस होने के संबंध में विधिक नोटिस

महोदय/महोदया,

यह नोटिस मेरे मुवक्किल [आपका नाम] निवासी [आपका पता] की ओर से आपको निम्नलिखित तथ्यों के संदर्भ में भेजा जा रहा है:

1. आप, [चेक जारीकर्ता का नाम], ने दिनांक [चेक जारी करने की तारीख] को मेरे मुवक्किल के पक्ष में ₹ [राशि] (राशि शब्दों में) का एक चेक संख्या [चेक संख्या] [बैंक का नाम] शाखा [शाखा का नाम] के माध्यम से जारी किया था।

2. मेरे मुवक्किल ने उपरोक्त चेक को अपने बैंक खाते में जमा किया, लेकिन उक्त चेक दिनांक [चेक बाउंस होने की तारीख] को "अपर्याप्त शेष राशि" या अन्य कारणों से बाउंस हो गया।

3. चेक बाउंस होने के कारण मेरे मुवक्किल को भारी आर्थिक और मानसिक असुविधा का सामना करना पड़ा है। 

4. यह नोटिस आपको भारतीय दंड संहिता की धारा 138 के तहत 15 दिनों के भीतर ₹ [राशि] (राशि शब्दों में) मेरे मुवक्किल को भुगतान करने के लिए भेजा जा रहा है। अगर आप उक्त समयावधि में राशि का भुगतान करने में विफल होते हैं, तो मेरे मुवक्किल को आपके खिलाफ उचित कानूनी कार्यवाही करने का अधिकार होगा।

अतः आपसे अनुरोध है कि इस नोटिस को प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर उपरोक्त राशि का भुगतान कर दें। अन्यथा, मेरे मुवक्किल को आपके खिलाफ चेक बाउंस के मामले में मुकदमा दर्ज करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

भवदीय,  
[आपका नाम]  
[आपका पता]  
[आपका संपर्क नंबर]



यह नोटिस चेक बाउंस होने के बाद विधिक प्रक्रिया का पहला चरण होता है। यदि 15 दिनों के भीतर चेक जारीकर्ता भुगतान नहीं करता है, तो आप कोर्ट में केस कर सकते हैं।



Note: यह मात्र नमूना है चेक बाउंस से सम्बन्धित जानकारी के लिये किसी वकील से सम्पर्क करना बहुत आवश्यक है।

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