पिता की संपत्ति में बेटियों का अधिकार: विस्तृत जानकारी →
समाज में अक्सर यह देखा जाता है कि बेटियों को उनके पिता की संपत्ति में उतना अधिकार नहीं मिलता, जितना बेटों को दिया जाता है। कई बार यह स्थिति समाज की परंपराओं और प्रथाओं के कारण उत्पन्न होती है। हालांकि, भारत में कानून बेटियों को उनके पिता की संपत्ति में पूरा अधिकार देता है। यह ब्लॉग पोस्ट आपको सरल भाषा में इस विषय पर पूरी जानकारी देगी, ताकि कोई भी इसे आसानी से समझ सके।
संपत्ति के प्रकार→
भारत में संपत्ति को दो प्रमुख हिस्सों में बांटा गया है:→
1. स्वयं अर्जित संपत्ति:→यह वह संपत्ति होती है जिसे किसी व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में खुद कमाया हो। इसमें जमीन, घर, गाड़ी या बैंक बैलेंस आदि आ सकते हैं।
2. पैतृक संपत्ति:→यह वह संपत्ति होती है जो पूर्वजों से मिलती है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है और इसे बेचने या इसके संबंध में फैसला लेने के लिए सभी उत्तराधिकारियों का सहमति जरूरी होती है।
बेटियों का अधिकार:→स्वयं अर्जित संपत्ति में
अगर कोई व्यक्ति अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति के बारे में जीवनकाल में कोई निर्णय नहीं लेता, और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति के बंटवारे में बेटे और बेटियों दोनों को बराबर का अधिकार मिलता है। इस मामले में बेटे को यह नहीं कहने का अधिकार है कि बेटी की शादी हो चुकी है, इसलिए उसका कोई हक नहीं है।
उदाहरण:→
यदि एक व्यक्ति का देहांत हो जाता है और उसने अपनी संपत्ति के बारे में कोई वसीयत नहीं छोड़ी है, तो उसके बेटे और बेटी दोनों को बराबर का हिस्सा मिलेगा। अगर उस व्यक्ति के पास 10 लाख रुपये की संपत्ति है, और उसके दो बेटे और एक बेटी हैं, तो उन तीनों को बराबर का हिस्सा मिलेगा, यानी प्रत्येक को 3.33 लाख रुपये।
पैतृक संपत्ति में बेटियों का अधिकार→
पैतृक संपत्ति का मामला थोड़ा अलग है। पहले यह माना जाता था कि पैतृक संपत्ति में केवल बेटे का अधिकार होता है, लेकिन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के संशोधन के बाद बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार मिला। अब, बेटियों को उनके पिता की पैतृक संपत्ति में उतना ही हिस्सा मिलता है जितना बेटों को मिलता है।
उदाहरण:→
मान लीजिए कि एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उसके पास 20 एकड़ पैतृक जमीन है। उसकी दो बेटियां और एक बेटा है। इस स्थिति में तीनों बच्चों को बराबर का हिस्सा मिलेगा, यानी प्रत्येक को 6.66 एकड़ जमीन।
कब बेटियों को संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता→
कुछ परिस्थितियों में बेटियों को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता है, जैसे:→
1. वसीयत:→अगर पिता ने अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति को बेटों के नाम कर दी है और बेटियों को बेदखल कर दिया है, तो बेटियों का उसमें कोई हक नहीं होता।
2. त्याग पत्र (रिलीज डीड):→अगर बेटी ने अपनी मर्जी से अपने हिस्से का त्याग कर दिया है और उसका रिलीज डीड रजिस्टर्ड हो गया है, तो उसे संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलेगा।
मुस्लिम कानून में बेटियों का अधिकार→
मुस्लिम कानून में बेटियों को बेटे के मुकाबले थोड़ा कम हिस्सा मिलता है, लेकिन भारतीय अदालतें अब इस नियम को चुनौती दे रही हैं और बेटियों को अधिक अधिकार देने की दिशा में काम कर रही हैं।
उदाहरण:→
अगर एक मुस्लिम व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उसके पास 30 लाख रुपये की संपत्ति है, तो उसकी बेटी को एक तिहाई हिस्सा मिलेगा और बेटे को दो तिहाई। लेकिन कोर्ट में अगर इसे चुनौती दी जाती है, तो इसे बराबर भी किया जा सकता है।
न्यायालय का फैसला→
अगर किसी संपत्ति को लेकर कोई विवाद होता है, तो न्यायालय का फैसला अंतिम होता है। न्यायालय हमेशा यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कानून संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करे। बेटियों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, चाहे किसी भी धर्म या परंपरा का पालन क्यों न किया जाए।
निष्कर्ष→
समाज में भले ही विभिन्न भ्रांतियां हों, लेकिन कानून के अनुसार बेटियों का अपने पिता की संपत्ति में पूरा अधिकार होता है, चाहे वह पैतृक संपत्ति हो या स्वयं अर्जित संपत्ति। केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे वसीयत या त्याग पत्र, बेटियों का अधिकार कम हो सकता है।
बेटियों को चाहिए कि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें और किसी भी प्रकार की अन्यायपूर्ण स्थिति में न्यायालय की मदद लें।
यहां पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार से जुड़े कुछ रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य दिए गए हैं:→
1.हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) में बदलाव→
•1956 में पारित हुआ हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, बेटियों को संपत्ति में अधिकार देने का पहला बड़ा कदम था, लेकिन इसमें बेटियों को समान अधिकार नहीं मिला था। 2005 में संशोधन के बाद बेटियों को पिता की पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार दिए गए।
2. 2005 के बाद की बेटियां→
• 2005 में हुए संशोधन से पहले यह कानून सिर्फ उन्हीं बेटियों पर लागू होता था जिनकी शादी 2005 के बाद हुई थी। लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि चाहे बेटी की शादी किसी भी साल में हुई हो, उसे संपत्ति में पूरा अधिकार मिलेगा।
3.मुस्लिम कानून में असमानता→
•मुस्लिम कानून के तहत बेटियों को बेटों से आधा हिस्सा मिलता है। हालांकि, कई मामलों में अदालत ने यह फैसला किया है कि बेटियों को भी समान अधिकार मिलना चाहिए, जिससे इस असमानता को चुनौती दी गई है।
4. बेटियों के लिए विवाह का कोई प्रभाव नहीं→
•समाज में यह भ्रांति है कि शादी के बाद बेटी को पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलेगा, लेकिन यह पूरी तरह गलत है। शादी का बेटी के उत्तराधिकार पर कोई असर नहीं पड़ता।
5. वसीयत का विशेषाधिकार→
•एक पिता को अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति के संबंध में वसीयत करने का पूरा अधिकार है। वह चाहे तो अपनी संपत्ति केवल बेटों के नाम कर सकता है, लेकिन पैतृक संपत्ति पर यह नियम लागू नहीं होता। पैतृक संपत्ति में बेटी और बेटों को बराबर का अधिकार होता है।
6.संपत्ति विवादों में अदालत का हस्तक्षेप(→
•अगर कोई विवाद होता है और बेटियों को उनके अधिकार से वंचित किया जाता है, तो वे अदालत में जाकर अपना अधिकार मांग सकती हैं। अदालत का निर्णय कानून और मौलिक अधिकारों के आधार पर होता है।
7.स्वयं अर्जित और पैतृक संपत्ति का अंतर}→
•किसी व्यक्ति की स्वयं अर्जित संपत्ति पर वह पूरी तरह स्वतंत्र होता है कि किसे देनी है, लेकिन पैतृक संपत्ति पर सभी उत्तराधिकारियों (बेटे और बेटियों) का समान अधिकार होता है।
8.संविधान और महिला अधिकार}→
•भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 लैंगिक समानता का समर्थन करते हैं। इसी के तहत संपत्ति के मामलों में बेटियों के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए अदालत ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं।
9. उत्तराधिकार में मना नहीं कर सकते}→
•यदि कोई पिता अपनी संपत्ति में बेटियों को जानबूझकर बेदखल करने की कोशिश करता है, तो भी बेटी कानूनी रूप से अपने अधिकार के लिए दावा कर सकती है, विशेषकर पैतृक संपत्ति के मामलों में।
ये तथ्य यह दिखाते हैं कि भले ही समाज में पुरानी धारणाएं हों, कानून के तहत बेटियों को पूरी तरह से पिता की संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त हैं।
यहां भारत में पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण कानूनी मामलों (केस) का उल्लेख किया गया है, जिन्होंने इस विषय में ऐतिहासिक निर्णय दिए:→
1.प्रकाश बनाम फूलवती (2015):→
•इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत, बेटियों को पैतृक संपत्ति में तब तक अधिकार मिलेगा, जब तक पिता की मृत्यु 9 सितंबर 2005 के बाद हुई हो। अगर पिता की मृत्यु 2005 के पहले हो चुकी है और उस समय संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ था, तो भी बेटी इस संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती।
2.विनिता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020):→
•इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 में संशोधन के बाद बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार है, चाहे पिता की मृत्यु किसी भी समय हुई हो। यह एक महत्वपूर्ण निर्णय था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि 2005 के संशोधन का प्रभाव पिछली तारीख से (retroactive) लागू होगा। यानी, यदि पिता की मृत्यु 2005 से पहले भी हुई हो, तो भी बेटी का पैतृक संपत्ति में बराबर का हक होगा।
3.दानम्मा बनाम अमर (2018)}→
•इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि भले ही बेटी का जन्म 1956 (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होने के समय) से पहले हुआ हो, उसे पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलेगा। इस फैसले ने बेटियों को अधिकार सुनिश्चित करने में एक बड़ा कदम रखा और यह स्पष्ट किया कि संशोधन से पहले या बाद में बेटी का जन्म होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, सभी को समान अधिकार मिलेगा।
4.शाह बानो केस (1985):→
• यह मामला मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों से जुड़ा था, जहां शाह बानो ने तलाक के बाद गुजारा भत्ता (maintenance) की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि मुस्लिम महिलाओं को भी उनके पति से गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। यह मामला भले ही संपत्ति अधिकारों से नहीं जुड़ा था, लेकिन महिलाओं के समग्र अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी सुधार की मांग उठी।
5.सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995):→
•इस मामले में यह सवाल उठाया गया था कि एक हिंदू पति, जो दूसरी शादी करने के लिए इस्लाम धर्म अपना लेता है, क्या वह हिंदू पत्नी को बिना तलाक दिए ऐसा कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना अवैध है और हिंदू कानून के तहत एक व्यक्ति को बिना तलाक लिए दूसरी शादी करने का अधिकार नहीं है। इस केस का सीधा संबंध संपत्ति से नहीं था, लेकिन इसने महिलाओं के कानूनी अधिकारों को मजबूत किया।
6.सुशिला देवी बनाम गोविंद सिंह (1977):→
•इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिला का विवाह उसकी संपत्ति के अधिकारों को खत्म नहीं कर सकता। चाहे बेटी की शादी हो गई हो, उसका पिता की संपत्ति में वैधानिक अधिकार सुरक्षित रहेगा।
7.जॉयस जे पॉल बनाम अपोलो ग्लेनी पॉल (1991):→
•इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक ईसाई महिला को भी अपने पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा। यह निर्णय महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत ईसाई महिलाओं के अधिकारों को मान्यता दी और उन्हें बराबरी का दर्जा दिया।
निष्कर्ष:→
उपरोक्त मामलों ने भारतीय न्यायिक व्यवस्था में महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को मजबूत किया और सामाजिक सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बेटियों के संपत्ति अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसले दिए, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि बेटियों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, चाहे परंपरा या समाज की सोच कुछ भी हो।
पैतृक संपत्ति में वे लोग हिस्सेदार होते हैं जो परिवार के कुल या संयुक्त परिवार के सदस्य होते हैं। पैतृक संपत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही संपत्ति होती है, जो परिवार के पूर्वजों से प्राप्त होती है। इसमें विभिन्न उत्तराधिकारियों का हिस्सा होता है। नीचे बताया गया है कि कौन-कौन पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार हो सकते हैं:→
1.बेटे और बेटियां:→
•हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत 2005 में संशोधन के बाद, बेटे और बेटियों दोनों को बराबर का अधिकार दिया गया है। चाहे बेटी की शादी हो चुकी हो या नहीं, उसे पिता की पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलता है।
• पहले बेटियों को यह अधिकार शादी के बाद नहीं मिलता था, लेकिन 2005 के संशोधन के बाद यह कानून बदल गया और अब बेटियां भी पूरी तरह से हिस्सेदार होती हैं।
2. पुत्री की संताने::→
•यदि बेटी की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी जगह उसकी संताने (बेटा या बेटी) हिस्सेदार बन सकते हैं। इस प्रकार बेटी के बच्चों को भी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी मिल सकती है।
3. पुत्र की संताने:→
अगर किसी बेटे की मृत्यु हो जाती है, तो उसके बच्चे (बेटा या बेटी) उस हिस्से के हकदार होते हैं जो उनके पिता को पैतृक संपत्ति में मिलता। वे अपने पिता के हिस्से के लिए उत्तराधिकारी बनते हैं।
4. पिता और माता}→
•पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकारियों में माता और पिता भी शामिल हो सकते हैं, खासकर तब जब उत्तराधिकारियों में बेटे या बेटियां नहीं हों। पिता की मृत्यु के बाद, उसकी पत्नी (यानी मृतक की माँ) भी हिस्सेदार होती है।
5. भाई-बहन}→
•यदि संपत्ति में सभी भाइयों और बहनों का नाम नहीं आता है और अगर किसी भाई या बहन की मृत्यु हो चुकी हो, तो उनकी संतानें (नाबालिग या बालिग) उनकी जगह पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार बन सकती हैं।
6. पोतियाँ और पोते}→
•यदि किसी बेटे या बेटी की मृत्यु हो जाती है, तो उनके बच्चों को उनके स्थान पर पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलता है। यदि बेटे का हिस्सा था, तो उसके {पोते और पोतियाँ} उसके हिस्से को प्राप्त करेंगे।
7. सभी जीवित सहोदर (Siblings){→
•अगर किसी परिवार में माता-पिता की मृत्यु हो चुकी हो और संपत्ति का उत्तराधिकार किया जाना हो, तो सभी जीवित सहोदर, जैसे भाई और बहन, उस पैतृक संपत्ति में हिस्सा मांग सकते हैं।
8.पुत्रवधू}→
•सामान्य रूप से पुत्रवधू (बहू) पैतृक संपत्ति में सीधा अधिकार नहीं रखती, लेकिन अगर उसके पति का निधन हो जाता है, तो उसे अपने पति के हिस्से में हिस्सा मिल सकता है। वह अपने बच्चों की ओर से भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा दावा कर सकती है।
9.दामाद}→
•दामाद (बेटी का पति) का सीधा तौर पर पैतृक संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं होता। पैतृक संपत्ति केवल खून से संबंधित उत्तराधिकारियों तक सीमित होती है, लेकिन अगर पत्नी (बेटी) का अधिकार है, तो उसका पति दामाद उस संपत्ति का उपयोग कर सकता है, लेकिन वह उत्तराधिकारी नहीं माना जाएगा।
10. नवासी (नाती-पोते)}→
•अगर बेटे या बेटी की मृत्यु हो चुकी है और उनकी संताने (नाती-पोते) हैं, तो वे अपने माता-पिता के स्थान पर पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष:→
पैतृक संपत्ति में मुख्य रूप से खून से संबंधित उत्तराधिकारी (बेटे, बेटियाँ, उनके बच्चे, भाई-बहन, माता-पिता) हिस्सेदार होते हैं। संपत्ति का वितरण उत्तराधिकार कानून और पारिवारिक संरचना पर निर्भर करता है।
पैतृक संपत्ति वह संपत्ति होती है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी, यानी पूर्वजों से परिवार के उत्तराधिकारियों को मिलती है। यह संपत्ति स्व- अर्जित नहीं होती, बल्कि परिवार के किसी पूर्वज द्वारा अर्जित की गई होती है और इसे परिवार के सभी उत्तराधिकारियों में बाँटा जाता है।
अब हम इस विषय को उदाहरणों के साथ समझते हैं:→
1. पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार→
• पैतृक संपत्ति पर सभी उत्तराधिकारी (heirs) का समान अधिकार होता है, चाहे वह बेटा हो या बेटी।
•2005 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम** के संशोधन के बाद, बेटियों को भी बेटों के बराबर अधिकार मिला। इससे पहले बेटियों को यह अधिकार नहीं मिलता था।
उदाहरण:→
मान लीजिए, राम की एक 10 एकड़ पैतृक जमीन है। राम के चार बच्चे हैं→ दो बेटे (मोहन और सोहन) और दो बेटियाँ (गीता और मीना)। 2005 के बाद, बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलने लगा, इसलिए अब राम की मृत्यु के बाद 10 एकड़ जमीन चार हिस्सों में बँटेगी। यानी:→
•मोहन को 2.5 एकड़,
•सोहन को 2.5 एकड़,
•गीता को 2.5 एकड़,
•मीना को 2.5 एकड़।
2.किसी की मृत्यु हो जाने पर हिस्सेदारी का अधिकार}→
•अगर परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संतानों को उसकी हिस्सेदारी मिलती है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पैतृक संपत्ति केवल खून से जुड़े उत्तराधिकारियों को ही मिलती है।
उदाहरण:→
मान लीजिए, राम का बेटा सोहन पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गया है, लेकिन सोहन के दो बच्चे (राहुल और पूजा) हैं। राम की मृत्यु के बाद सोहन का हिस्सा (2.5 एकड़) राहुल और पूजा में बराबर बँट जाएगा। यानी:→
•राहुल को 1.25 एकड़,
•पूजा को 1.25 एकड़।
3.किसी के संपत्ति के हिस्से को छोड़ने पर अधिकार}→
•यदि कोई उत्तराधिकारी अपने हिस्से का त्याग कर देता है या रिलीज डीड (Release Deed) साइन कर देता है, तो वह उस हिस्से से वंचित हो जाता है। इसका मतलब यह है कि वह अपने हिस्से पर दावा नहीं कर सकता है।
उदाहरण:→
मान लीजिए, गीता अपने हिस्से (2.5 एकड़) को स्वेच्छा से अपने भाइयों (मोहन और सोहन) को दे देती है और एक रिलीज डीड साइन करती है। अब, गीता को पैतृक संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा, और उसकी 2.5 एकड़ संपत्ति मोहन और सोहन में बराबर बँट जाएगी।
4. दामाद और बहू का अधिकार}→
• पैतृक संपत्ति पर दामाद (बेटी का पति) या बहू (बेटे की पत्नी) का कोई सीधा अधिकार नहीं होता है।
•हालांकि, अगर बेटी या बेटा की मृत्यु हो जाती है, तो उनकी संतानों को हिस्सा मिलेगा, और बहू उस हिस्से का उपयोग कर सकती है, लेकिन वह कानूनी उत्तराधिकारी नहीं मानी जाएगी।
उदाहरण:→
अगर मोहन की मृत्यु हो जाती है और उसके पास एक बेटा अजय और पत्नी सीमा हैं, तो पैतृक संपत्ति में मोहन का हिस्सा अजय को मिलेगा, लेकिन सीमा (मोहन की पत्नी) को इस संपत्ति पर कोई सीधा कानूनी अधिकार नहीं होगा। हालांकि, सीमा अपने बेटे अजय की संपत्ति का इस्तेमाल कर सकती है।
5. संपत्ति में विवाद और वसीयत का प्रभाव}→
•पैतृक संपत्ति के मामले में, व्यक्ति कोई वसीयत नहीं कर सकता। यह संपत्ति खुद-ब-खुद उत्तराधिकारियों में बँट जाती है।
•हालांकि, अगर संपत्ति स्व-अर्जित (self-acquired) है, तो व्यक्ति वसीयत के माध्यम से यह तय कर सकता है कि संपत्ति किसे दी जाएगी।
उदाहरण:→
मान लीजिए, राम की 10 एकड़ पैतृक जमीन के अलावा 5 एकड़ स्वयं-अर्जित जमीन भी है। राम अपनी मृत्यु से पहले एक वसीयत बनाता है, जिसमें वह अपनी 5 एकड़ स्वयं-अर्जित जमीन को केवल मोहन को देने का निर्णय लेता है। राम की मृत्यु के बाद:→
• पैतृक संपत्ति (10 एकड़) सभी उत्तराधिकारियों में समान रूप से बँटेगी।
• जबकि राम की 5 एकड़ स्वयं-अर्जित जमीन केवल मोहन को मिलेगी।
निष्कर्ष:→
पैतृक संपत्ति में सभी खून के रिश्तेदारों का कानूनी अधिकार होता है, चाहे वह बेटा हो या बेटी। पैतृक संपत्ति पर वसीयत नहीं की जा सकती और यह संपत्ति सभी उत्तराधिकारियों में समान रूप से बाँटी जाती है। बेटियों को भी अब पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार मिलता है।
बेटी की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी को उसकी माता द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता है। भारतीय कानून के अनुसार, माता या परिवार का कोई अन्य सदस्य बेटी को पैतृक संपत्ति में उसके अधिकार से वंचित नहीं कर सकता। बेटी का पैतृक संपत्ति में वैधानिक अधिकार होता है, और इसे कानूनी रूप से समाप्त करने का अधिकार किसी और के पास नहीं है।
इसके पीछे प्रमुख कानूनी तर्क:→
1. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (संशोधन 2005):→
• इस अधिनियम के 2005 के संशोधन के बाद, बेटियों को भी बेटों के समान अधिकार मिला है। चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, वह पैतृक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार होती है। कोई भी इस अधिकार को समाप्त नहीं कर सकता।
2. माता का अधिकार:→
• माता का पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा होता है, लेकिन वह केवल अपने हिस्से की संपत्ति के संबंध में निर्णय ले सकती है। वह अपनी हिस्सेदारी किसी को दे सकती है या छोड़ सकती है, लेकिन वह बेटी के हिस्से को खत्म नहीं कर सकती।
3. रिलीज डीड (Release Deed) या त्यागपत्र:→
•बेटी स्वयं अपनी हिस्सेदारी को त्याग कर सकती है, जैसे कि रिलीज डीड साइन करके, लेकिन इसे किसी और के द्वारा मजबूरन समाप्त नहीं किया जा सकता।
उदाहरण:→
मान लीजिए कि सीता की दो बेटियां (गीता और मीना) और एक बेटा (राम) है। अगर सीता की मृत्यु होती है, तो पैतृक संपत्ति में गीता, मीना, और राम तीनों को समान रूप से हिस्सा मिलेगा।
•सीता खुद केवल अपने हिस्से का निर्णय कर सकती थी, लेकिन वह गीता या मीना के हिस्से को खत्म नहीं कर सकती थी।
निष्कर्ष:→
माता या परिवार का कोई भी सदस्य बेटी के पैतृक संपत्ति में अधिकार को खत्म नहीं कर सकता। बेटी का पैतृक संपत्ति में अधिकार कानूनी रूप से सुरक्षित है और इसे केवल बेटी स्वयं ही त्याग सकती है, लेकिन कोई अन्य व्यक्ति इसे खत्म करने का अधिकार नहीं रखता।
मुस्लिम कानून में बेटियों का संपत्ति में अधिकार बेटों की अपेक्षा कम इसलिए है क्योंकि यह इस्लामी उत्तराधिकार कानून (शरिया कानून) के अनुसार निर्धारित होता है। इस कानून में पारिवारिक संपत्ति का वितरण बेटों और बेटियों के बीच असमान रूप से होता है, जिसमें बेटों को बेटियों की तुलना में दोगुना हिस्सा मिलता है। इसका मुख्य कारण इस्लामिक धार्मिक दृष्टिकोण और परिवार के आर्थिक संरचना पर आधारित है, जिसमें बेटों की आर्थिक जिम्मेदारियों को अधिक माना गया है।
1. शरिया कानून में हिस्सा निर्धारण
इस्लामी कानून के तहत बेटों और बेटियों को अलग-अलग हिस्से मिलते हैं।
•बेटों को बेटियों की तुलना में दोगुना हिस्सा दिया जाता है।
•यह व्यवस्था कुरान में उल्लेखित है, जहां यह कहा गया है कि एक पुरुष को दो महिलाओं के बराबर हिस्सा मिलेगा।
कुरान (4:11) के अनुसार:→
> "पुरुष का हिस्सा दो महिलाओं के बराबर है।"
2. आर्थिक जिम्मेदारी का कारण}}→
इस्लामिक कानून में बेटों को अधिक हिस्सा मिलने का एक बड़ा कारण उनकी आर्थिक जिम्मेदारी है। इस्लाम में यह माना जाता है कि बेटा:→
•परिवार का पालन-पोषण करेगा,
• अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल करेगा,
• माता-पिता के बुढ़ापे में उनका आर्थिक सहयोग करेगा।
वहीं, बेटी की शादी होने के बाद उसकी आर्थिक जिम्मेदारी उसके पति पर आ जाती है। इसलिए उसे कम हिस्सा दिया जाता है क्योंकि उसका खर्चा अब उसके पति द्वारा उठाया जाएगा।
3. उदाहरण से समझें:→
मान लीजिए, एक मुस्लिम व्यक्ति की मृत्यु होती है और उसके पीछे उसकी संपत्ति में 6 लाख रुपये की राशि है। उसकी एक बेटा और एक बेटी है।
•बेटे को शरिया कानून के अनुसार 2/3 हिस्सा मिलेगा, यानी 4 लाख रुपये।
• बेटी को 1/3 हिस्सा मिलेगा, यानी 2 लाख रुपये।
इस तरह, बेटे को बेटी से अधिक हिस्सा मिलता है।
4. माता-पिता की संपत्ति में अधिकार:→
•अगर किसी मुस्लिम व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उसके पीछे उसके बेटे और बेटियां हैं, तो बेटियों को भी हिस्सा मिलेगा, लेकिन बेटों की तुलना में कम।
•माता-पिता की संपत्ति में बेटियों का अधिकार होता है, चाहे उनकी शादी हो गई हो या नहीं, लेकिन यह बेटों से कम रहेगा।
5.मुस्लिम पर्सनल लॉ और सामाजिक दृष्टिकोण:→
मुस्लिम पर्सनल लॉ बेटियों के अधिकार को सुरक्षित करता है, लेकिन बेटों की आर्थिक जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें अधिक अधिकार देता है। इसके पीछे तर्क यह है कि बेटे को न सिर्फ खुद के लिए बल्कि अपने परिवार और माता-पिता के लिए भी आर्थिक रूप से जिम्मेदार माना जाता है।
6.वर्तमान परिप्रेक्ष्य:→
हालांकि, आज के समय में इस कानून की काफी आलोचना होती है, खासकर जहां समान अधिकारों की बात उठती है। कुछ मामलों में बेटियां भी इस असमानता को लेकर न्यायालय में लड़ाई लड़ती हैं, और कानूनी सुधारों की मांग करती हैं।
निष्कर्ष:→
मुस्लिम कानून में बेटियों का अधिकार बेटों की अपेक्षा कम इसलिए होता है क्योंकि इस्लामी उत्तराधिकार प्रणाली में बेटों की आर्थिक जिम्मेदारी अधिक मानी जाती है। इसलिए, उन्हें बेटियों की तुलना में दोगुना हिस्सा मिलता है। हालाँकि, यह कानून धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बनाया गया है, और आधुनिक समय में इसे लेकर बहस और बदलाव की मांग जारी है।
हां, अगर बेटी का परिवार से किसी भी प्रकार का संबंध समाप्त हो चुका हो, तब भी बेटी का अपने पिता की संपत्ति में कानूनी अधिकार बना रहता है। परिवार के व्यक्तिगत या भावनात्मक संबंधों का बेटी के संपत्ति में कानूनी अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
[कानूनी दृष्टिकोण:]
1. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (संशोधन 2005):→
•इस अधिनियम के अनुसार, बेटी का पैतृक संपत्ति में समान अधिकार होता है, भले ही उसके परिवार से संबंध अच्छे हों या न हों। 2005 में हुए संशोधन के बाद, बेटियों को बेटों के बराबर संपत्ति में हिस्सा दिया जाता है, चाहे उनकी शादी हो चुकी हो, उनका परिवार से कोई संपर्क न हो, या वे कहीं और रह रही हों।
2. व्यक्तिगत संबंध का प्रभाव नहीं:→
• यदि बेटी ने किसी कारणवश अपने परिवार से संपर्क समाप्त कर लिया हो या परिवार ने बेटी के साथ संबंध खत्म कर दिए हों, फिर भी बेटी का पैतृक संपत्ति में कानूनी हक बरकरार रहता है। इसे निजी भावनात्मक या पारिवारिक विवाद के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता।
3. वसीयत की स्थिति:→
•यदि पिता ने कोई वसीयत बना रखी हो जिसमें उन्होंने बेटी को संपत्ति से बाहर कर दिया हो, तो उस स्थिति में बेटी को पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा। लेकिन यदि पैतृक संपत्ति का मामला है, तो पिता बेटी को पैतृक संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते।
उदाहरण:→
मान लीजिए, रेखा का अपने पिता से किसी कारणवश संपर्क टूट गया है और वह कई वर्षों से परिवार से अलग रह रही है। रेखा के पिता की मृत्यु के बाद, पैतृक संपत्ति का बंटवारा होता है।
• इस स्थिति में, भले ही रेखा का परिवार से संबंध नहीं रहा हो, उसे अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा।
•अगर उसके पिता ने अपनी अर्जित संपत्ति के बारे में कोई वसीयत नहीं की है, तब भी उसे उसमें हिस्सा प्राप्त होगा।
निष्कर्ष:→
बेटी का परिवार से संबंध समाप्त होने से उसके पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार समाप्त नहीं होता। कानून के तहत बेटी का हक सुरक्षित रहता है, और इसे व्यक्तिगत या पारिवारिक विवाद के आधार पर रोका नहीं जा सकता। केवल पिता की वसीयत ही संपत्ति के बंटवारे पर असर डाल सकती है, लेकिन पैतृक संपत्ति में बेटी का अधिकार सुरक्षित होता है।
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