सफेदपोश अपराध क्या होता है ?इसको सदरलैंड ने कैसे अपनी भाषा में परिभाषित किया है . कुछ उदाहरण देकर समझाओ?
सफेद पोश अपराध [white collar crime ] एक ऐसा अपराध है जो आमतौर पर शिक्षित, पेशेवर लोगों द्वारा किया जाता है । ये अपराध अक्सर धोखा-धड़ी , गबन, या भ्रष्टाचार से जुड़े होते हैं। इन अपराधों में शारीरिक बल का उपयोग कम होता है। बल्कि धोखे और छल का उपयोग किया जाता है।
white collar crime वह अपराध है जिसे आमतौर पर समाज के उच्च वर्ग के लोग करते हैं। विशेष रूप से वे लोग जो पेशेवर, प्रबंधकीय या अन्य उच्च पदों पर होते है। इस प्रकार के अपराधों में शारीरिक हिंसा का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि ये आर्थिक लाभ के उद्देश्य से किये जाते हैं। white collar crime का सम्बन्ध धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, और वित्तीय अपराधों से होता है। इस प्रकार के अपराध समाज के नैतिक और आर्थिक ढांचे को नुकसान पहुंचाते हैं और कानून व्यवस्था को चुनौती देते हैं ।
सफेदपोश अपराध की अवधारणा सर्वप्रथम सदरलैण्ड द्वारा सन् 1941 में पेश की गयी। उन्होंने इसे परिभाषित करते हुए कहा कि समाज के सम्माननीय तथा प्रतिष्ठित प्रास्थिति के व्यक्तियों द्वारा उनके द्वारा उनके व्यवसाय के दौरान किये गये अपराधों को सफेदपोश अपराध कहा जाना चाहिये। अतः झूठे और कपटपूर्ण विज्ञापनों द्वारा दुर्व्यपदेशन, पेटेंट्स कॉपीराइट तथा ट्रेडमार्क के नियमों का उल्लंघन आदि कुछ ऐसे white collar crime की श्रेणी में आते हैं जिन्हें उद्योगपति, निर्माता तथा अन्य उच्चस्तरीय वर्ग के सदस्य अपने व्यावसायिक अनुक्रम में लाभ कमाने की नीयत से प्रायः करते रहते हैं।
सफेदपोश अपराध से सम्बन्धित कुछ तथ्य जोकि सदरलैण्ड द्वारा Point out किये गये है कि किस प्रकार से 1941 से 1970-80 के दौरान निर्माताओं द्वारा अपने white collar crime को अन्जाम दिया जाता था।
[i] माल की खराबी को छिपाना
[2] नकली माल को बेचना
[3] किसी दूसरे के गुणवत्तायुक्त माल को स्वंय का माल बताते हुये बेचना
[4] किसी वस्तु को उसके रेट लिस्ट से ज्यादा का बेचना
[5] अत्याधिक माल को कम दामों में खरीदकर उसको स्टोर करना और बाजार में उस वस्तु की पूर्ति में कमी ।
सफेदपोश अपराधों का विश्लेषण करते हुए अमरीकी अपराधविज्ञ डा. वाल्टर रेकलेस [ walter C. Reckless ] ने अभिकथन किया है कि ये अपराध उन व्यापारियों के व्यापारिक अपराधों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो व्यापार की गतिविधियों एवं नीतियों का निर्धारण करते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि white collar crime समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा आवश्यकता के लिये नहीं बल्कि लालच के कारण किये जाते हैं।
डॉ वाल्टर रेकलेस एक प्रसिद्ध अमेरिकी अपराध शास्त्री [ क्रिमिनोलॉजिस्ट ] थे, जिन्होने अपराध, विशेषकर सफेदपोश अपराध [ white. Collar crime] पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने सफेदपोश अपराध की अवधारणा को समझने और विश्लेषण करने में महत्वपूर्व योगदान दिया।
रेकलेस के विचार सफेदपोश अपराध परः→
[1] अपराध का सामाजिक प्रभाव : → रेकलेस का मानना था कि सफेदपोश अपराध का समाज पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जो पारंपरिक अपराधों से अधिक हानिकारक हो सकता है। सफेदपोश अपराधों के कारण सामाजिक संस्थानों (और वित्तीय प्रणालियों में विश्वास की कमी हो जाती है जिससे समाज की स्थिरता प्रभावित होती है।
[2:] अपराध की प्रकृतिः → रेकलेस ने बताया कि सफेदपोश अपराध की प्रकृति आमतौर पर आर्थिक होती है और यह शारीरिक हिंसा के बिना होता है। उन्होंने कहा कि ये अपराध बहुत ही जटिल और तकनीकी हो सकते हैं। जिससे इनका पता लगाना और इन पर कार्रवाई करना कठिन हो जाता है।
[3] कानूनी प्रक्रिया और दण्डः → रेकलेस ने तर्क दिया कि सफेदपोश अपराधों के लिये कानूनी प्रक्रिया अक्सर धीमी और जटिल होती है। उन्होंने देखा कि सफेदपोश अपराधियों को आमतौर पर पारंपरिक अपराधियों की तुलना में कम कठोर दंण्ड मिलता है। रेकलेस ने यह भी कहा कि सफेदपोश अपराधों के खिलाफ कानूनी तंत्र को मजबूत और अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है।
[4] अपराध के कारक : → रेकलेस ने सफेदपोश अपराधों के कारकों पर भी ध्यान दिया। उन्होने कहा कि यह अपराध आमतौर पर उच्च सामाजिक और आर्थिक वर्ग के लोगों द्वारा किया जाता है, जो अपने पद और अधिकार का दुरुपयोग करते हैं। उन्होने कहा कि ये लोग अपने कार्यों को नैतिक रूप से उचित ठहराने का प्रयास करते हैं और समाज भी अक्सर इन अपराधों को उतनी गम्भीरता से नहीं लेता ।
[5] समाज शास्त्रीय दृष्टिकोण: → रेकलेस ने सफेदपोश अपराध को समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखा, जहां उन्होने बताया कि ये अपराध सामाजिक सरंचना और आर्थिक असमनता से उत्पन्न होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सफेदपोश अपराधों की जड़ें सामाजिक मान्यताओं और मूल्यों में होती हैं, जो उच्चवर्ग को उनके कार्यों के लिये जिम्मेदार ठहराने से बचाते हैं।
Conclusion: → वाल्टर रेकलेस के विचारों ने सफेदपोश अपराधों के प्रति एक अधिक गम्भीर और व्यापक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सफेदपोश अपराध न केवल कानून और अर्थव्यवस्था के लिये बल्कि समाज के नैतिक ताने-बाने के लिये भी एक गम्भीर खतरा है। उन्होने अपराध के कारणों प्रकृति और प्रभावों पर गहराई से विचार करते हुये इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
समाज के उच्चवर्गीय सदस्यों द्वारा किये जाने वाले सफेदपोश अपराधों के विषय में बार्नस एण्ड टीटर्स ने लार्ड एक्टन के उद्गारों की उद्धृत करते हुये लिखा है कि "सत्ता - शक्ति लोगों को भ्रष्ट बनाती है और पूर्ण सत्ता उन्हें पूर्णतः भ्रष्ट कर देती है।" जब कभी लोग सरकार का कार्य-पद्धति से असन्तुष्ट हो जाते हैं तो उत्कोच [Grafts] व भ्रष्टाचार बढ़ जाता है तथा सरकारी कर्मचारियों की अपराधियों से साॅंठ-गाँठ बढ जाती है जिसके परिणाम स्वरुप न्यासभंग विश्वासघात, धोखा, बेईमानी, कपट आदि के कदाचारों [ malpractices] में वृद्धि होना स्वा- भाविक ही है।
America में second world war के time में राष्ट्रपति ट्रमैन के कार्यकाल में मुद्रा सामग्री की खरीद से सम्बन्धित कुख्यात फ्रेंडशिप रेकेट चर्चा का विषय रहा था जिसमें राष्ट्रपति के निकटस्थ अधिकारियों ने ठेकेदारों के साथ साॅंठ-गाँठ कर देश की आर्थिक व्यवस्था को चरमरा दिया था। ब्रस कैटन [Bruce cation] द्वारा लिखित "दि वार लार्ड्स ऑफ वाशिंगटन में Second world war के दौरान देश के प्रति व्यापारियों की लापरवाही और गैर- जिम्मेदारी की कहानी का पर्दाफाश किया है।
उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि सफेदपोश अपराधी बहुधा प्रज्ञावान, कुलीन, दूरदर्शी तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति होते हैं जबकि हिंसा अपराध सामान्यतः समाज के निम्नवर्गीय लोगों द्वारा किये जाते हैं। परन्तु सदरलैण्ड ने इस विचार से असहमति व्यक्त करते हुये कहा कि "सामान्य अपराधों तथा सफेदपोश अपराधों को व्यक्ति के सामाजिक स्तर पर आधारित करना अनुचित होगा। ऐसे अनेक मामले होते हैं जिनमें समाज के उच्चवर्गीय प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी हत्या बलात्कार, यौन उत्पीड़न, अपहरण आदि जैसे अपराधों के लिये कठोरतम दण्ड से दंडित किया जाता है जबकि समाज के लिये निम्न स्तरीय व्यक्ति दुव्यर्पदेशन, धोखा, कपट आदि सफेदपोश अपराध करते हैं।
Classification of white collar crime:→ सैद्धान्तिक दृष्टि से सफेदपोश अपराधों को चार विभिन्न वर्गों में रखा जा सकता है। जो निम्न अनुसार हैं→
[1] तदर्थ सफेदपोश अपराध: → इन्हें वैयक्तिक सफेदपोश अपराध भी कहा जाता है क्योंकि इसमें अपराधी अपना उद्देश्य उसके अपराध के Target व्यक्ति के सामने आये बिना ही साध्य कर लेता है। जैसे कम्प्यूटर पर हैकिंग, online tranaction fraud सम्बन्धित शिकायतें, क्रेडिट कार्ड सम्बन्धी धोखाधड़ी, टैक्स - चोरी आदि । इसमें अपराधी को उस व्यक्ति जो इस अपराध का शिकार होता है के सामने आने की आवश्यकता नहीं होती है और उससे आमना-सामना हुये बिना ही वह अपने अपराध लक्ष्य साधने में सफल हो जाता है।
[2] white collar crime involving breach of trust or breach of faith: → आर्थिक गबन भीतरी -घात व्यापार कूट रचित वेतन- देयक आदि ऐसे सफेदपोश अपराध हैं जो मूलतः विश्वास भंग या न्यास भंग पर आधारित होते हैं।
[3.] व्यापारिक गतिविधि के अंग के रूप में कारित सफेदपोश अपराध: → कभी-कभी अपने व्यापार को बनाये रखने या उसमें वृद्धि करने की नीयत से व्यक्ति यदि अपराध करता है जो उसे व्यापारिक दृष्टि से लाभ पहुंचाने के लिये कारगर सिद्ध होते हैं। कॉपीराइट या ट्रेडमार्क का उल्लंघन या पेटेंट की चोरी या नकल आदि इसके उदाहरण हैं।
सफेदपोश अपराध [white collar crime ] कई चर्चित मामले हैं जो न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में भी सामने आये हैं। इन मामलों में आमतौर पर बड़ी कम्पनियों, उच्च पदस्थ व्यक्तियों और सरकारी अधिकारियों का नाम आता है। यहां कुछ प्रमुख उदाहरण दिये गये हैं।
[1] सत्यम कम्प्यूटर घोटाला : 2009 में भारत की एक प्रमुख IT Company satyam computer Services limited संस्थापक और चेयरमैन रामलिंगा राजू ने स्वीकार किया कि उन्होने कंपनी के वित्तीय खातों में हेराफेरी की थी। उन्होंने फर्जी खातों के जरिये कंपनी की संपत्ति और लाभ को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया था।
• प्रभाव : इस घोटाले से निवेशकों का भारी नुकसान हुआ और सत्यम कंपनी की साख खत्म हो गयी। इसके बाद कंपनी का टेकओवर कर लिया गया और इसमें सुधार के प्रयास किये गये।
[2] किंगफिशर एयरलाइंस घोटाला:
• विवरण: किंगफिशर एयरलाइन्स के मालिक विजय माल्या पर कई बैंकों से भारी कर्ज लेकर उसे चुकाने में असफल रहने का आरोप है। विजय माल्या ने एयरलाइन्स को बचाने के लिये बड़ी मात्रा में धन उधार लिया था। लेकिन कंपनी का कारोबार ठप हो जाने के बाद वह देश छोड़कर भाग गया।
• प्रभाव : विजय माल्या के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की गयी और उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया। उनके खिलाफ मनी लॉन्डरिंग और वित्तीय धोखाधड़ी के आरोप भी लगाये गये।
[3] PNB घोटाला [ Nirav Modi Scam]!→
• विवरण: → 2018 में पंजाब नेशनल बैंक (PNB) में एक बड़ा घोटाला सामने आया, जिसमें मशहूर जौहरी नीरव मोदी और उनके रिश्तेदार मेहुल चौकसी पर बैंक से करीब ₹ 11000 करोड की धोखाधड़ी का आरोप लगा। उन्होंने फर्जी गारंटी पत्र [LOUS] के माध्यम से विदेशी बैंकों से कर्ज लिया था।
• प्रभाव : → इस घोटाले ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली की खामियों को उजागर किया और बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता और नियंत्रण की मांग को बढ़ावा दिया। नीरव मोदी और मेहुल चौकसी देश छोड़कर भाग गये और उनके खिलाफ इंटरपोल ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया।
[4.] एनरॉन घोटाला [Enron Scandal]!→ • विवरण:→ यह मामला अमेरिका का है, जहां 2001 में एनरॉन कॉर्पोरेशन नामक कंपनी पर बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का आरोप लगा। कंपनी ने अपने खातों में बडे पैमाने पर हेरफेर की और अपने निवेशकों को गुमराह किया। एनरॉन के उच्च अधिकारियों ने कंपनी के असली वित्तीय हालात को छुपाया और कम्पनी के शेयरों को बढ़ावा दिया।
• प्रभाव : → इस घोटाले ने अमेरिकी कॉर्पोरेट गवर्नेस और ऑडिटिंग प्रक्रियाओं की कमजोरियों को उजागर किया। एनरॉन का दिवालियापन हो गया और इसके कई शीर्ष अधिकारियों को जेल की सजा हुई।
[5] Harshad Mehta Scam:: → 1992 में भारतीय शेयर बाजार में Harshad Mehta. नामक एक स्टॉकब्रोकर ने बैंकिंग सिस्टम में खामियों का फायदा उठाकर 4000 करोड़ रुपये का घोटाला किया। उसने बैंकों के धन का उपयोग कर शेयर बाजार में बड़े पैमाने पर खरीदारी की, जिससे बाजार में उछाल आया।
• प्रभाव : : → इस घोटाले से भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट आई और निवेशकों को भारी नुकसान हुआ । इसके बाद सरकार ने सेबी [SEBI को मजबूत बनाने और बाजार में पारदर्शिता लाने के लिये कई सुधार किये।
सफेदपोश ये कुछ प्रमुख उदाहरण हैं जो अपराधों की गंभीरता और इनके को दर्शाते हैं। ऐसे अपराध व्यापक प्रभाव समाज और आर्थिक अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का पहुंचाते हैं और इनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई और सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता होती है।
सदरलैण्ड द्वारा white collar crime को इस प्रकार परिभाषित किया "यह एक ऐसा अपराध है जिसे किसी व्यक्ति द्वारा जो सम्मानजनक और उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा वाले होते हैं अपने व्यवसाय के दौरान किया जाता है।
सदरलैण्ड के विचार:: →
[1] अपराध का वर्गीकरण: : → सदरलैण्ड ने बताया कि पारंपरिक रूप से अपराधों की निम्न वर्ग से जोड़ा जाता था, जबकि उच्च वर्ग द्वारा किये गये अपराधों को नजर अंदाज किया जाता था।
उन्होने तर्क दिया कि उच्च वर्ग के लोग जो सम्मानजनक पेशों में होते हैं अक्सर अपने पद का दुरुपयोग करते हैं और धोखाधडी, भ्रष्टाचार और वित्तीय हेराफेरी जैसे अपराध करते हैं।
[2] कानूनी और सामाजिक प्रतिक्रियायें : → सदरलैण्ड ने यह भी कहा कि white collar crime. के प्रति समाज और कानून की प्रतिक्रिया अक्सर कम कठोर होती हैं क्योकि इन्हें शारीरिक हिंसा के बिना, "सम्मानजनक" तरीके से किया जाता है। इसके विपरीत पारंपरिक अपराधों के लिये सख्त सजा दी जाती है, भले ही उनके सामाजिक और आर्थिक प्रभाव अपेक्षाकृत कम हों।
[3.] समाज पर प्रभाव : → सदरलैण्ड ने white Collar crime को समाज के लिये बहुत हानिकारक बताया है, क्योंकि ये अपराध न केवल वित्तीय नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि समाज में नैतिक और सामाजिक ढांचे को भी कमजोर करते हैं उन्होने कहा कि इन अपराधों का प्रभाव बहुत ही व्यापक होता है। और इससे समाज में विश्वास की कमी हो जाती है।
निष्कर्ष: → सदरलैण्ड ने अपने अध्ययन के माध्यम से यह दिखाया कि अपराध केवल निम्नवर्ग का कार्य नहीं है, बल्कि यह उच्च वर्ग में भी व्यापक रूप से पाया जाता है। उनकी यह परिभाषा और अध्ययन क्रिमिनोलॉजी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है. और इससे समाज में अपराध की समझ में एक नया दृष्टिकोण जुड़ा।
white collar crime से सम्बन्धी सदरलैण्ड के विचारों की आलोचना :→
अनेक विद्वानों ने सदरलैण्ड द्वारा दी गई सफेदपोश अपराध की परिभाषा की आलोचन की है। कोलमन एवं मोयनीहन (Coleman & Moynihan) के अनुसार यह सुनिश्चित करने हेतु कोई निश्चित आधार या मापदण्ड नहीं है सदरलैण्ड द्वारा दी गई परिभाषा में प्रयुक्त पक्ष "प्रतिष्ठित और सम्भ्रान्त प्रास्थिति वाले व्यक्ति" के अन्तर्गत वास्तविक रूप से किन व्यक्तियों का समावेश है। उनके विचार से सम्भवतः सदरलैण्ड ने उन व्यक्तियों को प्रतिष्ठित एवं सम्भ्रान प्रास्थिति का माना है जिनके विरुद्ध कोई पूर्व-दोषसिद्धि का रिकार्ड नहीं है। इसी प्रकार सदरलैण्ड द्वारा प्रयुक्त पद "उक्त सामाजिक प्रास्थिति" (High social status) भी भ्रामक है। सरदलैण्ड ने स्वयं भी सफेदपोश अपराधियों को उच्च सामाजिक प्रस्थिति वाले व्यक्तियों तक सीमित न रखते हुए मध्य और यहाँ तक कि निम्न वर्ग के लोगों द्वारा कारित चोरी, कालाबाजारी और धोखाधड़ी के मामले को भी सफेदपोश अपराध माना है। इसीलिए कुछ विद्वानों के मतानुसार इन अपराधों को सफेदपोश अपराध कहे जाने के बजाय व्यावसायिक अपराध कहना अधिक उचित एवं तर्कसंगत होगा।
सदरलैण्ड द्वारा दी गई सफेदपोश अपराध की परिभाषा की आलोचना इस आधार पर भी की गई है कि वस्तुतः सफेदपोश अपराध का महत्वपूर्ण तत्व व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा या प्रास्थिति न होकर अपराध का स्वरूप एवं वे परिस्थितियाँ हैं जिनमें कि वह कारित हुआ है। इनमें सामान्यतः उठाईगिरी (Pilfering) मिथ्या लेखा (झूठा हिसाब-किताब रखना), रिश्वतखोरी, परन्तु इसे व्यावसायिक कार्य के अनुक्रम में नहीं किया जाता है। गबन आदि का समावेश है। सदरलैण्ड द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार कर-अपवंचन को सफेदपोश अपराध नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि यद्यपि यह व्यक्ति के कार्य से सम्बन्धित है। कुछ आलोचकों का मत है कि अपने विशिष्ट स्वरूप के कारण इन अपराधों के अन्तर्गत होने वाली आपराधिक कार्यवाहियाँ विशिष्ट आयोगों अधिकरणों तथा मण्डलों की अधिकारिता के अन्तर्गत आते हैं न कि सामान्य आपराधिक न्यायालयों के। अतः कानूनी दृष्टि से इनकी दोषसिद्धि न होने के कारण इन्हें सही अर्थ में 'अपराधी' की श्रेणी में रखा जाना अपराध की सर्वमान्य विधिक परिभाषा से हटना होगा क्योंकि ऐसी दशा में इन कैसों को निपटाने में वैधानिक प्रावधानों की बजाय प्रशासकों की वैयक्तिक धाराणाओं को ही अधिमान्यता मिल जाएगी। हमारे समाज में सफेदपोश अपराध करने वाले व्यक्ति हैं? चिकित्सक, वकील, अभियांत्रिकी व्यवसाय अर्थात् इंजीनियर, प्राइवेट शिक्षण संस्थाएँ।
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