Skip to main content

कानूनी नोटिस और नोटिस वापसी: प्रक्रिया, महत्व और चुनौतियाँ

तलाक क्या होता है? तलाक को कितने भागों में बांट सकते हैं जोकि महत्वपूर्ण हो?What is divorce? How many parts can divorce be divided into that are important?

विवाह, एक पवित्र बंधन, जिसके माध्यम से दो व्यक्ति जीवन भर साथ रहने का वादा करते हैं। इस्लाम में भी विवाह को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन कुछ परिस्थितियों में तलाक का विकल्प भी मौजूद है। मुस्लिम विधि में तलाक को तलाक कहा जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विवाहित जोड़ा कानूनी रूप से अलग हो जाता है। 


    मुस्लिम विधि में तलाक अर्थात विवाह-विच्छेद अत्यन्त आसान है। । यहाँ पति तीन बार तलाक शब्द का उच्चारण कर आपनी पत्नी को कभी भी तलाक दे सकता है। पत्नी की विशेष परिस्थितियों में अपने पति को तलाक देने का अधिकार है। यदि तलाक लिखित में दिया जाता है तो उसे तलाकनामा कहा जाता है। इसका यथासम्भव अरबी भाषा में होना अपेक्षित है। 

तलाक के प्रकार:

 [1] रज्जी तलाक : यह तलाक पति द्वारा तीन बार तलाक शब्द उच्चारण करने से होता है। प्रत्येक उच्चारण के बीच एक ईद्दा काल होता है। जिसमें सुलह की संभावना रहती है। 

[2] खुला तलाक : इसमें पत्नी पति को तलाक के बदले में मेहर  विवाह अनुबन्ध में निर्धारित धनराशि का त्याग करके तलाक प्राप्त कर सकती है। खुला का अर्थ है परित्याग करना । इसमें पति का अपनी पत्नी पर प्रभुत्व समाप्त हो जाता है। यदि ऐसा पत्नी की प्रेरणा पर किया जाता है और पति की पत्नी की ओर से कुछ प्रतिशत प्रतिकार दिया जाता है तो वह खुला द्वारा तलाक कहलाता है। 


[3] मुबारात तलाक : पति एवं पत्नी दोनों की आपसी सहमति से होने वाला तलाक है। जिसमें दोनों पक्ष तलाक के लिये राजी होते हैं और मेहर का
विवरण तय करते हैं।


 उदाहरण : 

मान लीजिये रियाज और सानिया का विवाह हुआ है। कुछ समय बाद उनके बीच मतभेद उत्पन्न होते है और वे अलग रहने लगते हैं। रियाज, सानिया को तलाक देना चाहता है।


 राज्जी तलाकः-

 [1] रियाज सानिया को तलाक कहता है। 


[2] तीन महीने का ईद्दा काल होता है। जिसमें दोनों पक्ष सुलह का प्रयास कर सकते हैं।

 [3] यदि वे सुलह नहीं करते हैं। तो रियाज दूसरी बार तलाक कहता है।

 [4] दूसरा ईद्दा  काल होता है।

 [5] यदि वे फिर भी सुलह नहीं करते हैं तो रियाज तीसरी बार तलाक कहकर तलाक को अंतिम रूप दे देता है।

 तलाक के बादः

 • तलाक के बाद ईद्दा काल समाप्त होने पर सानिया नये विवाह के लिये स्वतंत्र हो जाती है। 

• रियाज की ईद्दा काल के दौरान सानिया का भरण-पोषण करना होता है ।

• यदि उनके बच्चे हैं तो रियाज को उनकी जिम्मेदारी भी उठानी होगी।

 न्यायिक विवाह - विच्छेद : 

मुस्लिम विवाह - विच्छेद (अधिनियम 1939 में स्त्रियों को तलाक के विशेष अधिकार दिये गये हैं। इन आधारों पर पत्नी अपने पति को तलाक दे सकती हैं। इस अधिनियम की धारा 2 में उल्लेख किया है ।

विवाह - विच्छेद की आज्ञप्ति के आधार:

 मुस्लिम विधि में विवाह - विच्छेद करने की आज्ञप्तियों के आधारों को कई भागों में बांटा गया है। जिनमे से कुछ महत्त्वपूर्ण विन्दुओं के बारे में हम अभी चर्चा  करेंगे।

[1] यह कि चार साल से पति का पता नहीं है। यदि आज्ञप्ति पारित होने के छह महीने के अन्दर यह उपस्थित हो जाता है तो ऐसी आज्ञप्ति को असफल घोषित कर दिया जायेगा।

 [2] यह कि दो साल से पति ने उसके निर्वाह में चूक की हो या उसका वित्तीय भत्तों का प्रबन्धन करने में असफल रहा हो।


 [3] यदि किसी के पति को सात साल या अधिक के कारावास का आदेश हो गया है। बशर्ते कि ऐसा. आदेश अन्तिम हो।

 [4] यह कि पति ने तीन साल से बिना युक्तियुक्त कारण के अपने वैवाहिक दायित्वों का पालन नहीं किया है। 

[5] यह कि पति विवाह के समय नपुंसक था और वैसा ही अब तक चला आ रहा है।। यदि वह न्यायालय के आदेश के एक वर्ष के अन्दर यह साबित कर दे कि वह नपुंसक नहीं ।
गया है तो ऐसी आज्ञप्ति पारित नहीं की जायेगी।

 [6] यह कि पति दो साल से पागल है या किसी कुष्ठ' या विषैले रतिजन्य रोग से पीडित है। 

     जहाँ तक निर्देयता का प्रश्न है धारा 2(8) में निर्दयतापूर्ण कृत्यों का उल्लेख किया गया है। ये सारे कृत्य निर्दयता की परिधि में आते हैं। पति द्वारा पत्नी पर, परपुरुष गमन का मिथ्या आरोप लगाना निर्दयता है। पत्नी को अपमानित करने के लिये दूसरा विवाह करना निर्देयता है। लेकिन पति द्वारा तीसरा विवाह कर उसका एक दिन पूर्व पत्नी के साथ नहीं रहना निर्देयता नहीं है। 


तलाक के प्रभाव : 

[१] तलाक पर दूसरा विवाह करने का आकार मिल जाता है।

 [b] मेहर की राशि देय हो जाती है। 

[C] पारस्परिक इर्स के अधिकार समाप्त हो जाते हैं।

 [d] समागम "अवैध हो जाता है. 

[e] पत्नी इद्धत की अवधि तक भरण-पोषण पाने की हकदार हो जाती है। 

     मुस्लिम विवाह में तलाक से जुड़े मामलों में दोनों विकल्प मौजूद है। एक तो कोर्ट के माध्यम से और दूसरा है मुस्लिम विधि के अनुसार। 


[1] धार्मिक आधार पर तलाक : 

• रज्जी तलाक [ पति द्वारा तीन बार "तलाक " बोलना  या खुला तलाक [पत्नी द्वारा मेहर का त्याग करके तलाक प्राप्त करना] जैसे तरीकों से तलाक दिया जा सकता है। 

• धार्मिक दृष्टिकोण से इन तलाकों को मान्य माना जाता है भले ही वे अदालत में पंजीकृत न हो। 

• हालांकि यह ध्यान रखना सहत्वपूर्ण है कि भारत में मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अधिनियम 2019 लागू है। यह अधिनियम रज्जी तलाक को गैर- कानूनी घोषित करता है, और महिलाओं को तलाक के समय मेहर भरण-पोषण और गुजारा - भत्ता जैसे अधिकार प्रदान करता है।


[2] अदालती प्रक्रिया : 1

 • मुस्लिम भी तलाक के लिये अदालत  की ओर रुख कर सकते हैं। 

• यह. विभिन्न grounds पर हो सकता है जैसे क्रूरता, तलाक का न उच्चारण ,खर्च न देना बहुविवाह और अन्य । 

• अदालतें तलाक मेहर, भरण-पोषण, और मुलाकात के अधिकारों सहित सभी मामलों का निपटारा करती है।

 • अदालती फैसलें धार्मिक रूप से मान्य होते हैं और कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं। 

महत्त्वपूर्ण बिन्दुः

 • मुस्लिम विवाह में तलाक के लिये धार्मिक और कानूनी दोनों प्रक्रियायें मौजूद हैं। 

धार्मिक तलाक. कानूनी रूप से मान्य हो सकता है, लेकिन यह महिलाओं के अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।

 • अदालती प्रक्रिया में महिलाओं को बेहतर सुरक्षा और अधिकार मिलते हैं।

 • तलाक का निर्णय लेने से पहले सभी पहलुओं पर विचार करना महत्त्वपूर्ण है और यदि आवश्यक हो तो कानूनी सलाह भी लेनी चाहिये। 

 निष्कर्षः 

मुस्लिम विधि में तलाक एक जटिल विषय है जिसमें कई पहलुओं पर विचार करना होता है। यह महत्त्वपूर्ण है कि विवाहित जोडे अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझे।

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद ...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...